PAK जेल से रिहा भारतीय ने सुनाई आपबीती:मैंने 25 महीने तक सूरज नहीं देखा, कैदियों को इतना टॉर्चर करते कि 10 तो पागल हो गए
पाकिस्तान की जेल में करीब साढ़े आठ साल की सजा काटने के बाद 25 दिसंबर को सोनू कुमार अपने घर पहुंचे।
जम्मू की सीमा पर अब्दुलियां नाम का एक गांव है। 15 अप्रैल 2015 को इस गांव से दो युवक रेत लाने के लिए घर से निकले। वे नदी से रेत भर रहे थे। इसी बीच अचानक पानी का बहाव तेज हो गया और दोनों नदी में बह गए। जान बचाने की जद्दोजहद करते हुए वे तैरते रहे और जब नदी से बाहर निकले, तो पाकिस्तान की सीमा में पहुंच चुके थे।
दोनों युवक जैसे ही नदी से बाहर निकले तो उनके सामने एक पाकिस्तानी रेंजर खड़ा था। उसने दोनों को पकड़ लिया और फिर उन्हें सियालकोट की अंडरग्राउंड जेल भेज दिया गया। बस यहीं से शुरू हुआ उनकी यातनाओं का सफर… इन्हीं में से एक थे सोनू कुमार।
पाकिस्तान की जेल पहुंचने के बाद क्या-क्या हुआ? जेल से कैसे बाहर आए? कोर्ट में क्या हुआ? जेल के अंदर कैदियों की क्या स्थिति है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए सोनू कुमार से बातचीत की…
जेल में 13 दिन खड़ा रखा, गिरता तो जंजीर से बांधकर फिर खड़ा कर देते थे
10वीं तक पढ़े सोनू कुमार ने बताया कि जेल में 13 दिन तक मुझे खड़ा रखा गया। आंखों पर पट्टी बांधकर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया था। जब मैं जमीन पर गिर जाता तो मुझे जंजीर से बांधकर फिर खड़ा कर देते थे। इस दौरान किसी ने मुझसे मारपीट नहीं की। सिर्फ इतना ही कहते थे कि तुम्हें खड़ा रहना होगा। लगातार 13 दिनों तक चले इस सिलसिले के बाद मुझे दूसरे तरीकों से प्रताड़ित करना शुरू किया।
सोनू किराए की कार चलाकर परिवार की आर्थिक मदद करते हैं। ये उनकी अभी की फोटो है।
मुझसे एक ही सवाल पूछते थे कि तुम्हें किस एजेंसी ने भेजा है? इंटेलिजेस? RAW?
मैं कहता- नहीं! हम गलती से आ गए हैं।
तो वे दोहराते- ‘नहीं…नहीं! हमें जानकारी मिली है कि आपने यहां पहले भी बमबारी की है। यहां आपके साथ कुछ और भी लोग हैं। मैं फिर कहता- आप लोग चेक करवा लीजिए, मेरे बारे में। हम यहां कभी नहीं आए और न ही कोई बम फोड़ा है, लेकिन वे फिर अपने सवाल दोहराने लगते।
जेल में बंद 27 में से 10 पागल हो गए
सोनू कुमार आगे बताते हैं- मैं 25 महीनों तक सियालकोट की भूमिगत जेल में अकेला रहा। इसके बाद लाहौर की कोट लखपत जेल भेज दिया गया। मैं रोज सुबह छह बजे उठ जाता था। हम लोग सारा दिन काम करते थे। खाने बनाने से लेकर मिट्टी खोदने तक। कैदियों में कई बीमार तो कुछ अंधे भी थे। जेल में चार ब्लॉक तो ऐसे थे, जहां से किसी को निकलने की इजाजत नहीं थी।
जब मैं जेल से बाहर निकला तो वहां 27 लोग कैद थे। उनमें से 10 कैदी यातनाओं के चलते पागल हो चुके थे। वे सभी अब भी जेल में ही हैं। अब वे अपने बारे में कुछ नहीं जानते। अपना नाम, पता, परिवार के सदस्य। सब भूल चुके हैं। इनमें से कई तो ऐसे थे, जिन्हें कोर्ट ने 4 से 6 महीने की सजा सुनाई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें जेल में 20 साल हो चुके थे।
सोनू कुमार लाहौर की इसी कोट लखपत जेल में करीब 6 साल तक कैद रहा। -फाइल फोटो
‘दिल्ली के इम्तियाज का शुगर लेवल 500 है, पैर काटना पड़ेगा’
मेरे साथ जेल में मौजूद रशीद वली मुहम्मद की दोनों आंखों की रोशनी चली गई है। विजयपुर के बशीर नवाबुद्दीन को भी बहुत कम दिखाई देता है। उसे बीच-बीच में दौरे भी पड़ते हैं। वहीं, दिल्ली के रहने वाले इम्तियाज मुख्तलिम नाम के एक कैदी को डायबिटीज है और उसका शुगर लेवल 500 है। उसका एक पैर इतनी बुरी हालत में है कि अब उसे काटना पड़ेगा।
इसके बावजूद उसे कोई दवा नहीं दी जाती। इलाज के लिए जेल के अधिकारी कहते हैं कि अपने पैसे से इंसुलिन लेकर आओ। अपने घर से पैसे मंगवाकर दवा लाओ। हमारे पास कुछ नहीं है।
दवाएं न होने के चलते एक बीमार कैदी मर गया था। मुझे कुछ कैदियों ने बताया कि कैदी के मरने पर उर्दू में झूठी रिपोर्ट बना दी जाती थी। रिपोर्ट में दूसरे कैदियों से हस्ताक्षर करवा लेते हैं कि साथी कैदी बीमार था। अल्लाह की मर्जी थी तो चला गया।
कुछ कैदी भारतीयों से नफरत करते हैं
पाकिस्तानी कैदियों के बारे में बात करते हुए सोनू कुमार कहते हैं- हम सभी साथ ही रहते थे। एक-दूसरे की मदद भी करते थे। हालांकि कुछ पाकिस्तानी कैदी भारत और हिंदुओं से बहुत नफरत करते थे। वे अक्सर पीएम मोदी के बारे में भी भला-बुरा कहते रहते थे।
जम्मू में अपने घर के बाहर सोनू कुमार। वे पाकिस्तान में कैद काटने से पहले जम्मू में किराए की कार चलाते थे।
कभी करंट देते तो कभी उल्टा लटकाते
जेल में कभी बिजली के झटके देते तो कभी उल्टा टांगकर पीटते थे। पूछताछ के लिए वे सभी तरह के क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करते थे। मुझे इसी तरह 25 महीने तक रखा गया। फिर आर्मी कोर्ट में ले जाया गया, लेकिन वहां भी उनके अपने ही जज बैठे होते हैं। जज कर्नल महत ने मुझसे कहा- ‘तुमने गलती की है। इसलिए सजा तो दी जाएगी। मैंने कहा- ‘हमें वकील की मदद तो दिलवा दीजिए, जो हमारे बारे में सच पता लगा सके। जवाब मिला- नहीं। तुमने जो किया है, उसकी सजा पांच साल होगी।
सजा पूरी होने के बाद भी 2 साल जेल में रखा
हालांकि इसके बाद मुझे एक वकील दिया गया। वह भी कोर्ट में सिर्फ यही कहता था कि मेरे क्लाइंट के साथ सख्ती न बरती जाए। कम से कम सजा दी जाए। इसके बाद मुझे पांच साल की सजा सुनाई गई। वहीं, मेरे साथ पकड़े गए व्यक्ति को पांच साल पहले ही रिहा कर दिया गया था। पांच साल की सजा पूरी होने के बाद मुझे दो साल और जेल में रखा गया। जब मैं रिहाई के बारे में पूछता तो कहते- हमें जानकारी मिल रही है कि आप इंटेलिजेंस के बंदे हैं। इसलिए अभी हम और जांच करेंगे।
सोनू कुमार ने बताया कि उन्हें 25 महीनों तक सियालकोट की किसी अंडरग्राउंड जेल में रखा गया था। -फाइल फोटो
रिहाई के बाद फिर 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया
‘वे अक्सर कहते थे कि तुम्हें जल्द ही छोड़ देंगे। मुझसे अक्सर कहा जाता था कि ‘कल छोड़ देंगे, परसों छोड़ देंगे’। 11 अगस्त 2023 को चार लोगों को रिहा करना था। जिनमें से दो यूपी और बिहार के थे। हमें भी जेल से बाहर लाने के लिए तैयार किया गया। जैसे ही हम जेल के गेट से बाहर निकले तो मुझे रोक लिया गया और कहा- ऊपर से कॉल आ गई है। हमारी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कहा है कि अभी इस बंदे को नहीं भेजना है। इसके बाद मुझे वापस जेल में डाल दिया गया। इस तरह मैं फिर से 6 महीने के लिए जेल में वापस धकेल दिया गया।
जेल से रिहाई के दिन के बारे में बात करते हुए सोनू कुमार कहते हैं- बीते सोमवार यानी कि 25 दिसंबर की शाम मुझसे कहा गया कि कल तुम्हारी रिहाई है। आखिरकार अगले दिन सुबह करीब 10 बजे मैं पाकिस्तान से वाघा सीमा पर पहुंचा। मेरा भाई, बहन और मां मुझे लेने आए थे। इस तरह मेरी यातनाओं का सफर खत्म हुआ। मैं वापस अपने परिवार के पास पहुंचा।
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