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डायरेक्ट सेलिंग :: नए नियमों से एमवे जैसी उच्च स्तरीय कंपनियों का भारत में भविष्य सुनहरा जबकि छोटी और केवल चेन द्वारा संख्या बढ़ाने पर कमीशन देने का झांसा देकर जनता को लूटने वाली नॉन रजिस्टर्ड कंपनियों पर कसा शिकंजा

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डायरेक्ट सेलिंग के नए नियमों से एमवे जैसी उच्च स्तरीय कंपनियों का भारत में भविष्य सुनहरा जबकि छोटी और केवल चेन द्वारा संख्या बढ़ाने पर कमीशन देने का झांसा देकर जनता को लूटने वाली नॉन रजिस्टर्ड कंपनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर ली गई है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार अब डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए कानून लेकर आई है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए नियम-कानूनों का ड्राफ्ट जारी किया है। यह नियम एमवे, ऑरिफ्लेम, टपरवेयर जैसी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए भी अनिवार्य हैं परंतु छोटी और बिना रजिस्ट्रेशन के इन क्षेत्रों में उतरी बिजनेस कंपनियों में इस कानून के आने से भय का माहौल है।
प्रस्तावित नियमों के मुताबिक, डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए अब रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। इसके अलावा प्रस्तावित ड्राफ्ट में डायरेक्ट सेलर्स या एजेंट्स की सुरक्षा और कंपनियों को ग्राहकों के प्रति जिम्मेदार बनाए रखने वाले नियम-कानून भी शामिल किए गए हैं।
सेलिंग का मतलब होता है किसी भी उत्पाद की खुद से मार्केटिंग करना और उस उत्पाद को ग्राहक तक पहुंचाना , यही डायरेक्ट सेल है। बाकी सारे बिजनस कई सारे लोगों के द्वारा ऑपरैट होते है। इसे यूं समझ सकते हैं कि फैक्ट्री से 5 रुपए का उत्पाद निर्मित होकर निकलता है और होलेसलर के पास जाता है। फिर होल्सैलर वह 5 rupey का उत्पाद रिटेलर को 10 रुपए मे बेचता है। और बाद मे वही प्रोडक्ट रीटैलर, ग्राहक को 15 रुपए मे बेच देता है।
इसी तरह कोई पांच रुपए का उत्पाद ग्राहक तक पहुंचने के दौरान 15 रुपए का हो जाता है।इस तरह से बाकी बिजनेस मॉडल काम करते हैं।
परंतु डायरेक्ट सेलिंग मे ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। डायरेक्ट सेलिंग कॉम्पनियों के पास अपना खुद का उत्पाद होता है। डायरेक्ट सेलिंग कॉम्पनियाँ उनका खुद का उत्पाद अपने खुद के वेयरहाउस या मैन्युफैक्चरिंग प्लांट मे बनाती हैं।
डायरेक्ट सेलिंग कॉम्पनियाँ वह उत्पाद ना तो होल्सैलर को बेचती है और ना ही रिटेलर को, ये डायरेक्ट सेलिंग मे प्रोडक्ट सिर्फ और सिर्फ डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा बेचा जाता है।
डायरेक्ट सेलिंग मे लोगों को बिजनेस मे शामिल करके उनके प्रोडक्ट आपस मे बेचे जाते है। इसे यूं समझ एक नेटवर्क मार्केटिंग कंपनी आपको शामिल करके आपको अपना डिस्ट्रीब्यूटर के द्वारा उनका प्रोडक्ट बेचती है।
डायरेक्ट सेलिंग मे आपको पांच रुपए का उत्पाद पांच रुपए मे ही मिलेगा क्योंकि वहाँ पर प्रोडक्ट सीधे कंपनी से ग्राहक को दिया जाता है।
अब इस क्षेत्र में नियमों को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत कानूनी रूप दिया गया है और इनका पालन ना करने पर पेनाल्टी का प्रावधान किया गया है। ड्राफ्ट रूल्स के मुताबिक, भारत में कारोबार करने वाली प्रत्येक डायरेक्ट सेलिंग कंपनी को इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट (DPIIT) के पास रजिस्ट्रेशन कराना होगा। कंपनी का कम से कम 1 ऑफिस भारत में होना चाहिए।
वेबसाइट पर प्रमुख रूप से डिस्प्ले होना चाहिए रजिस्ट्रेशन नंबर होना चाहिए।
ड्राफ्ट रूल्स के मुताबिक, डायरेक्ट सेलिंग कंपनी का रजिस्ट्रेशन नंबर कंपनी की वेबसाइट और प्रत्येक इनवॉइस पर प्रमुख रूप से डिस्प्ले होना चाहिए। समस्याओं के समाधान के लिए कंपनी को विशेष अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी। सभी प्रकार के मु्द्दों को सुलझाने के लिए कंपनियों को एक 24*7 कस्टमर केयर नंबर की आवश्यकता होगा। इन नियमों से एमवे टपरवेयर जैसी बड़ी कंपनियां अपने वर्चस्व को कायम रख पाएगी क्योंकि ये इन सभी की पालना पहले से कर रही हैं। पर नॉन रजिस्टर्ड और केवल पिरामिड पर चलने वाली छोटी कंपनियां अब जनता को बेवकूफ नहीं बना सकेंगी। क्योंकि ये कंपनियां केवल पिरामिड स्कीम पर ही काम करती हैं।
प्रस्तावित रूल्स में साफ कहा गया है कि कोई भी डायरेक्ट सेलिंग कंपनी पिरामिड स्कीम प्रमोट नहीं कर पाएंगी। ना ही ऐसी कंपनियां डायरेक्ट सेलिंग बिजनेस में बढ़त बनाने के लिए मनी सर्कुलेशन स्कीम में भाग ले सकेंगी। पिरामिड स्कीम एक ऐसा बिजनेस मॉडल है जिसमें जुड़ने वाले सदस्यों से वादा किया जाता है कि उनको अन्य सदस्य जोड़ने पर भुगतान या सेवा मिलेगा। जबकि बड़ी कम्पनियां लोगों को उत्पादों का प्रचार करने पर भी अपने बिजनेस का डिस्ट्रीब्यूटर मानती हैं, केवल लोगों को जोड़ कर चेन बनाने की नीति पर कार्य नहीं करती है।
इनमे लोगों को नेटवर्क के द्वारा प्रोडक्ट बेचा जाता है इसीलिए इसे नेटवर्क मार्केटिंग और मल्टी लेवल मार्केटिंग भी कहते है।

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