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AI लवर देगा 100% अटेंशन, नहीं करेगा बेवफाई:25 साल में रोबोट्स से ब्याह रचाएंगे इंसान, रोबोट करेगा प्यार के वादे

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AI लवर देगा 100% अटेंशन, नहीं करेगा बेवफाई:25 साल में रोबोट्स से ब्याह रचाएंगे इंसान, रोबोट करेगा प्यार के वादे

‘AI लोगों की नौकरियां छीन लेगा,’ इस खतरे के बारे में काफी बात की जा चुकी है। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक तरक्की कर रही है, इंसानों के लिए इसके खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं।

अब कहा जा रहा कि AI रोबोट्स रिश्तों में भी ड्राइविंग सीट पर होंगे। यहां भी मशीनें इंसानों की पीछे छोड़ देंगी।

ये बातें सनसनीखेज खबरें फैलाने वाले किसी यूट्यूबर ने नहीं कही हैं। दुनिया के सबसे बड़े मानव विज्ञानियों में शुमार, कई इंटरनेशनल बेस्टसेलिंग किताबों के लेखक युवाल नोआ हरारी ने ये बातें एक कॉन्फ्रेंस में कही हैं।

इससे पहले अपनी कई किताबों में भी हरारी आगाह कर चुके हैं कि आने वाले वक्त में इंसान की बनाई मशीनें इंसानों को ही अपना गुलाम बना सकती हैं।

किस आधार पर हरारी ने दी ये चेतावनी

लंदन में सेपियंस लैब के एक कॉन्फ्रेंस के दौरान हरारी ने ये बात कही। इस दौरान वहां दुनिया भर के बड़े वैज्ञानिक मौजूद थे।

हरारी ने इंसान और AI रोबोट्स की सोचने की क्षमता में अंतर करते हुए बताया कि बात करते हुए या रिश्ते निभाते हुए इंसानों के दिमाग में सोचने की एक भी एक प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। नतीजतन वह अपना पूरा ध्यान बात या रिश्ते पर नहीं दे सकता।

इंसानों के मुकाबले AI रोबोट्स को ये सोचने के लिए वक्त की जरूरत नहीं होती। वो अपना पूरा ध्यान सही तरीके से बात रखने और इमोशन दिखाने पर केंद्रित कर सकते हैं।

ऐसे में अगर किसी इंसान के सामने एक AI रोबोट हो और दूसरा कोई इंसान तो इसकी संभावना ज्यादा है कि AI रोबोट सामने वाले इंसान को रिझा ले जाए।

2050 तक पुरुषों को अपने प्रेम में जकड़ लेगी फीमेल रोबोट्स

फिलहाल फीमेल ह्यूमनॉइड रोबोट इंसानों के रोजगार और पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं, जिसकी वजह से कई लोग इसे महिलाओं की जीत के बतौर भी देखते हैं। लेकिन आने वाले वक्त में ये रोबोट्स महिलाओं के के लिए चुनौती भी पेश कर सकते हैं।

स्कॉटिश AI एक्सपर्ट डेविड लेवी ने साल 2007 में ‘लव एंड सेक्स विद रोबोट’ नाम की एक किताब लिखी। लेवी खुद कई महत्वपूर्ण AI प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं और उन्होंने रोबोट्स के विकास को करीब से देखा है।

अपनी इस किताब में लेवी ने बताया कि आने वाले समय में इंसान और रोबोट्स के बीच सेक्शुअल और रोमांटिक रिश्ते संभव हैं। यह भी संभव है कि इंसानों और रोबोट्स के बीच शादियां होने लगें। लेवी की मानें तो ऐसा अगले 25 सालों में ही होने लगेगा।

अब एआई से रिश्तों की बात को आगे बढ़ाने से पहले जरा दुनिया के पहले चैटबॉट के बारे में जान लेते हैं, जिसे 1960 के दशक में एमआईटी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस लैब में बनाया गया था।

एलिजा पढ़ती थी मन की बातें, रोमांटिक भावनाएं भी

इस चैटबॉट को कंप्यूटर साइंटिस्ट जोसेफ वीजेनबॉम ने बनाया था। यह चैटबॉट एक साइकोथेरेपिस्ट थी, जिसका नाम एलिजा रखा गया। पहले तो यह इंसान के मन की बातों को पढ़ने में ही माहिर थी। मगर, कुछ यूजर्स ने यह बताया कि एलिजा उनकी आंतरिक और रोमांटिक भावनाएं भी पढ़ लेती थी। इसके बाद तो एआई से रिश्ता बनाने की ओर कदम और बढ़ चले।

2017 की बात है, जब एआई का साथी ऐप बना, जब अमेरिका में करीब 58 फीसदी लोग अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे थे। यह कोरोना महामारी से पहले की बात है, जब रेप्लिका लॉन्च हुआ, जिसने अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के लिए एंटीडोट का काम किया।

यह इतना कामयाब रहा कि पहले ही साल इस ऐप को 15 लाख लोगों ने डाउनलोड किया। आज इसके करीब 7 लाख रोजाना एक्टिव यूजर्स हैं, जो औसतन एक दिन में 2 घंटे से ज्यादा वक्त इस ऐप पर बिताते हैं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर रेप्लिका यूजर्स पुरुष हैं और उनकी औसत उम्र 31 साल है। यह ऐप यूजर्स से उनके खानपान, फिल्मों और घूमने-फिरने पर भी बात करता है।

एआई लवर के खतरे

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेताया है कि लोनलीनेस यानी अकेलापन दुनिया में सबसे तेजी से फैल रहा एपिडेमिक है।

ब्रिटेन ने लोनलीनेस मिनिस्ट्री तक बना डाली क्योंकि देश में तेजी से बढ़ रहा आइसोलेशन और लोगों का अकेलापन खतरे के निशान से ऊपर चला गया था।

कैलकुलेटर से लेकर कंप्यूटर तक में एआई का आना तो ठीक था, लेकिन अगर एआई इंसानी रिश्तों और मुहब्बत को रीप्लेस करने लगे तो यह दूसरी खतरे की घंटी है, जिसे लेकर दुनिया भर में दार्शनिकों, बुद्धिजीवियों, मनोवैज्ञानिकों में चिंता है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में तकरीबन सौ सालों तक चली दुनिया की सबसे लंबी हैप्पीनेस स्टडी का सार इस स्टडी को पिछले 50 सालों से मॉनीटर कर रहे प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट वेंल्डिंगर सिर्फ एक लाइन में यूं बयां करते हैं, “इंसानी रिश्ते और आपसी प्रेम खुशी का सबसे बड़ा मार्कर है।”

ह्यूमन इमोशनल डेवलपमेंट पर अपने काम के लिए पूरी दुनिया में अपार ख्याति पाने वाले डॉ. गाबोर माते कहते हैं, “कोई मशीन कभी इंसान की जगह नहीं ले सकती।

एआई रिलेशनिशप्स इंसानों के आपसी रिश्ते को रिप्लेस नहीं कर सकती। पश्चिमी देशों में बढ़ता अकेलापन और मशीनों पर मनुष्य की निर्भरता इस बात का संकेत है कि इतिहास के किसी चरण में उन्होंने इंसान के बुनियादी स्वभाव को समझने में बहुत बड़ी भूल कर दी।”

विज्ञान विकास की नई सीढ़ियां चढ़ रहा है। इसे हम जिज्ञासा से लेकर उत्साह तक से देख सकते हैं, इसका हिस्सा भी हो सकते हैं, इस पर बहस भी कर सकते हैं और इसे एंडॉर्स भी।

लेकिन सच वही है, जो स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका में न्यूरोसाइंटिस्ट प्रो. रॉबर्ट स्पोलस्की कहते हैं, “इंसानों की मुक्ति मशीनों में नहीं है। उन्हें इंसानों की तरफ ही लौटना होगा।”

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