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लेह-लद्दाख के दो कुबड़ीय ऊँटों का गहन वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर लौटा एनआरसीसी वैज्ञानिक दल

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बीकानेर 21.08.2023 । दो कुबड़ीय ऊँटों की स्थिति के सर्वेक्षण, उनके स्वास्थ्य, पोषण, जनन, एवं प्रजनन संबंधी समस्याओं पर विचार-विमर्श तथा क्षेत्र के पशु पालकों को उष्ट्र पालन व्‍यवसाय हेतु प्रोत्साहित करने के लिए लद्दाख के नुब्रा घाटी में केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा दिनांक 16 से 18 अगस्त के दौरान स्वास्थ्य एवं प्रसार शिविरों तथा कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए। वैज्ञानिकों द्वारा लेह में आयोजित परिचर्चा में 25 से अधिक पशुपालन एवं पर्यटन विभाग से जुड़े विषय-विशेषज्ञों एवं गणमान्यों ने शिरकत कीं। वहीं नुब्रा घाटी में पशु स्वास्थ्य शिविर व कृषक-वैज्ञानिक पशुपालक संवाद कार्यक्रमों में लगभग 50 ऊँट पालकों ने कुल 176 दो कूबड़ीय ऊँटों के साथ अपनी सहभागिता निभाई।


लेह में ‘डबल-हम्प कैमल फार लाइलीहुड सिक्युर्टी इन लद्दाख‘ विषयक परिचर्चा के दौरान मुख्‍य अतिथि के रूप में डॉ. राजेश रंजन, कुलपति, सेन्‍ट्रल इंस्टिटयूट फॉर बुद्विष्‍ठ स्‍टडीज, लेह ने कहा कि दो कूबड़ीय ऊँटों की संख्या बढ़ना, पर्यटनीय एवं इसके संरक्षण की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तो है ही, साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका में भी यह सहायक सिद्ध होगा। इस दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि नर ऊँटों को पर्यटन हेतु तथा मादा ऊँटों को दूध उत्पादन के लिए प्रयोग में लिया जाना चाहिए जिससे कि पूरे वर्ष के दौरान इस प्रजाति का समुचित उपयोग होता रहे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऊँटनी के दूध को सामान्य दूध के बजाय औषधी के रूप में इस्तेमाल करने से ऊँट पालकों को इसके दूध की ज्यादा कीमत मिल सकेगी और उष्ट्र पालन व्यवसाय फायदेमंद साबित होगा। उन्होंने यह बताया कि हाल में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि ऊँटनी के दूध का सेवन मधुमेह, आटिज्म एवं ट्यूबरक्लोसिस में उपयोगी है। पर्यटक, इसके दूध से निर्मित अनूठे चाय, कॉफी आदि उत्पादों का लुत्फ उठा सकेंगे, साथ ही उष्ट्र बच्चों की भी सुरक्षित देखभाल की जा सकेंगी। डॉ. साहू ने इन ऊँटों से प्राप्त ऊन की संभावनाओं पर बात करते हुए बताया कि ऊँटों की उत्तम गुणवत्तायुक्त ऊन के इस्तेमाल से इस प्रजाति का बहुआयामी उपयोग लेते हुए पशु पालकों की आमदनी में आशातीत वृद्धि लाई जा सकती हैं।
परिचर्चा के दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ओमप्रकाश चोरसिया, निदेशक, डी.आर.डी.ओ. ने स्‍थानीय उपलब्‍ध घासों एवं झाडि़यों के संरक्षण पर जोर दिया। डॉ. मो. इकबाल, निदेशक, पशुपालन विभाग, लद्दाख ने ऊँटों के विकास हेतु एनआरसीसी से और अधिक अध्ययन की आवश्यकता जताई।
इस अवसर पर एनआरसीसी की ओर से ‘फ्रीज ड्राइड कैमल मिल्क पाउडर‘ प्रदर्शित किया गया वहीं केन्द्र द्वारा निर्मित ‘ऊँटतेजक‘ उत्पाद भी लॉन्‍च किया गया। ऊँटतेजक उत्पाद के संबंध में केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के. सावल ने बताया कि 2 ग्राम प्रति पशु को इसे देने पर पशु की जनन, कार्यक्षमता आदि में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ोत्तरी की जा सकेगी। वहीं केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन ने एनआरसीसी में ऊँटों के स्वास्थ्य देखभाल व वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन के दीहार संस्थान, लेह का भ्रमण किया गया तथा उच्च ऊँचाई पर जानवरों में विशेषकर दो कुबड़ वाले ऊँटों पर सहयोगात्मक अनुसंधान की सम्‍भावनाओं पर चर्चा की गई |
केन्द्र वैज्ञानिकों द्वारा दिनांक 17 से 18 अगस्त के दौरान नुब्रा घाटी में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किए गए । शिविर में लाए गए बीमार दो कूबड़ीय ऊँटों का इलाज किया गया व पशुओं के विभिन्न रोगों हेतु दवा वितरित की गई। इस दौरान संवाद कार्यक्रमों में पशुओं के संरक्षण उनकी स्वास्थ देखभाल तथा पोषकीय प्रबन्धन संबंधी विभिन्न पहलुओं संबंधी जानकारी दी गई ।
‘नुब्रा घाटी में आजीविका के लिए ऊँट आधारित पर्यटन की भूमिका‘ विषयक वैज्ञानिक पशुपालक परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने पशुपालकों की समस्याओं से मुखातिब होते हुए कहा कि भारत सरकार की क्षेत्र में जनजातीय उप-योजना के माध्यम से आयोजित ऐसे अवसरों का पशुपालक भाई भरपूर लाभ उठाएं । उन्होंने पशुपालकों को आश्वस्त किया कि भविष्य में लद्दाख में उष्ट्र पालन की ओर प्रोत्साहित करने हेतु और अधिक जमीनी प्रयास किए जाएंगे जैसे कि पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल तथा पोषकीय प्रबन्धन, पहचान चिन्ह की विधियां, प्रजनन हेतु नर एवं मादा का चयन, उष्ट्र दुग्ध से निर्मित मूल्य संवर्धित उत्पादों व अन्य विविध पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
बैक्ट्रियन कैमल एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अब्‍दुल हकीम ने दो कूबड़ीय ऊँटों की समस्याओं को वैज्ञानिकों से साझा करते हुए ऊँटों के चरने के लिए स्थान सीमित चरागाह होने, पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल हेतु नजदीकी डिस्पेंसरी सुविधा की कमी, अधिक सर्दी के मौसम में पशुओं के लिए अनुपूरक आहार की कमी आदि समस्याओं के समाधान की आवश्यकता जताई।
एनआरसीसी वैज्ञानिकों द्वारा दो कूबड़ीय ऊँटों के परीक्षण के अलावा उनके मींगणी (40) एवं बालों (09) के नमूनें जांच हेतु लिए गए। वहीं ऊन गुणवत्ता की जांच कर पशुपालकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा । साथ ही डॉ. सावल ने चरागाह क्षेत्र में उपलब्ध घासों व झाड़ियों खासकर ‘सीबकथोर्न’ पर अध्ययन हेतु सामग्री एकत्रित की एवं जंगल में ऊँटों की आहार ग्रहण पद्धति का भी गहन अवलोकन किया। वैज्ञानिकों ने पशुपालकों को क्षेत्र में पर्यटकों की बढ़ती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए स्वच्छता प्रबंधन हेतु जागरूक किया ताकि इस अनूठे उष्ट्र पर्यटन क्षेत्र के सौन्दर्य को बनाया रखा जा सकें।

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