बात बराबरी की ! गर्ल्स पीजी के सामने अश्लील हरकत, वीडियो वायरल:प्रिय मर्द, गलती तुम्हारी तो शर्मिंदा भी तुम हो
कई बार घटनाएं वही होती हैं, फिर भी कहानी बदल जाती है। वही पात्र, वही वाकये, फिर भी कहानी एकदम नई होती है।
ये पहली कहानी मेरी मां की है। साल 1971। घर से स्कूल के रास्ते में एक बार मां के साथ यह वाकया हुआ। तब उनकी उम्र सिर्फ 13 साल थी। घर से कुछ तीन किलोमीटर दूर स्कूल के रास्ते वो पैदल चलकर जाती थीं। उस रास्ते में कई बार ऐसा हुआ कि सड़क किनारे खड़े किसी आदमी ने कोई अश्लील इशारा किया या कोई भद्दी टिप्पणी कर दी।
एक दिन तो इंतहा ही हो गई, जब एक आदमी रास्ते में अपनी पैंट की जिप खोलकर खड़ा हो गया। वो वहां से भाग गईं और इस घटना का जिक्र कभी किसी से नहीं किया। अपनी बड़ी होती बेटी को भी नहीं बताया। कभी सावधान करने के लिए भी नहीं।
ऐसा मेरे साथ भी हुआ, जब मैं कक्षा तीन में, चार में, पांच में और दस में थी और घर से स्कूल के रास्ते पैदल जाया करती थी। ऐसा कई बार हुआ कि सड़क ज्यों ही थोड़ी सुनसान हुई, रास्ते में कोई आदमी अचानक से अश्लील हरकतें करने लगा, मैं बुरी तरह डर गई। मैंने भी अपनी मां की तरह इस घटना का जिक्र कभी किसी से नहीं किया। सिर्फ अकेले उस घुटन को, उस डर को महसूस करती रही।
ये तो हुई पुरानी कहानियां। नई कहानी कुछ और है। घटनाएं, पात्र सब कुछ बिल्कुल वैसे ही हैं। एक बेशर्म आदमी है और एक वलनरेबल लड़की। फर्क सिर्फ इतना है कि इस कहानी में लड़की डरी हुई नहीं है। न कमजोर है। वह अपने अधिकार जानती है। अपनी ताकत पहचानती है। उसे समाज के शर्मिंदा किए जाने का, अपने चरित्र पर ही उंगली उठाए जाने का डर नहीं है।
हाल ही में नॉर्थ दिल्ली के एक पीजी में रहने वाली लड़की एक शाम अपने कमरे की बालकनी में खड़ी थी। सामने सड़क पर एक आदमी उसे लगातार गंदे इशारे कर रहा था। यहां तक कि उस आदमी ने उसके सामने मास्टरबेट करने की कोशिश की। वो लड़का ऐसा अकसर करता था।
लड़की डरी नहीं। एक दिन उसने उसका वीडियो बना लिया और दिल्ली महिला आयोग में शिकायत कर दी। महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने उसका वीडियो ट्विटर पर शेयर कर दिया। अब भरी दुनिया के सामने उस महान मर्द की महानता की झांकी निकल रही है। ट्विटर पर पूरी दुनिया देख रही है।
पहले की कहानी में लड़की डरती थी। अब डरने की बारी उस आदमी की है। अब वीडियो पुलिस के पास है और जल्द ही आदमी सलाखों के पीछे होगा। क्या पता, जब तक आप ये पढ़ रहे हों, तब तक वो सलाखों के पीछे पहुंच भी चुका हो।
ऐसा ही एक वाकया 2019 में मुंबई शहर का है। एक लड़की मुंलुंड में अपने घर के पास बने एक एटीएम में रात को गई। पीछे-पीछे एक आदमी भी एटीएम के अंदर घुस आया। लड़की ने उसे कनखियों से कुछ गंदे इशारे करते देखा। फिर उसने अश्लील हरकतें की।
लड़की उस वक्त एटीएम में अकेली थी। उसने डरने के बजाय समझदारी और बुद्धिमानी से काम लिया। उसने अपना मोबाइल ऑन किया और उस आदमी का वीडियो बनाना शुरू कर दिया। खुद को रिकॉर्ड होता देख वो वहां से भाग खड़ा हुआ, लेकिन भागकर जाता कहां। उसका चेहरा और हरकत दोनों उस वीडियो में कैद हो चुके थे। अगले ही दिन वो आदमी वीडियो के साथ पुलिस की हिरासत में था।
मीडिया में बड़े पैमाने पर इस घटना की रिपोर्टिंग हुई। किसी अखबार ने उस आदमी का चेहरा नहीं छिपाया। सबने देखा कि वो कौन था और क्या कर रहा था। वो एक शादीशुदा, घर-परिवार वाला, बीवी-बच्चों वाला आदमी था। सिर्फ दुनिया ही नहीं, उसके बीवी-बच्चे भी देख रहे थे।
और ये सब सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि लड़की डरी नहीं। मर्द की गंदी हरकत पर वो शर्मिंदा नहीं हुई। उसे नहीं लगा डर कि दुनिया उसे ही बुरा समझेगी, उस पर ही फब्तियां कसेगी, उसे ही कटघरे में खड़ा करेगी, उससे ही सवाल करेगी। उसने बिना शरमाए पूरी घटना सोशल मीडिया पर बयान कर दी।
उसी पुरानी कहानी में अब सही और गलत का फैसला गलत तरीके से नहीं हुआ। लड़की सड़क पर निकलने से इसलिए नहीं डरी कि लड़का छेड़ सकता है। लड़के को डर लगा कि अगर छेड़खानी की तो सलाखों के पीछे भी जा सकता है। लड़की के हाथ में मोबाइल है, टेक्नोलॉजी है और मन में साहस। अब दुनिया बदल रही है।
तुम्हारा काम बदतमीजी करना होगा, लेकिन लड़की का काम तुम्हारी बदतमीजी सहकर चुप रहना नहीं है। लड़की का काम है घर से निकले, बाहर जाए, घूमे-फिरे, जो जी में आए करे और तुम्हारा काम है कि तुम अपनी हद में रहो, तमीज से व्यवहार करो।
हालांकि ये चंद घटनाएं इस बात का प्रमाण नहीं हैं कि अब दुनिया सच में बदल गई है। अभी भी पितृसत्ता के बनाए किले की दीवारें बहुत मजबूत हैं, लेकिन उम्मीद की बात ये है कि उस किले पर अब चोट होने लगी है। एक, दो, चार और आठ से मिलकर ही समूह बनता है।
जब एक लड़की डरना छोड़कर बोलने का रास्ता चुनती है तो वो अपने साथ जाने कितनी लड़कियों को डरना और सहना छोड़कर बोलने और कहने की प्रेरणा दे रही होती है। जब कोई एक लड़की साहस के रास्ते पर चलना चुनती है तो वो अपने साथ जाने कितनी लड़कियों को उस रास्ते पर चलने की प्रेरणा दे रही होती है।
बात सिर्फ इतनी सी समझने की है कि उस गलती की सजा मैं क्यों भुगतूं, जो मैंने की ही नहीं। उस पाप की शर्मिंदगी मेरे सिर क्यों आए जो मेरा है ही नहीं।
गलती जिसकी, जिम्मेदारी भी उसकी। सजा भी उसकी। लड़की की जिम्मेदारी सिर्फ इतनी है कि वो अपने जीवन के प्रति जिम्मेदार है। अपनी खुशी, अपनी प्रगति, अपने साहस, अपनी ऊंचाइयों के लिए जिम्मेदार और आप मानें या न मानें, ये जिम्मेदारी वो खूब शिद्दत से निभा रही है।
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