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B.Ed के बाद खेती की तो लोगों ने ताने मारे:अब फूलों से कमाई लेक्चरर की सैलरी से ज्यादा; जीरा-सब्जी से अलग इनकम

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B.Ed के बाद खेती की तो लोगों ने ताने मारे:अब फूलों से कमाई लेक्चरर की सैलरी से ज्यादा; जीरा-सब्जी से अलग इनकम

जोधपुर

संस्कृत में एमए और बीएड करने के बाद घर की दशा व दिशा सुधारने की कवायद में कई साल तक कॉम्पिटिशन एग्जाम देने के बाद लिकमाराम पटेल ने खेती का रुख किया। लोगों ने ताने दिए कि इतना पढ़ने-लिखने के बाद खेत में फावड़ा चलाओगे। लेकिन, लिकमाराम ने खेती को ही अपना टारगेट बना लिया था।

फूल, टमाटर और पत्ता गोभी उगाकर लिकमाराम ने कुछ ही साल में लाखों का टर्नओवर करना शुरू कर दिया। अब उनकी सालाना कमाई (करीब 15 लाख) किसी सरकारी स्कूल के लेक्चरर की सैलरी से कहीं ज्यादा है। खेती में नवाचार कर और परंपरागत खेती को आधुनिक खेती में बदलकर लिकमाराम ने यह सफलता हासिल की।

जोधपुर शहर से 16 किलोमीटर दूर है बोरनाडा इलाका। यहां से झंवर जाने वाले रोड पर 6 किलोमीटर दूर छोटा-सा गांव है डोली। इस गांव के पढ़े-लिखे किसान लिकमाराम इलाके के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

खेत में सफेद गेंदा के फूल चुनते किसान लिकमाराम पटेल।

खेत में सफेद गेंदा के फूल चुनते किसान लिकमाराम पटेल।

म्हारे देस की खेती में आज बात जोधपुर के किसान लिकमाराम पटेल की…
किसान लिकमाराम (36) की 18 बीघा जमीन है। 2018 से पहले इस पर लिकमाराम के पिता कुपाराम (58) परंपरागत खेती किया करते थे। कमाई नाममात्र होती थी। बेटे लिकमाराम से उम्मीद थी। बेटे ने संस्कृत से एमए किया था और बीएड भी था। लिकमाराम ने 2018 में आखिरी बार कॉम्पिटिशन एग्जाम दिया। जब आखिरी प्रयास में भी नौकरी नहीं मिली तो पिता कुपाराम से कह दिया कि वह खेती करेगा।

पढ़ा-लिखा होने के कारण लिकमाराम को सरकारी योजनाओं और बैंक के तौर-तरीकों की जानकारी थी। उन्होंने बैंक से लोन लिया और फूल व सब्जी की आधुनिक ढंग से खेती करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने खेतों को पाइप से जोड़कर बूंद-बूंद सिंचाई करना शुरू किया।

अतिरिक्त आय के लिए लिकमाराम ने कृषि विज्ञान केंद्र जोधपुर और काजरी संस्थान से जानकारी जुटाकर सफेद और ऑरेंज मैरीगोल्ड (गेंदा) के फूल लगाना शुरू किया। यही नहीं, टमाटर, पत्ता गोभी, फूल गोभी, मिर्च समेत गेहूं-सरसों की खेती करना शुरू कर दिया।

2018 में लिकमाराम ने 30 साल की उम्र में खेती के क्षेत्र में कदम रखा और 6 साल में ही उन्होंने घर के आर्थिक हालात बदल दिए।

अब वे खेत में गेंदा के अलावा टमाटर, गेहूं और जीरा की फसल उगा रहे हैं। फूलों से उनका टर्नओवर 5 लाख तक है।

काजरी संस्थान से सीखा खेती में नवाचार
लिकमाराम ने बताया- कॉम्पिटिशन देने के बाद मैंने पिता की मदद के लिए और घर में अपनी भूमिका निभाने के लिए खेती की। खेत में मिर्च, टमाटर, पत्ता गोभी जैसी सब्जियां और फूलों के पौधे उगा रखे हैं। इसके लिए काजरी संस्थान में जाकर फूलों के पौधे उगाना सीखा। इसके बाद गेंदा के फूलों की खेती स्टार्ट की। इसमें कम लागत में मुनाफा अधिक मिलता है।

मैंने यूट्यूब पर वीडियो देखकर बिजली के फूल (सफेद गेंदा) की खेती करना सीखा। इसमें मुनाफा ज्यादा है। इसके साथ मैं सीजन में जीरा, गेहूं और सरसों की भी खेती करता हूं। मैंने नवाचार करते हुए बूंद-बूंद सिंचाई का रुख किया। सरकारी स्कीम का फायदा उठाकर ड्रिप इरिगेशन सिस्टम खरीदा। इसमें मुनाफे के साथ पानी की बचत भी है।

लिकमाराम ने बताया- परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी। बैंक का कर्ज मैंने जल्दी ही उतार दिया और परंपरागत खेती को आधुनिक ढंग से किया। जो लोग कहते थे कि इतना पढ़कर और इतने कॉम्पिटिशन देकर खेती कर रहा है। उन्हें मैंने अपनी लगन से जवाब दिया।

फूलों को चुनने में लिकमाराम की दादी, पत्नी और छोटे भाई की पत्नी भी पूरा सहयोग करती हैं।

फूलों को चुनने में लिकमाराम की दादी, पत्नी और छोटे भाई की पत्नी भी पूरा सहयोग करती हैं।

लिकमाराम ने बताया- खेती में मेरी रुचि बढ़ती गई। मैं जहां भी जाता था, वहां खेती के तौर-तरीके देखता और सीखता था। अब फूल, सब्जी और उपज जोधपुर मंडी में बेचता हूं। सालाना कमाई करीब 15 लाख हो रही है।

सर्दियों में मैं जीरा, गेहूं, सरसों, तारामीरा, टमाटर और गेंदा की फसलें ले रहा हूं। यह खेती 4 महीने चलती है। बारिश के सीजन में बाजरा और सब्जी उगाता हूं। खेती में मां झीमी देवी (52), पिता कुपाराम, दादी नवली देवी (82), पत्नी संतोष (32), बेटे ललित (16) व कमलेश (13), छोटा भाई नरिंगराम (27) और उसकी पत्नी लीला (25) सहयोग करते हैं।

उन्होंने बताया- डोली गांव में पुश्तैनी 18 बीघा जमीन पर पिता परंपरागत खेती करते थे। उस समय बाजरा, मूंग, मोठ, तिल की खेती करते थे। जब मैंने उन्हें कहा कि मैं नौकरी की तैयारी छोड़ खेती करना चाहता हूं तो उन्होंने विरोध भी किया। लेकिन, मैंने तय कर लिया था कि सरकारी नौकरी नहीं तो फिर खेती ही करूंगा। मैंने अपने एक किसान मित्र का सहारा लिया। उसने मेरे पिता को समझाया तो उन्होंने खेती करने की स्वीकृति दी। कहा कि 12 महीने में खेती-किसानी सही से नहीं कर पाया तो कोई जाॅब ढूंढ लूं।

4 महीने में 2 लाख का टर्नओवर
मैंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। मैंने शुरुआत में 6 बीघा में रबी के सीजन में मिर्च, टमाटर, पत्ता गोभी, बैंगन उगाए। इससे 4 महीने में 2 लाख का टर्नओवर कर पिता को दिया। इसके बाद खरीफ की फसल बोई। इसमें बाजरा-मूंग बोया। मैंने 4 क्विंटल मूंग और 32 क्विंटल बाजरा हासिल किया। सिर्फ बाजरा 4 लाख 50 हजार रुपए का बेचा। तब पिता को विश्वास हुआ कि बेटा खेती में नौकरी वालों से भी आगे जा सकता है। इसके बाद मैं पूरी तरह से खेती में रम गया।

2021 में रबी के सीजन में मैंने फसल बोई, लेकिन ट्यूबवेल में पानी कम होने की वजह से फसल सही नहीं हुई। तब मैंने दूसरे विकल्प तलाशना शुरू किया। मैंने यूट्यूब का सहारा लिया। कई वीडियो ऐसे थे जो खेती की नई तकनीक के बारे में थे। मैं सरकार के कृषि चैनलों पर भी जानकारी जुटाने लगा। इससे मुझे बूंद-बूंद सिंचाई के बारे में पता चला। इस पर ई-मित्र के जरिए ड्रिप इरिगेशन के लिए आवेदन किया। राजस्थान सरकार की योजना के तहत खेत में साल 2022 में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लग गया। इसी साल रबी के सीजन में बूंद-बूंद सिंचाई कर मिर्च, टमाटर, पत्ता गोभी, बैंगन आदि उगाए।

सब्जी और फसलों की खेती में मेहनत ज्यादा लगती है और मौसम की मार का डर होता है। इसलिए किसानों को वैकल्पिक खेती का रास्ता भी चुनना चाहिए। मैंने विकल्प के तौर पर ही फूलों की खेती करना शुरू किया था। उस समय पड़ोस के किसानों ने कहा कि यहां पर फूलों की खेती का कोई महत्व नहीं है। बाजार भी नहीं है। इसलिए इसमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। लेकिन, मैंने उन्हें बताया कि यह खेती कम पानी में हो जाती है। कम लागत में पैदावार भी अच्छी मिलती है। साथ ही गेंदा की फूल पर मौसम की मार भी कम पड़ती है।

ट्रायल के तौर पर उगाए फूल, सफल रहा
साल 2022 में मैंने ट्रायल के तौर पर मैरीगोल्ड (गेंदा) के बीज बाजार से खरीदे और 2 हजार पौधे तैयार किए। ये पौधे एक महीने में तैयार हो गए। एक ही सीजन में सिर्फ फूलों से 5 लाख तक का टर्नओवर हो गया। साल 2023 में मैंने सफेद फूलों के 4 हजार, ऑरेंज गेंदा के करीब 2500 पौधे लगाए। इससे कमाई लगातार बढ़ती चली गई।

वर्तमान में लिकमाराम अपने खेत में बाजरा, मूंग, जीरा, सरसों, गेहूं, मिर्च, हरा टमाटर, पत्ता गोभी, फूल गोभी आदि की भी खेती करते हैं। मूंग करीब 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल और सरसों 4500 रुपए प्रति क्विंटल तक बाजार में बेच रहे हैं। मिर्च और टमाटर का भाव भी 60 से 100 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से मिल रहा है।

लिकमाराम ने आधा बीघा खेत में टमाटर, तीन बीघा में फूल, आधा बीघा में पत्ता गोभी और बैंगन, एक बीघा में मिर्च, 6 बीघा में जीरा, एक बीघा में गेहूं और 6 बीघा में सरसों उगा रखी है।

लिकमाराम जैविक ढंग और बूंद-बूंद सिंचाई से खेती कर रहे हैं। इससे पानी की बचत हुई है और खेती में मुनाफा भी हुआ है।

लिकमाराम जैविक ढंग और बूंद-बूंद सिंचाई से खेती कर रहे हैं। इससे पानी की बचत हुई है और खेती में मुनाफा भी हुआ है।

लिकमाराम ने बताया- खेती के साथ मैं पशुपालन भी कर रहा हूं। मेरे पास दो गाय और एक भैंस है। जिनका दूध-घी बेचकर सालाना करीब 50 हजार की कमाई होती है। पशु होने के कारण मैं खेत में खाद के स्थान पर गोबर का इस्तेमाल करता हूं। इस तरह जैविक खेती से स्वास्थ्य भी बेहतर है। आज के मिलावट के दौर में स्वस्थ खान-पान के साथ अच्छी फसलें उगाकर मैं लोगों तक पहुंचा रहा हूं। अब नौकरी न लगने का अफसोस नहीं है।

उन्होंने बताया- छोटा भाई नरिंगराम कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी कर रहा है। मेरे बेटे 10वीं और छठी क्लास की पढ़ाई कर रहे हैं। मैंने 2010 में जोधपुर की जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से बीएड की पढ़ाई पूरी की। साल 2014 में संस्कृत में एमए भी जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से किया। इसके बाद शिक्षक बनने के लिए तैयारी में जुट गया। 4 साल बाद एहसास हुआ कि 15 से 20 हजार की नौकरी करने से बेहतर है कि पुश्तैनी जमीन पर खेती की जाए और वहां अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल किया जाए।

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