शिक्षा प्रणाली व्यावहारिक कौशल के बजाय सैद्धांतिक समझ पर केंद्रित हो : कुलपति प्रो. अम्बरीष शरण विद्यार्थी
बीकानेर, 13 अगस्त, प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप एरडोरकॉम दुवारा नई दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित उच्च शिक्षा की समिट-2023 में बीकानेर तकनीकी विश्विद्यालय के कुलपति प्रो. अम्बरीष शरण विद्यार्थी ने विशेष सत्र में 21वीं सदी के कौशल का विकास, डिजिटल साक्षरता एवं कुशल कार्यबल बनाने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का योगदान विषय पर अपने विचार रखे। विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए जनसंपर्क अधिकारी विक्रम राठौड़ ने बताया कि मीडिया ग्रुप एरडोरकॉम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं विख्यात शिक्षाविदो ने शिकरत की, बतौर पैनल एक्सपर्ट के रूप में प्रो. विद्यार्थी ने शिक्षा नीति से जुड़े महत्तवपूर्ण मुद्दों पर विचार विमर्श किया और अपने सुझाव प्रस्तुत किए। इस अवसर पर मीडिया समूह के प्रमोटर चंदन आनंद द्वारा प्रो. विद्यार्थी का स्मृति चिन्ह प्रदान कर स्वागत किया गया।
कुलपति प्रो. अम्बरीष शरण विद्यार्थी ने विशेष सत्र में दिए अपने संबोधन में कहा कि एनईपी 2020 भारत में शिक्षा परिदृश्य को बदलने की दिशा में एक दृष्टिकोण है। शिक्षा व्यवस्था में समय के साथ आए सुधारात्मक परिवर्तन को हमें सच्चे मन से अपनाना होगा। लचीली शिक्षा व्यवस्था शिक्षा जगत के सभी हितधारकों के लिए नवीन सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह नीति शैक्षणिक संस्थानों और कॉरपोरेट्स दोनों के लिए एक साथ आने और उद्योग 4.0 की बदलती मांगों के अनुरूप छात्रों की क्षमताओं के पोषण में सक्रिय रूप से सहयोग करने के लिए अवसरों की एक विस्तृत श्रृंखला खोलती है। लगातार बदलती दुनिया में, शिक्षा प्रणालियों को समाज की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए अनुकूलित होना चाहिए। एनईपी 2020 छात्रों को आलोचनात्मक सोच में बेहतर बनाने के लिए उनके भीतर जन्मजात कौशल विकसित करने और पोषित करने पर जोर देता है। नई नीति पारंपरिक विज्ञान, कला और वाणिज्य क्षेत्रों के बीच की बाधाओं को तोड़ने का प्रयास करती है। यह 21वीं सदी के प्रासंगिक कौशल से लैस कार्यबल तैयार करने का समर्थन करती है जो एक बहु-विषयक दृष्टिकोण को जन्म देगी जहां छात्र विभिन्न क्षेत्रों, विचारों और डोमेन में समान रूप से कुशल होंगे। इस संदर्भ में, दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले भारत के विश्वविद्यालयों को अपने छात्रों को रोजागर के लिए तैयार करने और नए युग की उद्योग की मांगों और जरूरतों के लिए एक कौशल शिक्षा क्षेत्र पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत में शिक्षा मुख्य रूप से उच्च शिक्षा व्यावहारिक कौशल के बजाय सैद्धांतिक समझ पर केंद्रित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का उद्देश्य भारत में शिक्षा क्षेत्र के पाठ्यक्रम और भविष्य के प्रक्षेप पथ को सही करना है ताकि इसे रोजगार के क्षेत्र की आवश्यकताओं के साथ और अधिक समन्वयित किया जा सके। रोजगार के नवीन अवसर सृजित करने के लिए हमें इंडस्ट्रियल कोलोब्रेशन के साथ भी काम करना होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 परिवर्तनकारी साबित हो सकती है क्योंकि इसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाना है जो भारत की अगली पीढ़ी को न केवल नौकरी के योग्य बनाने में मदद कर सके, बल्कि उन्हें नौकरी देने वाला भी बना सके और देश के कार्यबल के लाभ के सही महत्व का अनुभव करा सके। भारत में नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों को तेजी से बदलती दुनिया के लिए तैयार करने के लिए उनमें 21वीं सदी के कौशल विकसित करने के महत्व पर जोर देती है। यह आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और सहयोग पर ध्यान देने के साथ रटने की बजाय अनुभवात्मक शिक्षा की ओर बदलाव की पैरवी करती है।काम कर सकें और नई प्रौद्योगिकियों और काम करने के तरीकों को अपना सकें। इसके अतिरिक्त, जिन व्यक्तियों के पास 21वीं सदी का कौशल है, वे आधुनिक दुनिया की चुनौतियों से निपटने और अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में सफल होने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हैं। कौशल हासिल करने के लिए निरंतर सीखने और विकास की आवश्यकता होती है।
विद्यार्थियों को पुन : अपनी संस्कृति से जोड़ने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारी भारतीय सभ्यता संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था काफी पुरातन है और एक वृहत सांस्कृतिक स्वरूप को लिए हुए हैं एवं हमारी प्राचीनतम शिक्षा व्यवस्था हमारे ऋषियों और मुनियों द्वारा ज्ञान पर आधारित है। प्राचीन काल में भारत में 18 विधाओं शिक्षा व्यवस्था की अपनी समृद्धशाली परंपरा रही हैं। जिसने विदेशी विद्यार्थियों को भारत में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आकर्षित किया हैं। विज्ञान, गणित, ज्योतिषी,रसायन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, खगोल विद्या जैसी कई अन्य महत्वपूर्ण विद्याए है जिन्होंने अपने समय में शिक्षा व्यवस्था के स्वर्णिम इतिहास को लिखा हैं। आधुनिकतम शिक्षा व्यवस्था के साथ विद्यार्थी अपनी मूल संस्कृति सभ्यता और आध्यात्मिक धर्म से विमुख होता जा रहा है इस कारण उन्हें सांस्कृतिक पुनर्जागरण की मुख्यधारा में शामिल करना अति आवश्यक हो गया है।
दुर्भाग्य से आज, शिक्षा को छात्रों की कमाई क्षमता बढ़ाने के लिए एक तरीके के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए विश्वविद्यालय का मानना है कि शिक्षा के साथ हमारे पैतृक ज्ञान को लागू करने के लिए हमें एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। हमारे भारतवर्ष के नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा, जग्गदल्ला, ओदांतापुरी, पुष्पगिरी जैसे विख्यात विश्वविद्यालय और उनकी एतिहासिक शिक्षा संस्कृति है जिसने देश विदेश में भारतवर्ष के शिक्षा व्यवस्था को एक वैश्विक मान्यता और पहचान दी है। हमें विद्यार्थी की जिज्ञासा का पोषण करते हुए उसे समाधान की स्थिति तक लेकर जाना, हमें विद्यार्थी को जिज्ञासु बनाना होगा उसकी सोचने, समझने और विश्लेषण करने के व्यापक दृष्टिकोण के गुण को विकसित करना होगा । सृजनशीलता के साथ हमारा विद्यार्थी अच्छा प्रदर्शन कर सकता हैं। उच्च शिक्षा में शोध, अनुसन्धान और अकादमिक उत्कृष्टता के साथ देश के विश्विद्यालयों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। हमें शैक्षणिक गुणवत्ता की और विश्वविद्यालय की रैंकिंग की और ध्यानाकर्षित करना होगा साथ ही हमें विधार्थियों के कौशल विकास एवं व्यक्तित्व विकास के लिए भी काम करना हैं। समय के साथ तकनीकी शिक्षा के नवाचारो को की भूमिका बढ़ी है परिणामस्वरूप हमें हमारे ज्ञान और कौशल में वृद्धि करनी होगी। प्रचलित पाठ्यक्रम में नवाचारो को अपनाने के साथ हमे तकनीकी शिक्षा में नए रोजगारपरक पाठ्यक्रम को अपनाना होगा ताकि हम विधार्थियों को रोजगारउन्मुखी शिक्षा प्रदान कर सके।
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