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भारतीय अफसरों को जासूस बना रहा पाकिस्तान:हनीट्रैप में आसानी से फंस रहे बड़े अधिकारी, हर साल 15 से 20 केस

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भारतीय अफसरों को जासूस बना रहा पाकिस्तान:हनीट्रैप में आसानी से फंस रहे बड़े अधिकारी, हर साल 15 से 20 केस

प्रदीप कुरुलकर, उम्र 59 साल। रक्षा मंत्रालय के डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी DRDO के साइंटिस्ट। कुरुलकर DRDO में लैब डायरेक्टर थे। ये पद भारत सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी के पद के बराबर होता है।

कुरु़लकर 3 मई से महाराष्ट्र ATS की हिरासत में हैं। आरोप- ISI की महिला जासूस से सीक्रेट इन्फॉर्मेशन शेयर करना। भारत की खुफिया एजेंसियां जब तक कुरुलकर तक पहुंचीं, वो काफी सेंसिटिव जानकारी उस महिला जासूस को दे चुके थे।

भारत की सुरक्षा एजेंसियां दो वजहों से परेशान हैं, पहली ये कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस यानी ISI की भारत विरोधी एक्टिविटी बढ़ गई है। देश की सुरक्षा से जुड़ी बहुत सी सीक्रेट जानकारी उस तक पहुंच रही है। इसके लिए ISI जासूसी इतिहास का सबसे पुराना हथियार हनीट्रैप का इस्तेमाल कर रही है।

परेशान होने की दूसरी वजह ये है कि बड़े पदों पर बैठे अधिकारी भी इसमें फंस रहे हैं। तीन साल में DRDO से जुड़े 9 अधिकारी इस लिस्ट में शामिल हो चुके हैं, जैसे कुरुलकर को पाकिस्तान में बैठी महिला ने अपने जाल में फंसाया था। खुद को भारतीय बताने वाली इस महिला ने कहा था कि वो डिफेंस इश्यूज पर रिसर्च करती है।

ये सब होता कैसे है, इसके लिए हमने इंडियन फॉरेन सर्विस के एक अफसर से बात की। उन्हें भी कुछ साल पहले हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश हुई थी। नाम न बताते हुए उन्होंने पूरी कहानी बताई, पढ़िए उनका अनुभव…

‘उस वक्त मैं यूरोप के एक देश की राजधानी में तैनात था। काम के सिलसिले में अलग-अलग जगह आना-जाना होता था। वहां दूसरे देशों के राजनयिक भी आते थे। हम लोग एक-दूसरे को अपना नंबर दे देते थे, क्योंकि इसकी मनाही नहीं है।’

‘मेरा टेन्योर खत्म हुआ, तो मैं दिल्ली आ गया। वहां के लोकल वॉटसऐप ग्रुप छोड़ दिए, लोकल नंबर भी बंद कर दिया। दिल्ली आने के करीब एक महीने बाद मुझे एक ग्रुप में ऐड किया गया। इसके ज्यादातर मेंबर उसी देश का सिम इस्तेमाल कर रहे थे । ग्रुप में ऐसे लोग भी थे, जिनसे मैं काम के सिलसिले में कभी न कभी मिला था, इसलिए मैंने वो ग्रुप नहीं छोड़ा। उस ग्रुप में मौज-मस्ती करने, घूमने की बात होती थी। मेंबर फोटो और वीडियो डालने लगे।’

‘ग्रुप में 250 मेंबर थे, पर एक्टिव 10 लोग ही रहते थे। एक दिन मुझे एक नंबर से मैसेज आया। डीपी में एक महिला की फोटो थी। महिला ने मुझे बताया कि वो भी उस ग्रुप की मेंबर है और मुझे बहुत पसंद करती है। वो डीपी से मेरी फोटो सेव करती है। उसने खुद अपनी सारी कहानी बताई। कुछ फोटो भेजी, जिसमें वो अलग-अलग जगह घूम रही है।’

‘मुझे शक तो था, पर मैं देखना चाहता था कि ये सब क्यों किया जा रहा है। इसलिए मैं उससे बात करता रहा। 20 दिन बाद उसे लगा कि मैं उसके करीब आ चुका हूं, तो उसने मेरे काम से जुड़ी डिटेल्स मांगनी शुरू कीं। इसमें डिपार्टमेंट के लोगों के मोबाइल नंबर भी थे। उसने कहा कि वो एक रिसर्च कर रही है, इसलिए इंडियन एक्सपर्ट्स से बात करना चाहती है। मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा और उसे ब्लॉक कर दिया। उस ग्रुप को भी छोड़ दिया।’

हनीट्रैप, भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा…
11 जुलाई को विदेश मंत्रालय में काम करने वाले नवीन पाल को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने पकड़ा है। आरोप है कि वो पाकिस्तान में बैठी अपनी दोस्तों को मंत्रालय की जानकारी भेज रहा था। जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि उन्हें इस मामले की लीड जयपुर से मिली थी।

भारत की सिक्योरिटी से जुड़ी एक एजेंसी के सीनियर अफसर ने इस मामले पर बात की। हनीट्रैप को भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बताते हुए वे कहते हैं, ‘ये ऐसी चीज है, जिसे लेकर हम काफी सोच में है। बार-बार अलर्ट किए जाने के बावजूद हमारे कई अधिकारी, नीचे से लेकर ऊपर तक, इसमें बड़ी आसानी से फंसते जा रहे हैं। ऐसे कई मामले तो अभी बाहर ही नहीं आए हैं।

ISI के तीन तरीके, जिनमें अफसर फंस जाते हैं…
भारतीय खुफिया एजेंसी के अफसरों से बात कर जाना कि कैसे यह पूरा जाल फैलाया जाता है। उनके मुताबिक तीन तरीकों से ISI टारगेट पर लिए अधिकारी को काबू में करने की कोशिश करती है।

1. दोस्ती कर भरोसा जीतना, जरूरत की चीजें मुहैया कराना
ISI के साथ काम करने वाले लोग दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और रक्षा भवन के आसपास घूमते रहते हैं। ये पढ़े-लिखे होते हैं और उन्हें किसी भी अनजान आदमी से बात कर उसका भरोसा जीतना सिखाया जाता है। ये लोग विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय से जुड़े अफसरों को टारगेट पर लेते हैं। उनसे दोस्ती करते हैं। कुछ समय बाद अफसरों का भरोसा जीतकर, उनकी जरूरत की चीजें मुहैया करवाते हैं। इस तरह अफसर उनके जाल में फंसते जाते हैं ।

2. वॉट्सऐप ग्रुप से जोड़ना, मैसेज भेजकर हनीट्रैप में फंसाना
अधिकारी का नंबर एक वॉट्सऐप ग्रुप से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि अधिकारी का नंबर ‘गलती’ से ऐड हो गया है। ग्रुप के मेंबर भारत की सिम यूज करते हैं, लेकिन रहते पाकिस्तान में हैं। कुछ ग्रुप मेंबर्स की प्रोफाइल पिक्चर में लड़कियों की फोटो होती है। अधिकारी उन नंबरों पर मैसेज करता है और फंस जाता है। अगर वो ग्रुप छोड़ दे तो, ग्रुप की महिला मेंबर बहाने से उसे मैसेज करती है और बातचीत शुरू हो जाती है।

3. रिसर्च स्कॉलर या पत्रकार बनकर अधिकारी से मिलना
आखिरी तरीका है टारगेट पर लिए अधिकारी को महिला पत्रकार या रिसर्च स्कॉलर का फोन आना। वो महिला अधिकारी से अपने किसी काम के लिए मदद मांगती है। धीरे-धीरे उनकी बात शुरू हो जाती है। ये सबसे आखिरी तरीका इसलिए है, क्योंकि इसके लिए जासूस को असली लगने वाला बैकग्राउंड तैयार करना पड़ता है, जैसे नकली वेबसाइट, लिंक्डइन प्रोफाइल, पब्लिश आर्टिकल और आइडेंटिटी कार्ड।

ये तरीका ज्यादातर हाई प्रोफाइल टारगेट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। प्रदीप कुरुलकर के मामले में यही तरीका अपनाया गया था। पाकिस्तान ने भारतीय अफसरों को हनीट्रैप में फंसाने के लिए अलग डिपार्टमेंट बनाया है।

हर साल 15 से 20 केस, कई मामले पकड़ में नहीं आते
एक अधिकारी बताते हैं, ‘भारत की खुफिया एजेंसियां हर साल हनीट्रैप के 15 से 20 मामले पकड़ रही हैं। कई मामले कभी पकड़ में नहीं आते। भारतीय अफसरों को हनीट्रैप में फंसाने के लिए पाकिस्तान ने रावलपिंडी के सेना मुख्यालय जनरल हेडक्वाटर्स यानी GHQ में अलग से डिपार्टमेंट बनाया हुआ है। इसका नाम 414 int है ।

2021 की शुरुआत तक मेजर रैंक के अफसर ओमर जेब खान इसे लीड कर रहे थे। अब वो इसे संभाल रहे हैं या नहीं, या उनकी जगह कौन ये डिपार्टमेंट चला रहा है, इसकी जानकारी नहीं है।

कुछ ऑडियो क्लिप हैं, जिनमें एक महिला जासूस भारतीय अधिकारियों से अलग-अलग समय पर बात कर रही है। वो रौब दिखाते हुए बात करती है और सेना की लोकल डिप्लॉयमेट जैसी जानकारी मांग लेती है।

महिला ने किससे, कब और क्या बात की, कॉन्फिडेंशियल होने की वजह से ये हम नहीं बता रहे हैं। हमें महिला का आईकार्ड भी मिला है, जिससे पता चलता है कि वो पाकिस्तान के एक कॉलेज की स्टूडेंट है। पाकिस्तानी पासपोर्ट पर कई बार चीन जा चुकी है।

जासूसी में शामिल पाकिस्तानी महिला का आईकार्ड। ये महिला चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर से जुड़े एक संस्थान की अधिकारी बनकर अक्सर चीन भी जाती रही है।

जासूसी में शामिल पाकिस्तानी महिला का आईकार्ड। ये महिला चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर से जुड़े एक संस्थान की अधिकारी बनकर अक्सर चीन भी जाती रही है।

हनीट्रैप के कई पहलू, सरकार को ध्यान देने की जरूरत: एक्सपर्ट
भारतीय सेना से रिटायर्ड कर्नल हनी बख्शी ने
बताया, ‘हनी ट्रैपिंग के कई पहलू हैं। इन पर सरकार को ध्यान देना पड़ेगा। लाजिमी है कि इतने मामलों के बाद एजेंसियां और सख्त हो जाएंगी। अफसरों पर और पाबंदियां लगा दी जाएंगी। आपको समझना होगा कि सामरिक विषयों से जुड़े संस्थानों में काम करने वाले अफसरों पर पहले से काफी सख्ती होती है।’

‘रक्षा मंत्रालय में काम करने वाला अधिकारी आम आदमी की तरह सोशल मीडिया का यूज और नए लोगों से दोस्ती नहीं कर सकता। अब हनी ट्रैपिंग की घटनाओं के बाद नए नियम लाए जाएंगे। सरकार को यह सोचना होगा कि इसका उलटा प्रभाव न पड़े, पहले से प्रेशर में काम कर रहे अधिकारी पर और दबाव न आए।’

कर्नल हनी बख्शी के मुताबिक, ‘सोशल मीडिया और मोबाइल के यूज की वजह से ISI काफी जल्दी अधिकारियों को टारगेट कर पा रही हैं। ये अधिकारी परिवार से दूर रहते हैं। अपने काम, कामयाबी, नाकामी के बारे में परिवार से बात नहीं सकते। इसलिए जहां किसी ने उनके कामों में दिलचस्पी दिखाई और अच्छे से बात की, वो खुल जाते हैं।’

कर्नल बख्शी आगाह करते हुए कहते हैं, ‘पाकिस्तान में अधिकारियों के सोशल मीडिया यूज करने पर सख्त मनाही है। उनकी बीवियां भी सोशल मीडिया पर नहीं आ सकती। हमारे यहां ऐसा कोई नियम नहीं है। ट्विटर पर वेटरंस लिखी सैकड़ों प्रोफाइल मिल जाएंगी। आप एक प्रोफाइल ले लीजिए, उससे काफी जानकारियां मिल जाएंगी।’

दिल्ली के PSRI हॉस्पिटल में साइकाइट्रिस्ट डॉ. परमजीत सिंह से हमने पूछा कि क्यों अधिकारी इतनी सतर्कता के बावजूद हनी ट्रैप में फंस रहे हैं?

वे कहते हैं, ‘हनी ट्रैपिंग युद्ध नीति में बहुत पुराने समय से इस्तेमाल की जाती रही है। ये योजना बनाकर की जाने वाली प्रक्रिया है। इसमें शिकारी शिकार के बारे में बहुत गहराई से और लंबे समय तक स्टडी करते हैं। उसकी पर्सनैलिटी, सोशल इन्वायर्नमेंट, ताकत, कमजोरी, परेशानी, खर्च करने के पैटर्न, दोस्ती, संबंध बनाने के तरीके और हावभाव का मनोवैज्ञानिक तरीके से एनालिसिस किया जाता है। टारगेट के साथ इमोशनल रिश्ता बनाया जाता है। इससे उसकी सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है।’

‘सबसे पहले ऐसी प्रोफाइल बनाई जाती है, जहां कुछ मिलती-जुलती दिलचस्पी हो, एक जैसे दोस्त हों, एक पूरी कहानी हो। शुरुआत में सामान्य बातचीत होती है। फिर शिकारी खुद को पीड़ित दिखाकर अपनी कुछ बातें शेयर करता है। इससे टारगेट के अंदर ये भाव आता है कि वो काफी ताकतवर है और कोई भी परेशानी दूर कर सकता है।’

‘समय के साथ इस रिश्ते में खुद को और ताकतवर बनाने के लिए, करीबी बढ़ाने के लिए, अपनी शान बघारने के लिए व्यक्ति धीरे-धीरे इस ट्रैप में फंसता जाता है।

टारगेट को यकीन दिलाया जाता है कि उसका काम सीक्रेट रहेगा: एक्सपर्ट
नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. समीक्षा जैन कहती हैं, ‘हनी ट्रैपर हमारी इच्छाओं और कमजोरियों समेत मानव स्वभाव के अलग-अलग पहलुओं का फायदा उठाते हैं।’

‘हनीट्रैप में मानवीय पूर्वाग्रहों को इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि शिकारी के लिए शिकार का भरोसा जीत पाना और उससे जुड़ी संवेदनशील जानकारी तक पहुंच बनाना आसान हो जाता है। उसे कंट्रोल करने के लिए चापलूसी और सहानुभूति जताने जैसे तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। इमोशनल कार्ड खेलकर और कमजोरियों का फायदा उठाकर हनी ट्रैपर अपने टारगेट पर काबू कर लेते हैं।’

हनी ट्रैपिंग के 4 केस, जो भारतीय अफसरों को ट्रेनिंग के दौरान पढ़ाए जाते हैं

1. पहला केस अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA में काम करने वाली शेरॉन स्कारनेज का है। घाना के खुफिया एजेंट माइकल ने शेरॉन को बहकाकर सीक्रेट इन्फॉर्मेशन देने के लिए तैयार कर लिया। शेरॉन ने घाना में CIA ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी, जिसे उन्होंने सोवियत गुट के देशों को भेज दिया। ये सब मई 1983 से अक्टूबर 1984 तक चला।

माइकल ने शेरोन से CIA के एजेंट्स के नाम और उनके काम करने की जगह जैसी जानकारियां लेकर रशियन एजेंसी KGB को दे दीं। पकड़े जाने पर नवंबर 1985 में शेरॉन को 5 साल की सजा हुई। माइकल को CIA ने अमेरिका से गिरफ्तार कर लिया। बाद में उसे वापस घाना भेज दिया गया, जहां उसका हीरो की तरह स्वागत किया गया।

CIA कर्मचारी शेरॉन और घाना का एजेंट माइकल दोनों जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे। हालांकि शेरॉन को मिली सजा कम कर दी गई और माइकल को उसके देश भेज दिया गया।

CIA कर्मचारी शेरॉन और घाना का एजेंट माइकल दोनों जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे। हालांकि शेरॉन को मिली सजा कम कर दी गई और माइकल को उसके देश भेज दिया गया।

2. सर जेफ्री हैरिसन, सोवियत संघ में ब्रिटिश राजदूत थे। 1968 में उन्हें लंदन वापस बुला लिया गया। जेफ्री के बारे में पता चला था कि उन्होंने दूतावास में एक रूसी नौकरानी के साथ संबंध बना लिए हैं। उनकी फोटो रशियन एजेंसी KGB के पास मिली थीं।

3. सबसे दिलचस्प किस्सा चीनी जासूस शिपाई पु का है। उसने चीन में तैनात फ्रांसीसी राजनयिक बर्नार बॉरिस्कॉट को हनीट्रैप में फंसा लिया था। शिपाई ने खुद को महिला बताकर बर्नार से दोस्ती की। दोनों के बीच 10 साल तक 1964 से 1974 तक रिश्ता रहा। इस दौरान चीन को सीक्रेट इन्फॉर्मेशन मिलती रही। शिपाई ने एक उइगर मुस्लिम परिवार से बच्चे को खरीदा और उसे बर्नार से पैदा बच्चा बता दिया।

फोटो में बाईं तरफ चीनी जासूस शिपाई पु हैं, साथ में फ्रांसीसी राजनयिक बर्नार बॉरिस्कॉट खड़े हैं। शिपाई महिला के भेष में बर्नार से मिला करते थे, लेकिन उन्हें इसकी भनक भी नहीं लगी।

फोटो में बाईं तरफ चीनी जासूस शिपाई पु हैं, साथ में फ्रांसीसी राजनयिक बर्नार बॉरिस्कॉट खड़े हैं। शिपाई महिला के भेष में बर्नार से मिला करते थे, लेकिन उन्हें इसकी भनक भी नहीं लगी।

4. 2005 के दौरान पाकिस्तान के इस्लामाबाद से 56 साल के ब्रिटिश रक्षा अधिकारी एंड्रू दरकन को वापस बुलाना पड़ा था। ब्रिटिश एजेंसी को पता चला था कि उनकी एक पाकिस्तानी स्टूडेंट के साथ सेक्शुअल रिलेशनशिप थी। ये स्टूडेंट असल में एक खुफिया एजेंट थी। हालांकि ब्रिटिश सरकार कभी ये बात नहीं मानी कि उसके सीक्रेट लीक हुए हैं, पर दावा किया जाता है कि पश्चिमी देशों के कई जासूसी मिशन के बारे में पाकिस्तान और चीन को पता चल गया था।

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