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जासूसी के नए हथियार की तलाश में दुनिया के कई देश, आखिर क्यों पड़ रही इसकी जरूरत ! पढ़े साहिल पठान की रिपोर्ट

जासूसी के नए हथियार की तलाश में दुनिया के कई देश, आखिर क्यों पड़ रही इसकी जरूरत

REPORT BY SAHIL PATHAN

spyware

आज दुनिया के अधिकांश देश जासूसी के नए हथियार की तलाश में हैं। अलग-अलग तरीकों से जासूसी की जा रही है। देश के भीतर और दूसरे देशों पर भी नजर रखने के लिए इसका प्रयोग हो रहा है। इस होड़ में कोई भी देश पीछे रहना नहीं चाहता है। इसको लेकर अलग-अलग तरीके अपनाए जा रहे हैं जिसको लेकर विवाद भी है।

 

हाइलाइट्स

  • पेगास, हर्मिट के अलावा जासूसी के कई तरीके, आज हो रही इनकी चर्चा
  • जासूसी के नए हथियार की तलाश में कई देश, दूसरे देशों पर रखी जा रही नजर
  • चीनी जासूसी गुब्बारे की काफी चर्चा रही, खुफिया जानकारी जुटाने पर जोर

नई दिल्ली: पेगास (Pegasus), हर्मिट (Hermit) इनका नाम तो सुना होगा। भारत में पेगासस की काफी चर्चा रही। आज दुनिया के कई देशों में इस प्रकार के स्पाइवेयर (Spyware) का इस्तेमाल हो रहा है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पेगासस की तरह भारत सरकार नया सॉफ्टवेयर खरीदने की तैयारी कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है केंद्र विवादास्पद पेगासस की तुलना में लो प्रोफाइल एक नया स्पाइवेयर सिस्टम (Spyware System) हासिल करना चाहता है। इसके लिए सरकार की तरफ से 12 करोड़ डॉलर का बजट रखा गया है। आज दुनिया के कई देश अलग-अलग स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ देश दूसरे देशों में विकसित स्पाइवेयर का इस्तेमाल करते हैं तो वहीं एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश अपने अपने यहां की खुफिया एजेंसियों द्वारा डेवलप किए गए स्पाइवेयर का इस्तेमाल करते हैं।


स्पाइवेयर क्या है, कब से हुई इसकी शुरुआत
वर्तमान समय में टेक्नोलॉजी लोगों के काफी करीब पहुंच गई है। स्पाइवेयर सीधे और आसान शब्दों में समझा जाए तो एक प्रकार का जासूसी वायरस होता है। इसे स्पाइवेयर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह बिना आपकी इजाजत के मोबाइल, लैपटॉप जैसी दूसरी डिवाइसेस से आपकी जानकारी हासिल करता है और उस जगह पहुंचता है जहां से इसे कंट्रोल किया जाता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत 90 के दशक में हुई लेकिन लोगों की नजर में यह 2000 के बाद आया। 95-96 के आसपास इसकी शुरुआत हुई और 2006 में विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम में इसे मौजूद पाया गया। हालांकि इसे ठीक भी कर लिया गया। भारत में हाल ही में पेगासस को लेकर काफी चर्चा रही। देश के भीतर साथ ही दूसरे देशों में खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं।


पेगासस, हर्मिट की क्यों होती है चर्चा

पेगासस: एक इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा डेवलप किया गया था। सबसे पहले यह स्पाईवेयर 2016 में सामने आया था। यह मामला तब सामने आया जब करीब एक अरब एक्टिविस्ट को एक संदिग्ध मैसेज गया। साल 2019 में WhatsApp ने इस मामले को तब प्रकाश में लाया जब उसने मई 2019 में भारत समेत दुनियाभर के 20 देशों में हो रहे पेगासस स्पाइवेयर को लेकर इजरायली स्पाइवेयर निर्माता एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया था। यह स्पाईवेयर पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों पर जासूसी कर रहा था। भारत में इसको लेकर काफी हंगामा मचा मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया

हर्मिट पेगासास के बाद एक और स्पाइवेयर की चर्चा हुई जिसे उससे भी खतरनाक बताया गया। इसका नाम है हर्मिट स्पाइवेयर। इसका खुलासा साइबर सिक्योरिटी कंपनी लुकआउट थ्रेट लैब ने किया। एक रिपोर्ट में बताया कि इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कई देशों में लोगों की जासूसी के लिए हो रहा है। पॉलिटिकल लीडर, बिजनेसमैन, पत्रकार और एजुकेशन सेक्टर में जुड़े लोग इसके निशाने पर रहे। कंपनी के रिसर्चर ने इस स्पाइवेयर को कजाकिस्तान में स्पॉट किया। रिसर्चर के मुताबिक इटली की सरकार ने साल 2019 में इसका प्रयोग एंटी करप्शन कैंपेन में किया।

एक देश दूसरे देश की कैसे करते हैं जासूसी
पिछले दिनों चीनी जासूसी गुब्बारे की काफी चर्चा रही। चीन के गुब्बारे को अमेरिका की गिराया गया इस बात में लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है कि कैसे देश एक दूसरे की जासूसी करते हैं। कई लोगों को किसी देश की जासूसी करने के लिए गुब्बारे का इस्तेमाल करने का विचार हास्यास्पद लग सकता है। हालांकि वास्तविकता यह है कि जब आपको अपने विरोधियों पर वर्चस्व कायम करना होता है तो आप कोई भी हथकंडा अपनाते हैं। एक देश की ओर से दूसरे देशों में खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। इसमें कुछ इस प्रकार हैं…

सिग्नल इंटेलिजेंस-
 खुफिया जानकारी बटोरने का एक प्रमुख तरीका है। इसमें लक्ष्य के उपकरण से आने वाले संकेतों और संचार को टारगेट करने के लिए विभिन्न प्रकार की जमीनी व अंतरिक्ष-आधारित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए अकसर बेहद संवेदनशील जानकारी हासिल की जाती है, जो बताता है कि सिग्नल इंटेलिजेंस जासूसी करने का का सबसे विवादित तरीका क्यों माना जाता है।

भू-स्थानिक जासूसी (Geospatial Intelligence):
 भू-स्थानिक जासूसी जलमार्ग सहित जमीन पर उसके नीचे मानव गतिविधियों से संबंधित है। यह आम तौर पर सैन्य और नागरिक निर्माण, मानव गतिविधियों (जैसे शरणार्थियों और प्रवासियों की आवाजाही) और प्राकृतिक संसाधन पर केंद्रित होती है। जासूसी उपग्रहों, ड्रोन, ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों और यहां तक कि गुब्बारों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर की जाती है।

इमेजरी इंटेलिजेंस- 
इसमें अकसर उपग्रहों, ड्रोन और विमानों का इस्तेमाल भी किया जाता है। इसमें सैनिकों और हथियार प्रणालियों के रणनीतिक आवाजाही को लक्षित किया जाता है, खासकर सैन्य ठिकानों, परमाणु शस्त्रागार और अन्य सामरिक संपत्तियों को टारगेट किया जाता है

साइबर जासूसी- आमतौर पर सिग्नल इंटेलिजेंस से जोड़ा जाता है, लेकिन यह अलग है कि इसमें संरक्षित प्रणाली में प्रवेश करने और जानकारी हासिल करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से लोगों (जैसे हैकर्स के माध्यम से) का इस्तेमाल किया जाता है। इसे सिग्नल, मैलवेयर या हैकर्स के माध्यम से किसी प्रणाली में सीधे अनधिकृत पहुंच से अंजाम दिया जाता है। देश इससे अपने सहयोगियों के नेटवर्क को भी निशाना बना सकते हैं।

ओपन सोर्स इंटेलिजेंस- यह जासूसी करने का सबसे नया तरीका है। इसमें जानकारी विभिन्न प्रकार के प्राथमिक स्रोतों से आती है जैसे कि समाचार पत्र, ब्लॉग, आधिकारिक रूप से जानकारी साझा करना और रिपोर्ट। दूसरे स्रोत होते हैं विकीलीक्स, द इंटरसेप्ट और सोशल मीडिया मंच आदि से मिली जानकारी।

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