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चित्तौड़ के गुड़ का स्वाद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक:भिंडी की जड़ों के पानी से होता है साफ, डायबिटिक पेशेंट ले सकते हैं यूज

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चित्तौड़ के गुड़ का स्वाद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक:भिंडी की जड़ों के पानी से होता है साफ, डायबिटिक पेशेंट ले सकते हैं यूज

सर्दियां आते ही लोग गुड़ की डिमांड करने लगते हैं। राजस्थानी दाल-बाटी हो, ढोकला हो, चूरमा हो या तिल पपड़ी, मूंगफली की गजक, लापसी हर व्यंजन को गुड़ के साथ अलग स्वाद मिल जाता है। चित्तौड़गढ़-उदयपुर हाईवे पर जाते ही इन दिनों गुड़ की खुशबू से हर किसी के कदम देवरी गांव में रुक जाते हैं। अब देवरी गांव का गुड़ ना सिर्फ भारत के हर कोने में बल्कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक भी पहुंच चुका है। यहां बनने वाला गुड़ ऑर्गेनिक रूप से तैयार किया जाता है। इसकी सफाई केमिकल से नहीं बल्कि यूपी से मंगवाई भिंडी की जड़ से साफ किया जाता है। साथ ही शुगर पेशेंट भी इस गुड़ को खा सकते हैं। खास बात यह है कि यह गुड़ एक किलो या दो किलो के पैक में भी उपलब्ध है।

यहां गुड़ फैमिली पैक में भी उपलब्ध है। छोटे परिवार वाले भी एक किलो या दो किलो के पैकेजिंग वाले गुड़ आसानी से खरीद सकते हैं।

यहां गुड़ फैमिली पैक में भी उपलब्ध है। छोटे परिवार वाले भी एक किलो या दो किलो के पैकेजिंग वाले गुड़ आसानी से खरीद सकते हैं।

चित्तौड़गढ़ में आने वाले फॉरेनर्स भी देवरी में स्पेशल तौर पर जाकर गुड़ लेने जाते हैं। चित्तौड़गढ़ का देवरी गांव शुद्ध और देसी गुड़ बनाने में अपनी अलग पहचान बना चुका है। अब यह गुड़ बनाने का हब बन चुका है। देवरी में कई सालों से कई लोग गुड़ बनाते आए हैं। लेकिन कोमल किशोर कलंत्री (33) ने टिन में बेचे जाने वाले गुड़ की पैकेजिंग शुरू की।

6 महीने ही चलते हैं यहां के प्लांट

चित्तौड़गढ़ मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़-उदयपुर हाईवे पर देवरी गांव है। यहां से गुजरने वाले लोग गुड़ की खुशबू से ही रुक जाते हैं। कोमल किशोर कलंत्री बताते हैं कि कोरोना के बाद से ही गुड़ की सबसे ज्यादा डिमांड होने लगी। कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने के लिए हर कोई इम्यूनिटी बूस्टर ले रहा था। शुद्ध देसी गुड़ इम्यूनिटी बूस्टर भी है। गुड़ बनाने का यह प्लांट 6 महीने के लिए ही होता है। सर्दियों में इसकी डिमांड बहुत होती है। खासकर दिसंबर और जनवरी महीना पीक समय होता है।

यूपी से मंगवाई जाती है भिंडी, उसकी जड़ों से होती है सफाई

उन्होंने बताया कि पिछले साल भी गन्ने की अच्छी पैदावार थी और इस साल भी चित्तौड़गढ़ में अच्छी पैदावार हो रही है। यहां हाईजीनिक और ऑर्गेनिक रूप से गुड़ बनाया जाता है। गन्ने के रस को साफ करने के लिए स्पेशल तौर पर यूपी से भिंडी मंगवाई जाती है। उसकी जड़ों को पानी में गला कर उस पानी से सफाई की जाती है। कोमल किशोर ने बताया कि भिंडी की जड़ों का पानी ही नहीं बल्कि अरंडी का तेल भी सफाई के काम आता है। यूपी में क्षारीय भूमि की मिट्टी में भिंडी उगाई जाती है। लोकल भी अब भिंडी की खेती करने लगे हैं लेकिन वृहद स्तर पर यह खेती नहीं होती है। यहां काली मिट्टी में फसलें उगाई जाती हैं। इस मिट्टी में उगाई भिंडी की वो क्वालिटी नहीं होती है जो किसी तरह का मैल काटने की क्षमता रखता हो। इससे सफाई करने पर शुगर की मात्रा कम रही है। इसमें नेचुरल मिठास बनी रहती है।

पुरानी परंपरा को बदलकर पैकेजिंग का काम किया शुरू

कोमल किशोर का कहना है कि कई सालों से यहां गुड़ बनाया जाता है लेकिन बाहर सप्लाई नहीं किया जाता था। इसके अलावा टिन के डिब्बों में बेचने का ही चलन था। यहां पहले कोई और गुड़ बनाने का काम करता था। कोरोना में नुकसान होने के कारण उन्होंने इसे बेच दिया था। तब मैंने खरीद लिया था। इंडिपेंडेंट रूप से चलने से पहले मैं यहां सीखा करता था। जब से काम संभाला तब घर-घर जाकर मार्केटिंग की। लोगों को फ्री सैंपल दिए। इसे एक ब्रांड बनाया। इस प्रोडक्ट को भारत के अन्य शहरों से जोड़ा।

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक हो रही है सप्लाई

कलंत्री ने बताया कि इस ब्रांड का नाम शाही स्पेशल देसी जेगरी रखा गया। इसकी सप्लाई पूरे राजस्थान के साथ गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, बेंगलुरु तक की जा रही है। अमेरिका में 90 किलो और ऑस्ट्रेलिया में 150 किलो गुड़ भेजा जा चुका है। चित्तौड़गढ़ में आने वाले फॉरेनर्स भी इस समय स्पेशल रूप से गुड़ लेने जरूर आते हैं।

इस समय मार्केट में 50 रुपए किलो की दर से गुड़ की बिक्री हो रही है। वहीं, ब्रांड पैकेजिंग के साथ 70 रुपए किलो की बिक्री की जाती है। पिछले साल गुड़ की डिमांड बहुत ज्यादा होने के कारण महंगे दामों में बिके थे। इसका सीजन नवंबर से मार्च तक रहता है। अभी गन्ने की कीमत 330 रुपए प्रति क्विंटल है।

यह है प्रोसेस

गुड़ बनाने के चार राउंड होते हैं। इस प्रोसेस के लिए तीन भट्टी का यूज होता है। भट्टी को जलाने के लिए भी गन्ने के छिलकों का इस्तेमाल किया जाता है।

  • सबसे पहले क्रेशर से गन्नों को पीसकर उसका रस निकाला जाता है। इसको एकत्रित किया जाता है
  • रात भर भिंडी की जड़ गला कर रखी जाती है। अगले दिन इस पानी को और अरंडी के तेल से रस को साफ किया जाता है। रस को भट्टी में डालकर हल्का गरम करते हुए साफ किया जाता है
  • भट्टी में साफ किया रस डाला जाता है, उस भट्टी का ताप बढ़ाकर दुबारा सफाई की जाती है
  • फिर तीसरी भट्टी में इस रस को बहुत देर तक उबाल-उबाल कर गुड़ बनाया जाता है। चौथे प्रोसेस में गुड़ को ठंडा किया जाता है। वहां से उसे टिन के डिब्बों में डाला जाता है

भिंडी की जड़ से शुगर की मात्रा कम हो जाती है

इस गुड़ से शुगर और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल किया जाता है। भिंडी की जड़ यूज करने पर उसमें से अपने आप शुगर की मात्रा कम हो जाती है। मीठा होने के बावजूद शुगर पेशेंट इसे आसानी से खा सकते हैं। इससे रक्तचाप बढ़ता है, इम्यूनिटी बढ़ती है, ब्लड फिल्टर करने का काम होता है। साथ ही पाचन भी सही होता है। गुड़ आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम का बेहतरीन स्रोत होता है, जो ब्लड से लेकर हड्डियों और मांसपेशियों को हेल्दी रखने में फायदेमंद होता है। सरपंच प्रतिनिधि मगनीराम डांगी ने बताया भिंडी की जड़ों का पानी इस्तेमाल करने के कारण देवरी में बनाए जाने वाला गुड़ दानेदार होता है। यह शुद्ध और काफी ऑर्गेनिक होते हैं।

करीब चार लाख रुपए का हो जाता है नेट प्रॉफिट

घोसुंडा निवासी कोमल किशोर कलंत्री के पिता कैलाश चंद्र कलंत्री ओडुंद गांव के सरकारी स्कूल से रिटायर्ड प्रिंसिपल है। कोमल किशोर ने एमकॉम और एग्रीकल्चर में डिप्लोमा करने के बाद देवरी गांव में फर्टिलाइजर और केमिकल की शॉप खोली। देवरी गांव में रहते समय उनका इंटरेस्ट गुड़ बनाने सीखने में हुआ। काम सीखने के बाद वे इस फैक्ट्री को खुद चला रहे हैं। कोमल किशोर का कहना है कि गुड़ के बिजनेस में उनका टर्न ओवर 30 से 40 लाख रुपए का है। जिसमें खर्चा निकालने के बाद लगभग चार लाख रुपए का शुद्ध लाभ होता है।

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