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इंदु तोमर द्वारा स्वरचित ; एक नयी दिशा नयी सोच….

BY INDU TOMAR

एक नयी दिशा नयी सोच….

सपने वो नहीं होते जो बंद आँखों से देखे जाएँ असल में सपने वो होते हैं जो उन आँखों में नींद ही ना आने दें। और युवा जीवन तो सपनों से भरपूर होता है, इतने ऊँचे ऊँचे अरमान लिये जब युवक युवतियाँ इस समाज में आगे बढ़ते हैं तब एक अच्छे राष्ट्र का उदय होता है। युवा जीवन एक समय होता है जब हम अपनी शक्ति और सीमाओं को पहचानते हैं, अपने अधिकारों को

समझते हैं और उन्हें संरक्षित रखने के लिए लड़ते हैं।

कुछ साल पहले मैंने सहयोगी लक्ष्य निर्धारण अभ्यासों के माध्यम से किशोर लड़के और लड़कियों के एक समूह का मार्गदर्शन किया और उस दौरान एक 18 वर्षीय लड़के को जब मैंने उसके लक्ष्य के बारे में पूछा तो बहुत ही अजीब आवाज और मन से वह बोला कि मुझे नहीं पता कि अब मुझे क्या करना चाहिए?” लेकिन मैं अपने सवाल पर टिकी रहकर धैर्य से फिर घुमाकर पूछने लगी कि “अच्छा मुझे अपने सपने के बारे में बताओ।” तब थोड़ी नम आँखों से वह कहने लगा कि

“मुझे नहीं पता” और उसकी आंखों में आंसू आ गए और कहा कि “किसी ने मुझसे पहले कभी यह सवाल नहीं पूछा।”

अठारह साल का और किसी ने कभी उससे उसके सपने के बारे में नहीं पूछा। यह एक ऐसी त्रासदी है हमारे समाज में जहाँ बहुत सारे बच्चे बस यूँ ही बिना लक्ष्य के बड़े हो रहे हैं जी रहे हैं और बस बिना अपने भविष्य का रास्ता तय किये कहीं भी भटकते जा रहे हैं।

हालांकि, गलतियाँ अक्सर नए अवसरों के द्वार खोलती हैं और हर बालक या किशोर गलत रास्ता नहीं चुनता है, अगर मार्गदर्शन सही तरीके से और सही समय पर उपलब्ध हो जाये तो लक्ष्य भी पाया जा सकता है जब अपने अधिकारों की बात करने वाली युवा पीढ़ी सभी अधिकारों को गहराई से समझने और उन अधिकारों का सही उपयोग कर पाने में सक्षम होती है तो ऐसे में जिम्मेदारी स्वतः ही उनके व्यवहार में छलकने लगती है। युवाओं के लिये अधिकार बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है क्यूंकि उनको आधी अधूरी जानकारी होने की वजह से नकारात्मक प्रभाव दिखाई देते है। चाहे वाक् स्वतंत्रता या बोलने की आजादी हो या फिर जीवन जीने की उनकी अपनी आजादी, धर्म और संस्कृति को अपनाने में उनकी मर्जी हो या फिर कैसे भी रहने या कहीं भी जाने की स्वतंत्रता हो, सभी को अपने लिये एक खुलेपन का आभास चाहिए बिना टोका टाकी वाली जिंदगी चाहिए। युवाओं को किसी भी प्रकार का अधिकार बिना किसी शर्त पर चाहिए और आधा अधूरा नहीं बल्कि सम्पूर्ण अधिकार निजी तौर पर चाहिए। आस पास के माहौल की गुणवता जहां बच्चे और किशोर बड़े होते हैं, उनके कल्याण और विकास को आकार देते हैं. वहीं घरों, स्कूलों, या डिजिटल स्थानों में शुरुआती नकारात्मक अनुभव, जैसे कि हिंसा के संपर्क में आना, माता-पिता या अन्य देखभाल करने वाले की मानसिक बीमारी, डराना-धमकाना और गरीबी, मानसिक बीमारी के जोखिम को बढ़ाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति, जैसे कि बचपन की मिर्गी, विकासात्मक अक्षमता, अवसाद, चिंता और व्यवहार संबंधी विकार, युवा लोगों में बीमारी और अक्षमता के प्रमुख कारण हैं दुनिया भर में 10% बच्चे और किशोर मानसिक विकार का अनुभव करते हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर मदद नहीं लेते हैं या देखभाल प्राप्त नहीं करते हैं। आत्महत्या 15-19 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। हर छोटी बात पर आत्महत्या के जो केस सामने आ रहे है वहाँ जैसे धैर्य से कार्य करने या बात करने का रिवाज़ सा ही नहीं है। बच्चों और किशोरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक विकास को संबोधित नहीं करने के परिणाम वयस्कता तक फैलते हैं और संतोषप्रद जीवन जीने के अवसरों को सीमित करते हैं। दुनियां में आज हर युवा स्ट्रेस, डिप्रेशन, टेशन जैसी परेशानियों से जूझ रहा है। कौविड की दूसरी लहर का भारतीयों पर बुरा असर पड़ा है. इस बात का पता मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऑनलाइन सलाह लेने वालों की संख्या में 95 फीसदी की बढ़ोतरी से चलता है.: डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनियाभर में 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की वजह से 1.03 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है. वहीं, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत की आबादी में करीब 14 फीसदी लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी उपचार की जरूरत है. लेकिन, भारतीय लोग अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कहीं अधिक जागरूक हो गए हैं और समाधान के लिए मदद ले रहे हैं, इनमें युवाओं की संख्या बढ़ी है.

आज का दौर कम्प्यूटर युग और तकनीक में तरक्की का युग है और आज की युवा पीढ़ी पूरी तरह से नव विचारों एवं नव योजनाओं में सलंग्न होकर आगे बढ़ रही है, ऐसे में रोबोट बन रहे बच्चों और युवाओं को अब वापस से एक झलक स्वयं के भीतर झाँकने की आवश्यकता है। अपनी भावनाओं को और दूसरों की भावनाओं को समझने और सम्मान करने की अवश्यकता है। भावनात्मक और सामाजिक विकास के साथ साथ आत्मिक विकास पर गहन चिंतन बहुत जरुरी है। समस्याओं का हल सिर्फ एक ही तरीके से निकाला जा सकता है और वो है बच्चों को रोबोटिक दुनियां से बाहर निकल कर सच्चाई का सामना करना सीखना है, हर परेशानी के बीच रहकर अच्छे से विचार करके, उस पर कार्य करके आगे बढ़ना है। बिना सोचे समझे कोई भी तथ्य समझे बिना निष्कर्ष नहीं निकलना है, स्वतः ही किसी के भी प्रति धारणा बनाये बिना उसको सुनना है और समझना है। बहुत ज्यादा ही किसी एक विचार पर ध्यान नहीं देना है, क्यूंकि अक्सर क्या होता है जब हम “दिमाग का जीवन” नया और अतिरिक्त अर्थ लेते हैं हम खुद से बात करते हैं। हम वहीं सुनते हैं जो हम कहते हैं। आज की मानवता इस घटना के बाद से जूझ रही है प्रारंभिक ईसाई रहस्यवादी उनके दिमाग में आवाज से नाराज थे जो हमेशा मौन चिंतन में घुसपैठ करते थे कुछ ने इन आवाजों को राक्षसी भी माना। लगभग उसी समय, पूर्व में चीनी बौद्धों ने अशांत मानसिक मौसम के बारे में सिद्धांत दिया जो किसी के भावनात्मक परिदृश्य को धूमिल कर सकता था। उन्होंने इसे “भ्रमित विचार” कहा।

हमारे देश के भविष्य अर्थात युवाओं को अपने दिमाग में कोई भी भ्रमित विचार ना बना कर सुदृढ़ता के साथ इस समाज में एक जगह बनानी है जहाँ सभी अपनी बात रख सकें, युवाओं को अपने बड़ों से बात करने की जरुरत है सभी माता पिता को भी समझना है कि उनके बच्चों के लिये क्या क्या जरुरी है, बच्चों को समझाना है कि ध्यान और सचेत रहना हर समय जरूरी है। यह स्मृति, एकाग्रता और भावनात्मक विनियमन में सुधार करता है और तनाव को कम करता है। जागरूक होने का अर्थ केवल वर्तमान क्षण में उपस्थित होना है। जागरुक होने से आप यह स्वीकार कर सकते हैं कि आपके विचार मौजूद हैं, और आप उन्हें स्वीकार नहीं करना चुनते हैं और किसी ऐसी चीज पर ध्यान देना चाहते हैं जो आपको प्रसन्न करती है। साथ ही अभ्यास आपको परिपूर्ण बनाता है, इसलिए माइंडफुलनेस मेडिटेशन करने की आदत बनाने से आप अपने ओवरथिंकिंग को संभालने के तरीके में सुधार करेंगे।

बहुत अधिक सोचना वास्तव में आपको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने से विचलित कर सकता है, इसलिए इसे सीमित करना महत्वपूर्ण है। “एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है” तो अपनी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य की जरूरतों को देखते हुए दिनचर्या में थोड़ा सुधार करना है, सुन्दर और प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाने पर ध्यान देना है। माता पिता, स्कूल और समाज के सभी अनुभवी व्यक्तियों की मदद से हम सभी अपनी युवा पीढ़ी को वही सब देने का प्रयास कर रहे है और जागरूकता के सभी प्रोग्राम के माध्यम से इस पर आगे भी प्रयासरत रहने से एक क्रांति आएगी। यह क्रांति युवाओं के सम्पूर्ण विकास के लिये होगी जिसका सपना शायद डॉ कलाम, स्वामी विवेकानंद जैसे प्रबुद्ध महात्माओं ने देखा और आज हम फिर उस सपने को पूरा करने के अग्रसर है।

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