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भारत और जर्मनी ने ‘समुद्री पर्यावरण में प्रवेश कर रहे प्लास्टिक कचरे की समस्‍या का सामना कर रहे शहरों’ के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए

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परियोजना के तहत कानपुर, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर की सहायता की जाएगी
आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (एमओएचयूए), भारत सरकार और जर्मन संघीय पर्यावरण मंत्रालय, प्रकृति संरक्षण और परमाणु सुरक्षा की ओर से डोयशे श्ल्सचैफ्ट फर इंटरनेशनेल जुसाममेनारबीत (जीआईजैड) जीएमबीएच इंडिया ने तकनीकी सहयोग के बारे में आज एक वर्चुअल समारोह में नई दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसका शीर्षक है ‘प्‍लास्टिक जिससे शहर लड़ रहे हैं वह समुद्री पर्यावरण में प्रवेश कर रहा’ है। हस्ताक्षर समारोह में एमओएचयूए सचिववश्री दुर्गा शंकर मिश्राने कहा, “2021 दोनों देशों के बीच 63 वर्षों के लाभदायक विकास सहयोग का प्रतीक है। मुझे अपनेजर्मन साथी के साथ इस नए प्रयास को शुरू करते हुए बेहद खुशी हो रही है। परियोजना के नतीजे पूरी तरह से स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के उद्देश्यों के अनुरूप हैं, जिसमेंनिरंतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और 2022 तक प्लास्टिक के एकल उपयोग को रोकने के लिए प्रधानमंत्री के विजन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।”

कार्यक्रम में एमओएचयूए में अपर सचिव श्री कामरान रिजवी, जर्मन संघीय पर्यावरण मंत्रालय, प्रकृति संरक्षण और परमाणु सुरक्षा (बीएमयू) की महानिदेशक डॉ. रेजिना ड्यूब , जलवायु और पर्यावरण, जर्मनी गणराज्य के दूतावास की प्रथम सचिव डॉ. एंटजे बर्जर, जीआईजेड इंडिया की कंट्री डायरेक्टर डॉ. जूली रिवेरेशामिल हुए। वर्चुअल कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश, केरल और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के राज्य सरकारों और कार्यान्वयन शहरों कानपुर, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।

इस परियोजना की परिकल्पना भारत और जर्मनी गणराज्‍य के बीच ‘समुद्री कचरे की रोकथाम’ के क्षेत्र में सहयोग के उद्देश्‍य से संयुक्त घोषणापत्र की रूपरेखा के तहत 2019 में की गई। समुद्री पर्यावरण में प्‍लास्टिक को रोकने की व्‍यवस्‍था बढ़ाने के उद्देश्‍य से इसपरियोजना कोराष्ट्रीय स्तर (एमओएचयूएपर), चुनिंदा राज्यों (उत्तर प्रदेश, केरल और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) और कानपुर, कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर शहरों में साढ़े तीन साल की अवधि के लिए चालू किया जाएगा।

समुद्री कूड़ा पर्यावरण के लिए खतरा है और दुनिया भर में मत्स्य और पर्यटन उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। अर्थव्‍यवस्‍था पर नकारात्मक प्रभाव डालने के अलावा, यह सूक्ष्म प्‍लास्टिक के बारे में बढ़ती चिंताओं और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने वाले कणों के जोखिम के साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हाल के दिनों में, बढ़ते हुए उत्पादन और टिकाऊ सिंथेटिक सामग्रियों के उपयोग से हमारे महासागरों और समुद्री पर्यावरण में जमा हुए प्लास्टिक कचरे के स्तर ने जनता को और नीति निर्माताओं को समान रूप से भयभीत किया है। अनुमान है कि सभी प्लास्टिक का 15-20% नदियों के बहते पानी के रास्‍ते महासागरों में प्रवेश कर रहा है, जिनमें से 90% योगदान दुनिया की 10 सबसे प्रदूषित नदियां करती हैं। इनमें से दो नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र भारत में स्थित हैं।

देश के अधिकांश हिस्सों के लिए प्लास्टिक कचरे और विशेष रूप से समुद्री कचरे के बारे में सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है, यह परियोजना स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के कार्यान्वयन में सहयोग करेगी जिसमें विशेष रूप से नदियों और जल निकायों में प्लास्टिक कचरे का प्रवेश रोका जाएगा। इस उद्देश्‍य को हासिल के लिए, शहरों को प्लास्टिक कचरे के संग्रह, उसे अलग करने और प्‍लास्टिक कचरे के विपणन में सुधार करना होगा ताकिप्लास्टिकनिपटान कोजल निकायों में जाने से रोका जा सके और बंदरगाह और समुद्री कचरे के हैंडलिंग में सुधार लाया जा सके। इसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से रिसाइक्‍लर्स और रीसाइक्लिंग उद्योग के साथ डेटा प्रबंधन और रिपोर्टिंग प्रणाली, नागरिक समाज की भागीदारी और बढ़े हुए सहयोग से जोड़ा जाएगा। इससे नगरपालिकाओं में कचरे को अलग करने, संग्रह, परिवहन, उपचार और कचरे के निपटान में सुधार होने की उम्मीद है, जिससे एक कुशल प्रणाली की स्थापना होगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कोई भी कचरा नदियों या महासागरों तक नहीं पहुंचे।

नई परियोजना की परिकल्पना शहरी परिवर्तन पर काम करने वाले इंडो-जर्मन द्विपक्षीय विकास निगम के तहत एक और सफल सहयोगात्मक प्रयास


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