NATIONAL NEWS

सरकारी स्कूलों में टीचर्स ने कराई नकल? AI ने पकड़ी:सैकड़ों स्कूलों को नोटिस; आशंका- स्टूडेंट तक कॉपी नहीं पहुंची, शिक्षकों ने भरे आंसर

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

सरकारी स्कूलों में टीचर्स ने कराई नकल? AI ने पकड़ी:सैकड़ों स्कूलों को नोटिस; आशंका- स्टूडेंट तक कॉपी नहीं पहुंची, शिक्षकों ने भरे आंसर

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बने एक सॉफ्टवेयर ने राजस्थान के 262 सरकारी स्कूलों में नकल का खुलासा किया है। बच्चों का स्टैंडर्ड जानने के लिए हर साल तीन बार होने वाले एग्जाम को लेकर सामने आया है कि इसमें बच्चों को नकल करवाई गई। इस खुलासे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या टीचर्स ही ये नकल करवा रहे हैं?

इस एग्जाम में प्रदेशभर से 8वीं तक के करीब 45 लाख स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया था। एग्जाम में पूछे गए प्रश्नों का सभी बच्चों ने एक जैसा उत्तर दिया, इनकी संख्या 26 हजार के करीब बताई जा रही है। विभाग के अफसरों की मानें तो नकल कराने में वहां के शिक्षकों का हाथ हो सकता है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि नकल करवाने के लिए जो आंसर बताए थे, वे भी गलत निकले।

नकल का खुलासा होने के बाद प्रदेश के 33 जिलों के 262 स्कूलों और वहां के संस्था प्रधानों को शिक्षा विभाग ने नोटिस भेजे हैं। आखिर नकल करवाने का ये मामला क्या है? इसका खुलासा कैसे सामने आया? ये जानने के लिए निदेशक कानाराम से बातचीत की…।

ये एग्जाम एक मोबाइल ऐप के जरिए हुआ था। इस ऐप में तीन स्टेप होते हैं और इसके बाद ऑटोमैटिक ही रिजल्ट जारी हो जाता है।

ये एग्जाम एक मोबाइल ऐप के जरिए हुआ था। इस ऐप में तीन स्टेप होते हैं और इसके बाद ऑटोमैटिक ही रिजल्ट जारी हो जाता है।

पढ़िए- कैसे इसका खुलासा हुआ और कैसे ये पोल खुली…।

दरअसल, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में क्लास एक से आठ तक के पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए वर्ष 2022 में राजस्थान के शिक्षा में बढ़ते कदम (RKSMBK) प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी। इसके तहत बच्चों का साल में तीन बार एग्जाम होता है।

पिछले शैक्षणिक सत्र में भी तीन एग्जाम हुए थे। हर एग्जाम में बच्चों को एक वर्कशीट दी जाती है। इसमें मल्टीपल चॉइस वाले प्रश्न आते हैं। यानी उनमें अ, ब, स, द में से किसी एक ऑप्शन चुनना होता है। ये एग्जाम सिर्फ बच्चों के क्लास लेवल के लिए होता है। यानी कोई बच्चा थर्ड क्लास में है तो उसके नॉलेज को देखा जाता है, यदि नॉलेज कम है तो टीचर्स उन बच्चों पर अलग से ध्यान देते हैं।

दूसरा ये एग्जाम इसलिए भी शुरू किया गया था कि सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्चों का स्टैंडर्ड जाना जा सके कि बच्चों का मेंटल स्टेटस उस क्लास में पढ़ने के काबिल है या नहीं?

एग्जाम के बाद उस वर्कशीट को मौखिक जांचने की बजाय इस बार एक खास सॉफ्टवेयर के जरिए स्कैन कर मंगवाया गया था। इस सॉफ्टवेयर को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस कर खास इसी एग्जाम के लिए तैयार किया गया है। इसी स्कैनर के जरिए ये पूरी गड़बड़ी सामने आई है।

ऐप में इस तरह से वर्कशीट को अपलोड करना पड़ता है।

ऐप में इस तरह से वर्कशीट को अपलोड करना पड़ता है।

नकल का खुलासा कैसे हुआ?

राजस्थान के शिक्षा में बढ़ते कदम यानी RKSMBK एग्जाम के लिए नेशनल इन्फॉर्मेशन सेंटर (एनआईसी) ने इस स्पेशल सॉफ्टवेयर को तैयार किया है।

यह सॉफ्टवेयर टीचर्स अपने मोबाइल में डाउनलोड करते हैं और एग्जाम होने के बाद कॉपी स्कैन करके सबमिट कर देते हैं। स्कैन करने के बाद टीचर का कोई काम नहीं है। इसका रिजल्ट भी एनआईसी ही जारी करता है।

पिछले सेशन में हुए एग्जाम में भी ये ही प्रोसेस अपनाया गया था। चूंकि ये सॉफ्टवेयर AI पर काम करता है तो हर स्कूल का अलग-अलग डेटा तैयार किया गया। जब डेटा फिल्टर होकर शिक्षा विभाग के पास पहुंचा तो पता चला कि राज्य के 262 स्कूलों के रिजल्ट आपत्तिजनक है।

वो कैसे? मान लीजिए- एक स्कूल में किसी एक प्रश्न का जवाब वहां के हर बच्चे ने एक जैसा दिया है। यानी किसी बच्चे ने “ए” ऑप्शन भरा है तो उस स्कूल में सभी बच्चाें की कॉपी में “ए” आंसर ही मिला है। अगर किसी प्रश्न का जवाब “बी” लिखा है तो सभी का उत्तर “बी” ही भरा है। चाहे उत्तर सही है या गलत। यानी गलत है तो सभी का गलत है और सही है तो फिर सभी का सही है। विभाग का मानना है कि ऐसा संभव ही नहीं है कि एक स्कूल के दो-तीन सौ स्टूडेंट्स बिना नकल के एक जैसा जवाब दें।

नकल कराई वो भी गलत

ये भी सामने आया कि नकल में टीचर ने बच्चों को गलत उत्तर तक भरवा दिए। यानी नकल करवाने वाले टीचर को ही नहीं पता कि सही उत्तर क्या है? एक वर्कशीट में पंद्रह प्रश्न दिए गए थे, उनके जवाब या तो सभी सही थे या फिर सभी गलत थे। ऐसा कई स्कूलों में सामने आया है।

इसके बाद ऐप पर ही पता चल जाता है कि क्लास के किन बच्चों पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है।

इसके बाद ऐप पर ही पता चल जाता है कि क्लास के किन बच्चों पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है।

45 लाख ने दिया एग्जाम, हजारों स्टूडेंट्स को नकल करवाई

पिछले सत्र में तीन बार एग्जाम हुआ, जिसमें 45 लाख स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया था। ये परीक्षा अक्टूबर 22, दिसम्बर 22 व मार्च 22 में हुई थी। शिक्षा विभाग ने मार्च 22 में हुए एग्जाम के डाटा एनालिसिस किया था तब ये गड़बड़ी पकड़ में आई।

अब शिक्षा विभाग ने 262 स्कूलों के संस्था प्रधानों को कारण बताओ नोटिस दिया है। औसतन एक स्कूल में सौ स्टूडेंट्स भी माने जाएं तो करीब 26 हजार स्टूडेंट्स को नकल करवाई गई।

इन स्कूलों में कार्यरत चार से पांच टीचर इस नकल में शामिल हो सकते हैं, ऐसे में नकल करवाने वाले टीचर्स की संख्या एक हजार से ज्यादा है।

जांच में सही पाया गया तो मिलेगा 16 सीसीए नोटिस

शिक्षा विभाग अगर इन संस्था प्रधानों के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ तो उन्हें 16 सीसीए के तहत नोटिस दिया जाएगा, जिससे इन टीचर्स की वेतन वृद्धि के साथ ही पदोन्नति भी रुक सकती है। ये भी संभव है कि संस्था प्रधान अगर टीचर्स पर आरोप मढ़ते हैं तो उनके खिलाफ भी आगे कार्रवाई हो सकती है।

माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने संस्था प्रधानों को सात दिन में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। संख्या अधिक होने के कारण जवाब निदेशालय स्तर के बजाय मंडल स्तर पर संयुक्त निदेशक को देने होंगे। आगे की कार्रवाई भी संयुक्त निदेशक ही करेंगे।

राजस्थान में शिक्षा के बढ़ते कदम ऐप लॉन्च करते हुए मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री। (फाइल फोटो)

राजस्थान में शिक्षा के बढ़ते कदम ऐप लॉन्च करते हुए मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री। (फाइल फोटो)

33 जिलों में हुई नकल

सरकारी स्कूलों में बच्चों की गुणवत्ता जांचने के लिए आयोजित परीक्षा में नकल किसी एक या दो जिलों में नहीं बल्कि प्रदेश के 33 जिलों में हुई। सबसे आगे राजधानी जयपुर रहा है, जहां 21 विद्यालयों के संस्था प्रधानों को नोटिस दिया गया है। अलवर दूसरे स्थान पर है। यहां 17 स्कूलों में नकल सामने आई है। इसके अलावा बांसवाड़ा, बाड़मेर, जोधपुर और सीकर संयुक्त रूप से तीसरे स्थान पर रहे। इन जिलों के 13-13 स्कूलों के संस्था प्रधानों को कारण बताओ नोटिस दिया गया है।

अजमेर में 11, बारां के तीन, भरतपुर के नौ, भीलवाड़ा के आठ, बीकानेर के पांच, बूंदी के सात, चित्तौड़गढ़ के तीन, चूरू के 12, दौसा के 11, धौलपुर के तीन, डूंगरगपुर के आठ, श्रीगंगानगर के सात, हनुमानगढ़ के एक, जैसलमेर के पांच, जालोर के दस, झालावाड़ के नौ, झुंझुनूं के नौ, करौली के सात, कोटा के चार, नागौर के नौ, पाली के चार, प्रतापगढ़ के पांच, राजसमंद के एक, सवाई माधोपुर के छह, सिरोही के तीन, टोंक के चार और उदयपुर के ग्यारह संस्था प्रधानों को नकल का दोषी माना गया है।

3 अगस्त को अजमेर जिले में जारी हुए नोटिस।

3 अगस्त को अजमेर जिले में जारी हुए नोटिस।

निदेशक कानाराम बोले- प्रथम दृष्टया नकल है

माध्यमिक शिक्षा निदेशक कानाराम से बातचीत में कहा कि हम बच्चों का शैक्षिक स्तर जांचने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन कुछ टीचर्स नकल करवा रहे हैं। जिस ऐप से उन्होंने स्कैन करके कॉपी भेजी थी, उसी सॉफ्टवेयर के डाटा कलेक्शन से ये सब कुछ सामने आया है।

आशंका जताई जा रही है कि इन स्कूल में टीचर्स ने ही अपने स्तर पर उत्तर भरकर कॉपी स्कैन करके भेज दी। कई स्कूल में तो स्टूडेंट्स को कॉपी मिली ही नहीं थी, जिसमें वो उत्तर भेज सकें। ऐसी शिकायतों के आधार पर भी विभाग कार्रवाई कर रहा है।

फर्जी स्टूडेंट्स भी एक कारण

दरअसल, प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में फर्जी नाम भी लिखे हुए हैं ताकि स्कूल का नामांकन कम न रहे। इस तरह के एग्जाम से मूल संख्या सामने आ जाती है। उपस्थित स्टूडेंट्स ही एग्जाम देते तो पता चल जाता कि कम नामांकन है। ऐसे में कुछ स्कूलों के टीचर्स ने फर्जी नामों के उत्तर भी खुद भर दिए हैं। अब इसकी भी छानबीन की जा रही है।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!