आर्मीनिया और अज़रबैजान में एक बार फिर संघर्ष क्यों शुरू हो गया है?
आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने बताया है कि अज़रबैजान से जारी जंग में बीते सोमवार से अब तक आर्मीनिया के 100 से ज़्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं.
अज़रबैजान ने भी इस जंग में अपने 50 सैनिकों के मारे जाने की बात कही है. दोनों देश इस ताज़ा संघर्ष के लिए एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.
पीएम निकोल पाशिन्यान ने आर्मीनिया की संसद को संबोधित करते हुए दावा किया है कि इस संघर्ष में अब तक 105 आर्मीनियाई सैनिक मारे गए हैं जिसके लिए अज़रबैजान ज़िम्मेदार है.
पाशिन्यान ने दावा किया है कि अज़ेरी सैन्य टुकड़ियों ने इस हफ़्ते आर्मीनिया की 10 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर क़ब्ज़ा किया है और उन्होंने इस मामले में पुराने सहयोगी रूस से सैन्य मदद मांगी है.
वहीं, अज़रबैजान ने आर्मीनिया के दावों का खंडन करते हुए कहा है कि आर्मीनिया ने अपने ही एक ज़िले कलबाकार में स्थित सैन्य ठिकानों पर गोलाबारी करके ये संघर्ष शुरू किया है.
अज़रबैजान ने उन ख़बरों का भी खंडन किया है जिनमें अज़रबैजान द्वारा आर्मीनिया में तैनात रूस की एफ़एसबी सिक्योरिटी सर्विस की गाड़ियों पर हमला करने का दावा किया गया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अज़रबैजान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि उनकी सैन्य टुकड़ियां जवाबी कार्रवाई कर रही हैं.
अमेरिका और रूस ने दोनों मुल्कों से तनाव कम करने की अपील की है. ये पहला मौका नहीं है जब दोनों मुल्कों के बीच सैन्य संघर्ष हुआ हो.
इससे पहले 2020 में भी दोनों मुल्कों के बीच भीषण जंग हो चुकी है जो रूस की मध्यस्थता के बाद रुकी थी.
लेकिन इस संघर्ष के बाद एक बार फिर दोनों देशों के बीच व्यापक युद्ध छिड़ने की आशंकाएं जताई जा रही हैं.
आर्मीनिया और अज़रबैजान किस बात पर लड़ रहे हैं?
ये दोनों देश दक्षिण कॉकेशस क्षेत्र में स्थित हैं जो कि पूर्वी यूरोप और एशिया का पहाड़ी क्षेत्र है. इसके एक तरफ़ काला सागर है तो दूसरी तरफ़ कैस्पियन सागर है.
अज़रबैजान की आबादी लगभग एक करोड़ है जिसमें बहुसंख्यक मुसलमान हैं. वहीं आर्मीनिया की आबादी लगभग तीस लाख है जिसमें ईसाई बहुसंख्यक हैं.
अज़रबैजान के तुर्की के साथ क़रीबी संबंध हैं और आर्मीनिया के रूस के साथ गहरे रिश्ते हैं. हालांकि, रूस के अज़रबैजान के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं.
सोवियत संघ के विघटन से पहले तक ये दोनों देश सोवियत क्षेत्र में आते थे. साल 1923 में सोवियत संघ ने आर्मीनियाई बहुसंख्यक आबादी वाले नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को स्वतंत्र अज़रबैजान गणराज्य बना दिया था.
अस्सी के दशक में शुरू हुआ संघर्ष
इस विवाद के केंद्र में नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र है जहां रहने वाले नस्लीय आर्मीनियाई लोगों ने साल 1988 में आर्मीनियाई शासन की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन शुरू किया.
इसके बाद इस क्षेत्र में नस्लीय हिंसा का एक दौर शुरू हुआ जो सोवियत संघ के विघटन के साथ ही अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच व्यापक युद्ध में बदल गया.
इसके बाद 1993 तक आर्मीनिया ने नोगोर्नो-काराबाख समेत अज़रबैजान के बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया.
साल 1994 में रूस की मध्यस्थता के बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हुआ. युद्ध ख़त्म होने के बाद भी नागोर्नो-काराबाख अज़रबैजान का ही हिस्सा बना रहा.
इसके बाद से यहां नस्लीय आर्मीनियाई लोगों वाले अलगाववादी, स्वघोषित गणराज्य का शासन है जिसे आर्मीनियाई सरकार का समर्थन हासिल है.
साल 2020 में फिर छिड़ी जंग
इसके बाद साल 2020 में आर्मीनिया और अज़रबैजान में एक बार फिर जंग छिड़ी. लेकिन इस बार अज़रबैजान को तुर्की का समर्थन हासिल था.
इस जंग में अज़रबैजान ने नागोर्नो-काराबाख के ज़्यादातर हिस्से पर वापस क़ब्ज़ा हासिल कर लिया. रूस की मध्यस्थता के बाद आर्मीनिया ने इस क्षेत्र से अपनी सैन्य टुकड़ियों को वापस बुला लिया.
रूस ने संघर्ष विराम की शर्तों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए लगभग दो हज़ार शांति सैनिकों को भी इस क्षेत्र में भेजा.
इस संघर्ष में भी 6600 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. दोनों देशों के नेता इस विवाद को सुलझाने के लिए कई मुलाक़ातें कर चुके हैं, लेकिन अब तक समस्या का हल नहीं निकल पाया है.
एक बार फिर संघर्ष क्यों शुरू हुआ?
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच पिछले कुछ दिनों से एक नया संघर्ष शुरू हुआ है जिसके व्यापक युद्ध में बदलने की आशंकाएं जताई जा रही हैं.
आर्मीनिया का दावा है कि ये संघर्ष अज़रबैजान ने शुरू किया है क्योंकि वह नागोर्नो-काराबाख के मुद्दे पर बातचीत नहीं करना चाहता.
वहीं, अज़रबैजान का कहना है कि पहला हमला आर्मीनिया की ओर से किया गया है.
अज़रबैजान ने आर्मीनिया पर सीमा पर ख़ुफिया गतिविधियों को अंजाम देने और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है.
क्यों परेशान है दुनिया भर के देश?
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध होने की आशंकाओं से दुनिया के बड़े देश और संगठन चिंतित हैं क्योंकि इस क्षेत्र में पहले ही यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी है और आर्मीनिया-अज़रबैजान के बीच जंग रूस और तुर्की जैसी ताक़तों को भी अपनी चपेट में ले सकता है.
इस मामले में रूस ने कहा है कि उसने दोनों मुल्कों के बीच संघर्ष विराम कराया था, लेकिन इसके बाद भी वहां से छिटपुट संघर्ष की ख़बरें आती रही हैं.
वहीं, तुर्की ने अज़रबैजान का समर्थन करते हुए आर्मीनिया से कहा है कि वह भड़काने वाली गतिविधियां बंद करे.
इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता फ़्रांस के पास है और उसने इस मामले पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा है.
इसके साथ ही यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल ने कहा है कि वह इस संघर्ष को आगे भड़कने से रोकने के लिए आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान और अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव के संपर्क में हैं.
इस मामले में यूरोपीय देश चाहते हैं कि अज़रबैजान में शांति कायम रहे क्योंकि वे हर साल यहां से 8 अरब क्यूबिक मीटर गैस ख़रीदते हैं.
रूसी गैस की कमी से जूझते यूरोप ने अज़रबैजान के साथ 2023 में 12 अरब क्यूबिक मीटर गैस और 2027 तक 20 अरब क्यूबिक मीटर गैस ख़रीदने का क़रार किया है.
हालांकि, ये इस बात पर निर्भर करता है कि विदेशी कंपनियां अज़रबैजान में निवेश करके इतनी ज़्यादा गैस के निर्यात के लिए ज़रूरी ढांचा खड़ा करें.
अज़रबैजानी सेवा के संपादक कोनुल खालिलोवा का विश्लेषण
अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलियेव और आर्मीनियाई प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान की अगस्त महीने में ही मुलाक़ात हुई थी. इस दौरान दोनों ने पहली बार हाथ मिलाया और लोग शांति समझौते को बेहद सकारात्मकता से देख रहे थे. दोनों नेता इस समझौते पर काम करने के लिए राज़ी हुए थे.
किसी ने भी इतनी जल्दी इस स्तर के संघर्ष की कल्पना नहीं की थी.
आर्मीनिया कहता है कि अज़रबैजान ने उसके दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र पर हमला किया है. अज़रबैजान इस दावे का खंडन करता है और कहता है कि सैन्य अभियान आर्मीनिया की ओर से किए गए बड़े धमाकों के जवाब में चलाया गया है.
दोनों मुल्कों के बीच ज़्यादातर संघर्ष नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर हुआ है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान का हिस्सा माना जाता है. लेकिन इस हफ़्ते जो संघर्ष छिड़ा है वो काराबाख से 200 किलोमीटर दूर है.
आर्मीनिया का ये हिस्सा रणनीतिक दृष्टि से काफ़ी अहम है क्योंकि यह अज़रबैजान को उसके बाहरी क्षेत्र नखिचेवन से अलग करता है. नखिचेवन तुर्की की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है.
अज़रबैजान आर्मीनियाई क्षेत्र से होता हुआ नाखिचेवन और आख़िरकार तुर्की तक पहुंचाने वाला गलियारा खोलना चाहता है. आर्मीनिया के पीएम पाशिन्यान इसे ख़ारिज कर चुके हैं.
यहां ये बात ध्यान रखने वाली है कि आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच सीमा को लेकर आपसी सहमति नहीं बनी है क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद ही दोनों मुल्कों में जंग शुरू हो गई थी.
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