क्या नए जिलों पर रोक लगाएगी भजनलाल सरकार?:प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने को लेकर होगा बड़ा बदलाव, वो 7 एक्शन जिसे पहले साल में लेने की तैयारी
राजस्थान की भजनलाल सरकार अपने पहले साल के कार्यकाल में 6-7 बड़े फैसले ले सकती है। कई फैसलों में गुजरात-मध्यप्रदेश के मॉडल भी नजर आएंगे, जिन्हें राजस्थान में भी लागू किया जाएगा।
जयपुर से लेकर दिल्ली तक इस संदर्भ में तैयारियां की जा रही हैं। सबसे महत्वपूर्ण एक कानून का बनाया जा सकता है, जिसके तहत एक धर्म से संबंधित व्यक्ति किसी दूसरे धर्म से संबंधित व्यक्ति की प्रॉपर्टी (मकान-दुकान आदि) बिना जिला कलेक्टर की अनुमति के खरीद-बेच नहीं सकेगा। इसके अलावा नए जिलों को लेकर पुरानी सरकार के फैसलों में भी बदलाव की तैयारी है। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री स्तर पर इसकी तैयारियां भी पूरी हो गई हैं।
मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए- और क्या-क्या काम हैं जिन पर भजनलाल सरकार ने अभी से फोकस शुरु कर दिया है और उनके क्या मायने हैं….
हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा और दीया कुमारी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात की थी।
1. प्रॉपर्टी खरीद-फरोख्त का गुजरात मॉडल : घोषित होंगे डिस्टर्ब्ड एरियाज
गुजरात में भाजपा सरकार ने बहुत से इलाकों को डिस्टर्ब्ड एरिया घोषित किया हुआ है। इसके लिए वहां एक एक्ट (गुजरात प्रोहिबिशन ऑफ ट्रांसफर ऑफ इम्मूवेबल प्रॉपर्टीज एक्ट-1991- संशोधित) भी लागू किया हुआ है। इस तरह का एक एक्ट राजस्थान में भी लाया जा सकता है।
इस एक्ट के तहत जब एक धर्म को मानने वाला व्यक्ति किसी दूसरे धर्म के मानने वाले व्यक्ति की प्रॉपर्टी खरीदता है, तो उसे रजिस्ट्री करवाने से पहले संबंधित जिला कलेक्टर की मंजूरी लेनी होती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में किशनपोल और हवामहल विधानसभा क्षेत्रों सहित कई अन्य इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में दो अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लोगों के बीच प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने के मामले सामने आए हैं।
जयपुर शहर के हवामहल और किशनपोल क्षेत्र में हिंदुओं के पलायन को लेकर ये पोस्टर काफी चर्चा में रहे थे।
वर्ष 2022 में मालपुरा और किशनपोल में तो पोस्टर भी लगाए गए और धरने-प्रदर्शन भी हुए, जहां कुछ इलाकों से हिन्दुओं के पलायन की खबरें भी सामने आई थीं। इस तरह की घटनाएं पुलिस-प्रशासन के लिए तो बहुत बड़ी समस्याएं बनती ही हैं, लेकिन साथ ही किसी इलाके में लगातार होती खरीद-फरोख्त से वहां के जातीय, सामाजिक, सांस्कृतिक स्वरूप को भी पूरी तरह से बदल डालती हैं।
राजस्थान में क्या होगा एक्शन?
इसके लिए सरकार पहले कुछ इलाकों को अधिसूचित (नोटिफाइड) करेगी। सूत्रों का कहना है कि जयपुर में किशनपोल, हवामहल, रामगंज, परकोटा के अलावा मालपुरा, मांडल, बीगोद, नागौर, कोटा, जोधपुर, अजमेर, बाड़मेर, पोकरण, तिजारा, वैर, नगर, जैसलमेर सहित पाकिस्तान से सटे सरहदी इलाकों में बहुत सी जगहों को अधिसूचित किया जा सकता है।
इससे वहां प्रॉपर्टी खरीदने-बेचने से पहले संबंधित प्रॉपर्टी के पड़ोसियों से भी अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने और जिला कलेक्टर के तहत गठित कमेटी की अनुमति लेनी जरूरी होगी। ऐसे में किसी को जबरदस्ती, दबाव या डरा-धमका कर प्रॉपर्टी खरीदना-बेचना आसान नहीं होगा। हाल ही सम्पन्न विधानसभा चुनावों में इस तरह के चुनौतीपूर्ण इलाकों में भाजपा ने संत समाज और आरएसएस समर्थित लोगों को ही टिकट दिए थे।
हवामहल (जयपुर) से भाजपा विधायक आचार्य बालमुकुंद का कहना है कि बहुत से मुद्दों पर सरकार बनने पर क्या करना है, यह चुनावों से पहले ही स्पष्ट रूप से तय हो चुका था। जयपुर सहित बहुत से इलाके ऐसे हैं, जहां दबाव डालकर प्रॉपर्टी खरीदी-बेची जा रही है। मैंने हाल ही सुभाष चौक क्षेत्र में 10 मकानों की साइ-पत्री (एडवांस रकम) हो जाने के बावजूद खरीद-फरोख्त रुकवाई हुई है। ऐसे इलाकों में प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त के बारे में विशेष कानून की सख्त जरूरत है।
2. जयपुर, जोधपुर, कोटा नगर निगम : दो नगर निगमों को फिर से एक करना
कांग्रेस सरकार (2018-2023) ने जयपुर, जोधपुर व कोटा में नगर निगमों को दो हिस्सों में बांटा था। जैसे जयपुर में जयपुर हेरिटेज और जयपुर ग्रेटर। कांग्रेस सरकार का तर्क था कि इससे विकास ज्यादा होगा। ऐसे बंटवारे से पहले निगम क्षेत्रों में भाजपा का दबदबा रहता था। ज्यादातर चुनावों में भाजपा के पार्षद ही जीतते थे और बोर्ड भी बनाते थे, लेकिन कांग्रेस सरकार ने निगमों का बंटवारा कुछ इस तरह से किया था कि जयपुर और जोधपुर दोनों शहरों में एक-एक बोर्ड में कांग्रेस का कब्जा हो गया था। भाजपा सरकार अब दोनों बोर्ड को फिर से एक ही करेगी, ताकि शहरी सरकार पर पूरी तरह से वो काबिज हो सके।
3. 17 नए जिलों की समीक्षा होगी
कांग्रेस सरकार ने अपने अंतिम वर्ष के कार्यकाल में एक साथ 20 नए जिले (17+3) बनाकर जिलों की संख्या 33 से बढ़ाकर 53 कर दी थी। इसके लिए रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय कमेटी भी बनाई गई थी, लेकिन इस कमेटी ने या राजस्व विभाग ने कभी भी सार्वजनिक नहीं किया कि किसी भी शहर-कस्बे को जिला बनाने के आधार, नियम, मापदंड व योग्यताएं क्या हैं। राज्य सरकार ने जहां अपनी राजनीतिक जरूरत को पूरा होते देखा वहीं जिले घोषित कर दिए।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले 17 नए जिले घोषित किए थे, बाद में 3 और नए जिले बनाए जाने का नोटिफिकेशन जारी किया था।
राजस्थान के इतिहास में पहली बार हुआ कि कोटपुतली-बहरोड़, डीडवाना-कुचामन, खैरथल-तिजारा जैसे जोड़े में जिले बना दिए गए। राजधानी जयपुर को जयपुर ग्रामीण और जयपुर जिला नाम देने का भी लोगों ने खासा विरोध किया था। भजनलाल सरकार के करीबी सूत्रों की मानें तो भाजपा सरकार जल्द ही एक नई राज्य स्तरीय कमेटी गठित कर नए जिलों की समीक्षा करवाएगी। कुछ जिलों को खत्म करने सहित कुछ का सीमांकन भी दोबारा संभव है।
4. कई यूनिवर्सिटी को बंद करने पर चल रहा विचार
जयपुर में हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, माइनिंग यूनिवर्सिटी कोटा, कौशल विकास विश्वविद्यालय जयपुर, अम्बेडकर विधि विवि जयपुर आदि को बंद कर उन्हें संबंधित क्षेत्र के बड़े विश्वविद्यालयों राजस्थान विश्वविद्यालय, कोटा विश्वविद्यालय, विधि विवि (जोधपुर) आदि में विलय किया जा सकता है। पत्रकारिता सहित तीन नए विवि (अलवर, सीकर, भरतपुर) में कांग्रेस सरकार ने 2008-2013 के बीच खोला था, लेकिन उसके बाद 2013-2018 के बीच जब भाजपा सरकार बनी थी, तब उसने उन सभी विवि को बंद कर संबंधित क्षेत्र के बड़े विवि में मर्ज (समायोजित) कर दिया था।
उसके बाद 2018-2023 में कांग्रेस सरकार ने उन्हें वापस खोला था। भाजपा का मानना है कि विश्वविद्यालय एक उच्च स्तरीय अध्ययन संस्थान होते हैं, जबकि कांग्रेस ने इन्हें केवल अपने वैचारिक मत को फैलाने वाले केन्द्रों की तरह बना दिया, जहां कुलपतियों, प्रोफेसर व अन्य स्टाफ की नियुक्तियों में नियमों का खुला उल्लंघन किया गया। सरकार ने अपने मनचाहे लोगों को बिना किसी परीक्षा, योग्यता के कुलपति व प्रोफेसर नियुक्त किए। विधि विवि (जयपुर) और पत्रकारिता विवि (जयपुर) के कई मामले चर्चित रहे थे।
हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने बंद कर दिया था बाद में कांग्रेस ने सत्ता में आते ही फिर से इसे शुरू कर दिया।
5. मध्यप्रदेश की तर्ज पर लाडली बहना योजना को राजस्थान में भी लागू करना
हाल ही सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों मे राजस्थान में भाजपा ने विपक्ष से सत्ता में वापसी की है, वहीं मध्यप्रदेश में सत्ता में रहते हुए जीत दर्ज की है। मध्यप्रदेश में प्रचंड जीत में लाडली बहना योजना का विशेष योगदान माना गया है। इस योजना के तहत आम गृहणियों को सरकार की तरफ से 1250 रुपए मासिक सहायता राशि दी जाती है। राजस्थान में भी ठीक इसी तरह की कोई योजना लाई जाएगी, जिसके तहत आम गृहणियों को 1500 से 2500 रुपए मासिक सहायता राशि दी जाएगी, ताकि जाति-समुदाय की सीमाओं के परे एक विशेष लाभार्थी वर्ग वोट बैंक में स्थाई रूप से तब्दील हो सके जैसा मध्यप्रदेश में हुआ है।
6. पेपर लीक पर सख्ती : प्रतियोगी परीक्षाओं को यूपीएससी की तर्ज पर सुरक्षित बनाना
राजस्थान में हुए पेपरलीक मामलों में जांच के लिए एसआईटी और एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स गठित करने के बाद एग्जाम को सुरक्षित रखने के लिए सरकार बैंकिंग और यूपीएससी के मॉडल का अध्ययन करवा कर उसे अपनाने की तैयारी कर रही है। बैंकिंग और यूपीएससी एक्जाम्स को देश भर में सुरक्षित माना जाता है।
जिस तरह बैंक की क्लर्क और प्रोबेशनरी ऑफिसर (पीओ) की साल में दो बार परीक्षाएं होती हैं, उसी पैटर्न को राजस्थान में भी लागू किया जा सकता है। क्योंकि पेपरलीक एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। यह कांग्रेस सरकार के खिलाफ भाजपा का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा भी था। अब भाजपा ने 2 लाख 50 हजार नए पदों पर भर्तियों की घोषणा की है। ऐसे में अगर एक बार भी पेपरलीक हुआ तो भाजपा सरकार की साख पर बट्टा लग जाएगा।
हाल ही में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कानून व्यवस्था की समीक्षा बैठक ली थी।
7. प्रोजेक्ट की डेटलाइन-टाइमलाइन तय करना
एक बड़ा फर्क कांग्रेस और भाजपा की सरकारों के बीच यह दिखाने की कोशिश की जाएगी कि भाजपा सरकार में जो भी कार्य होगा, उसकी एक डेटलाइन और टाइमलान में ही होगा। इसका जिक्र न केवल प्रोजेक्ट के दौरान किया जाएगा, बल्कि तय समय पर काम नहीं करने पर काम करने वाली ठेकेदार कम्पिनयों पर बड़ा आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाएगा।
राजस्थान में रिपीट पर अभी से काम : गुजरात और मध्यप्रदेश बनेंगे राजस्थान के लिए माॅडल स्टेट
गुजरात में पिछले लगभग 27 वर्षों से भाजपा की सरकार है ही। मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 से 2003 के बीच कांग्रेस सरकार थी, लेकिन उसके बाद से भाजपा ने इस बड़े प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लगातार जीतकर सरकार बनाई। लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं हो सका। जबकि देखा जाए तो गुजरात और मध्यप्रदेश में जातिगत-धार्मिक समुदायों का वोट बैंक आनुपातिक हिसाब से राजस्थान जैसा ही है। अब भाजपा राजस्थान में सरकार रिपीट का मिथक तोड़ने की तैयारी में जुटी है। भाजपा राजस्थान को भी गुजरात और मध्यप्रदेश की ही तर्ज पर अपने स्ट्रोंग होल्ड स्टेट में बदलना चाहती है, जहां उसकी सरकार अगले 15-20 साल तक परिवर्तित नहीं हो।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
राजनीतिक विश्लेषक और सोशल एक्टिविस्ट एकलव्य सिंह का कहना है कि राजस्थान को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा की दीर्घकालीन योजना है। जिस तरह से उन्होंने पुराने नेतृत्व को पीछे कर एक युवा नेता को सीएम बनाया है। वे चाहते हैं कि गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, असम की ही तरह राजस्थान में भी भाजपा की सरकार स्थाई बनी रहे। इसके लिए भाजपा को वो काम करने ही पड़ेंगे जिनका वादा और बातें भाजपा और आरएसएस लंबे अरसे से लोगों के बीच करते रहे हैं।
रिटायर्ड आईएएस महावीर प्रसाद वर्मा का कहना है कि भाजपा एक विचार आधारित पार्टी है। राजस्थान में जब भी भाजपा की सरकारें बनीं तो उनमें वो राजनीतिक विचार कभी नहीं दिखा जो भाजपा का आधार है। लेकिन दो बार से लगातार लोकसभा की सभी सीटें जीतना और अब फिर से सरकार में आने से लगता है कि राजस्थान में भी भाजपा वे सब कार्य करना चाहेगी जिनसे अन्य राज्यों में उसकी सरकारें रीपीट हुई हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अलका गौड़ का कहना है कि भाजपा ने देश भर में कई सारे राजनीतिक मिथक तोड़े हैं। राजस्थान में एक बार कांग्रेस व एक बार भाजपा की सरकारें बनना भी ऐसा ही एक मिथक है। नई सरकार ने आते ही जिस तरह से पेपरलीक मामले में जांच के लिए एसआईटी और एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स गठित की है। उससे लगता है कि भाजपा एक कामचलाऊ सरकार नहीं बल्कि स्थाई और मजबूत सरकार देने की नीयत से काम कर रही है।
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