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भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ा , पर अब भी हैं कुछ सवाल ?

भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोडा, पर अब भी हैं कुछ सवाल

भारत की आबादी

संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की आबादी इस साल के मध्य तक चीन को पीछे छोड़ देगी.

भारत की आबादी 1.4286 अरब पहुंचने वाली है, जबकि चीन में जनसंख्या 1.4257 अरब होने जा रही है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत की आबादी अपने एशियाई पड़ोसी की तुलना में 29 लाख ज़्यादा होगी. हालांकि चीन की आबादी में उसके दो विशेष क्षेत्रों हांग-कांग और मकाऊ और ताइवान के आंकड़ों को शामिल नहीं किया गया है, जिसे चीन अपना हिस्सा बताता है.

जब 70 साल पहले रिकॉर्ड रखे जाने लगे तबसे चीन लगातार सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहा है. लेकिन वर्ल्ड पापुलेशन रिव्यू जैसी संस्थाओं का मानना है कि भारत की आबादी इस साल पहले ही चीन को पीछे छोड़ चुकी है.

हालांकि भारत की आबादी के आंकड़ों को लेकर असमंजस की स्थिति है क्योंकि साल 2011 के बाद से अब तक यहाँ जनगणना नहीं हुई है.

संयुक्त राष्ट्र में पापुलेशन एंड प्रोजेक्शन के प्रमुख पैट्रिक गेरलैंड से एक बातचीत में कहा कि ‘भारत की वास्तविक आबादी के आंकड़े छिटपुट जानकारियों पर आधारित एक अनुमान है.’

गेरलैंड के मुताबिक़, “ऐसा हो तो रहा है….लेकिन जो सूचनाएं हैं वो हमें सटीकता की गारंटी नहीं देतीं.”

लेकिन भारत के लिए दुनिया में सबसे अधिक आबादी होने की अपनी जटिलताएं भी हैं. फिर भी संयुक्त राष्ट्र ये क्यों निश्चित नहीं कर पा रहा है कि भारत कब आबादी के मामले में नंबर वन हो जाएगा?

जनसंख्या

140 सालों में पहली बार जनगणना स्थगित

संयुक्त राष्ट्र के एक्सपर्ट के इस असमंजस के पीछे भारत में जनगणना के ताज़ा आंकड़ों का न होना सबसे बड़ा कारण है. देश में 1881 में पहली जनगणना हुई और इसके बाद हर दस साल में जनगणना होती रही.

इन 140 सालों में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों, बंगाल में आकाल, आज़ादी, पाकिस्तान और चीन के साथ दो युद्धों के दौरान भी जनगणना को स्थगित नहीं किया गया था.

लेकिन कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना को पहले 2022 तक और फिर आम चुनावों के कारण अब 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जनगणना में देरी के परिणामों को लेकर वे चिंतित हैं, क्योंकि इससे लोगों को कल्याणकारी योजनाओं से बाहर करने और बजट का अनुचित आवंटन जैसी विसंगतियों के उत्पन्न होने का ख़तरा है.

जनसंख्या

इन तीन सालों, अधिकांश भारतीयों को कोविड वैक्सीन लग चुकी है, कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए हैं और जन जीवन लगभग सामान्य हो चुका है.

लेकिन बीते दिसंबर में, मोदी सरकार ने संसद को बताया कि “कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण, जनगणना 2021 और संबंधित क्षेत्र की गतिविधियों को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.”

इसके कुछ सप्ताह बाद, भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि प्रशासनिक स्तर पर सीमाओं की यथास्थिति बनाए रखने की समय सीमा इस वर्ष 30 जून तक बढ़ा दी गई है.

यानी जनगणना के दौरान राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ज़िलों, क़स्बों और गांवों की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं.

भारत चीन आबादी

जनगणना बिना कैसे बनेंगी सरकारी नीतियां?

देश में रहने वाले हर घर में हर व्यक्ति से बातचीत पर आधारित जनगणना के आंकड़े वो भरोसेमंद स्रोत होते हैं जो सिर्फ जनसंख्या ही नहीं बताते बल्कि रोज़गार, साक्षरता, संपन्नता, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सांस्कृतिक आंकड़ों को सामने लाते हैं.

इन्हीं आंकड़ों के आधार पर नए अस्पतालों और स्कूलों से लेकर शहरी प्लानिंग, बजट आवंटन को लेकर ज़रूरत का पता चलता है और चुनावी परिसीमन और संसदीय सीटें तय की जाती हैं.

ग़रीबी और असमानता पर लंबे समय से काम करने वाले विकास अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर केपी कन्नन कहते हैं, “जनगणना केवल किसी देश में लोगों की संख्या की गिनती नहीं है. यह निम्न स्तर पर निर्णय लेने के लिए ज़रूरी बहुमूल्य आंकड़े उपलब्ध कराती है.”

इसके अलावा अन्य देशों की सरकारों, निजी कंपनियों, एनजीओ और अकादमिक विद्वानों के लिए भी ये भरोसेमंद आंकड़ा होता है.

भारत में जनगणना बहुत जटिल काम है जिसमें 30 लाख कर्मचारी लगते हैं जो घर घर जाकर सर्वे करते हैं.

दिल्ली स्थित आंबेडकर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाली अर्थशास्त्री दीपा सिन्हा के मुताबिक, ”सरकार अभी भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़, यह तय कर रही है कि इस योजना से लाभ लेने वाले कौन होंगे. ऐसे में अनुमान है कि क़रीब 10 करोड़ लोग इस योजना के दायरे से बाहर हो जाएंगे.”

कोरोना

कोरोना महामारी और जनगणना

भारत के पास 2011 की जनगणना के आंकड़े हैं जो पुराने पड़ गए है और संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या मामलों के एक्सपर्ट को इसके अलावा भारत सरकार द्वारा हर साल किए जाने वाले सैंपल सर्वे के आंकड़ों का ही भरोसा है. लेकिन ये भी अपडेट नहीं हैं.

संयुक्त राष्ट्र के एक्सपर्ट का कहना है, “सैंपल सर्वे के आंकड़े भी भारत सरकार ने 2019 के बाद जारी नहीं किए हैं. अभी तक 2020, 2021 और 2022 के असली आधिकारिक आंकड़े ही बाहर नहीं आए हैं. हमने जो अनुमान लगाए हैं वो पिछले आंकड़ों और 2019 तक की विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारियों पर आधारित है.”

किसी देश की जनसंख्या की गणना करने के लिए लिए एक्सपर्ट जन्म, मृत्यु, विस्थापन के आधिकारिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हैं.

गेरलैंड कहते हैं, “भारत और चीन की आबादी निर्धारण के मामले में बहुत कुछ इस जानकारी पर निर्भर करता है कि देश में कितने नए जन्म हुए और कितनी मौतें हुईं.”

लेकिन बिना नई जनगणना के कोई भी नहीं जान सकता कि कोविड का इन संख्याओं पर कितना असर पड़ा.

वो कहते हैं, “कोविड महामारी की अलग अलग लहरों के मद्देनज़र किसी भी अनुमान की तरह हम सही भी हो सकते हैं और ग़लत भी हो सकते हैं. चूंकि हमारे पास इस दौरान के डाटा नहीं हैं तो हमारा अनुमान कुछ छिटपुट जानकारियों पर ही आधारित है.”

गेरलैंड का कहना है कि “भारत जब चीन की आबादी को पीछे छोड़ देगा, वो पल हो सकता है कि इसी महीने आ जाए, इसी साल हो या हो सकता है कि ये पहले ही हो चुका हो.”

जनगणना

राजनीतिक मंशा पर सवाल

विपक्षी दलों को लगता है कि जनगणना में देरी इसलिए की जा रही है ताकि इसके नतीजों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को नुकसान न पहुंचे जोकि उनके दूसरा कार्यकाल के हालात बयां करेंगे.

मौजूदा केंद्र सरकार के जारी आंकड़ों की गुणवत्ता और कई दूसरे सर्वेक्षणों को जारी करने में देरी पर भी सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में जनगणना को लेकर भी अनिश्चितता नज़र आती है.

उदाहरण के लिए, 2019 में मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि बीते चार दशकों में पहली बार उपभोक्ता ख़र्च में गिरावट देखने को मिल रही है, इसके बाद सरकार ने कहा कि वह गुणवत्ता नहीं होने के चलते 2017-18 के एक अहम सर्वे के आंकड़े जारी नहीं कर रही है.

समाचार एजेंसी रायटर्स से बात करते हुए कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “रोज़गार, कोराना में हुई मौतें जेसे अहम मामलों में हमने देखा है कि मोदी सरकार ने आलोचनात्मक आंकड़ों को दबाना ही पसंद किया है.”

भारत सरकार से इस बारे में टिप्पणी मांगी थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

लेकिन हाल ही में बीजेपी के प्रवक्ता ने आलोचकों पर पलटवार करते हुए कहा, “मैं ये जानना चाहता हूं कि किस आधार पर ये कहा जा रहा है. किस सामाजिक पैमाने पर हमार पिछले नौ सालों का प्रदर्शन उनके 65 सालों के प्रदर्शन से बुरा है?”

इंडिया आबादी

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर विवाद

2021 की जनगणना को कराए जाने में एक विवाद राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का भी है.

सरकार ने कहा था कि वह जनगणना के साथ-साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के लिए जनसंख्या सर्वेक्षण भी करेगी. लेकिन आलोचकों ने आरोप लगाया था कि एनपीआर एक ऐसी सूची होगी जिससे “संदिग्ध नागरिकों” को यह साबित करने के लिए कहा जाएगा कि वे भारतीय हैं.

कई विपक्षी और क्षेत्रीय नेताओं ने माँग की थी कि केंद्र सरकार इस जनगणना में जातिगत जनगणना भी करे. विश्लेषकों का मानना है कि इससे हिंदू वोटों में दरार आ सकती है और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को नुक़सान हो सकता है और कई जातिगत समूहों से आरक्षण की मांग बढ़ सकती है.

हालांकि अपवादस्वरूप बिहार की मौजूदा सरकार जातिगत जनगणना करा रही है.

ग़रीबी और असमानता पर लंबे समय से काम करने वाले विकास अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर केपी कन्नन कहते हैं, “जनगणना केवल किसी देश में लोगों की संख्या की गिनती नहीं है. यह निम्न स्तर पर निर्णय लेने के लिए ज़रूरी बहुमूल्य आंकड़े उपलब्ध कराती है.”

प्रोफ़ेसर कन्नन कहते हैं, “अतीत में, भारत ने अन्य विकासशील देशों को जनगणना कराने में मदद की थी, जो कि राष्ट्रीय गौरव का विषय था. लेकिन आंकड़ों को लेकर प्रतिबद्धता में कमी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है.”

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