NATIONAL NEWS

तो ये बन सकते हैं CG के अगले CM:प्रदेश में 4 नामों की मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चा, ओम माथुर ने बताया कैसे चुनेंगे

TIN NETWORK
TIN NETWORK
FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

तो ये बन सकते हैं CG के अगले CM:प्रदेश में 4 नामों की मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चा, ओम माथुर ने बताया कैसे चुनेंगे

छत्तीसगढ़ में BJP की जीत के बाद पूरे प्रदेश में चर्चा अब CM फेस को लेकर है। भावी CM के चेहरे को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कई अघोषित दावेदार भी CM पद को लेकर माहौल बना रहे हैं। वहीं, कुछ दावेदार ऐसे भी है, जो इस पर चर्चा करने से ही बच रहे हैं। गली-चौराहों से लेकर सियासी गलियारों तक BJP में जिन 4 नामों की चर्चा है। उन प्रमुख चेहरों के मजबूत और कमजोर दोनों ही पक्ष इस रिपोर्ट में पढ़िए।

BJP में मुख्यमंत्री पद के चेहरे

पहले दावेदार- रमन सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री

भले ही छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में 2018 के राज्य चुनावों में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा, लेकिन रमन सिंह राज्य में BJP का सबसे पहचाना हुआ चेहरा हैं। कुछ महीने पहले तक,राज्य की राजनीति के गलियारों में ये चर्चा थी कि सबसे लंबे समय तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है।

रमन सिंह सभा को संबोधित करते हुए (पुरानी तस्वीर)

रमन सिंह सभा को संबोधित करते हुए (पुरानी तस्वीर)

लेकिन इन सब चर्चाओं पर विराम लगाते हुए रमन सिंह चुनाव में फिर BJP का चेहरा बने रहे। चुनाव विशेषज्ञों की राय है कि राज्य चुनावों के लिए पार्टी के टिकट वितरण में सिंह की भूमिका काफी स्पष्ट थी। टिकट वितरण में रमन सिंह की ही चली।

15 सालों तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे डॉ रमन सिंह ने विधानसभा चुनाव से पहले ही अपनी दावेदारी पेश कर दी थी। छत्तीसगढ़ की सियासत में रमन सिंह गरीबों के डॉक्टर और चाउर वाले बाबा के नाम से मशहूर रहे हैं।

अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने जनसंघ के कार्यकर्ता के रूप में की और युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे। पहली बार उन्होंने 1983 में कवर्धा नगर पालिका के पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1989 में पहली बार वे विधायक चुने गए। अब तक रमन सिंह 6 बार विधायक रह चुके हैं और साल 1999 में अटल सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रहे।

रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी नेतृत्व किया और 2003 में पहली बारे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने। 2008 में दूसरी और 2013 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं। इस चुनाव में रमन सिंह ने राजनांदगांव सीट से ही जीत हासिल की है।

साल 2018 में बड़े पैमाने पर सत्ता विरोधी लहर के अलावा कथित भ्रष्टाचार, भाजपा संगठन और पार्टी की सरकार के बीच समन्वय की कमी, कांग्रेस के पक्ष में OBC वोटों का झुकाव हार का कारण बताया गया। हालांकि, इस चुनाव में पार्टी ने CM का चेहरा पेश नहीं किया और राज्य में सत्ता में वापसी के लिए मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा करने की कोशिश की।

चुनाव से पहले साल 2021 में ही रमन सिंह ने CM पद की दावेदारी पेश कर दी थी। उन्होंने कहा था कि छत्तीसगढ़ BJP में चेहरों की कोई कमी नहीं है, मुख्यमंत्री के लिए प्रदेश में कई चेहरे हैं और उनमें से ही एक चेहरा मेरा भी है, छोटा सा….

मजबूत पक्ष –

  • 3 बार के मुख्यमंत्री होने के साथ लंबा राजनीतिक अनुभव।
  • केन्द्रीय नेतृत्व में अच्छी पकड़।
  • इस चुनाव में भी BJP का प्रमुख चेहरा रहे।
  • टिकट वितरण में भी रमन सिंह की चली।
  • चाउर वाले बाबा के नाम से लोकप्रिय रहे।

कमजोर पक्ष –

  • सरकार रहते कथित भ्रष्टाचार के आरोप।
  • नए चेहरे की मांग में पिछड़ सकते हैं।
  • पार्टी में एक धड़ा नहीं चाहता की रमन सिंह फिर से CM बनें।
  • विपक्ष में रहते हुए भी आम लोगों का सीधे मुलाकात करना मुश्किल।
  • OBC और आदिवासी समीकरण अड़चन बन सकती है।

दूसरे दावेदार विष्णुदेव साय- पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

विष्णुदेव साय ने कुनकुरी विधानसभा से जीत हासिल की।

विष्णुदेव साय ने कुनकुरी विधानसभा से जीत हासिल की।

प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने के बाद भी विष्णुदेव साय ने सकारात्मकता के साथ इसे स्वीकार किया और सक्रियता से काम करते रहे। साय के हटाए जाने को कांग्रेस ने आदिवासियों के अपमान का मुद्दा बना लिया, लेकिन इसका जवाब खुद साय ने देकर विरोधियों को खामोश कर दिया।

उन्होंने कहा था कि गांव के मुझ जैसे एक मामूली किसान के बेटे को भाजपा ने क्या नहीं दिया। 2 बार विधायक, 4 बार सांसद , केंद्रीय राज्य मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का 2 -2 बार दायित्व देना कम नहीं होता। पार्टी ने मुझे उम्मीद से ज्यादा दिया है। इसके लिए मैं पार्टी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

यही वजह रही कि चुनाव में पार्टी ने उन्हें कुनकुरी विधानसभा से अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने जीत हासिल की। इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने विष्णुदेव साय को बड़ा आदमी बनाने की बात कही थी जिसके बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि साय मुख्यमंत्री पद का चेहरा हो सकते है।

प्रदेश की सियासत में विष्णुदेव साय कथित तौर पर रमन सिंह के खेमे से ही जाने जाते हैं। साय संघ के करीबी माने जाते हैं। साय की सियासी सफर की शुरुआत साल 1989 में ग्राम पंचायत बगिया के पंच के रूप में हुई।

साल 1990 में उन्होंने पहली बार जिले के तपकरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1999 में 2014 तक लगातार 3 बार, रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।

साल 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले केन्द्र सरकार में केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री रहे। साय को संगठन में काम करने का भी लंबा अनुभव है। पार्टी ने उन्हें 2014 और 2020 में दो बार प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा। वर्तमान में विष्णुदेव साय, भाजपा के राष्ट्रीय कार्य समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।

मजबूत पक्ष –

  • पार्टी का आदिवासी चेहरा।
  • संगठन नेतृत्व का लंबा अनुभव।
  • अब तक किसी बड़े विवाद या भ्रष्टाचार में नाम नहीं रहा।
  • प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद भी लगातार पार्टी कार्यक्रमों से जुड़े रहे।
  • रमन सिंह और RSS के करीबी।

कमजोर पक्ष –

  • तेज-तर्रार छवि नहीं।
  • चुनाव से एक साल पहले ही प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए गए।
  • प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए निष्क्रियता के आरोप भी लगे।

तीसरी दावेदार- रेणुका सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री

रेणुका सिंह ने भरतपुर-सोनहत सीट से जीत हासिल की।

रेणुका सिंह ने भरतपुर-सोनहत सीट से जीत हासिल की।

साल 2003 में रेणुका सिंह ने प्रेमनगर सीट से विधायक का चुनाव जीता। उन्हें पहली बार बनी भाजपा सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया। इसके बाद 2008 में भी रेणुका ने विधानसभा चुनाव जीता। 2019 में लोकसभा चुनाव जीतकर रेणुका केंद्र में पहुंचीं। अब केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्यमंत्री हैं। इनकी तरह ही 1999 के लोकसभा चुनाव में जीतकर डॉ. रमन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बने थे। 2003 में उन्हें प्रदेश का CM बनाया गया था।

बेटी ने कहा मां बने CM- रेणुका सिंह की बेटी मोनिका सिंह ने कहा कि भाजपा की सदस्य और एक बेटी होने के नाते मैं भी मां रेणुका को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहती हूं।

मजबूत पक्ष-

  • प्रदेश में सीनियर आदिवासी महिला नेता हैं, BJP महिलाओं को आगे लाने की स्ट्रैटजी रखती है तो फायदा इन्हें होगा।
  • मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री।
  • सरगुजा से आती हैं, वहां सभी सीटें भाजपा जीत चुकी है।
  • तेज तर्रार होने की वजह से 2003 से ही सरकार में प्रमुख पद पर रहीं।

कमजोर पक्ष-

  • बयानों की वजह से विवादों में रही हैं। आचार संहिता उल्लंघन पर FIR।
  • प्रदेश व्यापी चेहरा न होना।
  • रेस में शामिल अन्य नेताओं से अनुभव में कमी।
  • OBC सियासत हावी हुई तो इन्हें किनारे किया जा सकता है।

चौथे दावेदार- अरुण साव, सांसद और प्रदेश अध्यक्ष

अरुण साव ने लोरमी सीट से जीत हासिल की है।

अरुण साव ने लोरमी सीट से जीत हासिल की है।

अरुण साव के लिए ये विधानसभा चुनाव किसी परीक्षा से कम ना था। साल भर पहले ही साव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई और ऐसे में पूरे प्रदेश को कवर करने संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ मजबूत करने के लिए बेहद कम समय था।

लेकिन इस कम समय में भी पूरे प्रदेश का दौरा कर साव ने कार्यकर्ताओं को रिचार्ज किया। साल भर में ही सरकार के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हुए। केन्द्रीय नेतृत्व ने भी साव के काम की सराहना की। पार्टी में बीजेपी का ओबीसी चेहरा होने की वजह से सीएम पद के लिए साव की दावेदारी काफी मजबूत है।

साव पहली बार 2019 का लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे। उन्होंने छात्र जीवन से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े हुए थे। चुनाव में पार्टी ने उन्हें लोरमी सीट से लड़ाया और साव जीतकर आए।

मजबूत पक्ष –

  • पार्टी का छत्तीसगढ़िया OBC चेहरा।
  • संघ के करीबी और साधारण पृष्ठभूमि।
  • नया और निर्विवाद चेहरा।
  • प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व से मिली सराहना।
  • साहू समाज का होने की वजह से जातिगत समीकरण में फीट बैठते हैं।
  • प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मजबूत दावेदारी।

कमजोर पक्ष –

  • कम राजनीतिक अनुभव।
  • सर्वमान्य नेता साबित करने की चुनौती।
  • आदिवासी मुख्यमंत्री का फैक्टर अड़चन बन सकता है।

ओम माथुर ने बताया- कैसे चुनेंगे CM

भाजपा नेता अमर अग्रवाल (बाएं) के साथ प्रदेश प्रभारी ओम माथुर।

भाजपा नेता अमर अग्रवाल (बाएं) के साथ प्रदेश प्रभारी ओम माथुर।

छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने बताया कि सभी विधायकों से एक बार चर्चा की जाएगी। केंद्रीय संगठन पर्यवेक्षक तय करेगा । पर्यवेक्षक यहां आएंगे विधायकों से मुलाकात करेंगे, उनसे रायशुमारी की जाएगी इसके बाद विधायकों का सुझाव केंद्रीय संगठन को भेजा जाता है और केंद्रीय स्तर पर तय किया जाता है कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री कौन होगा।

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, एक से दो दिनों तक प्रदेश में फिलहाल कोई हलचल नहीं होगी। प्रत्याशियों से उन्हें उनके क्षेत्र में जनता का आभार जताने को कहा गया है। 5 दिसंबर के बाद फिर से रायपुर में हलचल बढ़ेगी। विधायक दल की बैठक भी बुलाई जा सकती है।

रायगढ़ सीट से ओपी चौधरी ने चुनाव जीता।

रायगढ़ सीट से ओपी चौधरी ने चुनाव जीता।

ओपी चौधरी की भी चर्चा
2018 के चुनावी माहौल में प्रदेश की राजधानी रायपुर के कलेक्टर ओपी ने नौकरी से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। अमित शाह की मौजूदगी में तब भाजपा जॉइन कर ली और खरसिया से चुनाव लड़ा। वोट प्रतिशत तो बढ़ा लिया मगर इस सीट से जीत न सके। ओपी चौधरी अब रायगढ़ से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार की चुनावी रैली में इनका प्रचार करने अमित शाह आए और भीड़ से बोले इन्हें विधायक बनाइए हम इन्हें बड़ा आदमी बना देंगे।

नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हो गई कि चौधरी को दिल्ली बुलाया गया है। उन्हें CM बनाया जा सकता है। इस चर्चा से ओपी चौधरी उकता गए हैं। उन्होंने फेसबुक पर लिखा मेरे बारे में अफवाह फैलाई जा रही है। मीडिया से दो टूक कहा कि कोई अंदाजा न लगाएं, मैं छोटा कार्यकर्ता हूं। संगठन में इस तरह की चर्चाओं का कोई स्थान नहीं होता।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!