भारतीय भाषाओं के बरोबर खड़ी है राजस्थानी की नई कविता : मंगत बादल
कलम री सोसणांई सूं बिखरग्यौ म्हारी भासा रौ रगत : अर्जुनदेव चारण
जोधपुर । साहित्य अकादेमी एवं रम्मत संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘ राजस्थानी री नुंवी कविता ‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में समापन समारोह में मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ. मंगत बादल ने कहा कि नई कविता लिखने वाले कवि को अपनी भाषा पर खास काम करना चाहिए । नये युग की भाषा मे बहुत बदलाव हुआ है, उसको समझकर ही कविता करनी चाहिए । डॉ. बादल ने कहा कि आज राजस्थानी की नई कविता भारतीय भाषाओं से पीछे नहीं है, क्योंकि इसके पास नई दृष्टि के साथ साथ एक समृद्ध परंपरा भी है।
रम्मत संस्थान के सचिव दीपक भटनागर ने बताया कि समापन समारोह में प्रतिष्ठित कवि-आलोचक मधु आचार्य ने बतौर अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि वर्तमान मनुष्य का बहुत जटिल हो गया तो भाषा, बिंब व कथ्य भी तो जटिल हुआ है। नई कविता में संवेदना की अभिव्यक्ति एक नई दीठ से होनी जरूरी है। कवि के पास संवेदना होती है, उससे भाव बनता है और कथ्य इस आधारभूमि पर सामने आता है। राजस्थानी की नई कविता अन्य क्षेत्रीय भाषाओं व हिंदी,अंग्रेजी से इस कारण पीछे नहीं है क्योंकि उसके पास लोक की एक अद्भुत सृजन शक्ति भी है। संचालन डाॅ इन्द्रदान चारण ने किया। सचिव दीपक भटनागर ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रथम सत्र : राजस्थानी भाषा में महिला लेखन विषयक प्रथम सत्र में डाॅ. मोनिका गौड़, डाॅ. धनंजया अमरावत, किरण राजपुरोहित ने अपना आलोचनात्मक पत्र-वाचन किया । सत्रा अध्यक्ष प्रतिष्ठित कवयित्री डाॅ.सुमन बिस्सा ने कहा कि वर्तमान राजस्थानी साहित्य में नारी लेखन बहुत हो रहा जिसे आलोचनात्मक दृष्टि से उजागर करने की दरकार है। संयोजन श्रीमती संतोष चौधरी ने किया।
द्वितीय सत्र : राजस्थानी की नई कविता 2001 से 2024 के अंतर्गत डाॅ. गौतम अरोड़ा, डाॅ.मदन गोपाल लढा एवं विनोद स्वामी ने अपना आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किया। सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ. ज्योतिपुंज ने मेवाड़ क्षेत्र की नई कविता पर विस्तार से प्रकाश डाला। सत्र संयोजन डाॅ. किरण बादल ने किया ।
राजस्थानी काव्य पाठ सत्र में ख्यातनाम कवि डाॅ.अर्जुनदेव चारण ने अपने ही में राजस्थानी भाषा के गौरव एवं संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने की पीड़ उजागर करते हुए कविता ‘ म्हैं अपराधी हूं ‘ में कह्यौ कै – म्हारी भासा नै मारणियौ खुद अेक लिखारौ ई हौ अर कलम री सोसणाई सूं बिखरग्यौ म्हारी भासा रौ रगत ‘ पढकर कवि सम्मेलन को ऊचाईयां प्रदान कर खूब जस पायौ। कवि अंम्बिकादत्त – सूरजमल को समैं, बखत की आंधी, वरिष्ठ कवि ज्योतिपुंज धकै तो धकवौ द्यौ अर सन्नण रा सांटा, डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने प्रेम कविता सावण अर ऊजळी उजळ प्रीत उजास प्रस्तुत कर खूब दाद पाई। इसी कड़ी में युवा कवि दिनेश चारण – गांव फगत अेक ठौड़ कोनीं अर परयावरण सूं प्रीत, मदन गोपाल लढा – तुरपाई करती लुगाई अर इतियास रौ वास, विनोद स्वामी – चालूं अै बाई छियां ढळगी अर बाबै री कबजी कोनीं टूटी, एवं गौतम अरोड़ा ने सड़क रौ आदमी अर बेटी रा सवाल सिरैनाम राजस्थानी की नई कविताएं प्रस्तुत कर सबको मंत्रमुग्ध किया ।
सदगुरू वंदन : राष्ट्रीय संगोष्ठी में युवाओं के प्रेरणास्रोत ख्यातनाम कवि-आलोचक एवं शिक्षाविद सदगुरुदेव प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण को राजस्थानी के युवा रचनाकारों ने साफा पहनाकर- माल्यार्पण कर भव्य अभिनंदन किया।
ये रहे मौजूद – संगोष्ठी में राजस्थानी, हिंदी, उर्दू, संस्कृत भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वान रचनाकार डाॅ.सोहनदान चारण, अरूण बहुरा , देवेन्द्र कुमार देवेश, डाॅ.दिनेश सिंदल, जेबा रसीद, बसंती पंवार, किरण बादल, संतोष चौधरी, कैलाश दान लालस, मोहनसिंह रतनू , महेश माथुर, खेमकरण लालस, दीपक भटनागर, एम आई माहिर, आशीष चारण, जनकसिंह चारण, धर्मेन्द्र सिंह, डाॅ.अमित गहलोत, डाॅ. रामरतन लटियाल, मोहनलाल, डाॅ.कप्तान बोरावड़, कल्पना तौमर, पवन राजपुरोहित, धनकंवर, महेन्द्रसिंह छायण, डाॅ.सवाई सिंह, डाॅ. जितेन्द्र सिंह, नीतू राजपुरोहित, सुरभि खींची, नूतन सोनी, रविन्द्र कुमार चौधरी, दीपिका मोयल, श्रवणराम भादू , प्रियांशु मूथा,अर्जुन कुमार प्रजापत के साथ शोध-छात्रों एवं विधार्थियों ने भाग लिया।
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