कोरोना काल में बोर्ड के विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करने के केंद्र और राज्य सरकार के निर्णय पर वाद विवाद में बाल मन की संवेदनाओं को हम कहीं भूल गए हैं। भारत के विषय में यह किवंदती पूर्णरूपेण अक्षरशः सत्य है कि यहां चाय के प्यालों में तूफान उठा करते हैं।आज हर व्यक्ति चाहे उसका शिक्षा क्षेत्र से लेना देना है अथवा नही सरकार के बच्चों को प्रमोट करने के निर्णय पर आधिकारिक टिप्पणी करता है।
या तो हमारे जनसेवी या नेता जिन्हें चुनकर हमने ही संसद और विधान सभा में भेजा है उनकी क्षमताओं पर हमे संदेह है या वो अपने क्षेत्र में निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। यही नही बच्चों के प्रमोशन को हमने व्यंग्य का मुद्दा बना दिया है।हम भूल गए हैं कि व्यंग्य और क्रूरता के बीच बहुत कम दूरी होती है। व्यंग्य और आक्षेप का एक ऐसा माहौल हमने तैयार किया है जिसमे बाल मन प्रहार का शिकार हो रहा है।क्या बच्चे लेकर आए हैं कोरोना? या, घर बैठना उनका स्वयं का निर्णय है? हम क्यों भूल जाते हैं कि यदि सरकार बारहवीं और दसवीं के विद्यार्थियों की परीक्षा नहीं ले पाई। इसमें विद्यार्थियों का कोई दोष नहीं है।
परीक्षा नहीं कराने के निर्णय को किसी भी स्थिति में उचित अथवा न्यायिक नहीं कहा जा सकता।कुछ दिनों पूर्व पहले केंद्र सरकार ने निर्णय लेते हुए दसवीं की परीक्षाओं को रद्द कर दिया और फिर 12वीं की परीक्षाओं को भी रद्द करने का निर्णय ले लिया। उसके तत्काल पश्चात राज्य सरकार ने भी तुरंत 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं को निरस्त कर अपने राष्ट्रीय नेताओं के फरमानों पर मोहर लगा दी। शिक्षा से जुड़े सभी कार्यों को बंद करने वाली ये दोनो सरकारें उस दौरान कुंभ मेले और चुनाव की मौन साक्षी तब तक बनी रहीं जब तक कोरोना ने पूरे देश में पैर नहीं पसार लिए। सरकार की इन ढुलमुल नीतियों के कारण विद्यार्थियों को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है।
वर्तमान वस्तुस्थिति यह है कि इन परीक्षाओं में अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत भी काफी रहता है। विद्यार्थी फॉर्म भरने फीस जमा करवाने के बाद भी परीक्षा देने नहीं आते। ये प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक मे होता है। ऐसे विद्याथियों और फेल हो जाने वाले विद्यार्थियों से ही सम्पूर्ण परीक्षा व्यवस्था नहीं बनती। एक बड़ा विद्यार्थी समूह अस्सी प्रतिशत से अधिक नम्बर लाता है। यही नही साठ प्रतिशत से अधिक बच्चे परीक्षा में उत्तीर्ण भी होते हैं।
किसी भी बच्चे को जैसे ही आप कोविड काल के विद्यार्थी कहकर मज़ाक बनाते हैं, ये सामन्यीकरण आधे से अधिक बच्चों का मन तोड़ देता है। उनको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नकारा, लूजर और निम्न श्रेणी का विद्यार्थी बना देता है ,उन्हें उस गलती की सजा देता है जो उन्होंने की ही नहीं।
इन बच्चों ने कहां चुना था कि हम बिना पढ़े पास होना चाहते हैं? इन्होंने तो स्कूल कॉलेज जाना चुना था। क्या ये आवारा घूम रहे थे?क्या इन्होंने ऐसा कुछ भी कहा या किया था कि इनके पास होने की कोई उम्मीद नहीं थी या जब हम विद्यार्थी थे हमने इन बच्चों से अलग कोई तीर मारा था? फिर इनपर दोषारोपण क्यों?
कितने ही मिम्स और चुटकुले हमने इनपर बना डाले, यदि आंकलन करें तो ये भी एक प्रकार का हिंसात्मक रवैया है।यह हमारे भीतर की कुंठा है जो परीक्षा न होने पर हम विद्यार्थियों पर लतीफ़े बना रहे हैं।
इस विषय पर काउंसलर, वरिष्ठ शिक्षाविद् और महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के निदेशक दिनेश पाठक ने एक बयान जारी कर कहा है कि परीक्षा रद्द कर कोरोना काल में सरकार ने करोड़ों छात्रों और उनके अभिभावकों को बड़ी राहत दी है, लेकिन परीक्ष रद्द होने से छात्रों के सामने भी कई मुश्किलें आ गई हैं। उनके अनुसार जो छात्र 12वीं पास होने के बाद विदेश खासकर बिट्रेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देश पढ़ने जाते हैं उन्हें परेशानी उठानी पड़ सकती है। 12वीं के बाद विदेश पढ़ने के लिए जाने वाले छात्रों को सीबीएसई परीक्षा रद्द होने के बाद परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि ये दिक्कतें तब स्पष्ट होंगी जब सरकार और सीबीएसई परीक्षा परिणाम के लिए एक रणनीति तय कर लेगी और ये बताएगी कि 12वीं के बोर्ड परिक्षार्थियों के रिजल्ट पर पास या प्रोमोटेड लिखा जाएगा। उनके अनुसार अगर छात्रों के रिजल्ट पर पास लिखा जाता हैं तो कोई चिंता की बात नहीं है, लेकिन अगर मार्कशीट पर प्रमोटेड लिखा जाता है तो उन्हें विदेशों में दाखिले के समय मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में इस दिशा में करियर तलाशने वाले विद्यार्थी असमंजस की स्थिति में हैं।
पिछले लॉक डाउन से लेकर अबतक पुलिस द्वारा राहगीरों को अनेक बार रोका गया, पुलिस द्वारा लोगों को पीटा तक गया जिसपर अनेक वीडियो बनाकर उनमें हंसी के इफेक्ट लगाए गए । यही नही देख देख तेरा बाप आया जैसा साउंड इफेक्ट डाले गए , वीडियो के साथ नक़ली हंसी रोपी गई।यह मानसिक दिवालियापन की इंतिहा है। इतना ही नहीं कोरोना काल में पुलिस ने कइयों को मेढक चाल चलवाई तो कइयों को मुर्गा बनाया गया और हमने लुत्फ उठाने का कार्य किया।
संकट की इस घड़ी में एक शिक्षित नागरिक का दायित्व यही है कि हम अपने विवेक का प्रयोग करें और इस बारीक फासले को परखते हुए युक्तिसम्मत व्यवहार करें ताकि अनजाने में ही सही किसी को चोटिल न करें।भारत के भावी नागरिक इन विद्यार्थियों को आज मानसिक रूप से दृढ़ बनाने की आवश्यकता है ताकि ये फिर अपने होंसलों को एक नई उड़ान देने के लिए,फिर पंख लगाकर विचरण कर सकें।
डॉ मुदिता पोपली
Add Comment