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जयपुर सीरियल ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी:जिला कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा, हाईकोर्ट ने पलटा फैसला

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जयपुर सीरियल ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी:जिला कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सजा, हाईकोर्ट ने पलटा फैसला

हाईकोर्ट ने जयपुर बम ब्लास्ट के चारों आरोपियों को बरी कर दिया। अब सवाल उठने लगा है कि आखिरकार गुनहगार है कौन?

जयपुर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट केस में बुधवार को हाईकोर्ट ने सभी चार आरोपियों को बरी कर दिया। जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी को कानून की जानकारी नहीं है। वहीं राज्य सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना को लेकर जनभावना जुड़ी है, लेकिन कोर्ट कानून और सबूतों के आधार पर फैसला देता है।

बता दें कि 13 मई 2008 को जयपुर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इसमें 71 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। 2019 में जिला कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

48 दिनों से चल रही सुनवाई पूरी होने पर आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है। इसी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया गया। वहीं, एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) राजेश महर्षि ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। इसकी तैयारी कर रहे हैं।

जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान चली गई थी। फाइल फोटो

जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान चली गई थी। फाइल फोटो

पहले जानिए क्या थी एटीएस की थ्योरी, जिसे जयपुर हाईकोर्ट ने गलत माना?

1. एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।

2. कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।

3. कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।

4. एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना खाया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?

5. एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए।
(बरी किए गए आरोपियों के वकील सैयद सदत अली के मुताबिक)

ब्लास्ट के बाद अफरा-तफरी मच गई थी। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे थे। फाइल फोटो।

ब्लास्ट के बाद अफरा-तफरी मच गई थी। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे थे। फाइल फोटो।

अब जानें- आरोपियों को बरी करने के मामले में उन सवालों के जवाब, जो आप जानना चाहते हैं?
– जिला कोर्ट ने आरोपियों को क्या सजा सुनाई थी?
सभी चार आरोपियों को जिला कोर्ट ने 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी। इसी के खिलाफ 4 आरोपी हाईकोर्ट गए थे। 4 आरोपी में से एक मोहम्मद सलमान घटना के दिन नाबालिग था, कोर्ट ने माना है कि वह 13 मई 2008 को 16 साल 10 महीने का था।

– आरोपियों ने हाईकोर्ट के सामने क्या अपील की थी?
आरोपियों ने कहा कि हम बेगुनाह हैं, हमें झूठा फंसाया गया है, हमारा इस केस से कोई संबंध नहीं है। इसके साथ 28 तरह की अपील हाईकोर्ट से की गई थी।

– चारों के अलावा कोई और भी आरोपी है?
इस केस में ये चार ही मुख्य आरोपी थे।

– कोर्ट ने क्या कहकर आरोपियों को बरी किया है?
आरोपियों के वकील के मुताबिक कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी प्रूफ नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी चीज को साबित नहीं कर पाए हैं। न वे उनकी दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं।

– कोर्ट ने किसकी गलती बताई है, इस मामले में आगे क्या जांच होगी?
अली के मुताबिक कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस केस के ऊपर निगाह रखे।

– हाईकोर्ट ने ये क्यों कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी जानकारी नहीं है?
अली के मुताबिक एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल शॉप कीपर्स को बुलाकर इन्वेस्टिगेशन कर लेते हैं। उन्हें बम धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की इन्फॉर्मेशन मिली थी तो तीन दिन बाद उन्हें किसने बता दिया था कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी।

– इस केस में कितने जांच अधिकारी थे?
एटीएस के तीन से चार अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी।

अब जानिए- क्या हुआ था 13 मई 2008 को

पुलिस ने 13 लोगों को बनाया था आरोपी
इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 3 आरोपी अब तक फरार है, जबकि 3 हैदराबाद और दिल्ली की जेल में बंद है। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।

सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता

निचली अदालत में सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।

नौवां बम डिफ्यूज किया था, जो सबसे खतरनाक था
रात 8.10 बजे चांदपोल बाजार में हनुमान जी मंदिर के पास बीडीएस(बम डिस्पोजल स्कवॉड) को साइकिल पर स्कूल बैग में 8 किलो वजनी बम मिला था। बीडीएस के पास बम डिफ्यूज करने के लिए केवल पचास मिनट का समय था। टीम ने 8 बजकर 40 मिनट पर बम डिफ्यूज कर दिया था। बम में टाइमर और डेटोनेटर लगा हुआ मिला था। हैंडमेड बम में साइकिल के छर्रें, लोहे की छोटी प्लेटें, बारूद और अन्य विस्फोटक चीजें मिली थी। बीडीएस ने सबसे ज्यादा शक्तिशाली बम इसी को माना था। अगर यह फट जाता तो जयपुर का मंजर और भी भयानक हो सकता था।

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