आलेख : डॉ सुरेंद्र कुमार शर्मा
- जन्म
राजस्थान में संस्कृत शिक्षा के शिखर पुरुष, राज्य सरकार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, विश्वविद्यालयों, संस्कृत संगठनों व अनेक सार्वजनिक संस्थाओं में विभिन्न पदों को अंलकृत करने वाले अपनी प्रतिभा व वक्तृत्व शैली से विशिष्ट एवं आमजन को प्रभावित करने वाले, संस्कृत विकास के अहर्निश चिन्तक एवं क्रियान्वयक, श्रमवीर, परोपकारी, अक्षुण्ण कार्यक्षमता और स्मित मुद्रा के प्रतीक, ईश्वरप्रदत्त मनीषा से समन्वित, विशद दृष्टि और दूरदर्शी पं. मोतीलाल जोशी का जन्म बाडीजोडी (शाहपुरा) जयपुर में तिवाडी वंशज पं. डालूराम जी तिवाड़ी के आत्मज के रूप में 14 मई 1935 को हुआ।
- बाल्यकाल एवं शिक्षा
त्रिवेणी समीपस्थ बाड़ीजोड़ी की पावन स्थली पर प्रसूत जोशी जी का बचपन ममतामयी माँ श्रीमती लाड़ा देवी के सान्निध्य में व्यतीत हुआ। शैशवावस्था में ही सगोत्रीय वंशज मनोहरपुर (जयपुर) निवासी पं. बद्रीनारायण जोशी द्वारा दत्तक पुत्र के रूप में आपको गोद ले लिया गया।
जोशी जी की विद्यालयी शिक्षा अपने अग्रज आता विद्वद्वरेण्य पं. घासीराम जी तिवाड़ी के सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में श्री भजनदास संस्कृत विद्यालय नायन (जयपुर) में हुयी। उच्च अध्ययन के लिए जोशी जी को जयपुर के महाराज संस्कृत कॉलेज में प्रविष्ट कराया गया जहाँ पं. पट्टाभिराम शास्त्री, पं. मथुरानाथ भट्ट, पं. जगदीश शर्मा, पं. केदारनाथ ओझा, पं. दुर्गादत्त ओझा, कथाभट्ट नन्दकुमार शास्त्री, पं. गंगाधर द्विवेदी, पं.प्रभुनारायण शर्मा सहृदय जैसे उद्भट गुरु चरणों में विविध संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन कर आपने स्नातक-शास्त्री, स्नातकोत्तर-आचार्य उपाधियां प्राप्त की। कुशाग्र मेधा, वाकचातुर्य, बाल चापल्य और सेवाभाव गणों से आप अध्ययन काल में ही गुरुजनों एवं सहपाठियों के अत्यन्त प्रिय हो गये। स्वस्थ एवं सुन्दर शरीर, ओजस्वी वक्तृत्व शैली, अडिग विचार, गंभीरता एवं हास्य जोशी जी के व्यक्तित्व के आधार स्तंभ थे।
- पाणिग्रहण एवं गृहस्थ संचालन
छात्र अवस्था में जोशी जी का सौ. कां. कौशल्या सुपुत्री श्रीमती धापन देवी एवं श्री विनोदी लाल, लेटकाबास (जयपुर) से पाणिग्रहण संस्कार राम्पन्न हुआ। आपके 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां हुयीं। जीवनयापन एवं गृहस्थ संचालन के लिए आपने अपने संरक्षकों पर आश्रित न रहकर विशिष्ट संस्कृतानुरागी परिवारों में संरकृत अध्यापन का कार्य करते हुये अर्थोपार्जन किया।
- संस्कृत एवं समाज सेवा से जुडाव
1952-53 में विराटनगर तहसील कांग्रेस के मंत्री व भारत सेवक समाज के संयुक्त संयोजक के रूप में तहसील के अभाव अभियोगों, जागीरदारी प्रथा से उन्मुक्त किसानों और अनुसूचित जाति, जनजाति के कल्याणकारी कार्यक्रमों को लेकर जोशी जी राज और समाज से सम्पर्कित हुए। प्रारंभ से ही गांधीवादी जीवन दर्शन एवं नेहरू गांधी परिवार के प्रति आस्थावान जोशी जी की राजस्थान में सर्वप्रथम लोक नायक जयनारायण व्यास और जयपुर जिले के वीर कर्ण के नाम से विख्यात श्री रामकरण जोशी के विश्वस्त अनुयायिओं में गणना की जाने लगी। 1955 में निरीक्षक संस्कृत पाठशालाएं, राजस्थान के जयपुर कार्यालय का स्वरूप सीमित कर देने और उसे जयपुर से हटाकर बीकानेर स्थानान्तरित करने के प्रसंग से शेखावाटी के तपःपूत संस्कृत विद्वानों को साथ लेकर मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया से प्रथम भेंट कर राजस्थान में परम्परागत संस्कृत शिक्षा के पुनरुद्धार और योजनाबद्ध विकास के लिए एक समिति गठित कराने तथा जयपुर से संस्कृत निरीक्षणालय स्थानान्तरित न करने के ज्ञापन पर वांछित आदेश कराते हुये जोशी जी ने राजस्थान में संस्कृत शिक्षा के विकास का श्रीगणेश करवाया जिससे आप संस्कृत और समाज सेवक के रूप में उभर कर सामने आये।
- संस्कृत पाठशाला मनोहरपुर की स्थापना एवं राज्याधीनता
महन्त श्री नारायण दास जी श्रीवैष्णव के मनोहरपुर आगमन एवं स्थाई रूप से यहीं निवास करने की भावना से की गई धूलेश्वर पीठ स्थापना के साथ ही उनके सम्पर्क में आकर उनके सद्धिमर्श से धूलेश्वर मंदिर में 09 अगस्त 1952 को ग्रामीण बालकों में संस्कृत ज्ञानार्जन के भाव से चटशाला के रूप में पाठशाला प्रारंभ की गयी। जिसका प्रमुख जोशी जी को बनाया गया।
जोशी जी द्वारा 1956 में मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया जी के सान्निध्य में जिला भारत सेवक समाज का मनोहरपुर में अधिवेशन आयोजित कराया गया। इस अधिवेशन में पधारे सुखाडिमा जी इस छोटी सी संस्कृत पाठशाला को देखकर अभिभूत हुये और वहीं पाठशाला के राज्याधीनता के आवेश प्रदान किये। जोशी की की सक्रियता और किये गये अथक प्रयासों से यह पाठशाला बाज राजकीय श्री धूलेश्वर आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के रूप में सर्वत्र प्रसिद्धि लिये संचालित है।
- राज्य सेवा में धारित पद 1956-1993
जोशी जी 1956 में राजस्थान लोक सेवा आयोग से द्वितीय श्रेणी शिक्षक के रूप में चयनित हुये। तत्पश्चात प्राचार्य शास्त्री (डिग्री) कॉलेज, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रजिस्ट्रार संस्कृत विभागीय परीक्षायें, राजस्थान निरीक्षक संस्कृत शिक्षा, राजस्थान एवं प्राचार्य आचार्य (पी.जी) कॉलेज संस्कृत शिक्षा के विभिन्न पदों पर रहते हुये 31 मई 1993 को संयुक्त निदेशक, संस्कृत शिक्षा, राजस्थान के पद से सेवानिवृत्त हुये। राज्य सेवा काल के दौरान जोशी जी, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान और राजस्थान विश्वविद्यालय की वित्त समितियों में और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के रिसर्च बोर्ड के सदस्य रहे। राजस्थान विश्वविद्यालय की सीनेट और सिण्डीकेट सदस्य के रूप में 20 वर्ष तक प्रतिनिधित्व किया। राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय सिण्डीकेट में (गवर्नमेंट एवं गवर्नर नामिनी के रूप में 9 वर्ष और राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की शासी निकाय में भी 9 वर्ष तक आपने (चयनित एवं गवर्नमेंट नोमिनी) प्रतिनिधि के रूप में उत्तरदायित्व निर्वहन किया। राजस्थान विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट बोर्ड के अध्यक्ष और स्पोर्ट्स बोर्ड के सदस्य रूप में तथा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में कर्मचारी कल्याण समिति के सदस्य के रूप में कार्यरत रहे। उक्त संस्थाओं में जोशी जी द्वारा अपने कार्यकालों में कराये गये सर्वजन हिताय निर्णय सर्वत्र चर्चित एवं प्रशंसनीय रहे।
- संस्कृत शिक्षा के विकास-विस्तार में योगदान
जोशी जी ने राजस्थान में संस्कृत विकास कमेटी के गठन, केन्द्रीय संस्कृत आयोग को राजस्थान में स्वतंत्र संस्कृत निदेशालय की स्थापना के लिए दिये गये साक्ष्य एवं प्रभावी सुझाव, राजस्थान में स्टेट संस्कृत एडवाइजरी बोर्ड के गठन, राजस्थान विश्वविद्यालय में संस्कृत फैकल्टी के गठन और विभागीय प्रवेशिका एवं उपाध्याय संस्कृत परीक्षाओं का माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा आयोजन तथा शास्त्री-आचार्य परीक्षाओं का राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा आयोजनार्थ स्थानान्तरण, अर्थाभावग्रस्त दशाधिक संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालयों की राज्याधीनता, अनेक अनुदानित संस्कृत संस्थाओं की 90 प्रतिशत तक अनुदान पृन्दि, सामान्य शिक्षा के समानान्तर प्रदेश में संस्कृत शिक्षणालयों की स्थापना, क्रमोन्नति और नवीन विषय खोलने की नीति का निर्धारण, संस्कृत परीक्षाओं की रामकक्षता, संस्कृत शिक्षण संस्थाओं का कैटेगराईजेशन, संस्कृत शिक्षा के वेतनमानों का समय-समय पर संशोधन, यू.जी.सी कॉलेज विकास योजना में संस्कृत महाविद्यालयों का समावेश, महिला संस्कृत शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए संस्कृत बालिका विद्यालयों एवं महिला महाविद्यालय की स्थापना, राजस्थान में संस्कृत महाविद्यालय शिक्षकों को यू.जी.सी वेतनमान दिये जाने की संभावनाओं का पता लगाने हेतु कमेटी के गठन तथा यू.जी.सी वेतनमान अनुज्ञेय कराने के अतिरिक्त, राजस्थान में संस्कृत विश्वविद्यालय के भवन निर्माण, राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश में संस्कृत विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए माहौल और प्रस्ताव बनाने, उनके क्रियान्वयन में अपनी महती भूमिका और अहर्निश योगदान से लोकप्रियता अर्जित की।
- राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन का महामंत्रित्व 1964-2012
1948 से संस्थापित राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन में 1956 से महासमिति एवं कार्य समिति सदस्य, संयुक्त मंत्री, कार्यवाहक प्रधान मंत्री के रूप में जोशी जी की कार्यक्षमता एवं संगठन क्षमता के कारण 1964 में स्वतंत्र रूप से जोशी जी को महामंत्री का उत्तरदायित्व सम्मेलन के तत्कालीन कर्णधारों द्वारा सौंपा गया। सम्मेलन के कार्य को जोशी जी ने अपने हाथ में लेते ही कार्य क्षेत्र को अधिकाधिक व्यापक बनाया। जिलों, तहसीलों, नगरों यहाँ तक कि गांवों में भी संस्कृत की शाखायें स्थापित कीं। श्री जोशी जी ने राजस्थान के विभिन्न जिलों की यात्रा कर वहाँ संस्कृत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से नवीन चेतना एवं उत्साह का संचार किया।
जोशी जी के महामन्त्रित्वकाल में सम्मेलन के 5 महाधिवेशन सम्पन्न हुये। इन पांचों महाधिवेशनों में प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत की नई दिशा निर्धारित हुई। सरदारशहर, भीलवाड़ा, मनोहरपुर एवं जयपुर में आयोजित दोनों महाधिवेशन हर दृष्टि से सफल और ऐतिहासिक रहे। इन मंचों पर संस्कृत विकास के महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत हुए। जोशी जी की कार्यक्षमता, संगठन क्षमता एवं सर्वजन हिताय कार्यप्रणाली से प्रभावित तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल जी सुखाड़िया ने 1966 में सम्मेलन के सभापति का उत्तरदायित्व स्वीकारा जिसका अपनी मृत्यु पर्यन्त 02 फरवरी, 1982 तक पूर्ण लगन, निष्ठा और मनोयोग के साथ निर्वहन किया। स्व. सुखाडिया जी के बाद सम्मेलन सभापति के रूप में डॉ. श्रीमती कमला वरिष्ठ राजनेत्री एवं भूतपूर्ण राज्यपाल के नेतृत्व में सम्मेलन निरन्तर प्रगतिशील रहा। वर्तमान में सार्वजनिक जीयन में पारदर्शिता, शुचिता एवं स्पष्टवादिता की प्रतिमूर्ति डॉ. बी.डी. कल्ला वरिष्ठ जननायक के सभापतित्व में सम्मेलन के 16 वें महाधिवेशन आयोजन की कार्य योजना गतिशील है। सार संक्षेप में जोशी जी ने अपने महामंत्रित्व काल में जननायकों को सम्मेलन सभापति पद पर पदासीन रखते हुये राजस्थान में संस्कृत शिक्षण प्रशिक्षण शिक्षा शास्त्री (बी.एड़) पाठ्यक्रम का सूत्रपात एवं प्रवर्तन, संस्कृत अध्येताओं के लिए विविध रोजगारों की मार्ग प्रशस्ति, राजस्थान एवं देश के अन्य प्रदेशों में संस्कृत विश्वविद्यालयों की स्थापना, राजस्थान में संस्कृत शिक्षण संस्थाओं का विस्तार और प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालय शिक्षकों को यू.जी.सी. वेतनमान के लाभ जैसे अनेकों महत्वपूर्ण कार्य राज और सम्मेलन में समन्वय स्थापित कर क्रियान्वित कराये।
- आयोजन-लेखन-सम्पादन एवं प्रकाशन
राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन के राष्ट्रीय महाधिवेशनों के अतिरिक्त जोशी जी ने संस्कृत को प्रचारित-प्रसारित करने और संस्कृत कर्मियों को लाभान्वित करने के लिए महाधिवेशन के अतिरिक्त दर्जनों संगोष्ठियाँ एवं कार्यशालाएं आयोजित कीं। आयोजित कार्यक्रमों में उपस्थित अतिथियों, विद्वानों, शिक्षाविदों, विषय विशेषज्ञों के उद्बोधन, विचार, प्रस्ताव, शोध-पत्र एवं शोध-लेखों का संपादन एवं प्रकाशन करते हुये बैजल भूपतिकृत प्रबोध चंद्रिका और कारक मीमांसा जैसे क्लिष्ट व्याकरण ग्रन्थों के सरलीकरण की दृष्टि से व्याख्यानुवाद सहित मुद्रण करवा कर जनोपयोगी बनाया। ब्रह्मपीठाधीश्वर श्रीनारायण दास जी महाराज त्रिवेणी धाम की भावना को मूर्त रूप प्रदान करने लिए उनके आदेश के बाद तीर्थराज प्रयाग में प्रादुर्भूत जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के जीवन वृत्तान्त सम्बन्धी स्वामी श्री भगवदाचार्यकृत “श्री रामानन्द दिग्विजय” एवं “गोस्वामी श्री हरिकृष्ण शास्त्रीकृत “आचार्य विजय” नामक संस्कृत पद्य-गद्य काव्यों के हिन्दी रूपान्तरण के लिए क्रियाशील हुए। दुर्दैववशात् उनके जीवन में यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। किन्तु उनकी प्रेरणा से पं. सत्यनारायण श्रोत्रिय एवं पं. सांवरमल शास्त्री द्वारा उक्त दोनों काव्यों का हिन्दी पद्य-गद्य अनुवाद किया गया। जिन्हें राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन द्वारा सद्यः प्रकाशित कराया जाकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिह जी के कर कमलों से 14 मार्च 2015 को दौसा में आयोजित भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत के संपोषक पं. नवल किशोर शर्मा की स्मृति में निर्मित सामुदायिक भवन लोकार्पण समारोह के अवसर पर विमोचन कराते हुए स्व. जोशी जी के संकल्प को साकार किया गया।
- सम्मान एवं पुरस्कार
राजरथान शारान के सर्वोच्य “संस्कृत साधना शिखर” सम्मान से विभूषित, संस्कृत सेवाओं के लिए राज्यपाल सम्मान राजस्थान से सम्मानित जोशी जी को प्रदेश एवं देश की अनेक संस्थाओं एवं जगद्गुरुओं द्वारा सम्मानित किया जाता रहा। जिनमें “शंकराचार्य सम्मान” द्वारका शारदा पीठ (गुजरात), “मरत सम्मान” श्रीमठ पंचगंगाघाट वाराणसी, “साहित्य श्री” संस्कृत परिषद् वाराणसी, “साहित्य मार्तण्ड” ऋषिकृल रतनगढ़, “ब्रह्मर्षि अंलकरण” श्री मधुसूदन वैदिक संस्कृति एवं पर्यावरण संस्थान, अलवर के अतिरिक्त विविध सम्मान एवं अभिनन्दन कार्यक्रमों में जोशी जी को अभिनन्दित, सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया।
- संस्कृत सेवाव्रती का महाप्रयाण
जोशी जी के जून 2012 में गले पर हुयी आकस्मिक विकसित ग्रंथि का निदान चिकित्सकों द्वारा कैंसर रूप में किया गया। मुम्बई एवं जयपुर के अस्पतालों में उनकी चिकित्सा भी चली किन्तु समस्त चिकित्सा विधियां एवं औषध अप्रभावी रहे। 16 सितम्बर 2012 को मध्यान्ह में शरीर के महत्वपूर्ण अन्य अंगों पर भी सम्बन्धित व्याधि प्रभावी हो गयी और वे पंचतत्व में विलीन हो गये।
जोशी जी का नश्वर देह तो पंच भूतों में समाहित हो चुका है किन्तु उनका नाम देश एवं प्रदेश के इतिहास में संस्कृत सेवाव्रती के रूप में सुमेरुवत् अमर रहेगा। जोशी जी द्वारा इस मरु प्रदेश की धरती पर छोड़ी गयी, संस्कृत विकास की अमिट छाप युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियों को संस्कृत संपोषण के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देती रहेगी।
Add Comment