एनकाउंटर में बेगुनाह राठौड़ ने 51 दिन काटी जेल:भंवरी कांड में बंद रहे मदेरणा के बगल में तकिया लगाकर सोए, अब बने 23वें विपक्ष के नेता
भाजपा विधायकों का समर्थन मिलने के बाद आलाकमान ने उपनेता प्रतिपक्ष से प्रमोशन कर राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बना दिया है। अब वे विधानसभा में 23वें नेता प्रतिपक्ष बन कर भाजपा विधायकों का नेतृत्व करेंगे।
यह वह पद है, जिस पर होते हुए भाजपा के दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति जैसे पदों पर विराजमान हुए थे। बताया था कि राठौड़ ही नेता प्रतिपक्ष होंगे, भाजपा और संघ पदाधिकारियों की सेवा सदन की शुक्रवार की बैठक में यह निर्णय हो चुका था।
भाजपा में कहा जाता है कि अशोक गहलोत की राजनीति को भाजपा में कोई समझ सकता है, तो वो राजेंद्र राठौड़ हैं। राठौड़ विधानसभा में फ्लोर मैनेजमेंट के मास्टर हैं। कई बार चतुराई से सत्ता पक्ष के सामने संकट खड़ा किया है। कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को कई बार अपने सवालों में अटकाया है।
सदन में गंभीर से गंभीर विषय पर बोलते हुए उनके बीच-बीच में चुटकी लेने का उनका अंदाज भी काफी लोकप्रिय है। सड़क से सदन तक सक्रिय भूमिका निभाने वाले राठौड़ को गुलाब चंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनने के बाद विपक्ष के विधायकों की कमान सौंपी गई थी।
साल 2012 में राजेंद्र राठौड़ को एनकाउंटर केस में गिरफ्तार किया गया था। फाइल फोटो
जब जेल में बंद राठौड़ से नहीं मिल पाए थे पिता और भाई
वसुंधरा राजे सरकार के दौरान अक्टूबर, 2006 में स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने शराब तस्कर दारासिंह उर्फ दारिया का एनकाउंटर किया था। दारिया की पत्नी सुशीला देवी ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए आरोप लगाया था कि राजेंद्र राठौड़ के कहने पर पुलिस ने दारासिंह की हत्या के लिए फर्जी मुठभेड़ की है।
सुशीला देवी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी। इस पर 23 अप्रैल 2010 को सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी। इस मामले में सीबीआई ने राजेंद्र राठौड़, तत्कालीन एडीजी एके जैन सहित 17 लोगों को आरोपी बनाया था। राठौड़ को अप्रैल, 2012 में जेल जाना पड़ा था।
जयपुर जेल में राठौड़ उसी सेल में रहे, जिसमें भंवरी देवी अपहरण और हत्याकांड के आरोपी गहलोत सरकार में मंत्री रहे महिपाल मदेरणा बंद थे। उन्हें सोने के लिए दरी और तकिया दिए गए थे। कोर्ट ने उनके लिए जेल में घर के खाने को भी अलाउ किया था, लेकिन जेल में गंदगी, गंदा पानी, गंदे टॉयलेट आदि को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी।
जेल में राठौड़ से मिलने पहुंचे पिता उत्तमचंद और भाई रघुवीर को राठौड़ से मिलने नहीं दिया गया था। राठौड़ के लिए घर से खाना भेजा गया था, लेकिन उन्होंने खाने से इनकार कर दिया था। जेल प्रशासन की समझाइश के बाद उन्होंने शाम को खाना खाया था। रात में महिपाल मदेरणा के पास दरी-तकिया लगाकर सोए थे।
राजेंद्र राठौड़ ने 51 दिन जेल में बिताए और उसके बाद कोर्ट ने उन्हें आरोप मुक्त कर दिया था। वे बरी हो गए थे। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था। फाइल फोटो
राठौड़ ने सार्वजनिक करवाए थे इस्तीफा देने वाले 91 विधायकों के नाम
25 सितंबर को राजस्थान कांग्रेस में हुई बगावत के बाद शुरू हुए इस्तीफा विवाद को राजेंद्र राठौड़ ही हाईकोर्ट लेकर गए थे। उन्होंने अपनी याचिका में विधानसभा अध्यक्ष की ओर से 91 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार नहीं करने पर एतराज जताया था।
राठौड़ की याचिका पर हाईकोर्ट भी सख्त हुआ था। हाईकोर्ट ने उन सभी विधायकों के नाम भी मांगे, जिन्होंने इस्तीफा दिया था। हाईकोर्ट के रुख को भांपकर कांग्रेस ने आनन-फानन में अपने सभी विधायकों के इस्तीफे वापस करवाए थे। कांग्रेस यदि ऐसा नहीं करती तो बड़ा संकट खड़ा हो सकता था।
सदन में बोले थे- जहां कांग्रेस कम वहां गधे भी कम…कैसा संयोग
सदन में राठौड़ ने कई बार गंभीर मुद्दे उठाते हुए बीच-बीच में कांग्रेस की चुटकियां ली हैं। सबसे चर्चित चुटकी रही जब पिछले साल वे गधों की घटती संख्या पर सदन का ध्यान आकर्षित करवा रहे थे। उन्होंने कहा कि यह कैसा संयोग, जहां-जहां कांग्रेस हार रही, वहां-वहां गधों की संख्या ही कम होती जा रही है।
उन्होंने कहा कि 20वीं पशुगणना में उत्तर प्रदेश, पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड में गधों की संख्या में भारी कमी आई है। यह एक संयोग है, जहां गधे कम हो रहे हैं, उन राज्यों में कांग्रेस हार रही है। मुझे चिंता है कि पहले गधों के सींग गायब होते थे, लेकिन यहां तो गधे ही गायब हो रहे हैं। दो साल बाद चुनाव में यहां क्या होगा?
पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया अब राजेंद्र राठौड़ की लीडरशिप में विधानसभा में विपक्ष के उप नेता के रूप में काम करेंगे।
अडाणी पर उल्टा घेरा…हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और
कांग्रेस अडाणी को लेकर केंद्र सरकार पर हमेशा हमलावर रही है। राजेंद्र राठौड़ ने अडाणी को लेकर ही पिछले दो सालों में कई बार गहलोत सरकार को घेरा है। उन्होंने यहां तक कहा कि ये हिंडनबर्ग वाले को मैं एक बात कहना चाहता हूं, हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और हैं।
उन्होंने कहा था कि अडाणी को राजस्थान की जमीन लुटाना बंद करो। गहलोत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि फतेहपुर में 2019-20 में 900 बीघा जमीन अडाणी को दी, फिर 2020-21 में 25 हजार बीघा, फिर 2022 में जैसलमेर के सिम्भाड़ा में 400 बीघा, करालिया में 38 हजार बीघा, फिर फतेहगढ़ में 13 हजार बीघा, मोहनगढ़ में भी दी और 75 हजार बीघा जमीन अभी कैबिनेट में अप्रूवल में पड़ी है। 74 हजार बीघा की फाइलें राजस्व मंत्री के पास में पड़ी हैं।
राजेंद्र राठौड़ चूरू विधानसभा सीट से विधायक हैं।
भाजपा ने राठौड़ के जरिए राजपूत वोट बैंक को साधा
राजस्थान में राजेंद्र राठौड़ राजपूत समाज का भी बड़ा चेहरा हैं। भाजपा ने उनके जरिए राजपूत वोट बैंक को साधा है। राजस्थान के लिहाज से देखें तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जाट समाज से हैं, हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए सीपी जोशी ब्राह्मण समाज से हैं।
यहां राजपूत समाज को भाजपा का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। ऐसे में राठौड़ को चुनकर इस वोट बैंक को भी साधने का प्रयास किया है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण राजपूत समाज की नाराजगी को माना जाता है। राजपूतों का आरोप था कि भाजपा सरकार आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों पर उनकी सुनवाई नहीं कर रही है। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राठौड़ के जरिए जातीय समीकरण अपने हित में करने के प्रयास और मजबूत करने की कोशिश की है।
सियासी सफर…तीसरे, दूसरे के बाद आए पहले नंबर पर
चूरू जिले के हरपालसर निवासी राठौड़ जयपुर में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। उन्हें साल 1980 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने तारानगर से टिकट दिया था। वे बुरी तरह हारे और तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद फिर जनता दल ने 1885 में मौका दिया, वे जमकर लड़े, लेकिन दूसरे नंबर पर रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर(शॉल ओढ़े हुए) को वे अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। अपने रानजीतिक करियर की शुरुआत राजेंद्र राठौड़(दाढ़ी और चश्मे में) ने जनता दल से ही की थी।
इन दो चुनाव में हार के बाद फिर तीसरी बार साल 1990 में जनता दल ने ही मौका दिया। इस बार वे पहले नंबर पर रहे और विधानसभा पहुंचे।
साल 1993 में उन्हें भाजपा से टिकट मिला और जीते। इसके बाद से ही वे अब तक भाजपा की टिकट पर लगातार जीतते रहे हैं। 2008 तक वे तारानगर से विधानसभा पहुंचे और इसके बाद वे चूरू विधानसभा सीट से जीतते आ रहे हैं। वर्ष 2003 के बाद उनकी गिनती भाजपा के बड़े नेताओं में होने लगी।
राठौड़ संकट मोचक भी रहे और निलंबित भी हुए
राजेंद्र राठौड़ भाजपा की वसुंधरा सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री और 1990-93 में डिप्टी चीफ व्हिप के पद पर रहते हुए विधानसभा के सबसे अनुभवी सदस्यों में शामिल हैं। राठौड़ ने कई बार भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार के लिए संकट मोचक का काम किया।
राजे के पहले कार्यकाल में जब ललित मोदी को लेकर आरोप लगे थे तो राठौड़ सामने आकर कांग्रेस के हमलों का मुकाबला करते थे।
साल 2009 में विपक्ष में रहते भाजपा में उबाल आ गया था, तब राजेंद्र राठौड़ वसुंधरा राजे के नजदीकियों में शामिल थे और उन्होंने मोर्चा संभाला था। उस दौरान राजे नेता प्रतिपक्ष थी, भाजपा आलाकमान ने उनसे इस्तीफा मांग लिया था। राजे ने करीब 6 माह तक नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा नहीं दिया था। इसके लिए दिल्ली में विधायकों को लेकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।
तब राजेन्द्र राठौड़ और रोहिताश्व शर्मा ने बयान दिया था कि अगर वसुंधरा राजे को हटाया गया तो वे पार्टी छोड़ देंगे और नई पार्टी भी बना सकते हैं। इस बयानबाजी को अनुशासनहीनता मानते हुए राठौड़ और ज्ञानदेव आहूजा को निलंबित भी किया गया था।
हालांकि पार्टी के दबाव में वसुंधरा राजे ने फरवरी, 2010 में नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन एक साल बाद वसुंधरा राजे को वापस नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
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