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जान बचाने वाले खून से कैसे हुई सचिन की मौत?:7 दिन में चार बार चढ़ाया गलत ग्रुप का ब्लड; 10 दिन बाद हारा जिंदगी की जंग

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जान बचाने वाले खून से कैसे हुई सचिन की मौत?:7 दिन में चार बार चढ़ाया गलत ग्रुप का ब्लड; 10 दिन बाद हारा जिंदगी की जंग

प्रदेश के सबसे बड़े हॉस्पिटल सवाई मानसिंह (SMS) में डॉक्टर-नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही ने एक युवक की जान ले ली। एक्सीडेंट में घायल बांदीकुई (दौसा) निवासी सचिन को ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवाया गया था।

यहां उसे ‘ओ’ पॉजिटिव की जगह ‘एबी’ पॉजिटिव ब्लड और प्लाज्मा चढ़ा दिया गया। ऐसा एक नहीं चार बार हुआ। नतीजा ये हुआ कि 10 दिन तक ICU में जिंदगी की जंग लड़ते-लड़ते सचिन ने शुक्रवार की सुबह दम तोड़ दिया।

मौत से परिजन इस कदर टूट गए हैं कि अपना दर्द भी बयां नहीं कर पा रहे। इस मामले में चिकित्सा मंत्री ने एक डॉक्टर, दो रेजिडेंट को एपीओ और एक नर्सिंग स्टाफ को सस्पेंड किया है। जांच कमेटी ने रिपोर्ट में भी ये माना है कि सचिन का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ पॉजिटिव था।

कैसे भर्ती होने से लेकर सचिन की मौत तक कहां-कहां लापरवाही बरती गई…

यह सचिन शर्मा की एसएमएस अस्पताल पहुंचने से कुछ दिन पहले की तस्वीर है।

यह सचिन शर्मा की एसएमएस अस्पताल पहुंचने से कुछ दिन पहले की तस्वीर है।

क्या हुआ था हादसे वाले दिन?

दौसा के रायपुरिया का बास का रहने वाला सचिन कोटपूतली में एचपीसीएल के पेट्रोल पंप पर अपने पिता की जगह अनुकंपा पर नौकरी कर रहा था। पिता की किडनी खराब होने की वजह से उनकी जगह सचिन को काम पर रखा गया था।

12 फरवरी की शाम ड्यूटी के बाद पैदल लौटते समय अज्ञात बाइक की टक्कर से सचिन का पैर बुरी तरह जख्मी हो गया। साथी उसे कोटपूतली के एक निजी अस्पताल लेकर गए जहां से 13 फरवरी की सुबह 4 बजे के करीब उसे जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में रेफर कर दिया गया।

उस वक्त सचिन के साथ आए प्रेम नाम के युवक ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में जख्मों की पट्टी करने के बाद सचिन को दूसरी मंजिल पर सर्जिकल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। करीब आधा घंटा मेडिकल स्टाफ का इंतजार करने के बाद उन्होंने खुद जाकर आगे के ट्रीटमेंट के लिए वहां मौजूद स्टाफ को कहा।

तब एक वार्ड बॉय ने ब्लड सैंपल थमाते हुए उसे जमा करवाने और ब्लड बैंक से ‘एबी’ पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड बैग लाने को कहा। वार्ड बॉय ने जो वॉइल पकड़ाई (ब्लड का सैंपल दिया) उस पर मरीज नाम, रजिस्ट्रेशन नंबर और ब्लड ग्रुप कौन सा है, जैसी डिटेल लिखी हुई थी।

इस दाैरान सचिन के बड़े भाई नटराज (चचेरे) भी वहां पहुंच गए। ट्रॉमा सेंटर का खुद का अलग से ब्लड बैंक है, उन्होंने वहीं से ब्लड सैंपल के आधार पर जारी हुआ प्लाज्मा और एबी पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड बैग लाकर स्टाफ को दे दिया।

आईसीयू में भर्ती होने के दौरान सचिन।

आईसीयू में भर्ती होने के दौरान सचिन।

सर्जिकल वॉर्ड में सचिन का ऑपरेशन हुआ। उसे प्लाज्मा और ब्लड चढ़ाने के एक दिन बाद जगह की कमी बताकर एसएमएस के जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। जहां 16 फरवरी से उसके पेट व कमर में दर्द शुरू हो गया। पीलिया की शिकायत के बाद उसकी तबीयत लगातार बिगड़ने लगी। इस दौरान तक सचिन को ‘एबी’ पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड 4 बार चढ़ाया जा चुका था।

सचिन के भाई सुनील शर्मा ने बताया कि जब 18 फरवरी की रात करीब डेढ़ बजे उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो उन्हाेंने रेजिडेंट डॉक्टर को कॉल किया। उस डॉक्टर ने यह कहकर फोन काट दिया कि यह कोई वक्त नहीं है फोन करने का, मैं फिलहाल नहीं आ सकता। डाॅक्टर खुद आने की बजाय नर्सिंग स्टाफ को भेजता रहा। इसके अगले दिन से सचिन की तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई।

सुनील ने बताया कि शुरुआती जांच में डाॅक्टर्स को गलत खून चढ़ाने के कारण किडनी डैमेज का अंदेशा हो गया था, लेकिन उन्होंने सीनियर डाॅक्टर्स और हमसे इस बात को छुपाए रखा। हमें यह समझ नहीं आ रहा था कि एक एक्सीडेंट से किडनी कैसे डैमेज हो सकती है।

पहली पर्ची एसएमएस अस्पताल के ब्लड बैंक से जारी ब्लड बैग की है, जहां सही ब्लड ग्रुप दिखाया गया है। दूसरी तस्वीर उस बैग की है जो ट्रॉमा के ब्लड बैंक से जारी हुआ था।

पहली पर्ची एसएमएस अस्पताल के ब्लड बैंक से जारी ब्लड बैग की है, जहां सही ब्लड ग्रुप दिखाया गया है। दूसरी तस्वीर उस बैग की है जो ट्रॉमा के ब्लड बैंक से जारी हुआ था।

5वीं यूनिट ब्लड चढ़ाने के दौरान हुआ खुलासा

सचिन को 4 यूनिट तक ‘एबी’ पॉजिटिव ब्लड (1 यूनिट पैक्ड रेड ब्लड सेल, 1 यूनिट फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा और दो यूनिट ब्लड) चढ़ चुका था। गलत ब्लड ग्रुप चढ़ाने का खुलासा तब हुआ जब घाव की दोबारा प्लास्टिक सर्जरी और हड्डी के ऑपरेशन के दौरान ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ी। एसएमएस अस्पताल के ब्लड बैंक में सचिन के सैंपल की क्रॉस मैचिंग हुई तो उसका ब्लड ग्रुप ‘ओ’ पॉजिटिव आया।

जब परिजनों ने कहा कि ट्रॉमा सेंटर पर तो सचिन को ‘एबी’ ग्रुप चढ़ाया गया था तो SMS के ब्लड बैंक के स्टाफ ने बताया कि सैंपल में यही मैच हुआ है। इसके बाद परिजनों ने हंगामा कर दिया। मामला बढ़ता देख सचिन को एमआईसीयू में वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया। तब से गुरुवार की शाम आठ बजे तक सचिन की किडनी का चार डायलिसिस हो चुकी थी और मेडिकल बोर्ड की निगरानी में उसका इलाज किया गया।

हालत बिगड़ने के बाद सचिन को एसएमएस अस्पताल के एमआईसीयू में शिफ्ट कर दिया था।

हालत बिगड़ने के बाद सचिन को एसएमएस अस्पताल के एमआईसीयू में शिफ्ट कर दिया था।

हर कदम पर हुई नियमों की अनदेखी

सचिन के मामले में एसएमएस मेडिकल स्टाफ ने हर स्तर पर लापरवाही बरती। यह सिलसिला सचिन के 13 फरवरी को ट्रॉमा सेंटर में आते ही शुरू हो गया था।

  • ब्लड सैंपल लेने का अधिकार सिर्फ मेडिकल स्टाफ और नर्सिंग स्टाफ को है। लेकिन सचिन का ब्लड सैंपल वॉर्ड बॉय ने लिया।
  • ट्रॉमा सेंटर में सचिन के ब्लड ग्रुप की ठीक से मैचिंग नहीं की गई। अगर ब्लड सैंपल की क्रॉस मैचिंग सही से की जाती तो यह नौबत ही नहीं आती।
  • गलती होने के बाद भी स्टाफ लीपापोती में लगा रहा। समय रहते उसे सुधारा नहीं गया। न ही सीनियर डॉक्टर से कंसल्ट किया गया।

क्या है ब्लड बैंक से ब्लड जारी करने की प्रक्रिया, जिसे फॉलो नहीं किया गया

  • सबसे पहले मरीज जिस वार्ड में भर्ती है वहां से ब्लड का सैंपल, रजिस्ट्रेशन नंबर, नाम और रेफर करने वाले डॉक्टर का नाम जैसी सभी जरूरी बातें लिखकर पर्चा आता है।
  • भले ही सैंपल या पर्चे पर ब्लड ग्रुप कोई भी लिखा हो ब्लड बैंक ग्रुप की जांच खुद करके क्रॉस चेक करता है।
  • फिर जो ब्लड के बदले जो यूनिट सौंपी जाती है, उसका भी ब्लड ग्रुप से एक बार फिर से मिलान करते हैं, ताकि पता किया जा सके कि यह मरीज के लिए सूटेबल है।
  • ब्लड ग्रुप के क्रॉस मैच को कुम्स टेस्ट कहा जाता है। अगर डायरेक्ट कुम्स टेस्ट और इनडायरेक्ट कुम्स टेस्ट पॉजिटिव आता है तो ब्लड इश्यू नहीं किया जाता। क्योंकि इसका मतलब है कि कोई न कोई गड़बड़ है।
ट्रॉमा सेंटर में मौजूद ब्लड बैंक की ओर से जारी ब्लड बैग जिस पर जिम्मेदार अधिकारी के सिग्नेचर तक नहीं हैं।

ट्रॉमा सेंटर में मौजूद ब्लड बैंक की ओर से जारी ब्लड बैग जिस पर जिम्मेदार अधिकारी के सिग्नेचर तक नहीं हैं।

इन लापरवाहियों के चलते जान बचाने वाले खून ने ली सचिन की जान

एक्सीडेंट केस में आमतौर पर मैनुअली ब्लड ग्रुप मैचिंग की जाती है, जिसका रिजल्ट आने में 3 से 5 मिनट लग जाते हैं। लेकिन नर्सिंग स्टाफ ब्लड ग्रुप जांचते समय अक्सर सैंपल का शुरुआती रिजल्ट देखकर ही लिखकर देते हैं।

ट्रॉमा सेंटर में सचिन के ब्लड की मैनुअली क्रॉस मैचिंग में ग्रुप क्लियर ही नहीं हुआ था। इस बात का खुलासा इससे होता है कि जब ऑटोमेशन से ब्लड की क्रॉस मैचिंग करवाई गई तो सही ब्लड ग्रुप ‘ओ’ पॉजिटिव होने का पता चला।

ब्लड बैंक से जारी होने वाले हर ब्लड बैग की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी वहां के मेडिकल ऑफिसर की होती है। सैंपल पर उनके साइन भी होते हैं। लेकिन सचिन के मामले में ऐसा नहीं हुआ। जारी किए गए ब्लड बैग पर किसी भी डॉक्टर के साइन नहीं थे।

  • ब्लड बैंक प्रभारी की यह ड्यूटी है कि वह अगले दिन रजिस्टर में दर्ज हर बैग की जानकारी की बारीकी से जांच करें, सचिन के केस में यह भी नहीं हुआ। वर्ना पहले दिन ही चूक सामने आ सकती थी।
  • नियमानुसार नर्सिंग स्टाफ या वॉर्ड बॉय ही ब्लड बैंक से जारी ब्लड बैग जांचकर लाने के लिए अधिकृत है। लेकिन सचिन के मामले में उसके भाई नटराज को बैग लाने के लिए भेजा गया।

ये हैं जिम्मेदार अधिकारी, जिन्होंने बरती कोताही

जिम्मेदार नंबर-1 : मेडिकल सुपरिटेंडेंट अचल शर्मा

जिम्मेदारी क्या? : पूरे एसएमएस अस्पताल समेत, ब्लड बैंक और ट्रॉमा सेंटर में हो रही अनियमितताओं की मॉनिटरिंग कर व्यवस्था में सुधार लाना। सुपरिटेंडेंट होने के नाते प्रथम दृष्टया ऐसे गंभीर मामलों की जानकारी उन्हीं के पास आती है। अनियमितताओं के मामले भी आए दिन सामने आते रहते हैं।

कोताही क्या रही : गलत ब्लड ट्रांसफ्यूजन की घटना का शुरू के पांच दिनों तक कोई जानकारी ही नहीं, भास्कर में खबर प्रकाशित होने के बाद मालूम चला। कार्रवाई के नाम पर जांच कमेटी गठित कर इतिश्री कर ली। अब तक अपराधी ही तय नहीं कर सकी है, जबकि युवक सचिन की इस लापरवाही के चलते मौत हो चुकी है।

यह बोले : एसएमएस अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा ने बताया की सात जनों की जिस कमेटी के फैसले के बाद चार मेडिकल स्टाफ को सस्पेंड और एपीओ किया गया है वो हाई लेवल की एसएमएस मेडिकल कॉलेज की कमेटी का निर्णय था, जिसने अपना निर्णय सील बंद लिफाफे में एसीएस मैडम को दिया है। उस लिफाफे में क्या कहा गया है यह मुझे भी नहीं पता।

जिम्मेदार नंबर- 2: ट्रॉमा सेंटर नोडल ऑफिसर अनुराग धाकड़

जिम्मेदारी क्या? : ट्रॉमा में आने वाले मल्टी फ्रैक्चर और गंभीर चोट के रोगियों की गहन देखभाल के लिए स्टाफ को प्रतिबद्ध करना और व्यवस्था को सुचारू बनाना।

कोताही क्या रही : पॉलीट्रॉमा वार्ड में सचिन के नाम की वायल बदल कैसे गई, अगर नहीं बदली तो माैत हो जाए, ऐसी क्या चूक हुई? इसकी जानकारी नहीं दे पा रहे। सचिन के परिजनों का आरोप है कि ब्लड सैंपल वार्ड बॉय ने लिया और ब्लड बैग लाने के लिए अटेंडेंट को भेजा ये दोनों ही बातें नियम विरुद्ध है, ऐसे में मेडिकल स्टाफ को अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए पाबंद नहीं कर सके। अनुराग धाकड़ का कहना है कि ब्लड सैंपल मेडिकल स्टाफ ने लिया था।

यह बोले : ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर अनुराग धाकड़ ने बताया कि सचिन को जो ब्लड चढ़ाया गया था उस पर सचिन का ही स्टीकर था और वही ब्लड सचिन को चढ़ाया गया था। आमतौर पर अगर गलत ब्लड चढ़ जाए तो वह तुरंत रिएक्शन दिखाना शुरू कर देता है, जबकि सचिन के मामले में ऐसा देखने को नहीं मिला। बाकी की बातें कमेटी की जांच में साफ हो सकेंगी।

कमेटी में एडिशनल प्रिंसिपल, न्यूरोलॉजी के एडिशनल प्रिंसिपल, प्लास्टिक सर्जरी, ऑर्थोपेडिक्स के विभागाध्यक्ष और ऐसे ही दूसरे विभागों के विशेषज्ञ शामिल हैं। अभी हमारा उद्देश्य विशेष रूप से यह पता करना है कि सैंपलिंग का एरर क्या था और किन परिस्थितियों में हुआ।

चार पर लिया एक्शन, 3 एपीओ एक सस्पेंड

इस मामले का असली गुनहगार कौन है यह तो सामने नहीं आया है। लेकिन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने एसएमएस मेडिकल कॉलेज के अस्थि रोग स्पेशलिस्ट डॉ. एसके गोयल, दो सर्विस रेजिडेंट डॉक्टर दौलत राम व रिषभ चलाना को एपीओ कर दिया है। वहीं नर्सिंग ऑफिसर अशोक कुमार वर्मा को सस्पेंड कर दिया है।

शुक्रवार शाम को जारी हुए कार्रवाई के आदेश।

शुक्रवार शाम को जारी हुए कार्रवाई के आदेश।

कमेटी ने माना कौन है असली गुनहगार
जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सचिन शर्मा का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ पॉजिटिव था और उसे ‘एबी’ पॉजिटिव ग्रुप की 1 यूनिट पैक्ड रेड ब्लड सेल (पीआरबीसी) और 1 यूनिट फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा (एफएफपी) और दो यूनिट ब्लड की भी चढ़ाई गई थी। रिपोर्ट के अनुसार ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए सैंपल नर्सिंग ऑफिसर अशोक कुमार वर्मा ने लिया था। जबकि रेजिडेंट डॉ. रिषभ चलाना ने मरीज के ब्लड संबंधीजरूरी नोट्स भी बैग या पर्ची पर नहीं लिखे थे।

इसके अलावा ऑन कॉल सह आचार्य डॉ. एस.के. गोयल ने सर्जरी से पहले ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरूरी पैरामीटर्स पर ध्यान नहीं दिया था। डॉ. दौलतराम जो 15 फरवरी की रात को ट्रोमा ब्लड बैंक में ड्यूटी पर थे, उन्होंने गलत ब्लड ग्रुप के बारे में उच्च अधिकारियों को जानकारी भी नहीं दी। अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा शिक्षा) शुभ्रा सिंह के आदेश पर चारों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।

मौत के बाद हंगामा करते परिजन।

मौत के बाद हंगामा करते परिजन।

नौकरी लगी तो ढूंढने लगे थे रिश्ता

सचिन के बड़े भाई नटराज ने बताया कि सचिन को नौकरी करते ज्यदा समय नहीं हुआ था। उसके लिए शादी के रिश्ते भी देखे जा रहे थे। वह सरकारी नौकरी के लिए भी तैयारी कर रहा था।

परिवार में माता-पिता के अलावा एक छोटी बहन है। अब उसकी मौत से युवा आंखों के सपनों ने भी हमेशा के लिए आंखें मूंद ली हैं। सड़क हादसे में अत्यधिक खून बह जाने के कारण जान बचाने के लिए जो खून चढ़ाया गया, वही खून सचिन के लिए जहर बन जाएगा, किसी ने भी नहीं सोचा था।

सदमे में परिवार

मृतक सचिन के ताऊ के लड़के सुनील ने बताया कि सचिन की मौत की खबर से पूरा परिवार सदमे में हैं। सचिन के परिजनों ने मुआवजे के तौर पर एसएमएस प्रशासन से एक करोड़ रुपए, परिवार के एक सदस्य को अनुकंपा पर नौकरी और दोषियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें सख्त से सख्त से कार्रवाई करने की मांग की है।

शुक्रवार दोपहर तक परिजनों ने न तो शव लिया था न ही कोई कागजी कार्रवाई की थी। समाज के लोगों और संगठनों के समझाने पर भाइयों ने पोस्टमार्टम करवाना स्वीकार किया

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भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि ट्रॉमा सेंटर में परिजनों को ब्लड लाने के लिए जो सैंपल और पर्ची दी गई, वह किसी और मरीज की थी। जब परिजनों ने ट्रॉमा ब्लड बैंक में यह पर्ची दी तो स्टाफ ने वही ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव थमा दिया था, जबकि सचिन का ग्रुप ओ पॉजिटिव था।

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