कांग्रेस ने बताए राजस्थान में हार के 5 कारण:गुर्जरों की नाराजगी, बीजेपी के ध्रुवीकरण को माना फैक्टर, अब नियुक्तियों में दिखेगा जाट-गुर्जर-ब्राह्मण त्रिकोण
जयपुर
कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी हार के लिए गुर्जरों की नाराजगी और भाजपा की ओर से वोटों के ध्रुवीकरण जैसे 5 कारण गिनाए हैं। कांग्रेस ने 69 सीटें जीतने को सम्मानजनक हार माना है। वहीं 20 सीटों पर 300 से 5000 वोटों के मार्जिन से हारी है।
अब पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटेगी, लेकिन पहले नेता प्रतिपक्ष, उपनेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक (विपक्ष) जैसे पदों पर नियुक्तियां होंगी। इन नियुक्तियों में जाट-गुर्जर-ब्राह्मण त्रिकोण देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही प्रदेशाध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी बदले जाने के संकेत भी मिले हैं।
इस बैठक में किन बिंदुओं पर चर्चा हुई, हार के कौन-कौनसे कारण आलाकमान के सामने रखे गए, आगे पार्टी में क्या बदलाव होने की संभावना है, पढ़िए इस रिपोर्ट में…
कांग्रेस ने बताए हार के ये 5 कारण
दिल्ली में शनिवार को कार्यवाहक सीएम अशोक गहलोत, सचिन पायलट, सीपी जोशी और हरीश चौधरी, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा की मौजूदगी में समीक्षा बैठक हुई थी। कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी हार के 5 प्रमुख कारण माने हैं…
समीक्षा बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी भी मौजूद थे।
1. गुर्जर समुदाय की नाराजगी
यह समुदाय राजस्थान में पांच सबसे बड़े मतदाता समूहों में से एक है, जिसकी करीब 70 सीटों पर बहुलता है। अजमेर, भरतपुर, दौसा, भीलवाड़ा, करौली, सवाईमाधोपुर, टोंक, जयपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़ आदि जिलों में पार्टी करीब 70 प्रतिशत सीटें हार गईं।
2. भाजपा की ओर हिंदू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण
कांग्रेस ने अपनी हार के सबसे बड़े कारणों में से एक ये माना है कि भाजपा की ओर से चुनाव में हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया गया। संत समाज के लोगों को टिकट देकर धार्मिक भावनाएं बढ़ाई गईं, इससे कांग्रेस को नुकसान हुआ।
3. संगठन की कमजोरी
बहुत से जिलों में संगठन की कमजोरी भी सामने आई। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की ओर से पर्याप्त भाग-दौड़ नहीं की गई। अजमेर उत्तर-दक्षिण, मालवीय नगर, विद्याधर नगर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पुष्कर, मालपुरा जैसी सीटें कांग्रेस एक बार फिर नहीं जीत पाई, जबकि भाजपा कोटपूतली, सपोटरा, नवलगढ़ जैसी सीटें जीत गईं, जहां वो लगातार 3 बार से हार रही थी।
4. नेताओं का घमंड पूर्ण रवैया
नेताओं की ओर से अनावश्यक बयानबाजी और घमंडपूर्ण रवैया अपनाने से कई सीटों पर पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी। यही कारण है कि भाजपा के पहली बार चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के सामने कांग्रेस के सीनियर और दिग्गज नेता ढेर हो गए।
5. बागियों को समय पर नहीं मना पाना
कांग्रेस को करीब 25 सीटों पर बागियों के साथ भी लड़ना पड़ा। वोटों का बंटवारा हुआ और नुकसान उठाना पड़ा। समय रहते बागियों को मना नहीं पाई।
पार्टी ने माना सम्मानजनक हार
पार्टी ने हार के कारण जरूर गिनाए, लेकिन इस आत्म विश्वास में भी है कि यह हार पिछले दो चुनावों 2003 और 2013 की तुलना में ज्यादा सम्मानजनक है। क्योंकि 69 सीटों पर जीत के साथ-साथ करीब 20 सीटों (कोटपूतली, कठूमर, जहाजपुर, भादरा, हवामहल, नसीराबाद, चोहटन, आसींद, नगर, जायल, करौली, डीडवाना, पचपदरा, सादुलपुर, ओसियां, गोगुंदा, निम्बाहेड़ा, अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, सांचौर, अंता और छबड़ा) में हार का अंतर 300 से लेकर 5000 वोटों के बीच ही रहा है। यह अंतर थोड़ी सी मेहनत से दूर किया जा सकता था।
बैठक में अशोक गहलोत, सचिन पायलट के बीच दूरियां भी साफ नजर आईं।
पायलट-गहलोत में दूरियां भी आईं नजर
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में पिछले पांच वर्षों में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जो दूरियां थीं, वे अब भी यथावत हैं और इसका असर अब तक बना हुआ है। इसकी एक झलक समीक्षा बैठक के दौरान भी नजर आई। दोनों ही नेता एक-दूसरे से दूरी बनाकर बैठे। विधानसभा चुनाव में दोनों की अदावत से सबक लेते हुए कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनावों से पहले ऐसे सभी कारणों को दूर करना चाहेगी।
पार्टी प्रदेशाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष जैसे पदों के लिए अभी से लॉबिंग शुरू हो गई है। इसमें जाट-गुर्जर-ब्राह्मण त्रिकोण का ख्याल रखा जाएगा। सूत्रों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में भी 6 नेता बताए जा रहे हैं।
इन 6 में से कोई बन सकता है नेता प्रतिपक्ष
1. हरीश चौधरी
ओबीसी आरक्षण, सामाजिक जनगणना, मारवाड़ में कांग्रेस की कमजोरी जैसे मुद्दों पर पिछले एक वर्ष में निर्वतमान सीएम अशोक गहलोत के मुखर विरोधी रहे हैं। वे भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के करीबी भी रहे और उन्हें बतौर सांसद व विधायक केंद्र व राज्य दोनों में काम करने का अनुभव है। पंजाब में पार्टी के प्रदेश प्रभारी भी रहे थे। जाट समुदाय में खास प्रभाव है। यह समुदाय प्रदेश का सबसे बड़ा मतदाता समूह है।
2. सचिन पायलट
पायलट कांग्रेस के बेहद प्रभावशाली नेता हैं। हाल ही में हुई पार्टी की हार के पीछे एक कारण उनकी गहलोत से नाराजगी को भी माना जाता है। पूर्वी और मध्य राजस्थान की लगभग 30 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की हार के पीछे भी गुर्जर मतदाताओं का प्रभाव माना गया है। उनके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए उन्हें भी नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। वे भाजपा सरकार को किसी भी और नेता की तुलना में ज्यादा बेहतर ढंग से विधानसभा में घेर सकते हैं।
3. गोविंद सिंह डोटासरा
डोटासरा अपनी सीट लक्ष्मणगढ़ से लगातार चौथी बार जीते हैं और शेखावटी क्षेत्र में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। एक बार उप नेता प्रतिपक्ष (2013-18) रह चुके हैं और वर्तमान में प्रदेशाध्यक्ष हैं। जाट समुदाय में उनके प्रभाव को देखते हुए उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। ऐसा होने पर प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी और को दी जा सकती है।
4. महेंद्रजीत सिंह मालवीया
मालवीया भी अपनी सीट बागीदौरा से लगातार चौथी बार जीते हैं और आदिवासी समुदाय से आते हैं। भाजपा जहां तीन राज्यों में जीत से उत्साहित होकर किसी एक राज्य में किसी आदिवासी नेता को सीएम बनाने पर विचार कर रही है, ऐसे में कांग्रेस राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के पद पर मालवीया को ला सकती है।
5. राजेंद्र पारीक
सीकर से लगातार दूसरी बार और कुल पांचवीं बार विधायक चुने गए राजेंद्र पारीक भी नेता प्रतिपक्ष के चेहरों में शामिल हैं। वे उद्योग और आबकारी मंत्री भी रह चुके हैं। ताकतवर मतदाता समूह ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। कांग्रेस उन्हें भी नेता प्रतिपक्ष के रूप में आगे कर सकती है, क्योंकि तार्किक ढंग से किसी भी विषय पर बोलने में दक्ष हैं।
6. नरेंद्र बुडानिया
सांसद, विधायक और कई वरिष्ठ पदों पर रहे नरेंद्र बुडानिया शेखावाटी और जाट समुदाय से आते हैं। ऐसे में वे एक मजबूत चेहरा हैं, जो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। हाल ही में उन्होंने तारानगर सीट से बीजेपी के दिग्गज और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ को हराकर राजनीतिक कद बढ़ाया है।
बैठक में केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की तैयारी करने को कहा है।
उप नेता प्रतिपक्ष और मुख्य सचेतक
विधानसभा में आम तौर पर विपक्ष की तरफ से उप नेता या मुख्य सचेतक के पद कोई संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं होते हैं, लेकिन यह पद होते जरूर हैं। राजनीतिक रूप से इन पदों को संबंधित विपक्षी पार्टी में महत्वपूर्ण माना जाता है। कांग्रेस की तरफ से इन पदों पर अशोक चांदना, हरीश मीना, जुबेर खान, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, अनिल शर्मा, शिखा मील बराला, विद्याधर चौधरी, मनीष यादव आदि हो सकते हैं।
प्रोटेम स्पीकर के लिए 2 नाम
विधानसभा में एक पद प्रोटेम स्पीकर का होता है, जिसे आम तौर पर विपक्ष के सबसे सीनियर विधायक को ही सौंपा जाता है। यह पद अस्थाई स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष) का होता है, जो सभी चुने हुए विधायकों को शपथ ग्रहण करवाता है। यह पद पर शांति धारीवाल या हरिमोहन शर्मा को मिल सकता है। दोनों ही वरिष्ठ विधायक हैं।
बैठक के बाद जानकारी देते हुए प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा।
प्रदेशाध्यक्ष-प्रदेश प्रभारी बदलने पर भी विचार
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के पदों पर भी बदलाव कर सकती है। प्रदेशाध्यक्ष के पद और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर अलग-अलग समुदाय से किसी को नियुक्त करना चाहेगी, ताकि दो अलग-अलग समुदायों की सहानुभूति लोकसभा चुनावों सहित आगे आने वाले नगर निकाय और पंचायत चुनावों में भी मिले।
अगर नेता प्रतिपक्ष के पद पर हरीश चौधरी, नरेंद्र बुडानिया, गोविंद सिंह डोटासरा को नियुक्त किया तो प्रदेशाध्यक्ष का पद संभवत: सचिन पायलट, सीपी. जोशी, रघु शर्मा, प्रताप सिंह खाचरियावास, भंवर जितेंद्र सिंह जैसे नेताओं में से किसी को सौंप सकती है। ऐसा करके पार्टी जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, राजपूत जैसे बड़े मतदाता समूहों को साधना चाहेगी।
अशोक गहलोत की क्या होगी भूमिका?
अशोक गहलोत कांग्रेस की तरफ से विधानसभा में वरिष्ठ विधायक भी हैं और पदाधिकारी भी, लेकिन यह संयोग ही है कि वे अब तक 6 बार विधायक रहे और तीन बार विपक्ष में रहने के बावजूद एक बार भी नेता प्रतिपक्ष नहीं बने। सूत्रों का कहना है कि वे इस बार भी नेता प्रतिपक्ष नहीं बनेंगे।
कांग्रेस की समीक्षा बैठक में मौजूद रहे प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने बताया कि पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनावों की रणनीति तैयार करने पर विचार किया है। अगले विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए इस बात पर भी विचार हो गया है। विधायकों के फीडबैक के आधार पर ही आलाकमान के स्तर पर फैसला किया जाएगा। जल्द ही इस पद के लिए नाम सामने आएगा।
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