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क्या है कवच, जिससे बच जाती 275 जिंदगियां:11 साल पहले ट्रायल, लेकिन अब तक सिर्फ 65 इंजनों में लगा पाए

क्या है कवच, जिससे बच जाती 275 जिंदगियां:11 साल पहले ट्रायल, लेकिन अब तक सिर्फ 65 इंजनों में लगा पाए

‘कवच एक ऑटोमेटिक रेल प्रोटेक्शन की टेक्नोलॉजी है। इसमें ये होता है कि मान लीजिए दो ट्रेन गलती से एक ही ट्रैक पर आ गई तो उसके पास आने से पहले कवच ब्रेक ट्रेन को रोक देगी, जिससे एक्सीडेंट होने से बच जाएगा।’

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का ये बयान मई 2022 का है। जब उन्होंने ट्रेनों में सुरक्षा कवच लगाने की घोषणा की थी। अब ओडिशा रेल हादसे के बाद उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। कहा जा रहा है कि अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस में रेल कवच लगा होता तो 275 लोगों की जान नहीं जाती।

ऐसे में आज जानेंगे कि रेल कवच यानी ऑटोमैटिक ब्रेकिंग सिस्टम है क्या और यह कैसे इस हादसे को रोक सकता था?

क्या है रेल कवच, जिससे ओडिशा रेल हादसे को टाला जा सकता था?
रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। इसे ‘ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम’ यानी TCAS कहते हैं। यह भारत में 2012 में बनकर तैयार हुआ था। इंजन और पटरियों में लगे इस डिवाइस की मदद से ट्रेन की ओवर स्पीडिंग को कंट्रोल किया जाता है।

इस तकनीक में किसी खतरे का अंदेशा होने पर ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाता है। तकनीक का मकसद ये है कि ट्रेनों की स्पीड चाहे कितनी भी हो, लेकिन कवच के चलते ट्रेनें टकराएंगी नहीं।

सेफ्टी इंटीग्रिटी लेवल 4 सर्टिफाइड रेल कवच को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन यानी RDSO ने बनाया है।

रेल कवच दो ट्रेनों के बीच टक्कर को आखिर रोकता कैसे है?
इस टेक्नोलॉजी में इंजन माइक्रो प्रोसेसर, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी GPS और रेडियो संचार के माध्यम सिग्नल सिस्टम और कंट्रोल टावर से जुड़ा होता है। यह ट्रेन के ऐसे दो इंजनों के बीच टक्कर को रोकता है, जिनमें रेल कवच सिस्टम काम कर रहा हो।

एक ही ट्रैक पर आमने-सामने से दो ट्रेनें आने पर कवच ऐसे रोकेगा हादसा…

  • अगर रेड सिग्नल है तो ड्राइवर को दो किलोमीटर पहले ही इंजन में लगे डिसप्ले सिस्टम में यह दिख जाएगा।
  • इसके बावजूद यदि ड्राइवर रेड सिग्नल की अनदेखी करता है और स्पीड को बढ़ाता है तो कवच एक्टिव हो जाता है।
  • कवच तुरंत ड्राइवर को अलर्ट मैसेज भेजता है। साथ ही इंजन के ब्रेकिंग सिस्टम को सक्रिय कर देता है।
  • ड्राइवर के ब्रेक नहीं लगाने पर भी ऑटोमेटिक ब्रेक लग जाते हैं और एक सेफ डिस्टेंस पर यह ट्रेन रुक जाती है। यानी दोनों ट्रेनों के बीच आमने-सामने की टक्कर नहीं होती है।

यदि दो ट्रेन एक ट्रैक पर एक ही दिशा में जा रहीं हो तो…

  • यदि सिग्नल की अनदेखी कर दो ट्रेन एक ही दिशा में आगे बढ़ रही हों तो जो पीछे वाली ट्रेन होगी उसे यह सिस्टम एक सेफ डिस्टेंस पर ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर रोक देगा। यानी टक्कर होने से पहले ही।

घने कोहरे में भी हादसे से बचाएगा कवच…

  • सर्दियों में ट्रेन का ड्राइवर घने कोहरे की वजह से सिग्नल की अनदेखी कर देता है। यानी उसे यह नहीं पता चल पाता है कि सिग्नल ग्रीन है या रेड।
  • ऐसी स्थिति में रेल कवच ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर स्पीड को कंट्रोल में करता है। इससे घने कोहरे में भी सेफ तरीके से ट्रेन चलाने में मदद मिलती है और हादसा नहीं होगा।

रेल कवच के ये फायदे भी…

  • जब फाटकों के पास ट्रेन पहुंचेगी तो अपने आप सीटी बज जाएगी।
  • इमरजेंसी के दौरान इस तकनीक के जरिए ट्रेन से SOS मैसेज यानी ऑटोमैटिक कंट्रोल रूम को मदद के लिए संदेश चला जाएगा।
  • इतना ही नहीं, कवच सिस्टम रोल बैक, फॉरवर्ड, रिवर्स मूवमेंट, साइड टक्कर जैसी इमरजेंसी में भी स्टेशन मास्टर और लोको ड्राइवर को तत्काल अलर्ट करने में सक्षम है।

2012 में मनमोहन सिंह सरकार में हुआ था फर्स्ट ट्रायल
भारत में कवच यानी TCAS का पहला परीक्षण मनमोहन सिंह सरकार के दौरान अक्टूबर 2012 में ही हो चुका है। हैदराबाद में हुई इस टेस्टिंग को ‘पाथ ब्रेकिंग टेक्नोलॉजी’ कहा गया था। किसी हादसे से पहले ट्रेन को रोकने के लिए इस टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग हुई थी।

इस टेस्टिंग के दौरान TCAS टेक्नोलॉजी से लैस दो ट्रेनों को एक ट्रैक पर एक ही दिशा में चलाने की अनुमति दी गई थी। इस दौरान दोनों ट्रेनें एक दूसरे से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आकर अपने आप रुक गईं थीं। इसके बाद से ही इस टेक्नोलॉजी को सफल माना गया।

2022 में फिर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की कवच की टेस्टिंग
2012 में हुई सफल टेस्टिंग के बावजूद न तो UPA और न ही NDA सरकार ने इस टेक्नोलॉजी पर काम आगे बढ़ाया।

10 साल बाद मार्च 2022 में एक बार फिर से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने दो अलग-अलग ट्रेनों पर सवार होकर इस टेक्नोलॉजी का परीक्षण किया।

इस दौरान ये देखा गया कि दो ट्रेन आमने-सामने से टकराती हैं या नहीं। ट्रायल में ये देखा गया कि कवच की वजह से दो ट्रेन 380 मीटर दूर पूरी तरह से रुक गईं।

कैसे कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन में कवच होने पर ये रेल हादसा नहीं होता?
ओडिशा रेल हादसे को लेकर ये बात सामने आ रही है कि सही से सिग्नल नहीं मिलने की वजह से ये रेल हादसा हुआ है। अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस व बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेनों के इंजन में कवच लगा होता तो कुछ इस तरह से इस हादसे को टाला जा सकता था…

  • जैसे ही कोरोमंडल एक्सप्रेस सिग्नल को जंप करती, कवच ऑटोमैटिक तरीके से ब्रेक लगा देता। इस तरह ये ट्रेन मालगाड़ी से टकराने से करीब 400 मीटर पहले ही रुक जाती।
  • अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस कंट्रोल रूम से मिलने वाले गलत सिग्नल को पार करती तो ऑटोमैटिक पायलट और कंट्रोल रूम को अलर्ट मिलता। इस तरह ट्रेन मालगाड़ी से टकराने से पहले खुद ही रुक जाती।
  • इसी तरह दूसरी तरफ से आ रही बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट के इंजन में कवच लगा होता तो ये ट्रेन भी घटनास्थल से पहले ही रुक जाती।

इस तरह किसी भी परिस्थिति में इस तरह की घटना को आसानी से टाला जा सकता था।

ट्रायल के एक साल बाद भी सिर्फ 65 लोको इंजनों में लगा कवच टेक्नोलॉजी
मई 2022 में अश्विनी वैष्णव ने रेल हादसे रोकने के लिए इंजनों को सुरक्षा कवच पहनाने की घोषणा की थी। एक साल बाद भी 19 रेलवे जोन में से सिर्फ सिकंदराबाद में ही कवच लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। देश में कुल 13,215 इलेक्ट्रिक इंजन हैं। इनमें सिर्फ 65 लोको इंजनों को ही कवच से लैस किया गया है। 2022-23 वित्तीय वर्ष में भारतीय रेलवे ने देशभर में कम-से-कम 5000 किलोमीटर रूट पर कवच लगाने का लक्ष्य रखा है।

कवच टेक्नोलॉजी को लगाने में कितना खर्च है?
रेलवे के मुताबिक यूरोप में इस्तेमाल होने वाले टेक्नोलॉजी की तुलना में कवच स्वदेशी होने के साथ ही बेहद सस्ता भी है। इसे लगाने का खर्च 30 लाख रुपए प्रति किलोमीटर से 50 लाख प्रति किलोमीटर तक आता है। यह बाकी देशों में इस टेक्नोलॉजी पर खर्च होने वाले पैसे का महज एक चौथाई है। मतलब ये कि इसी टेक्नोलॉजी को लगाने में अमेरिका या दूसरे यूरोपीय देशों में खर्च प्रति किलोमीटर 2 करोड़ रुपए से ज्यादा आता है।

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