गुड पुलिसिंग का चेहरा बने ASI ओम प्रकाश:राह से भटके 30 बच्चों को घर-समाज से जोड़ा; UNICEF ने की तारीफ
बच्चों को लेकर बाल कल्याण पुलिस अधीकारी ओम प्रकाश के कामों की सराहना हो रही है। बाल अधिकारों संबंधी वैश्विक संस्था यूनिसेफ ने इस पर ट्वीट किया है।
यूनिसेफ इंडिया के एक ट्वीट से राजस्थान पुलिस में ASI ओम प्रकाश सुर्खियों में आ गए। ट्वीट के अनुसार ओम प्रकाश, उदयपुर संभाग में एक पुलिसकर्मी, जो बच्चों की कठिनाइयां समझता है और उनका संबल बढ़ाता है। चाइल्ड फ्रैंडली पुलिस स्टेशन पुलिस और बच्चों में गैप के बीच एक ब्रिज का काम करता है।
TIN टीम पहुंची तो ओम प्रकाश राजसमंद जिले के राजनगर थाने में मिले। वह काफी साल से राजनगर में ही पोस्टेड हैं। उन्होंने कॉन्स्टेबल के तौर पर पुलिस सेवा जॉइन की, फिर 2016 में हेड कॉन्स्टेबल के तौर पर प्रमोट किए गए और 2019 में एएसआई बनाए गए।
दो साल से ओम प्रकाश यूनिसेफ कार्यक्रमों के तहत बाल कल्याण की दिशा में काम कर रहे हैं, इसलिए वह राजनगर थाने में बाल कल्याण अधिकारी हैं। नाबालिग गुमशुदा, अपहृत, बाल श्रमिक और भिक्षावृत्ति से जुड़े बच्चों से मिलना, उनकी बात सुनना, उन्हें समझना और उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश करना ही ओम प्रकाश का काम है। यह ऐसा संवेदनशील मामला है, जिसे पुलिस लाठी के जोर से नहीं कर सकती है। ऐसे में बच्चों के मन को समझने वाले ओम प्रकाश के इसी काम को देखते हुए यूनिसेफ ने ट्वीट किया है।
अब जरा नजर डालते हैं कुछ उन केसेस पर, जिन्हें ओम प्रकाश ने हल किया…
राजनगर थाना पुलिस के एएसआई और यूनिसेफ की ओर से बाल कल्याण अधिकारी ओम प्रकाश गुमराह बच्चों के मन को समझते हैं। उनका विश्वास जीतते हैं और उन्हें सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं।
घर से भागे हुए बच्चों से ओम प्रकाश भागने का कारण समझते हैं। उसकी पड़ताल करते हैं। कोशिश करते हैं कि उस समस्या का निदान हो सके जो बच्चे को परेशान कर रही है।
घर छोड़ने वाले बच्चे संवेदनशील होते हैं। भावना में बहकर या बहक कर गुस्से या नाराजगी में वे ऐसा घातक कदम उठा लेते हैं। ओम प्रकाश उन्हें समझाते हैं कि घर में वे सेफ हैं।
बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को जोखिम भरे काम से अलग करना कठिन कार्य है। बच्चे घर के आर्थिक हालात का हवाला देते हैं। ऐसे में ओम प्रकाश बच्चे को कन्वेंस कर उसे पढ़ाई से जोड़ते हैं। साथ ही इस संभावना पर भी विचार करते हैं कि बच्चे के परिवार को आर्थिक संबल किन योजनाओं के तहत पहुंचाया जा सकता है।
ऐसे दर्जनों केस हैं, जिन्हें ओम प्रकाश ने हैंडल किया। घर से भागे हुए बच्चे भटक सकते थे। गलत हाथों में पड़ सकते थे। उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती थी। इन बच्चों का डिटेन किया जाना उतनी बड़ी बात नहीं थी, बड़ी बात थी उन बच्चों को समझना। उनकी बात समझना। उन्हें सही रास्ते पर लाना। वे क्यों घर से भाग जाना चाहते थे? वे पढ़ाई से जी क्यों चुरा रहे थे? बच्चे क्यों जोखिम भरे काम करने को तैयार हो रहे थे? ओम प्रकाश ने इसी नब्ज को पकड़ा। बच्चों की परेशानियों, उनकी कठिनाइयों को सुना, समझा और हल किया।
घर से भागे, बेसहारा, मजबूर और भीख मांगने से जुड़े कई बच्चों की काउंसिलिंग कर उन्हें मुख्य धारा से जोड़ चुके ओम प्रकाश के इन्हीं कामों की सराहना यूनिसेफ इंडिया ने की है।
यूनिसेफ ने ओम प्रकाश की यह तस्वीर साझा की है। ओम प्रकाश एक बच्चे के कंधे पर हाथ रखकर उसे समझा रहे हैं। बच्चा बाल अपचारी है।
बाल कल्याण अधिकारी और एएसआई ओम प्रकाश मीणा से हमने ट्वीट को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा- हां, ये सच है कि राजनगर पुलिस थाना में नाबालिग गुमशुदा, अपहृत, बाल श्रमिक और भिक्षावृत्ति से जुड़े बच्चों को हम डिटेन करते हैं। हम ये काम वर्दी में नहीं करते। सादे कपड़ों में जाते हैं। बच्चों का ख्याल रखते हैं। उनकी समस्याओं और सुविधाओं पर फोकस करते हैं। नियम भी यही है। उन्हें थाने के बाल कक्ष में रखकर पूछताछ और काउंसिलिंग की जाती है। इसके बाद बाल कल्याण बोर्ड और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की प्रक्रिया और फिर परिजनों को सौंपने तक हम बच्चों का ख्याल रखते हैं। उन्हें समझने की कोशिश करते हैं।
ASI ओम प्रकाश की यह तस्वीर तब की है, जब वह पुलिस में भर्ती की तैयारी कर रहे थे। आदिवासी जनजातीय किसान परिवार से आने वाले इस पुलिसवाले की अब चर्चा हो रही है।
ओम प्रकाश ने बताया कि जब कोई नाबालिग किसी केस में लिप्त पाया जाता है या नामजद होता है, हम उसके साथ आम अपराधियों की तरह पेश नहीं आते। सामान्य कार्यवाही करते हैं। ताकि बच्चे के मन पर और बुरा असर न पड़े। बच्चे को गिरफ्तार नहीं किया जा सका। उसे डिटेन करते हैं। इसके बाद बच्चे को बाल कक्ष में रखते हैं। हवालात या थाने में नहीं। पूछताछ भी करते हैं तो वर्दी में उसके सामने नहीं जाते। सादा कपड़ों में रहते हैं। पूछताछ पूरी होने पर किशोर न्याय बोर्ड देवथड़ी में सामान्य रूप से पेश करते हैं। जहां से बच्चे को बाल सुधार गृह में भेजा जाता है। बच्चों की सुरक्षा सहित अन्य जरूरतों का ध्यान रखते हैं।
राजनगर थाने में अनुसंधान कक्ष को अब बाल हेल्प डेस्क बना दिया गया है। नाबालिग बच्चों को यहां लाया जाता है। उनके मन से पुलिस का डर निकाला जाता है। विश्वास में लिया जाता है और उन्हें समझने की कोशिश की जाती है।
ओम प्रकाश ने बताया कि उन्होंने अब तक 30 बच्चों को डिटेन कर रेस्क्यू किया है। इनमें से कुछ बच्चों को बाल मजदूरी से आजाद कराया। कुछ घर से भागे हुए या अपहरण किए गए बच्चों को सकुशल उनके घर पहुंचाया। उन्हें गाइड कर सही राह दिखाई। अब ये बच्चे पढ़ाई कर कुछ बनना चाहते हैं। बड़ी बात ये है कि बच्चों को एहसास नहीं होने दिया कि पुलिस उनके साथ कोई कानूनी कार्रवाई कर रही है। बच्चे सहज रहे और बुरे वक्त से बाहर आ गए।
ओम प्रकाश ने हमें राजनगर थाने का हेल्प डेस्क रूम भी दिखाया, जहां उनकी टेबल लगी हुई है। बच्चों की हेल्प के लिए यहां उन्होंने जज, कलेक्टर, एसपी सहित कुल 17 सदस्यों के नाम व मोबाइल नम्बर लिखे हुए हैं। हमने उनसे कुछ पर्सनल सवाल भी किए, आइये, जानते उनकी निजी जिंदगी कैसी है…
मां, पत्नी और दोनों बच्चों के साथ ओम प्रकाश। वे 2001 में पुलिस में भर्ती हुए थे। नौकरी को 21 साल हो चुके हैं। मां, पत्नी और बच्चों के साथ वे अब राजसमंद में ही रहते हैं।
सवाल: जन्म, माता-पिता और शुरूआती पढ़ाई कहां हुई?
-मैं किसान परिवार से आता हूं। मूल रूप से भीलवाड़ा जिले से हूं। जन्म 25 जुलाई 1980 में भीलवाड़ा के शकरगढ़ के लक्ष्मीपुरा गांव में हुआ था। मां वर्दी देवी और पिता स्व. हजारी लाल खेती किसानी से जुड़े थे। लक्ष्मीपुरा गांव इतना छोटा था कि वहां कोई स्कूल नहीं था। घर से 3 किलोमीटर दूर शकरगढ़ के स्कूल में रोजाना पैदल जाता था। 12वीं तक शकरगढ़ के ही सरकारी स्कूल में पढ़ा। इसके बाद भीलवाड़ा के माणिक्य लाल वर्मा कॉलेज से बीए किया।
भीलवाड़ा में यह ओम प्रकाश का पैतृक घर है। पिता की मृत्यु के बाद इसमें कोई नहीं रहता। घर को देखकर ओम प्रकाश के बचपन की कल्पना की जा सकती है। ओम प्रकाश बेहद ही साधारण जनजातीय किसान परिवार में पले-बढ़े हैं। 3 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे।
सवाल: पुलिस सेवा में कब आए, कहां-कहां पोस्टिंग रही?
-10 अक्टूबर 2001 को राजसमंद में पुलिस सेवा में कॉन्स्टेबल के पद पर भर्ती हुआ था। 2016 में हेड कॉन्स्टेबल हो गया। फिर 2019 में सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) के तौर पर प्रमोशन हो गया। अब यहां बाल कल्याण अधिकारी के रूप में जरूरतमंद, विधि से संघर्षरत और वंचित बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए यूनिसेफ की ओर से चलाई जा रही योजनाओं के तहत काम कर रहा हूं।
यूनिसेफ इंडिया के इस ट्वीट के बाद ओम प्रकाश सुर्खियों में आए हैं। हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है।
सवाल: परिवार कहां है, अपने बच्चों को कैसे ट्रीट करते हैं?
-मेरी पत्नी संतरा हाउस वाइफ हैं। दो बच्चे हैं। बेटी समीक्षा और बेटा प्रियांशु। बच्चे मासूम हैं। बच्चे मेरे हों या आपके। उन्हें प्रेम से ट्रीट करना चाहिए। उनका मन पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। मैं उन्हें डांटता नहीं, उनकी बात सुनता हूं। समझता हूं। तर्क से अपनी बातें समझाता हूं तो वे समझ जाते हैं।
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