ट्रम्प राष्ट्रपति बने तो NATO से बाहर हो जाएगा अमेरिका:US के पूर्व NSA बोले- डोनाल्ड ट्रम्प के अपने कोई विचार नहीं, वो तर्कहीन हैं
तस्वीर 2018 की है, जब ब्रुसेल्स में नाटो समिट के दौरान ट्रम्प के साथ उनके NSA बोल्टन भी पहुंचे थे।
अमेरिका में अगर डोनाल्ड ट्रम्प फिर से राष्ट्रपति बनते हैं तो अमेरिका नाटो को छोड़ सकता है। ये कहना है अमेरिका के पूर्व NSA जॉन बोल्टन का। अमेरिकी मीडिया द हिल में लिखे एक आर्टिकल में उबोल्टन ने कहा- अपने पहले कार्यकाल में भी नाटो के अस्तित्व को ट्रम्प से खतरा था। अब अगर वो फिर से राष्ट्रपति बने तो हम जाहिर तौर पर संगठन से बाहर हो जाएंगे।
इसके अलावा पूर्व NSA ने ट्रम्प को अस्थिर और तर्कहीन भी बताया। उन्होंने कहा- ट्रम्प के खुद के कोई विचार नहीं हैं। जब वो राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर फैसले लेते हैं तो वो पॉलिसी के बारे में नहीं सोचते हैं। ट्रंप की विदेश नीति के फैसलों की प्रशंसा करने वाले रिपब्लिकन भी अमेरिकी विदेश नीति को नहीं समझते हैं।
व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में मौजूद ट्रम्प और जॉन बोल्टन।
बोल्टन बोले- ट्रम्प को उन बातों का क्रेडिट मिला जिसे वे लागू भी नहीं करना चाहते थे
जॉन बोल्टन अप्रैल 2018 से सितंबर 2019 तक ट्रम्प के NSA थे। बोल्टन ने कहा- अगर अमेरिका में ट्रम्प की विदेश नीतियों के हिसाब से काम हुआ होता तो पिछले दशक में हम जिस मुकाम तक पहुंचे हैं, वहां कभी नहीं जा पाते। ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें ट्रम्प ने ना चाहते हुए लागू किया और आज उन्हें उसका क्रेडिट दिया जा रहा है।
बोल्टन के मुताबिक, ट्रम्प दूसरे देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों को देश के हितों से जोड़ने की जगह अपने निजी रिश्तों के आधार पर देखते थे। बोल्टन ने ये भी खुलासा किया कि ट्रम्प नेगेटिव मीडिया कवरेज से बहुत डरते हैं। जब उनके किसी फैसले की वजह से चीजें खराब होने लगती हैं या उनके फैसलों की आलोचना होती है तो वो अपने ही फैसलों से दूर हो जाते हैं।
पूर्व NSA ने कहा- ट्रम्प घमंडी और अनुशासनहीन हैं
विदेशी लीडर्स, चाहे वो दोस्त हों या दुश्मन, सभी ज्यादातर ट्रम्प को एक घमंडी और अनुभवहीन नेता के तौर पर देखते थे जिसे कई जरूरी मुद्दों के बारे में जानकारी नहीं होती है। इन सब वजहों से उनके पहले कार्यकाल के वक्त भी रिस्क था और अगर भविष्य में वो दोबारा राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो फॉरेन पॉलिसी के मामले में देश पर खतरा बढ़ सकता है।
बता दें कि हाल ही डोनाल्ड ट्रम्प पर अमेरिकी संसद कैपिटल हिल पर हिंसा के मामले में क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है। इससे पहले पिछले 5 महीनों में ट्रम्प पर 2 और मामलों में क्रिमिनल केस हो चुका है। इन केस में ट्रम्प को अधिकतम 20 साल की जेल की सजा का प्रावधान है।
NATO की नींव कैसे पड़ी थी
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को रोकने के लिए अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने सैन्य गठबंधन बनाया था, जिसे NATO के नाम से जाना जाता है।
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका दो सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे, जो दुनिया पर अपना दबदबा कायम करना चाहते थे। इससे अमेरिका और सोवियत संघ के संबंध बिगड़ने लगे और उनके बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत हुई।
- सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर पड़ चुके यूरोपीय देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थी।
- सोवियत संघ की योजना तुर्की और ग्रीस पर दबदबा बनाने की थी। तुर्की और ग्रीस पर पर कंट्रोल से सोवियत संघ ब्लैक सी के जरिए होने वाले दुनिया के व्यापार को कंट्रोल करना चाहता था।
- सोवियत संघ की इन नीतियों से पश्चिमी देशों और अमेरिका से उसके संबंध पूरी तरह खराब हो गए।
- आखिरकार यूरोप में सोवियत संघ के दबदबे को रोकने के लिए यूरोपीय देशों और अमेरिका ने मिलकर NATO की नींव डाली।
कैसे होता गया NATO का विस्तार
- NATO के गठन के समय इसमें केवल 12 देश थे। इसके बाद अगले 6 सालों में यानी 1955 तक इससे तीन और देश तुर्की, ग्रीस और पश्चिमी जर्मनी जुड़े।
- सोवियत संघ के साथ अमेरिका के कोल्ड वॉर (1945-1990) के दौरान NATO का विस्तार लगभग थमा रहा। इस दौरान केवल 1982 में स्पेन ही NATO से जुड़ा, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इसने तेजी से विस्तार किया।
- NATO से जुड़ने वाला आखिरी देश उत्तरी मेसेडोनिया था, जो 2020 में जुड़ा था। NATO के अब कुल 30 सदस्य देश हैं।
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