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क्या कोटा में मगरमच्छ रंग बदल रहे, सफेद नजर आए?:चंद्रलोई नदी में 4 मौत के बाद पोस्टमार्टम करने गई टीम भी चौंकी, एक्सपर्ट ने बताई हकीकत

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क्या कोटा में मगरमच्छ रंग बदल रहे, सफेद नजर आए?:चंद्रलोई नदी में 4 मौत के बाद पोस्टमार्टम करने गई टीम भी चौंकी, एक्सपर्ट ने बताई हकीकत

कोटा

क्या कोटा में मगरमच्छ रंग बदल रहे हैं? उनकी त्वचा सफेद पड़ रही है? बीते सप्ताह चंद्रसेल मठ के पास चंद्रलोई नदी में हुई 4 मगरमच्छों की मौत के बाद यह सवाल चर्चा में बना हुआ है। दरअसल, मगरमच्छों की मौत के बाद पोस्टमार्टम के लिए गई टीम ने पाया था कि मगरमच्छों की त्वचा सफेद हो गई थी। क्या यह किसी रंग के कारण है या कोई और वजह?

पड़ताल के लिए टीम ने एक्सपर्ट की मदद ली। वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी कोटा के जूलॉजी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर संदीप हुडा और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट आदिल सेफ के साथ चंद्रलोई नदी पहुंचे। दोनों एक्सपर्ट ने मौके पर जाकर जांच की और अपना पक्ष रखा।

एक्सपर्ट्स के साथ टीम कोटा शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर चंद्रेसल मठ के पास पहुंची। यहां से चंद्रलोई नदी गुजर रही है, जो आगे मानस गांव होते हुए चंबल नदी में मिलती है। चंद्रलोई नदी पर एक पुलिया बनी है। जिस पर लोगों की आवाजाही रहती है।

हमें नदी किनारे अलग-अलग झुंड में कई मगरमच्छ धूप सेंकते नजर आए। झुंड में कुछ मगरमच्छ की त्वचा (चमड़ी का ऊपरी हिस्सा) का रंग दूर से देखने पर सफेद नजर आ रहा था। एक बारगी सफेद मगरमच्छ देखना एक्सपर्ट के लिए भी चौंकाने वाला था। पुलिया के नीचे से आ रहे पानी में सफेद रंग के झाग दिखे। इससे यह और भी भ्रमित करने वाली बात थी कि क्या ये झाग मगरमच्छ की त्वचा पर जमा हुआ है या असल में मगरमच्छ की त्वचा का रंग बदला है।

नदी में नजर आए सफेद झाग प्रो.संदीप हुडा ने बताया- नदियों के आस-पास कई इंडस्ट्रीज हैं, जिनका वेस्ट बहते हुए नालों में जाता है। नालों से ये अपशिष्ट पानी से बहता हुआ नदी में मिल जाता है। वेस्ट के हानिकारक केमिकल का मगरमच्छ के स्वास्थ्य पर असर डालने की संभावना है लेकिन उसकी त्वचा का रंग बदल जाएगा, ऐसा होना मुमकिन नहीं है।

प्रो. हुडा ने बताया- इंडस्ट्रियल वेस्ट की वजह से ही नदी (चंद्रलोई) के पानी में झाग बन रहे हैं। वहां खड़े होकर बदबू को महसूस किया जा सकता है। इससे साफ जाहिर था कि इस पानी में केमिकल वेस्ट आ रहा है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मगरमच्छ की स्किन का रंग ही बदल जाए। एक्सपर्ट के मुताबिक सफेद रंग के मगरमच्छ होने का दावा झूठा है।

तो फिर हकीकत क्या है?

इस सवाल के जवाब में प्रो.संदीप हुडा बताते हैं- जिस वातावरण में हम रहते हैं, वहां की आबो हवा का हमारे स्वास्थ्य पर असर पड़ता ही है। पानी में केमिकल है तो हमारे इंटर्नल ऑर्गन प्रभावित होंगे। जो भोजन ले रहे हैं, उसमें अगर कण आएगा तो वह हमारे ब्लड में जाएगा। लेकिन मगरमच्छ बहुत टफ जीव है, उस पर सामान्यतया ऐसा कोई इफेक्ट नहीं होता।

केमिकल वेस्ट से बने झाग की मगरमच्छ की ऊपरी सतह पर परत बनने की संभावना जरूर है। जिससे धूप में उसके सफेद होने का भ्रम पैदा होता है। मगरमच्छ की ऊपरी त्वचा बहुत टफ होती है। उसके पिगमेंटेशन में किसी दूसरे रंग का असर आता भी है तो वो टेंपररी होता है, जो दिखता भी है। अगर मगरमच्छ वापस फ्रेश वाटर में जाएगा तो उसकी त्वचा पर यह इफेक्ट खत्म हो जाएगा।

वेटनरी डॉ. अखिलेश पांडे ने बताया- लगातार प्रदूषित पानी से हमारी त्वचा के रंग पर भी इफेक्ट पड़ता है। बाल उड़ने लग जाते हैं। बहुत ज्यादा प्रदूषित पानी है तो जीव जंतु पर भी असर होगा। हालांकि ये अध्ययन का विषय है। प्रारंभिक रूप से मगरमच्छ की त्वचा के रंग में बदलाव का कारण प्रदूषित जल ही है। रायपुरा में डीसीएम नाले से प्रदूषित पानी व फैक्ट्री से आने वाले वेस्ट से प्रभाव होना कारण हो सकता है।

आलनिया से चंद्रेसल तक हैं सबसे ज्यादा मगरमच्छ वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट आदिल सेफ ने बताया- आलनिया से चंद्रेसल तक नदी के बीच में कई जगहों से केमिकल वेस्ट गिरता है। सबसे ज्यादा मगरमच्छ भी इसी इलाके में नदी-नालों में दिखाई देते हैं। केमिकल के पानी में रहने और उस पानी के सूखने के बाद मगरमच्छ की स्किन पर थोड़ी परत जम जाती है। उस कारण मगरमच्छ का रंग धूप में सफेद दिखाई देता है।

इसको इस तरह समझें कि होली में गुलाल और कलर के इस्तेमाल से इंसान का रंग बदल जाता है। वैसे ही केमिकल के पानी में रहने से थोड़े समय के लिए मगरमच्छ पर जमी परत की वजह से उसका रंग सफेद दिखाई देता है। जैसे ही ये मगरमच्छ यहां से माइग्रेट होकर साफ पानी में जाएंगे। वैसे ही केमिकल का असर कम हो जाएगा।

50 लाख सालों से कोई परिवर्तन नहीं आया एक्सपर्ट्स का कहना है कि मगरमच्छ डायनासोर के जमाने का जीव है। इनमें 50 लाख सालों से कोई परिवर्तन नहीं आया। डायनासोर 2 हजार 770 लाख साल पहले थे। जब से अब तक मगरमच्छ खुद को मेंटेन रखे हुए हैं। ये काफी टफ जीव होता है। जो नदी को छोड़कर नहीं जाता। ये इंसानों के साथ रह रहा है। इनका शिकार करना अवैध है।

सर्दी में धूप के कारण आते हैं बाहर मगरमच्छ एक ऐसा प्राणी है जिसका खून ठंडा होता है। मौसम में बदलाव के साथ उसके ब्लड का तापमान भी कम हो जाता है। उसकी सारी एक्टिविटी होल्ड हो जाती है, इसलिए सर्दी के दिनों में मगरमच्छ शरीर का तापमान मेंटेन करने के लिए नदी से बाहर निकलकर धूप में बैठ जाता है।

धूप में रहने से उसका तापमान एक समान रहेगा। कई बार ऐसे प्राणी शीत निद्रा भी करते हैं। जैसे हमें सर्दियों में छिपकलियां और मेंढक नहीं दिखते, क्योंकि वो शुष्क अवस्था में चले जाते हैं। जहां वो फेट बॉडी का सेवन करते हैं।

क्या तनाव की वजह से मर रहे मगरमच्छ? प्रो. संदीप हुडा ने बताया- कई सारी चीजें हैं जिससे मगरमच्छ के तनाव में होने का पता लगाया जा सकता है, उनमें एक है उनका मल, जिसे स्केट कहते हैं। मल की जांच से भी मगरमच्छ के तनाव में होने का पता लगता जा सकता है। तनाव किसी भी कारण से हो सकता है। हो सकता है उसने ऐसा भोजन लिया जो जिससे कई सारे हार्मोंस रिलीज होते हैं, जिन्हें स्ट्रेस हार्मोन कहते हैं। उनकी मात्रा ब्लड में बढ़ जाती है। ब्लड में जाने के बाद वो मल में प्रदर्शित होगा। इस पर रिसर्च भी हुआ है।

जहां पर भी ह्यूमन मगर कनफ्लिक्ट (मगर मच्छ और इंसान में संघर्ष, जिसको H M C कहते हैं) होता है या बहुत ही ज्यादा प्रदूषित नदियां हैं। वहां इनके मल की जांच की जाए तो निश्चित रूप से तनाव का पता लगाया जा सकता है। स्ट्रेस किसी भी जीव के लिए सही नहीं है। ये उनकी उम्र को भी कम करता है और मृत्यु का भी एक कारण माना जाता है। लेकिन इस पर शोध की जरूरत है।

वेटनरी डॉ. अखिलेश पांडे का भी कहना है कि हर जीव तनाव की तरह मगरमच्छ भी तनाव की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इनके प्राकृतिक रहवास क्षेत्र में बहुत जगह अतिक्रमण कर लिए गए हैं। उनके रहने खाने-पीने की चीजों पर अतिक्रमण हुआ है। इनके रहने का जल प्रदूषित हो चुका है। निश्चित ही ये जीव तनाव में हैं। लेकिन कोटा में जिन 4 मगरमच्छों की मौत हुई है, उनके मल, ब्लड व स्किन के सेंपल की लैब में जांच के बाद ही मौत के सही कारणों का पता लगाया जा सकता है। करवाई जा सकती है। मगरमच्छ के तनाव का पता लगाया जा सकता है।

नदी से लिए गए कुछ फोटो-

मौसम में बदलाव के साथ मगरमच्छ के ब्लड का तापमान कम हो जाता है। इस कारण ये नदी किनारे अलग-अलग झुंड में धूप सेंकने नदी से बाहर आते हैं।

मौसम में बदलाव के साथ मगरमच्छ के ब्लड का तापमान कम हो जाता है। इस कारण ये नदी किनारे अलग-अलग झुंड में धूप सेंकने नदी से बाहर आते हैं।

कैसे छिड़ी थी चर्चा? चंद्रेसल मठ के आसपास चंद्रलोई नदी के एनीकट में बीते कुछ दिनों में 4 मगरमच्छ मृत मिले थे। वेटरनरी डॉक्टर अखिलेश पांडे की टीम ने उन मगरमच्छों का पोस्टमार्टम किया था। उसी दौरान यह बात सामने आई थी कि ग्रैनिस ग्रे कलर वाले मगरमच्छ वाइटिस ग्रे में बदल चुके हैं। चूंकि टीम का कहना था कि नदी में कीटनाशक, थैलियां, गंदा पानी और इंडस्ट्रियल वेस्ट आ रहा है। हो सकता है उस केमिकल की वजह से रंग बदला हो।

मगरमच्छ के ऊपर के स्केल्स बहुत टफ होता है।

मगरमच्छ के ऊपर के स्केल्स बहुत टफ होता है।

इंडस्ट्रियल वेस्ट की वजह से नदी (चंद्रलोई) में बने सफेद झाग।

इंडस्ट्रियल वेस्ट की वजह से नदी (चंद्रलोई) में बने सफेद झाग

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