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माँ को दिए उड़ने के लिए पंख बेटियाँ नहीं हैं कोई कलंक

एक समय था जब बेटियों को कलंक समझकर गर्भ में ही मार दिया जाता था, वही आज के दौर में बेटियाँ अपने माँ बाप का सहारा बनी हुई हैं। मनीषा केशवा जोकि एक सफल कम्युनिकेशनल प्रोफेशनल हैं। उनकी माँ सुमीता प्रवीण केशवा, जो हरदम किचन में ही रहती थीं, डरती थीं। शर्माती थी। हिचकिचाहट होती थी लोगों के सामने जाने में, उन्हें यह भी नहीं पता था कि लेखन क्या होता है। जब मनीषा कॉलेज में थीं, तब उनको प्रोजेक्ट बनाने में हिंदी के लिए मदद की ज़रूरत पड़ी। उन्होंने अपनी माँ से मदद माँगी। उनका प्रोजेक्ट सफल रहा यह देखकर अन्य मित्र भी उनकी माँ से मदद लेने लगे। माँ का टैलेंट देख मनीषा सोचने लगी कि माँ का टैलेंट कैसे बाहर निकाला जाए। चूँकि जॉइंट फेमिली की वजह से माँ के ऊपर काफी बंदिशें थीं। माँ का संघर्ष व तनाव देखते हुए बेटी ने ठान ली कि माँ के भीतर छुपे हुए टेलेंट को बाहर लाएगी और उसने यह कर दिखाया। माँ का हिंदी के प्रति लगाव देख पॉपुलर प्रकाशन से ट्रांसलेशन काम, व कई अखबारों से काम लाकर में माँ को लिखने के लिए प्रेरित किया। हालांकि घर से काफी रोक लगाने की कोशिशें हुई मगर बेटी ढाल बनकर खड़ी रही। अपने पंख अपनी माँ को उड़ान भरने के लिए दिए। बेटी के पंखों से माँ ने उड़ान भरी और अपनी ताकत को पहचाना। आज मनीषा की माँ सुमीता प्रवीण केशवा देश की जानीमानी प्रसिद्द कवयित्री हैं। कई किताबें लिख चुकी हैं। देश के पत्र,पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। रेडियो हो या टीवी चैनल सब जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी हैं। उनकी माँ ने देर से जाना कि वे रचनाकार हैं,जैसे बेटी के प्रोत्साहन से वे आगे बढ़ी हैं ,उसी तरह का प्रोत्साहन वे मुंबई में बगड़का कॉलेज के बच्चों को दे रही हैं हैप्पीनेस क्लासेज़ के द्वारा जोकि एक नया कॉन्सेप्ट है। देश का पहला ऐसा कोर्स जो कविताओं द्वारा बच्चों का प्रोत्साहन व मनोबल बढ़ाने का कार्य कर रहा है।

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