बीकानेर 21 जनवरी । अजित फाउण्डेशन द्वारा मासिक संवाद श्रृंखला के तहत वरिष्ठ उस्ता कलाकार मोहम्मद हनीफ उस्ता का ‘‘उस्ता कला का उद्भव, विकास और वर्तमान परिदृष्य’’ विषय पर संवाद आयोजन किया गया ।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता मोहम्मद हनीफ उस्ता ने कहा कि उस्ता कला को समूचित प्रोत्साहन एवं संरक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मध्यकालीन उस्ता कला ने बीकानेर के महलों, हवेलियों, मन्दिरों को अपने रंगों से सरसब्ज बना दिया। उन्होंने कहा कि इस सुनहरी कला ने स्थानीय रंगों को आत्मसात कर लिया। उन्होने कहा कि उस्ता कलाकार अलीरज़ा ने महाराजा अनूप सिंह के स्वप्न अनुसार ‘‘भगवान लक्ष्मीनारायण’’ का चित्र बनाकर साकार कर दिया था। उन्होंने बताया कि आधुनिक युग में उस्ता कलाकारों ने ऊंट के चमड़े, हाथी दांत, संगमरमर, लकड़ी की कलाकृतियों पर सुनहरी कलम से कार्य कर देष विदेष में इस कला को पहुंचाया दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कथाकार अशफाक कादरी ने कहा कि बीकानेर की विरासत उस्ता कला को नई पीढ़ी से जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बीकानेर की विलुप्त प्रायः कला को बचाने के लिए सत्त संवाद की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उस्ता कला बीकानेर की पहचान है।
डॉ. अजय जोशी ने संस्था की तरफ से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि कलाओं के विकास के लिए रेाजगार से जोड़ने की आवश्यकता है।
संस्था कार्यक्रम समन्वयक संजय श्रीमाली ने कार्यक्रम के शुरूआत में संस्था की गतिविधियों के बारे में प्रकाश डाला तथा विषय प्रर्वतन करके संवाद के महत्व के बारें में बताया।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित उस्ता कलाकार अयूब अली उस्ता, अब्दुल लतीफ उस्ता, हैदर अली उस्ता, कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार, साहित्यकार नदीम अहमद नदीम, इमरोज नदीम, डॉ. रितेश व्यास, गिरिराज पारीक, मोहम्मद फारूक चौहान, डॉ. अजय जोशी, बाबूलाल छंगाणी, रवि अग्रवाल ने चर्चा में भाग लिया।
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