चित्तौड़गढ़ में स्ट्रॉबेरी उगाई, 60 लाख का टर्नओवर:ग्राफ्टेड विदेशी पौध तैयार करने में माहिर; 500 से ज्यादा किसानों को दी ट्रेनिंग
चित्तौड़गढ़
स्ट्रॉबेरी पहाड़ी क्षेत्रों की फसल मानी जाती है। हालांकि अब मैदानी क्षेत्रों में भी इसकी खेती शुरू हो गई है। चित्तौड़गढ़ में बड़े पैमाने पर किसान स्ट्रॉबेरी की खेती में दिलचस्पी लेने लगे हैं।
परंपरागत फसलों की खेती में किसान हर साल भारी नुकसान झेल रहे हैं। भारी नुकसान से बचने के लिए किसान नई फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं। स्ट्राबेरी की खेती शुरू कर चित्तौड़गढ़ के एक किसान ने अपनी तकदीर बदल दी है।
चित्तौड़गढ़ का MA पास किसान अब स्ट्राबेरी, थाई अमरूद, जापान के अमरूद, सीताफल, आम आंवला, अफीम, लहसुन की खेती कर रहा है। टर्नओवर भी 60 लाख रुपए तक पहुंच गया है। उनकी उपज की दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद तक डिमांड है।
म्हारे देस की खेती में इस बार बात चित्तौड़गढ़ के किसान नेमीचंद धाकड़ की…
चित्तौड़गढ़ मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर निंबाहेड़ा तहसील के कनेरा घाटा क्षेत्र में श्रीपुरा गांव है। यहां किसान नेमीचंद धाकड़ का शिव शक्ति नर्सरी व फार्म है। उनके परिवार में पिता नारायण धाकड़ और माता सीताबाई धाकड़ के अलावा दो भाइयों का परिवार खेती करता है।
नेमीचंद धाकड़ ने चित्तौड़गढ़ में सबसे पहले स्ट्राबेरी की खेती शुरू की।
कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में आने से बदला मन
नेमीचंद धाकड़ ने बताया- मेरे पास कुल 30 बीघा जमीन है। यहां मैं 3 से 4 बीघा जमीन पर स्ट्राबेरी की खेती करता हूं। छह बीघा जमीन पर थाईलैंड और जापान के अमरूद, दो बीघा जमीन पर हाइब्रिड आम, दो बीघा जमीन पर सीताफल, बाकी बची जमीन पर आंवला, लहसुन और अफीम की खेती कर रहा हूं। पिता नारायण धाकड़ शुरू से ही परंपरागत खेती करते आए हैं।
उन्होंने बताया चित्तौड़गढ़ से MA करने के दौरान कुछ कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क हुआ। वहां से लाइफ का टर्निंग पॉइंट शुरू हुआ। कृषि वैज्ञानिकों ने परंपरागत खेती छोड़कर नई खेती को अपनाने की सलाह दी। मैंने मन बनाया और सबसे पहले 2011 से स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू कर दी।
अमेरिका से मंगवाए जा रहे हैं रनर्स (जड़ें)
धाकड़ ने बताया- पहली बार मैंने स्ट्रॉबेरी की विंटर डाउन किस्म के पौधों को महाराष्ट्र से दो हजार पौधे एक बीघा जमीन के लिए मंगवाया। पहले ही साल एक बीघा में 1.5 लाख से दो लाख रुपए का खर्चा हुआ। लेकिन बदले में उन्हें ढाई से तीन लाख रुपए नेट प्रॉफिट हुआ। दूसरे साल 15 हजार पौधे मंगवाए। इसके बाद हर साल 70 से 80 हजार पौधे मंगवाने लगे। जब स्ट्रॉबेरी की खेती से अच्छा मुनाफा होने लगा तो पौधों की जगह अमेरिका से रनर मंगवाए। लगभग सात से आठ साल से मैं लगातार रनर्स ही मंगवा रहा हूं। इनसे खुद स्ट्रॉबेरी के पौधे रेडी करता हूं।
कुछ साल महाराष्ट्र से पौधे मंगवाने के बाद अब सात आठ सालों से अमेरिका से रनर (जड़) मंगवा कर खेती कर रहे हैं।
45 दिनों की होती है खेती
किसान ने बताया- स्ट्रॉबेरी ठंडे प्रदेशों का फल है, इसका बेस्ट सीजन 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच में होता है। 45 दिन में ही स्ट्रॉबेरी पूरी तरह से पक जाती है और इसकी हार्वेस्टिंग शुरू हो जाती है। फूल लगने के सिर्फ 12 से 15 दिनों में ही फल पूरी तरह पक जाते हैं। यह खेती लगभग मार्च से अप्रैल महीने तक आराम से की जाती है। इनके लिए सबसे बेस्ट टेम्परेचर 15 से 25 डिग्री सेल्सियस का होता है। तापमान बढ़ने पर स्ट्रॉबेरी पौधों में नुकसान होता है और उत्पादन में गिरावट आती है।
प्लांटेशन के 45 दिनों बाद स्ट्रॉबेरी पक जाती है। इतना ही नहीं, इसमें फ्लावर्स आने के सिर्फ 12 से 15 दिनों में फल पूरी तरह से रेडी हो जाते हैं।
50 से 60 लाख रुपए का सालाना टर्न ओवर
स्ट्रॉबेरी का 1 साल में एक बीघे में लगभग 50 क्विंटल उत्पादन हो जाता है। यानी 4 बीघा जमीन की बात करें तो 200 क्विंटल स्ट्रॉबेरी का उत्पादन होता है। सिर्फ स्ट्रॉबेरी की खेती से नेमीचंद धाकड़ को लगभग 1 साल में 10 से 12 लाख रुपए का शुद्ध लाभ होता है। आम और सीताफल की खेती को छोड़कर धाकड़ का कुल टर्नओवर 50 से 60 लाख रुपए का है। उसमें 18 से 20 लाख रुपए का नेट प्रॉफिट होता है। आम और सीताफल के पेड़ों पर इस बार पहली बार फल लगे हैं।
हार्वेस्टिंग के बाद ध्यान पूर्वक इनकी पैकिंग की जाती है। स्ट्रॉबेरी एक सेंसिटिव फ्रूट कैटेगरी में माना जाता है।
क्यारियां बनाकर 18-20 टन गोबर की खाद का इस्तेमाल
किसान ने बताया- खेत को तैयार करने का काम मई महीने से शुरू हो जाता है। अमेरिका से मई-जून महीने में रनर्स आ जाते हैं। फिर तीन से चार महीने रनर्स से पौधे रेडी किए जाते हैं। सितंबर महीने में सबसे पहले इसकी नर्सरी तैयार करनी पड़ती है। सितंबर से इसकी प्रकिया हम शुरू कर देते हैं। सितंबर के दूसरे सप्ताह से इसे हम खेतों में लगाना शुरू कर देते हैं। 45 दिनों में इसकी फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है, जिसके बाद इसकी तुड़ाई शुरू कर दी जाती है।
नेमीचंद ने कुछ जुगाड़ खुद किए हैं। जैसे कि पॉलीथिन कवर पर इस तरह पौध लगाने के लिए छेद करना।
सबसे पहले गहरी जुताई की जाती है। खेत में डेढ़ मीटर चौड़ी और 3 मीटर लंबी क्यारियां बना ली जाती है। एक बीघा जमीन में लगभग 18 से 20 टन गोबर की खाद डाली जाती है। फिर रोटा वेटर से जुताई की जाती है और एक क्यारी बनाई जाती है। उसके बाद क्यारी के ऊपर मिक्स खाद (DAP, MOP, SSP, माइक्रो न्यूट्रेन) डाली जाती है। खेत तैयार करने में 8 से 10 दिनों का समय लग जाता है। इसके बाद मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का यूज किया जाता है।
स्ट्रॉबेरी को काफी मुनाफा देने वाली खेती मानी जाती है। किसान की खेती अपना कर काफी लाभ कमा सकता है।
मल्चिंग होल 11 इंच की दूरी पर की जाती है। एक क्यारी में तीन लाइन बनाई जा सकती हैं। दो लाइन ड्रिप इरिगेशन के लिए होती हैं। तैयार क्यारी में 30-25 सेमी की दूरी पर एक समान और स्वस्थ रनर की रोपाई करते हैं। रोपाई के बाद स्प्रिंकलर के द्वारा पानी देते हैं। ड्रिप प्रणाली से किसान को नेट प्रॉफिट ज्यादा होता है। सामान्यत: अक्टूबर-नवम्बर में ड्रिप सिस्टम को प्रतिदिन 4 से 5 दिन में 10 से 15 मिनट सुबह पानी दिया जाता है।
क्या है मल्चिंग?
रोपाई के 50 दिन बाद फसल की मल्चिंग कर देते हैं। इस काम के लिए सस्ती कीमत वाली काली पॉलीथिन का प्रयोग करते हैं। क्यारी की लम्बाई और चौड़ाई के अनुसार पॉलीथिन की पट्टियां बना कर उसमें ब्लेड की सहायता से छेद बनाकर पौधों को छेद से ऊपर निकालते हुए अच्छी तरह बिछा देते हैं। काली पॉलीथिन के लगाने से खरपतवारों का नाश, पानी का संरक्षण और सर्दी में भूमि का तापवर्धन होता है। रोपाई से पहले रनर की जड़ों को वाबिस्टीन के 0.1 प्रतिशत घोल में 5-10 मिनट तक डुबो लेते हैं।
धाकड़ ने बताया- मल्चिंग में होल करने के लिए भी खुद ने जुगाड़ किया है। लोहे के एक पाइप में ताड़ी बनाकर उसमें लकड़ियां डाल कर आग लगाते हैं। गर्म होने पर उसे मल्चिंग पर लगाया जाता है। जिससे मलचिंग में गोल आकार के समान रूप से होल हो जाते हैं। इसके अलावा क्यारी मेकर भी बनाया है। मेरे पास 15 से 20 मजदूर हमेशा काम करते हैं।
किसान नेमीचंद क्यारियों की संभाल करते हुए।
पैकिंग और सप्लाई
बहुत नाजुक होने की वजह से स्ट्राबेरी के फलों को छोटे और पारदर्शी प्लास्टिक के डिब्बे पैक करते हैं। एक डिब्बे में 200 ग्राम फल भरा जाता है। इन भरे हुए डिब्बों को गत्ते के दो टुकड़ों के बीच रखकर टेप से चिपका देते हैं। इस प्रकार से पैक किए गए डिब्बों को सड़क और रेलमार्ग से दूर के जगहों तक पहुंचाया जाता है। इसके लिए AC गाड़ी का यूज करना चाहिए। धाकड़ बताते हैं कि उनके यहां से दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद भी सप्लाई किया जाता है। हार्वेस्टिंग के बाद जल्दी ही फलों को सप्लाई के लिए भेज दिया जाता है। अगर तुड़ाई के बाद फलों को AC रूम में नहीं रखा जाता है तो वे 2 दिन में ही खराब हो जाते हैं।
स्ट्रॉबेरी सिर्फ खाने में ही स्वादिष्ट नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उपयोगी है। साथ ही स्क्रीन के कई प्रोडक्ट में भी यूज किए जाते हैं।
कीट व बीमारी नियंत्रण
स्ट्रॉबेरी में रेड-कोर नाम की फंगस जनित बीमारी हो जाती है। प्रभावित पौधे छोटे आकार के रहते हैं और पत्तियों का रंग नीला-हरा शैवाल जैसा हो जाता है। इससे प्रोडक्शन कम होने लगता है। नियंत्रण के लिए 4 ग्राम रिडोमिल नामक दवा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
स्वास्थ्य के लिए स्ट्राबेरी का सेवन बहुत लाभकारी माना जाता है। यह फल विटामिन C और विटामिन A और K का काफी अच्छा स्रोत है। यह फल रूप निखारने और चेहरे में कील मुंहासे, आखों की रोशनी चमक के साथ दांतों की चमक बढ़ाने का काम आते हैं। इनके आलवा इसमें कैल्सियम, मैग्नीशियम, फोलिक एसिड, फास्फोरस पोटेशियम पाया जाता है। यह भी वजह है स्ट्राबेरी के फल बाजार में महंगी कीमतों पर बिकते हैं।
तस्वीर नेमीचंद के फार्म की है, जहां स्ट्रॉबेरी पककर तैयार है।
स्ट्रॉबेरी से बनते हैं कई तरह के प्रोडक्ट
स्ट्रॉबेरी का स्वाद थोड़ा खट्टा और मीठा होता है। बाजार में स्ट्रॉबेरी की डिमांड पूरे साल बनी रहती है, यही वजह है कि इसकी खेती करने वाले किसान हमेशा मुनाफे में रहते हैं। भारत में इस फल की खेती ज्यादातर रबी के सीजन में की जाती है क्योंकि यह फसल ठंडे मौसम में ही अच्छे से उपजती है। स्ट्राबेरी की खेती किसी भी तरह की मिट्टी पर किया जा सकता है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके ग्रोथ के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता है। स्ट्राबेरी की फसल से जैम, जूस, आइसक्रीम, मिल्क-शेक, टॉफियां बनाने के काम आती है। इसके अलावा कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट बनाने में भी इसके फलों का उपयोग किया जाता है।
किसान नेमीचंद के फार्म से स्ट्रॉबेरी देश के कई शहरों में सप्लाई हो रही है।
खुद की नर्सरी बनाई, 500 से ज्यादा किसान जुड़े
नेमीचंद धाकड़ ने बताया- खेती सफल होने लगी तो खुद की नर्सरी तैयार की। इसमें अलग-अलग किस्म के पौधे तैयार करने लगे। हाइब्रिड और ग्राफ्टेड पौधे रेडी कर किसानों को देने लगे। स्ट्रॉबेरी की खेती की बात सुनकर आसपास के अन्य किसान भी आए। उन्हें तरीका बताया, अन्य किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी।
नेमीचंद धाकड़ ने कहा- मैं जितने भी किसानों को जागरूक करूंगा, उनके साथ-साथ गांव की भी तरक्की होगी। यही सोच कर मैंने किसानों को जोड़ना शुरू किया। अब धीरे-धीरे जिले के 500 से ज्यादा किसान मुझसे जुड़ चुके हैं। वे यहां आकर ग्राफ्टेड और हाइब्रिड पौधों से खेती के बारे में जानकारी लेते हैं। समय-समय पर कई कृषि अधिकारी भी यहां आते हैं और किसानों की मदद के साथ-साथ मेरी भी मदद करते हैं।
अपनी नर्सरी में नेमीचंद खुद पौध तैयार करते हैं। इलाके के किसान उनसे पौध खरीदकर ले जाते हैं।
कई अवॉर्ड से हुए सम्मानित
नेमीचंद धाकड़ को नई तकनीक से अलग-अलग तरह की खेती करने का अनुभव हो चुका है। उन्हें जिला लेवल पर आत्मा पुरस्कार दिया गया। इसके तहत 25 हजार रुपए और सर्टिफिकेट दिया गया। इसके अलावा उन्हें उदयपुर में मेवाड़ रत्न अवार्ड दिया गया। इसमें 11 हजार रुपए और सर्टिफिकेट दिया गया। हाल ही में उन्हें दिल्ली में अपने फार्म पर एडवांस कृषि प्रणाली, नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर अलग-अलग फलदार पौधों के उन्नत किस्म को लगाने के लिए मिलियनर्स फार्मर्स आफ इंडिया अवॉर्ड मिला है।
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