बीकानेर, 31 अगस्त। मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ राजस्थानी भाषा-साहित्य के कीर्ति-स्तंभ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और भेदभाव पर करारा कटाक्ष किया। यह बात राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने गुरुवार को अकादमी परिसर में अकादमी की मुखपत्रिका ‘जागती जोत’ के ‘मुरलीधर व्यास राजस्थानी’ विशेषांक का लोकार्पण करते हुए कही।
छंगाणी ने बताया कि मुरलीधर व्यास ने आजादी से पूर्व, राजस्थानी में कहानियां और संस्मरण लिखे। उनकी पुस्तक ‘वरसगांठ’ आधुनिक राजस्थानी कथा साहित्य की प्रथम कृति मानी जाती है। उन्होंने कहा कि जागती जोत का यह विशेषांक मुरलीधर व्यास एवं आधुनिक राजस्थानी साहित्य पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि मुरलीधर जी ने मायड़भाषा राजस्थानी के उन्नयन के लिए अविस्मरणीय कार्य किया। उन्होंने बताया कि अकादमी की ओर से पूर्व में उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक का प्रकाशन किया जा चुका है साथ ही अकादमी द्वारा उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष ‘मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा साहित्य पुरस्कार’ भी प्रदान किया जाता है।
अकादमी कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी ने कहा मुरलीधर व्यास राजस्थानी के बेन यहूदा थे। उन्होंने भी अपनी मातृभाषा राजस्थानी में ही बोलने-लिखने का प्रण लिया और उसे जीवनपर्यंत निभाया। मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ ने अपनी कहानियों, संस्मरणों, रेखाचित्रों के माध्यम से राजस्थानी भाषा के साहित्य को समृद्ध किया।
जागती जोत के उप संपादक शंकरसिंह राजपुरोहित ने बताया कि मुरलीधर व्यास राजस्थानी के ऐसे पहले लेखक थे, जिनकी दो पुस्तकों की भूमिका देश के लब्धप्रतिष्ठ भाषाविद् सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या ने लिखी। उन्होंने बताया कि ‘जागती जोत’ के इस विशेषांक में मुरलीधर व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 14 साहित्यकारों की रचनाएं शामिल की गई हैं, साथ ही मुरलीधर व्यास की प्रतिनिधि कहानियां, रेखाचित्र, हास्य-व्यंग्य और संस्मरण भी शामिल किए गए हैं।
मुरलीधर व्यास के प्रपौत्र व्यास योगेश ‘राजस्थानी’ ने अपने पड़दादा के जीवन के अनछुए साहित्यिक एवं पारिवारिक पहलुओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि मुरलीधर जी की 125वीं वर्षगांठ पर ‘जागती जोत’ का यह विशेषांक उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।
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