बीकानेर। भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा आज दिनांक को उरमूल सीमांत समिति बज्जू के साथ ‘पश्चिमी राजस्थान में आजीविका सुरक्षा और उद्यमिता के लिए ऊँटनी के दूध की संभावनाएं’ विषयक एक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें एनआरसीसी के पंचवर्षीय पुनर्विलोकन दल (क्यू.आर.टी.) ने उरमूल सीमांत समिति की गतिविधियों से रू-ब-रू होते हुए इससे जुड़े उष्ट्र हितधारकों की समस्याओं व व्यवसाय संबंधी चुनौतियों को जाना। परिचर्चा में एनआरसीसी वैज्ञानिकों, समिति पदाधिकारियों एवं उष्ट्र हितधारकों सहित लगभग 60 प्रतिभागियों ने शिरकत कीं।परिचर्चा के दौरान क्यूआरटी चैयरमैन प्रो.एम.पी.यादव, पूर्व निदेशक, आई.वी.आर.आई एवं पूर्व कुलपति सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ ने कहा कि ऊँट आज भी एक प्रासंगिक पशु है क्योंकि पशु से जुड़े प्रत्येक उत्पाद(भाग) को आमदनी का अच्छा स्रोत बनाए जाने की प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं, बशर्ते एकाग्रता से इस दिशा में आगे बढ़ा जाए, इससे उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास को भी बल मिल सकेगा। प्रो.यादव ने ऊँटों की घटती संख्या, कम होती पारम्परिक उपयोगिता, परिवर्तित परिदृश्य के साथ इस व्यवसाय में आने वाली समस्याओं व चुनौतियों आदि के संबंध में स्टेक होल्डर्स के साथ खुलकर चर्चा तथा प्रोत्साहित करते हुए नए विकल्पों के साथ उद्यमिता से जुड़ने की बात कहीं।केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू परिचर्चा में सहभागी उष्ट्र हितधारकों को संबोधित करते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध में औषधीय गुणों की भरमार हैं तथा एनआरसीसी एवं वैश्विक अनुसंधानों से यह इसकी कारगरता जगजाहिर है, अत: इसी आधार पर उसका बाजार भाव तय करने की सोच बनानी होगी साथ ही उपभोक्ताओं को दूध की समुचित आपूर्ति हेतु ऊँटनी के दूध का अधिकाधिक संग्रहण किया जाए, इससे पशुपालकों की आजीविका में अपेक्षित सुधार हो सकेगा । उन्होंने पशुओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निराकरण हेतु केन्द्र से सम्पर्क साधने की बात कहीं । डॉ.साहू ने कहा कि ऊँट से प्राप्त उत्पादों खासकर इसकी ऊन इस्तेमाल पर पशुपालकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, इससे अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है।क्यूआरटी टीम के सदस्यों के रूप में डॉ. जी.एस.राम, पूर्व विभागाध्यक्ष, इम्यूनोलॉजी डिवीजन, आई.वी.आर.आई., इज्जतनगर ने उष्ट्र हितधारकों को पशुओं के स्वास्थ्य आदि से जुड़ी अद्यतन जानकारी एवं निराकरण के लिए उरमूल के माध्यम से एनआरसीसी वैज्ञानिकों से वार्ता कर इन्हें सुलझाने की बात कही। इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल एवं डॉ. राकेश रंजन एवं डॉ.काशीनाथ, पशु चिकित्सक ने पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन, उनमें स्वच्छता के महत्व, बेहतर प्रबंधन आदि पर अपने विचार रखें।उरमूल सीमांत समिति कार्यकर्ता श्री रोमल व सुश्री प्रेरणा ने संस्था की कार्यप्रणाली से क्यूआरटी टीम को अवगत करवाते हुए कहा कि समिति, पशुपालकों के लाभार्थ ऊँटनी के दूध संग्रहण का कार्य कर रही है। उन्होंने एनआरसीसी के माध्यम से ऊँटों के स्वास्थ्य एवं रखरखाव आदि हेतु मिलने वाले महत्वपूर्ण सहयोग एवं आयोजित परिचर्चा के महत्व के संबंध में कहा कि ऐसी गतिविधियों के माध्यम से ऊँट प्रजाति व ऊँट से जुड़े एन्टरप्रेन्योर को गति प्रदान की जा सकेगी। ।इस दौरान उष्ट्र हितधारकों ने चैयरमैन के समक्ष अपनी दूध विपणन एवं व्यवसाय, स्वास्थ्य समस्याओं एवं चरागाह से जुड़ी समस्याओं के बारे में अवगत करवाया। एनआरसीसी क्यूआरटी टीम के समक्ष समिति ने ऊँट/भेड़ के मिश्रित बालों से बने उत्पाद भी प्रदर्शित किए। ऊँट मिंगणी खेतो में इस्तेमाल करने की बात कही गई। धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. सुमन्त व्यास, प्रधान वैज्ञानिक ने ज्ञापित किया।दोपहर पश्चात् केन्द्र में क्यूआरटी बैठक के दूसरे दिन की कार्रवाई पूर्ण की गई तथा इस अवसर पर केन्द्र की आईटीएमयू द्वारा तैयार प्रकाशन कैमल मिल्क प्रोसेसिंग एण्ड प्रोडेक्टस-2023’ (लेखक गण- डॉ. योगेश कुमार, डॉ.आर्तबन्धु साहू, डॉ.आर.के.सावल) का विमोचन चैयरमैन प्रो.एम.पी.यादव के कर कमलों से किया गया।
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