पहली रात पता चला पत्नी है किन्नर:कोर्ट ने शादी की शून्य, ये मामला तलाक से कैसे अलग
उत्तर प्रदेश के आगरा में हैरान कर देने वाला मामला सामने आया। जहां एक युवक की 7 साल पहले यानी 27 जनवरी 2016 को शादी हुई थी। सुहागरात पर उसे पता चला कि पत्नी किन्नर है। उसने पत्नी का इलाज कराया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। जिसके बाद उस युवक ने कोर्ट में तलाक की गुहार लगाई।
कोर्ट का फैसला
7 साल तक कोर्ट में मुकदमा चलने के बाद सबूतों के आधार पर फैमिली कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने शादी को शून्य घोषित कर विवाह विच्छेद के आदेश जारी कर दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील सचिन नायक और राजस्थान के वकील नरेश कुदाल से जानते हैं कि किन सिचुएशन में शादी शून्य घोषित होती है और यह स्थिति तलाक से किस तरह अलग है।
सवाल: मौजूदा मामले में शादी से पहले दुल्हन ने महिला न होने की बात नहीं बताई, ऐसे में झूठ बोलने, धोखाधड़ी करने और बात छिपाने के मामले में क्या होता है?
जवाब: ऐसी कंडीशन में महिला के खिलाफ शादी शून्य करने का दावा फैमिली कोर्ट में पेश करना होगा।
अगर शिकायतकर्ता चाहे तो पुलिसथाने में संबंधित मामले का केस दर्ज करा सकता है।
सवाल: इस मामले में कोर्ट ने शादी शून्य घोषित कर विवाह-विच्छेद का आदेश जारी किया, इसका क्या मतलब होता है?
जवाब: जब किसी शादी पार्टनर से अलग होने के लिए तलाक की जरूरत नहीं होती है, शादी कोर्ट के आदेश के तहत खत्म हो जाती है, इसे विवाह विच्छेद कहते हैं। कानूनी भाषा में इसे Null and Void Marriage कहा जाता है।
सवाल: तलाक और शादी शून्य घोषित होने में क्या फर्क होता है?
जवाब: तलाक होने के बाद पति और पत्नी दोनों की कंडीशन के हिसाब से गुजाराभत्ता, बच्चों की कस्टडी और दोनों के जीवन से जुड़े दूसरे फैसले होते हैं।
वहीं शादी शून्य घोषित होने के बाद उसे अमान्य घोषित कर दी जाती है। शादी के रिश्ते का उनके लिए कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसमें गुजाराभत्ता से कोई लेना-देना नहीं होता है।
सवाल: शादी किन सिचुएशन में शून्य हो सकती है?
जवाब: हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 11 और 12 में चार सिचुएशन बताई गई हैं जिनके होने पर शादी को शून्य डिक्लेयर किया जा सकता है। नीचे लगे क्रिएटिव से समझते हैं…
इसके साथ ही हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के लागू होने के बाद शादी शून्य करने के कुछ और भी आधार है।
इन आधारों के बारे में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5, खंड (i), (iv) और (v) के तहत किया गया है। जैसे-
- शादीशुदा होने के बाद बिना तलाक और पार्टनर को बताएं बिना, शादी करने पर।
- पति या पत्नी का शादी से पहले किसी और के साथ फिजिकल रिलेशन था, जिसके बारे में पार्टनर को अंधेरे में रखा गया था।
- खून के रिश्ते में शादी करने पर। जैसे- भाई-बहन के शादी करने पर।
सवाल: इसका फैसला होने में कितना समय लगता है?
जवाब: इसका कोई तय समय नहीं है। कोर्ट शादी शून्य करने की याचिका पर फैसला करते समय कुछ बातों का ध्यान रखता है। जैसे- दोनों पक्षों के बीच शादी हुई थी या नहीं।
शादी शून्य घोषित करने के लिए जिन आधारों का इस्तेमाल किया गया है वह आधार सत्य पर आधारित हैं या नहीं यह भी देखता है।
इस प्रोसेस में जो समय लगता है, उतने ही टाइम में फैसला हो जाता है।
सवाल: इसके लिए कहां पिटीशन यानी याचिका दायर कर सकते हैं?
जवाब: फैमिली कोर्ट या अपने शहर के सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।
सवाल: कोर्ट ने शादी शून्य कर दी, उसके बाद वो दोनों लोग साथ रहना चाहते हैं क्या ये हो सकता है?
जवाब: हां यह हो सकता है। शादी शून्य हो जाने के बाद भी अगर दोनों पक्ष अपनी सहमति से एक-दूसरे के साथ रहना चाहते हैं तो रह सकते हैं। लिविंग रिलेशनशिप में रहने में कोई दिक्कत नहीं है।
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