जीत की युक्ति
बंदिशों को तोड़ कर नई नई तू रीत लिख !
लकीर अपनी खींच कर तू आसमाँ पे जीत लिख !!
जीत और हार केवल शब्द नहीं हैं, ये मानव मन की वह दो भंगिमाएं हैं जो व्यक्ति को जीने का असली मकसद सिखा जाती हैं। यूं तो पूरे जीवन को केवल जीत और हार में बांटा नहीं जा सकता लेकिन हर हृदय में जीत की आकांक्षा ही जिजीविषा है। आज कहानी ऐसी ही एक जीत की….
अमेरिका और वियतनाम के बीच 1 नवंबर 1955 से 30 अप्रैल 1975 तक युद्ध चला। इस युद्ध में वियतनाम ने सुपर पावर अमेरिका को करारी शिकस्त दी।अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा…
आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया… ?
इसपर उन्होंने जो जवाब दिया वह हर भारतीय को आह्लाद से भर देता है उन्होंने कहा सभी देशों में सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने दो महान और श्रेष्ठ भारतीय राजाओं के चरित्र को पढ़ा और उनकी जीवनियों से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की।
उस पत्रकार ने पूछा आखिर कौन हैं वो वीर भारतीय योद्धा राजा?
इस पर उन्होंने प्रत्युत्तर दिया ‘वो भारत के राजस्थान में मेवाड़ के ‘महाराजा महाराणा प्रताप’ और वीर मराठा ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ हैं। उन्होंने कहा काश! अगर ऐसे महान राजाओं ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो हमने पूरे विश्व पर राज किया होता।यही नहीं कुछ साल बाद जब उस राष्ट्राध्यक्ष की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपनी समाधि पर लिखवाया ‘ये महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के एक शिष्य की समाधि है’।
वियतनाम जो कि विश्व का एक छोटा सा देश है उसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया और लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में आखिरकार अमेरिका पराजित हुआ। वहां घटित यह घटना हर भारतीय के लिए एक सबक है।यही नहीं कालांतर में जब वियतनाम के विदेश मंत्री भारत पधारे तो उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि देखने के बाद पूछा आपके यहां महाराणा प्रताप की समाधि कहां है? उनके पूर्व नियोजित दौरे को परिवर्तित कर उन्हें उदयपुर महाराणा प्रताप की समाधि के दर्शन कराए गए और उसके बाद उन्होंने समाधि के पास की मिट्टी उठाई और उसे अपने बैग में भर लिया, कारण पूछने पर
उन विदेशमंत्री महोदय ने कहा “ये मिट्टी शूरवीरों की है,इस मिट्टी में एक महान् राजा ने जन्म लिया है , ये मिट्टी मैं अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा,ताकि मेरे देश में भी ऐसे ही वीर पैदा हो।यह राजा केवल भारत का गर्व न होकर सम्पूर्ण विश्व का गर्व होना चाहिए।
बस शायद इसी में छिपे हैं जीत के गुर ,जिसके द्वारा उन्होंने एक विश्व विजेता को घुटनों के बल ला दिया। वीर और वीरत्व के प्रति सच्ची आस्था और उस लीक पर चलने की आकांक्षा ने हार को जीत में बदल डाला। हम ऐसी माटी में जन्मे है जहां ऐसे माणिक्य पग पग पर मिलते हैं विश्व गुरु केवल भारत का नाम नहीं है वास्तविक अर्थों में पूरे विश्व के लिए वह एक विश्व गुरु का कार्य करता है, और इसी में छिपा है जीत का गुर।
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