नेहरू मेमोरियल का नाम बदला:नेहरू यहां रहने वाले इकलौते PM, इंदिरा के दबाव में शास्त्री ने दूसरा घर चुना
‘आदरणीय प्रधानमंत्री जी तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिताजी पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या खुद वहां रहना चाहते हैं, इस बात का फैसला यदि आप जल्दी करते तो बेहतर होगा। वैसे मैं हमेशा से यह मानती रही हूं कि तीन मूर्ति भवन रहने के लिहाज से बहुत बड़ा है, लेकिन पंडित नेहरू की बात अलग थी। उनसे मिलने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी। हालांकि, अब स्थिति ऐसी नहीं रहेगी। आपसे मिलने वालों की कुछ खास तादाद नहीं होगी।’
ये बातें 1964 में इंदिरा गांधी ने उस वक्त के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को लिखे पत्र में कही थीं। इसके बाद शास्त्री ने तीन मूर्ति भवन को नेहरू म्यूजियम बना दिया था। मोदी सरकार ने अब इसी नेहरू मेमोरियल का नाम बदलकर प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड लाइब्रेरी कर दिया है।
जानेंगे फ्लैग स्टाफ हाउस के तीन मूर्ति भवन, नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और अब प्रधानमंत्री म्यूजियम बनने की पूरी कहानी…
साल 1911 की बात है। अंग्रेजों ने ब्रिटिश भारत की शीतकालीन राजधानी कलकत्ता को दिल्ली ट्रांसफर करने का फैसला किया। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एडविन लुटियंस के शाही राजधानी बसाने का दौर तेज हुआ। इसी के तहत साल 1930 में ‘फ्लैग स्टाफ हाउस’ बनाया गया।
यह ब्रिटिश इंडिया सेना के कमांडर इन चीफ का शीतकालीन हेडक्वार्टर और आधिकारिक निवास था। 30 एकड़ में फैली इस खूबसूरत बिल्डिंग को ब्रिटिश सैनिक और आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल ने बनाया था। रसेल इससे पहले दिल्ली के कनॉट प्लेस और पटौदी पैलेस को भी डिजाइन कर चुके थे।
तीन मूर्ति भवन नई दिल्ली इलाके का सबसे बड़ा बंगला है। इसी भवन में आजादी के बाद 16 साल तक प्रधानमंत्री नेहरू रहे। अब इसे प्रधानमंत्री म्यूजियम बना दिया गया है।
यह बिल्डिंग राष्ट्रपति भवन के दक्षिण में है। इसे पत्थर और प्लास्टर से बनाया गया था। इसे विक्टोरियन और फ्रांसीसी आर्किटेक्ट का मिला-जुला रूप बताया जाता है।
जल्द ही फ्लैग स्टाफ हाउस का नाम बदलकर तीन मूर्ति भवन कर दिया गया। दरअसल, इस भवन के बाहर एक चौक है, जिसके बीचों-बीच तीन मूर्तियां बनी हैं। तीनों मूर्तियों की वजह से यह भवन तीन मूर्ति भवन के नाम से भी जाना जाने लगा।
इन तीनों मूर्तियों को ब्रिटिश स्कल्पचर लियोनॉर्ड जेनिंग्स ने बनवाया था। यहां मौजूद तीन सैनिकों की मूर्तियां मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद राज्य के शस्त्रधारी सैनिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
ये मूर्तियां साल 1922 में लगाई गईं थी। पहले विश्वयुद्ध के दौरान हाइफा की लड़ाई में भारत की ओर से जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर के ही सैनिकों ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था। उन्हीं की याद में ये मूर्तियां लगाई गई हैं। मूर्तियां लगने के आठ साल बाद ‘फ्लैगस्टाफ हाउस’ बना था।
तीन मूर्ति चौक का इजराइल के साथ ऐतिहासिक संबंध है। तीन मूर्ति स्मारक की तीनों मूर्तियां तांबे की बनी हैं, जो हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर लांसर्स को रिप्रेजेंट करती हैं। सोर्स : Facebook/@Teen Murti Bhavan
नेहरू ने माउंटबेटन को तीन मूर्ति भवन में रहने से मना किया
4 अगस्त 1947 को घोषणा हुई कि लॉर्ड माउंटबेटन भारत के पहले गवर्नर जनरल होंगे। इसी के बाद महात्मा गांधी ने देश के आखिरी वायसराय और पहले गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को वायसराय भवन के बजाय कहीं और रहने की सलाह दी।
जेबी कृपलानी अपनी किताब ‘पॉलिटिकल थिंकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया’ में लिखते हैं कि गांधी की सलाह के बाद माउंटबेटन फ्लैग स्टाफ हाउस यानी तीन मूर्ति भवन को अपना निवास स्थान बनाने की तैयारी करने लगे। माउंटबेटन ने यह बात जवाहर लाल नेहरू से बताई।
नेहरू ने यह कहकर मना कर दिया कि वे (माउंटबेटन) कुछ ही महीनों के लिए देश में रहेंगे और इतने कम समय के लिए घर बदलना सही नहीं है। इसके बाद माउंटबेटन ने घर बदलने का इरादा त्याग दिया।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू का आधिकारिक आवास बना तीन मूर्ति भवन
साल 1947 में आजादी के बाद यह फैसला लिया गया कि भारत के प्रधानमंत्री तीन मूर्ति भवन में रहेंगे। उस समय के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल औचिनलेक को उसी समय दूसरे भवन में शिफ्ट कर दिया गया।
इसके बाद देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे अपना आवास बनाया। उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी इसी घर में उनके साथ रहने लगीं। जाहिर था यह इमारत प्रधानमंत्री आवास के लिए बिल्कुल मुफीद थी क्योंकि वायसराय हाउस के बाद फ्लैग स्टाफ हाउस ही दूसरी सबसे ताकतवर बिल्डिंग थी।
तीन मूर्ति भवन में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अपनी बेटी इंदिरा गांधी और उनके बेटे राजीव और संजय के साथ। सोर्स : Wikimedia Commons
पाकिस्तान के भौतिकशास्त्री परवेज हुडबॉय ने मिलिट्री जर्नलिज्म के स्तंभ कहे जाने वाले स्टीवन विलकिंसन के साथ एक इंटरव्यू में इस बारे में बात की थी। उनके मुताबिक नेहरू इससे यह संकेत देना चाहते थे कि भारत में संसद सेना प्रमुख से ऊपर है। हालांकि, बहुत से लोगों के मुताबिक यह सही आकलन नहीं है क्योंकि नेहरू इस प्रकार के किसी भी आडंबर से दूर ही रहते थे।
वे जानते थे कि इससे कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता। मई 1964 में अपने निधन से पहले वह तीन मूर्ति भवन में लगभग 16 साल रहे और इस तरह तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री आवास और दिल्ली का पावर सेंटर बन गया।
तीन मूर्ति भवन में जवाहर लाल नेहरू का स्टडी रूम। सोर्स : Facebook/@Teen Murti Bhavan
कैबिनेट ने इसे PM हाउस बनाने का फैसला किया, फिर भी नहीं रह पाए शास्त्री
जवाहर लाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी में प्रधानमंत्री बनने के लिए खींचतान मची थी। हालांकि, 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री ने तीन मूर्ति भवन को अपना निवास बनाने का विचार किया।
इंदिरा गांधी अभी भी तीन मूर्ति भवन में ही रह रही थीं। ऐसे में शास्त्री ने उसे प्रधानमंत्री का आवास बनाने का विचार कुछ दिनों के लिए टाल दिया। तब तक इंदिरा गांधी भी शास्त्री जी के मंत्रिमंडल में शामिल हो चुकी थीं। उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जा चुका था। शास्त्री जी की हिचक की एक वजह यह भी थी।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू अपनी किताब ‘सत्ता के गलियारों से’ में लिखते हैं कि इंदिरा की वजह से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तीन मूर्ति भवन में रहने का साहस नहीं जुटा पाए।
9 अगस्त 1964 को केंद्रीय कैबिनेट ने फैसला लिया कि इस भवन में एक बार फिर से भारत के प्रधानमंत्री को रहना चाहिए। रामचंद्र गुहा, ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं कि जब इंदिरा को खबर मिली कि प्रधानमंत्री कार्यालय उन्हें इस भवन को खाली करने का आदेश दे सकता है तो उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाने का प्रस्ताव दे डाला।
इंदिरा गांधी ने PM शास्त्री को एक चिट्ठी भी लिखी। इसमें इंदिरा ने लिखा- ‘आदरणीय प्रधानमंत्री जी तीन मूर्ति भवन को आप मेरे पिताजी पंडित जवाहरलाल नेहरू का स्मारक बनाना चाहते हैं या खुद वहां रहना चाहते हैं, इस बात का फैसला यदि आप जल्दी करते तो बेहतर होगा।’
प्रधानमंत्री शास्त्री चाहते हुए भी इस प्रस्ताव के खिलाफ नहीं जा सकते थे। अगस्त 1964 में कांग्रेस ने नेहरू मेमोरियल फंड की स्थापना की। राष्ट्रपति और इंदिरा गांधी को क्रमशः चेयरमैन और सचिव नियुक्त किया गया। वहीं PM शास्त्री को अपने लिए दूसरा निवास चुनना पड़ा। उसी साल तीन मूर्ति भवन में नेहरू स्मृति और संग्रहालय बना दिया गया, जिसका प्रबंधन सरकार का सांस्कृतिक मंत्रालय करता है।
तीन मूर्ति भवन में जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी का बेडरूम। सोर्स : Facebook/@Teen Murti Bhavan
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर डेरेक एल इलियट ने 2013 में नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में तीन महीने बिताए थे। इसके बाद उन्होंने अपने रिव्यू में लिखा- तीन मूर्ति एक ऐसा स्थान है जो भारतीय इतिहास और बौद्धिक वातावरण से लबरेज है। यह दिल्ली में किसी भी अन्य बड़े संग्रह से बेजोड़ है।
1977 में पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि, जनता पार्टी ने नेहरू म्यूजियम के प्रबंधन में कोई दखल नहीं दिया। यानी तब भी गांधी-नेहरू परिवार ही इसका सर्वेसर्वा था।
1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान सोनिया गांधी नेहरू स्मृति स्मारक और संग्रहालय यानी NMML की चेयरमैन बनीं। एक प्रकार से गांधी-नेहरू परिवार ने इस भवन पर अघोषित कब्जा कर लिया।
सोनिया और मेनका गांधी के बीच राजनीतिक जंग की वजह बना यह मेमोरियल
इन सबके बीच NMML पर कब्जे की जंग में सोनिया गांधी के साथ उनकी देवरानी मेनका गांधी भी कूद पड़ी थीं। मेनका ने उस वक्त BJP में शामिल होकर राजनीति में कदम रख दिया था।
मेनका का मानना था कि सोनिया से ज्यादा तीन मूर्ति भवन पर उनका हक था, क्योंकि संजय गांधी को इंदिरा गांधी का असली राजनीतिक वारिस माना जाता था।
1999 में BJP सरकार बनने के कुछ समय बाद ही NMML पर कब्जे की जंग तेज हो गई। इसी बीच सितंबर 2001 में अटल सरकार ने मेनका गांधी को संस्कृति मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया। दरअसल, संस्कृति मंत्रालय पर ही NMML की देखभाल का जिम्मा है।
नवंबर में बड़ा बदलाव होता है। सोनिया गांधी को हटाकर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी NMML के अध्यक्ष बन गए। सोनिया महज एक ट्रस्टी बनकर रह गईं। जानकार इसे सोनिया और मेनका की राजनीतिक लड़ाई के तौर पर देख रहे थे। साथ ही मेनका अब तक सोनिया पर भारी पड़ती दिख रही थीं, लेकिन 18 नवंबर को मेनका से संस्कृति मंत्रालय छोड़ने को कहा गया और उन्हें दूसरा मंत्रालय दे दिया गया।
मेनका गांधी ने संस्कृति मंत्रालय छीने जाने पर नाराजगी जताई। मेनका ने कहा- वे NMML को सोनिया और उनके चहेते लोगों से आजाद कर उसे स्वायत्त संस्थान बना रही थीं, लेकिन सरकार में कुछ लोगों को यह बात पसंद नहीं आई। जानकार कहते हैं कि वे अटल बिहारी और सोनिया गांधी के बीच हुए एक समझौते की ओर इशारा कर रही थीं।
दरअसल, उस वक्त BJP सरकार के पास किसी बिल को संसद में पास कराने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं था। प्रधानमंत्री वाजपेयी संसद के दोनों सदनों में आतंकवाद से संबंधित POTA बिल को कांग्रेस के समर्थन के बिना पारित नहीं करा सकते थे। इसी वजह से उन्होंने सोनिया के साथ समझौता किया।
भले ही मेनका से संस्कृति मंत्रालय वापस ले लिया गया था, लेकिन सोनिया गांधी दोबारा NMMLकी चेयरपर्सन नहीं बन पाईं। हालांकि, संस्कृति मंत्रालय से मेनका की छुट्टी होना एक तरह से सोनिया की जीत की तरह देखा गया। वाजपेयी ने NMML से कोई छेड़खानी नहीं की, क्योंकि नेहरू उनके भी आदर्श थे।
2016 में मोदी ने इसका नाम बदलने की बात कही
साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम बदलने की बात की। उन्होंने कहा कि यहां सभी प्रधानमंत्रियों को समर्पित एक म्यूजियम बनाया जाना चाहिए। ये 6 सालों में बनकर तैयार हुआ और इसका उद्घाटन 21 अप्रैल 2022 को किया गया।
2016 में NMML का नाम बदलने की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस इसका विरोध करती रही है। पार्टी ने केंद्र सरकार पर भारत के इतिहास को बदलने का आरोप लगाया।
15 जून को NMML सोसाइटी की एक मीटिंग में इसका नाम बदलने का फैसला लिया गया। यानी नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी यानी NMML को अब ‘प्रधानमंत्री म्यूजियम और सोसाइटी’ कहा जाएगा।
इस मीटिंग की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। वे इस सोसाइटी के उपाध्यक्ष हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्यक्ष हैं। गृह मंत्री अमित शाह, निर्मला सीतारमण, धर्मेंद्र प्रधान, अनुराग ठाकुर जैसे केंद्रीय मंत्री इसके 29 सदस्यों में शामिल हैं।
NMML की बैठक में राजनाथ सिंह ने इसका नाम बदलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। उन्होंने कहा कि अब यहां सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान का प्रदर्शन किया जा रहा है। इसके साथ ही यहां उनके कार्यकाल में आई चुनौतियां भी प्रदर्शित हैं।
राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री को एक संस्थान के रूप में बताया। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि सभी प्रधानमंत्रियों को बराबर दिखाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा- ‘इंद्रधनुष को सुंदर बनाने के लिए उसके सभी रंगों को बराबर दिखाया जाना जरूरी है।’ यानी अब तक बने 14 प्रधानमंत्रियों का जिक्र इसमें होगा।
इसके बाद 16 जून को नाम बदलने पर एक बार फिर कांग्रेस ने BJP और प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर लिखा- संकीर्णता और प्रतिशोध, आपका नाम मोदी है। 59 सालों तक नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी दुनिया भर में बौद्धिकता का लैंडमार्क रही है। इसे किताबों और आर्काइव्स का खजाना माना जाता रहा है। अब इसे प्रधानमंत्री म्यूजियम और सोसाइटी कहा जाएगा।
नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के वाइस चेयरमैन ए सूर्या प्रकाश ने मंगलवार को ट्वीट कर लिखा- दिल्ली स्थित नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी का नाम सोमवार से प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड लाइब्रेरी कर दिया गया है।
ए सूर्या प्रकाश के ट्वीट के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने नेहरू म्यूजियम का नाम बदलने के फैसले की आलोचना की। जयराम रमेश ने लिखा- PM मोदी के पास भय, जटिलताओं और असुरक्षाओं का एक बड़ा बंडल है। खासकर जब बात हमारे पहले और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले नेहरू की आती है। उनका एकमात्र एजेंडा नेहरू और नेहरूवादी विरासत को नकारना, विकृत करना, बदनाम करना और नष्ट करना है।
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