NATIONAL NEWS

केंद्र ने केजरीवाल के साथ फिर खेल कर दिया:दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग वाले बिल में बदलाव, नए नियम समझिए

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

केंद्र ने केजरीवाल के साथ फिर खेल कर दिया:दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग वाले बिल में बदलाव, नए नियम समझिए

11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था। साथ ही कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे, लेकिन एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस फैसले को बदल दिया और ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार राज्यपाल को दे दिया।

इस अध्यादेश को 6 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना जरूरी है, इसलिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने आज लोकसभा में गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2023 (GNCT) को पेश किया है। हालांकि इस बिल की तुलना 19 मई के अध्यादेश से करें तो केंद्र सरकार ने इसमें कई अहम बदलाव किए हैं।

जानेंगे केंद्र सरकार ने दिल्ली सर्विस ऑर्डिनेंस बिल में क्या बदलाव किए, क्या इससे दिल्ली सरकार की भी ताकत बढ़ेगी? क्या ये बिल राज्यसभा में भी पास हो सकेगा?

दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश में मौजूद कई प्रावधानों को संसद में पेश होने वाले विधेयक से हटा दिया गया है।

दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश में मौजूद कई प्रावधानों को संसद में पेश होने वाले विधेयक से हटा दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 11 मई के फैसले को बेअसर करने के लिए केंद्र सरकार ने 19 मई को अध्यादेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान के जानकार विराग गुप्ता बताते हैं कि संसद में जो विधेयक पेश हुआ है और केंद्र सरकार जो अध्यादेश लाई थी उसमें चार बड़े फर्क हैं…

1. विधानसभा को कानून बनाने की अनुमति देने वाला सेक्शन 3A हटाया

सेक्शन- 3ए जो अध्यादेश का हिस्सा था, उसे विधेयक से हटा दिया गया है। अध्यादेश के सेक्शन-3-ए में कहा गया था कि किसी भी अदालत के किसी भी फैसले, आदेश या डिक्री में कुछ भी शामिल होने के बावजूद विधानसभा को सूची-2 की प्रविष्टि 41 में शामिल किसी भी मामले को छोड़कर आर्टिकल 239 के अनुसार कानून बनाने की शक्ति होगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पब्लिक ऑर्डर, जमीन और पुलिस के अलावा अन्य विषयों पर दिल्ली सरकार को अधिकार हैं।

नए कानूनी बदलाव से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सीधी अवहेलना नहीं हो इसलिए बिल में सेक्शन-3ए को हटाकर केन्द्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-239-एए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है। यह केंद्र सरकार को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी यानी NCCSA बनाने का अधिकार देता है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दिए गए बयान में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पैरा-164-सी का उल्लेख किया है। इसके अनुसार दिल्ली के बारे में लिस्ट-1 (केंद्र सूची) और लिस्ट-3 (समवर्ती सूची) के मामलों में केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है।

सरकार के अनुसार अनुच्छेद-239-एए के तहत लिस्ट-2 यानी राज्य सूची के मामलों में भी संसद कानून बना सकती है। इस बारे में गृह मंत्री ने संविधान के अनुच्छेद-249 के तहत दिए गए अधिकारों का भी उल्लेख किया जिसके अनुसार राष्ट्रहित में राज्य सूची में भी संसद कानून बना सकती है।

2. सालाना रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य नहीं

पिछले अध्यादेश के तहत NCCSA को संसद और दिल्ली विधानसभा में सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत करना जरूरी था। हालांकि विधेयक इस अनिवार्यता को हटा देता है, जिससे रिपोर्ट को संसद और दिल्ली विधानसभा के समक्ष रखे जाने की जरूरत ही नहीं रहेगी।

3. केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की जरूरत नहीं

प्रस्तावित विधेयक में सेक्शन 45-डी दिल्ली में अलग-अलग अथॉरिटी, बोर्डों, आयोगों और वैधानिक निकायों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित है। प्रस्तावों या मामलों से संबंधित आदेशों / निर्देशों को केंद्र सरकार को भेजने की अनिवार्यता वाले प्रावधान को हटा दिया गया है।

4. नियुक्तियां और तबादले NCCSA समिति करेगी

विधेयक में नए जोड़े गए प्रावधान के तहत अब NCCSA समिति की सिफारिशों के अनुसार दिल्ली सरकार के बोर्डों और आयोगों में नियुक्तियां और तबादले करेंगे। इस समिति में मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव सदस्य होंगे और उसकी अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे।

विधायी शक्ति का दुरुपयोग और संघवाद के खिलाफ

20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली अध्यादेश 2023 पर सवाल उठाते हुए कहा था कि यह केंद्र को राज्य की नौकरशाही पर नियंत्रित स्थापित करने का मौका देता है। संसद में विपक्षी दलों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रस्तावित कानून के माध्यम से बदलना गलत है। विपक्ष के अनुसार यह विधायिका की शक्ति के दुरुपयोग के साथ संघवाद के खिलाफ है।

क्या संसद के दोनों सदनों से पारित हो पाएगा ये बिल?
लोकसभा में बीजेपी और इसके गठबंधन दलों के पास बहुमत है। यहां आसानी से ये बिल पारित हो जाएगा, लेकिन राज्यसभा में इस अध्यादेश बिल को पारित करवाना थोड़ा मुश्किल होगा।

राज्यसभा में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों यानी NDA को मिला दें, फिर भी वो बहुमत से 9 सीट दूर रह जाते हैं। केजरीवाल ये संख्या पूरी नहीं होने देना चाहते। विपक्षी एकता के जरिए केजरीवाल राज्यसभा में इस अध्यादेश को हर हाल में रोकना चाहते हैं।

हालांकि बीजद के राज्यसभा सदस्य सस्मित पात्रा ने मंगलवार को कहा कि पार्टी दिल्ली सर्विसेज अध्यादेश की जगह लेने वाले विधेयक का राज्यसभा में समर्थन करेगी। साथ ही सरकार के खिलाफ विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव का विरोध भी करेगी। बीजद के पास 9 सांसद हैं। ऐसे में बीजेपी सरकार आसानी से दिल्ली से जुड़े विधेयक को राज्यसभा से भी पारित करा लेगी।

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ा पूरा विवाद जानते हैं…
खींचतान की शुरुआत होती है मई 2015 से। जब केंद्र सरकार ने एक नोटिस जारी करके कहा कि अधिकारी अब मुख्यमंत्री नहीं, एलजी को रिपोर्ट करेंगे। दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग का भी अधिकार नहीं होगा।

मामला हाईकोर्ट पहुंचा। वहां फैसला लेफ्टिनेंट गवर्नर के पक्ष में आया। केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।

कई फेज की सुनवाई के बाद 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया। कोर्ट ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया। साथ ही कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे।

केंद्र ने 19 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर अध्यादेश जारी किया था। अध्यादेश में उसने सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को मिला था।

केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल को दे दिए थे। दिल्ली सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। इस पर CJI चंद्रचूड़ ने 17 जुलाई को कहा कि हम यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेजना चाहते हैं। फिर संविधान पीठ तय करेगी कि क्या केंद्र इस तरह संशोधन कर सकता है या नहीं?

दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र की ओर से लाया गया अध्यादेश असंवैधानिक है। दिल्ली सरकार ने अध्यादेश को रद्द करने और उस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए कहा था कि संविधान का आर्टिकल 246(4) संसद को भारत के किसी भी हिस्से के लिए और किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है जो किसी राज्य में शामिल नहीं है।

चूंकि किसी अध्यादेश को 6 महीने में संसद के पटल पर रखना होता है। केंद्र सरकार ने इसी वजह से दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश को अब संसद में पेश किया है।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!