राजस्थान में सबसे कम दिन के मंत्री टीटी, सीएम हीरालाल:शेखावत-गहलोत बिना चुनाव जीते बने थे मुख्यमंत्री; एक मिनिस्टर को इलेक्शन के लिए नहीं मिली सीट
श्रीकरणपुर सीट से चुनाव हारने के बाद सुरेंद्र पाल सिंह टीटी का केवल 10 दिन में ही मंत्री पद चला गया। सबसे कम दिन तक बिना विधायक मंत्री रहने का अनचाहा रिकॉर्ड टीटी के नाम हो गया है।
सरकार चाहती तो प्रावधान के अनुसार टीटी को 6 महीने मंत्री पद पर रख सकती थी, लेकिन चौतरफा आलोचनाओं के बाद हारते ही टीटी ने इस्तीफा दे दिया और हाथों हाथ उसे मंजूर भी कर लिया।
टीटी के नाम सबसे कम समय मंत्री रहने का रिकॉर्ड बन गया है, लेकिन पहले भी कई किस्से हो चुके हैं।
एक मुख्यमंत्री केवल 15 दिन के लिए पद पर रहे तो 14 मंत्री ऐसे थे, जो 4 महीने से भी कम पद पर रहे।
राजस्थान के दिग्गज नेता भैरोसिंह शेखावत और अशोक गहलोत तो बिना विधायक बने मुख्यमंत्री बन गए थे।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
मंत्री पद की शपथ लेते हुए सुरेंद्र पाल सिंह टीटी। शपथ लेने के 10 दिन बाद ही उनका मंत्री पद चला गया।
हीरालाल देवपुरा को चलते चुनाव में सीएम बनाया था
राजस्थान में चलते चुनाव के बीच केवल 15 दिन के लिए सीएम बनाने का भी रिकॉर्ड है। यह रिकॉर्ड कांग्रेस के हीरालाल देवपुरा के नाम है।
देवपुरा 23 फरवरी 1985 से 10 मार्च 1985 तक ही मुख्यमंत्री रहे थे। उस वक्त विधानसभा चुनाव चल रहे थे।
डीग के तत्कालीन विधायक और पूर्व राजपरिवार के सदस्य मान सिंह की पुलिस एनकाउंटर में मौत के बाद शिवचरण माथुर को 23 फरवरी 1985 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
शिवचरण माथुर सीएम रहते डीग चुनाव प्रचार के लिए हेलिकॉप्टर से गए थे। मानसिंह ने जीप से सीएम का हेलिकॉप्टर तोड़ दिया था।
इस घटना के बाद पुलिस एनकाउंटर में मानसिंह की मौत हो गई थी। इस पर हुए विवाद में माथुर की जगह देवपुरा को सीएम बनाया गया।
देवपुरा के सीएम बनने के दो सप्ताह बाद ही चुनाव के नतीजे आ गए। कांग्रेस ने हरिदेव जोशी को नया मुख्यमंत्री बना दिया। देवपुरा 15 दिन ही पद पर रहे।
हीरालाल देवपुरा 23 फरवरी 1985 से 10 मार्च 1985 तक ही मुख्यमंत्री रहे थे। उस वक्त विधानसभा चुनाव चल रहे थे।
मंत्री चौहान को चुनाव लड़ने की नहीं मिली सीट तो छोड़ा पद
बरकतुल्लाह खान की मंत्रिपरिषद में 1971 में ओंकारलाल चौहान को मंत्री बनाया गया था। 4 सितंबर 1971 को ओंकारलाल चौहान को मंत्री बनाया गया था।
चौहान को मंत्री बने रहने के लिए 6 महीने के अंदर चुनाव जीतकर विधायक बनना था। चौहान के चुनाव लड़ने के लिए किसी ने सीट खाली नहीं की। ऐसे में चौहान को 3 मार्च 1972 को इस्तीफा देना पड़ा।
शेखावत-गहलोत ने बिना विधायक बने सीएम पद की शपथ ली थी
भैरोंसिंह शेखावत और अशोक गहलोत जब पहली बार सीएम बने तो विधायक नहीं थे। अशोक गहलोत दिसंबर 1998 में जब पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तो जोधपुर से सांसद थे।
1998 के चुनाव में सरदारपुरा सीट से कांग्रेस के टिकट पर मानसिंह देवड़ा जीतकर विधायक बने थे। मानसिंह देवड़ा ने गहलोत के लिए सीट खाली की, उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दिया।
देवड़ा के इस्तीफा देने से खाली हुई सीट पर अशोक गहलोत ने उपचुनाव जीता। देवड़ा को बाद में हाउसिंग बोर्ड अध्यक्ष बनाया था।
तब से गहलोत लगातार इस सीट से विधायक बन रहे हैं। इस बार गहलोत छठी बार सरदारपुरा से विधायक बने हैं।
इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे। जब सीएम बने, तब वे विधायक नहीं थे। वे मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य थे।
छबड़ा से जनसंघ के विधायक प्रेम सिंह सिंघवी ने शेखावत के लिए छबड़ा सीट खाली की थी। भैरोंसिंह छबड़ा से उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे।
प्रेम सिंह सिंघवी के बेटे प्रताप सिंह सिंघवी अभी छबड़ा से विधायक हैं। प्रताप सिंह सिंघवी सातवीं बार विधायक बने हैं। 1985 में पहली बार विधायक बने थे।
भैरोंसिंह शेखावत और अशोक गहलोत दोनों ही बिना विधायक का चुनाव लड़े सीएम बने थे।
पिछली वसुंधरा सरकार में कैलाश मेघवाल केवल एक महीने मंत्री रहे थे
वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में कैलाश मेघवाल केवल एक महीने तक खनिज मंत्री रहे थे। कैलाश मेघवाल विधानसभा स्पीकर बनाए गए थे। ऐसे में उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था।
कैलाश मेघवाल 20 दिसंबर 2013 को खान मंत्री बने। एक महीने बाद 21 जनवरी 2014 को खान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
22 जनवरी 2014 को सर्वसम्मति से विधानसभा स्पीकर चुने गए थे। कैलाश मेघवाल बेबाक बयानों से चर्चा में रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री पर बयानबाजी और बागी चुनाव लड़ने के बाद उन्हें अब बीजेपी से निकाला जा चुका है।
वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में कैलाश मेघवाल केवल एक महीने तक खनिज मंत्री रहे थे।
सांसद सांवरलाल जाट 5 महीने मंत्री रहे थे
वसुंधरा राजे सरकार में जलदाय मंत्री सांवरलाल जाट 11 महीने मंत्री रहे थे। सांवरलाल जाट सांसद बनने के बाद भी 5 महीने मंत्री रहे थे।
20 दिसंबर 2013 को सांवरलाल जाट जलदाय मंत्री बने। मई 2014 में अजमेर से सांसद का चुनाव जीत गए। सांसद का चुनाव जीतने के बाद भी 27 अक्टूबर 2014 तक जलदाय मंत्री रहे, 27 अक्टूबर को इस्तीफा दे दिया।
ऐसे में वे लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी 5 महीने मंत्री रहे थे। सांवरलाल जाट का बीमारी के कारण 2017 में निधन हो गया। अब उनके बेटे रामस्वरूप लांबा नसीराबाद से बीजेपी के विधायक हैं।
सांसद का चुनाव जीतने के बावजूद सांवरलाल जाट 5 महीने वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे थे।
शेखावत सरकार में 4 महीने से कम मंत्री रहे थे 14 नेता
भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली आखिरी सरकार में 14 मंत्री ऐसे थे जो चार महीने से भी कम समय तक मंत्री रहे थे।
2 जुलाई 1998 को भैरोंसिंह शेखावत सरकार का मंत्रिपरिषद विस्तार हुआ था। 14 नए राज्य मंत्री बनाए गए थे। इनके मंत्री बनने के तीन महीने बाद ही चुनाव हो गए और सरकार चली गई।
आखिर में मंत्री बनाए गए कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत, अमराराम चौधरी, उजला अरोड़ा, कन्हैयालाल मीणा, दलीचंद, बाबूलाल वर्मा, भंवरसिंह डांगावास, महावीर भगौरा, राजेंद्र गहलोत, रामप्रताप कासनिया, सुंदरलाल, चुन्नीलाल धाकड़ और शिवदान सिंह चौहान चार महीने से भी कम मंत्री रहे।
इनमें से ज्यादातर नेता चुनाव हार गए थे। वहीं कई नेता आगे चलकर वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार में भी मंत्री रहे।
कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत, अमराराम चौधरी, बाबूलाल वर्मा, चुन्नीलाल धाकड़ वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे। डांगावास नागौर से बीजेपी के सांसद रहे थे।
1990 में भैरोंसिंह शेखावत सरकार में 11 मंत्री सिर्फ साढ़े छह महीने और 1998 में 14 मंत्री चार महीने से भी कम समय के लिए पद पर रहे थे।
1990 में शेखावत सरकार के 11 मंत्री साढ़े छह महीने ही पद पर रहे
भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली बीजेपी और जनता दल की गठबंधन सरकार में 11 मंत्री ऐसे थे जो केवल साढ़े छह महीने ही मंत्री रहे थे।
जनता दल ने शेखावत सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। जनता दल कोटे के इस वजह से 11 मंत्रियों ने इस्तीफे दिए थे।
इस्तीफा देने वालों में कैबिनेट मंत्री नत्थी सिंह, संपतराम, प्रो. केदारनाथ, दिग्विजय सिंह, डॉ. चंद्रभान, सुमित्रा सिंह, मदन कौर शामिल थे।
राज्य मंत्रियों में फतेहसिंह, गोपाल सिंह खंडेला, रामेश्वर दयाल यादव थे। बाद में जनता दल का एक धड़ा टूट कर भैरोंसिंह शेखावत सरकार के समर्थन में हो गया था।
जनता दल (दिग्विजय) गुट के विधायकों की वजह से शेखावत सरकार ने विश्वासमत हासिल कर लिया था। इनमें से डॉ. चंद्रभान कांग्रेस में चले गए थे, जो पहली गहलोत सरकार में ऊर्जा मंत्री बने और बाद में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे।
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