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अजीत कौर को साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता ,पंजाबी की प्रतिष्ठित लेखिका और विदुषी हैं श्रीमती अजीत कौर

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर 2024; साहित्य अकादेमी ने आज प्रतिष्ठित पंजाबी लेखिका और विदुषी अजीत कौर को अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से सम्मानित किया। सम्मान स्वरूप दिया जाने वाला ताम्र फलक और अंगवस्त्रम् साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने प्रदान किया और साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने फूलों का गुलदस्ता भेंट किया। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने प्रशस्ति पत्र पढ़ा। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि यह अवसर ऋषिऋण उतारने जैसा है। उन्होंने अपने कार्याें से माँ जैसी गरिमा पाई है और उन्होंने नारी उत्थान की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। अपने स्वीकृति वक्तव्य में अजीत कौर ने प्रसन्नता वयक्त करते हुए कहा कि उनके लिए बहुत खुशी का अवसर है और वे बेहद सम्मानित महसूस कर रही हैं। कुमुद शर्मा ने अर्पण समारोह के बाद धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि उन्हें सम्मानित कर स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहे हैं, उनके लेखन की बेबाकी ने हम सबको प्रोत्साहित किया है। इसके साथ ही उनके साथ एक संवाद कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता पंजाबी परामर्श मंडल के संयोजक रवेल सिंह ने की और वनीता और कुलबीर बदेसरोन ने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए।
ज्ञात हो कि अजीत कौर एक प्रख्यात पंजाबी कथा लेखिका, पत्रकार, अर्थशास्त्री, सांस्कृतिक प्रचारक, सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। 16 नवंबर 1934 में लाहौर में जन्मीं अजीत कौर विभाजन के बाद दिल्ली आ गईं और यहीं उनकी पढ़ाई लिखाई हुईं। उनकी कथात्मक शैली में स्पष्टता उन्हें सआदत हसन मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, इस्मत चुगताई और कुलवंत सिंह विर्क जैसे साहित्यिक दिग्गजों के साथ जोड़ती है। उनकी कुछ चर्चित कहानियाँ हैं – गुलबानो, बुत शिकन, महक दी मौत, फालतू औरत, सावियाँ चिरियाँ, मौत अली बाबे दी, ना मारो, अपने-अपने जंगल आदि। आपकी आत्मकथा खानाबदोश आपकी जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का आकर्षण संग्रह है। विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में उनके लेखन पर कई डॉक्टरेट अध्ययन किए गए हैं, उनकी रचनाओं का व्यापक रूप से अनुवाद किया गया है। 1987 से, आप सार्क राइटर्स एवं लिटरेचर फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष है जो सार्क देश में पहली सांस्कृतिक एवं साहित्यिक पहल है। आपको भारत सरकार द्वारा सन 2006 में पद्मश्री अलंकरण, 1986 में खानाबदोश के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अतिरिक्त अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से अलंकृत किया गया है

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