‘भारतीय सैनिक 15 मार्च से पहले मालदीव छोड़ें’:मोइज्जू की डेडलाइन कितना बड़ा झटका, भारतीय जवान वहां कर क्या रहे हैं
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू 5 दिन के चीन से 13 जनवरी को वापस लौटे। कुछ देर बाद ही उन्होंने अपने देश से भारतीय सैनिकों को हटाने की डेडलाइन दे दी। मालदीव प्रेसिडेंट ऑफिस के प्रवक्ता अब्दुल्ला नजीम इब्राहिम के मुताबिक राष्ट्रपति मुइज्जू और उनकी सरकार ने यह फैसला किया है कि भारतीय सैनिक 15 मार्च के बाद मालदीव में नहीं रह सकते।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है, ‘राजनीति तो राजनीति है। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि हर देश, हर दिन, हर व्यक्ति हमारा समर्थन करे या हमसे सहमत हो। भारत के बारे में वहां के आम लोगों की राय अच्छी है और उन्हें भारत से अच्छे संबंधों की अहमियत पता है।’
भारतीय सैनिक मालदीव में क्या कर रहे हैं और राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का ये फैसला भारत के लिए कितना बड़ा झटका है?

8 जून 2019 में PM नरेंद्र मोदी मालदीव के स्टेट विजिट पर गए थे। उनसे पहले 2011 में भारत के PM मालदीव दौरे पर गए थे। PM मोदी जब माले इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उन्हें लेने उस समय के मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह एयरपोर्ट पहुंचे थे।
मालदीव में कितने भारतीय सैनिक हैं और वहां क्या कर रहे हैं?
- भारत अपने पड़ोसी देश मालदीव को डिफेंस समेत कई दूसरे क्षेत्र में लंबे समय से सहयोग करता रहा है। नवंबर 1988 में चुनी हुई राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को तख्तापलट से बचाने के लिए भारतीय सेना मालदीव घुसी थी। तब से दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध हैं।
- 2010 और 2016 में भारत ने मालदीव को दो हेलिकॉप्टर मदद के तौर पर दिए थे। इस समय मालदीव में अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम की सरकार थी। 2018 में मोहम्मद सोलिह की सरकार बनने के 2 साल बाद भारत ने मालदीव को एक और छोटा विमान तोहफे में दिया। सोलिह को भारत समर्थक माना जाता था, इसी वजह से मालदीव के विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया।
- भारत ने तब बताया था कि इन हेलिकॉप्टर और विमान का इस्तेमाल मालदीव में खोज-बचाव अभियानों और मरीजों को लाने के लिए किया जाना है। 2021 में मालदीव सेना ने बताया कि इन विमानों के संचालन और मरम्मत के लिए 70 से ज्यादा भारतीय जवान मालदीव में तैनात हैं।
- इसके बाद ही मालदीव में विपक्षी दलों ने ‘इंडिया आउट’ अभियान शुरू कर दिया। उनकी मांग थी कि भारतीय सुरक्षा बल के जवान मालदीव छोड़ें। ‘इंडिया आउट’ ने मालदीव में भारत के इन सैनिकों की मौजूदगी की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और उनकी उपस्थिति को देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया।

ये तस्वीर अप्रैल 2016 की है, जब भारत ने मालदीव को दूसरा हेलिकॉप्टर गिफ्ट किया था। मालदीव की राजधानी माले के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर दोनों देशों के सेना अधिकारी इस तस्वीर में नजर आ रहे हैं।
मालदीव में भारत विरोधी कैंपेन चलाए जाने के पीछे ये 4 वजहें बताई जा रही हैं…
1. हेलिकॉप्टर को लेकर विवाद: मालदीव में मौजूद भारत के दो एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (ALF) ध्रुव को लेकर वहां मोहम्मद मोइज्जू की पार्टी लंबे समय से विरोध कर रही थी। अब सत्ता में आने के बाद उनकी पार्टी ने भारत के सैनिकों को वापस भेजने का फैसला किया है।
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की रिसर्चर गुलबिन सुल्ताना के मुताबिक मोइज्जू की पार्टी ने इन दोनों हेलिकॉप्टर का यह कहकर विरोध किया कि ये सैन्य हेलिकॉप्टर हैं। इसके जरिए भारत मालदीव में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत बना रहा है। जबकि भारत सरकार ने कहा है कि ये हेलिकॉप्टर सिर्फ मानवीय मदद के तौर पर दिए गए हैं।
2. भारत को लेकर पारदर्शिता की कमी: मालदीव की इतिहासकार रशीदा एम दीदी ने 2022 में अपने एक आर्टिकल में लिखा कि मालदीव समुद्री सुरक्षा को लेकर काफी ज्यादा भारत पर निर्भर है। भारत, मालदीव और श्रीलंका के सैनिक मिलकर समुद्र से होकर होने वाले ट्रैफिकिंग और समुद्री अपराध को कंट्रोल में रखते हैं। हालांकि, मोहम्मद सोलिह की सरकार अपने लोगों को ये बताने में नकाम रही। भारत को लेकर सोलिह सरकार की नीति में ट्रांसपेरेंसी की कमी ने मोहम्मद मोइज्जू को मजबूती दी। भारत विरोधी बात फैलाने में मोइज्जू को सफलता मिली।
3. मालदीव की नई पुलिस अकेडमी: रशीदा एम दीदी का कहना है कि भारत की मदद से मालदीव के अड्डू में नई पुलिस अकेडमी बन रहा है। इसमें न सिर्फ मालदीव की पुलिस को ट्रेनिंग दी जाएगी, बल्कि यहां लॉ की पढ़ाई भी हो सकेगी।
इस अकेडमी कैंपस के बड़े होने की वजह से मालदीव में मोहम्मद मोइज्जू की पार्टी विरोध कर रही है। उनका आरोप है कि इस कैंपस में 150 से ज्यादा भारतीय अधिकारियों के रहने की व्यवस्था की गई है। ये एक तरह से भारत सरकार के लोगों की देश में मौजूदगी को बढ़ाएगा, जो मालदीव के लिए गलत है।
4. UTF हार्बर प्रोजेक्ट पर समझौता: मालदीव की राजधानी माले के करीब उथुरू थिला फाल्हू में एक बंदरगाह बनाया जाना है। इस बंदरगाह को बनाने के लिए फरवरी 2021 में मालदीव के साथ भारत ने समझौता किया है। इस समझौता के जरिए भारत को इस बंदरगाह की देखभाल और रखरखाव करने का अधिकार मिलना है।
भारत सरकार ने समझौते के समय साफ किया था कि इस बंदरगाह को बनाने का मकसद इसे भारतीय नौसेना का अड्डा बनाना नहीं है। मोहम्मद मोइज्जू ने इस समझौते को इस तरह पेश किया जैसे भारत मालदीव के इस बंदरगाह पर अपना नौसैनिक अड्डा बनाएगा।

ये तस्वीर 3 मई 2023 की है, जब मालदीव के UTF हार्बर प्रोजेक्ट का शिलान्यास रखा जा रहा था। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मालदीव पहुंचे थे।
अपने सैनिकों को मालदीव से हटाना भारत के लिए झटका क्यों है?
फॉरेन एक्सपर्ट और JNU के प्रोफेसर राजन के मुताबिक मुझे नहीं लगता है कि मालदीव के इस फैसले से भारत को ज्यादा नुकसान होगा। इसकी वजह ये है कि मालदीव की तुलना में भारत काफी बड़ी शक्ति है। हालांकि, मालदीव के इस फैसले से भारत को तीन तरह से झटका लग सकता है…
1. हिंद महासागर के बड़े हिस्से में भारत का दबदबा है। यह क्षेत्र चीन की कमजोर कड़ी है। चीन की सबसे बड़ी समस्या है मलक्का चोक पाइंट। इस जगह से चीन के सभी बड़े कॉमर्शियल शिप गुजरते हैं। अगर मालदीव से भारतीय सैनिक हटे तो हिंद महासागर के इस क्षेत्र में चीन के एक्शन पर नजर रखना मुश्किल होगा। इस लिहाज से भारत को नुकसान है।
2. भारत के सैनिक और रडार भारतीय द्वीप पर तैनात हैं। इसके जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में नजर रखने और कम्युनिकेशन नाए रखने में भारत को आसानी होती है। अब भारत मालदीव में अपने रडार स्टेशन खो देगा और ये भारत के लिए झटका है।
3. भारत ज्यादातर ट्रेड समुद्र के जरिए करता है। ऐसे में मालदीव के आसपास समुद्री मार्ग की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। चीन की पकड़ मजबूत होती है तो मालदीव से भारत पर नजर रखना चीन के लिए आसान हो जाएगा।
भारतीय सैनिकों को हटाने से मालदीव को क्या नुकसान होगा…
- फॉरेन एक्सपर्ट और JNU के प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक मालदीव में चीनी फंडिंग के जरिए मोहम्मद मोइज्जू की पार्टी ने चुनाव लड़ा और जीता है। उसकी पार्टी का पूरा चुनाव प्रचार भारत विरोध में था। ऐसे में नई सरकार का भारतीय सैनिकों को निकालने का फैसला कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मालदीव जैसे छोटे देशों के लिए अपनी आजादी का बचा पाना मुश्किल होता है। मोइज्जू को लग रहा है कि ऐसा करके उसे चीन से हर तरह का सपोर्ट मिलेगा। हालांकि, ऐसा होता नहीं है। अंतराष्ट्रीय राजनीति बदलते ही काफी सब कुछ बदल जाता है। इसी वजह से ऐसे देशों को नुकसान भी झेलना होता है। रूस और यूरोप के बीच फंसा यूक्रेन इसका जीता-जागता उदाहरण है।
- फॉरेन एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी के मुताबिक मालदीव में करीब 5 लाख आबादी हैं। मालदीव का पूरा वजूद भारत पर टिका है। इसके बावजूद चीन से लौटने के बाद वह जिस तरह के बयान दे रहे हैं, इतना साहस चीन के उकसावे के बिना संभव नहीं लगता है। वो भले ही भारतीय सैनिकों को वापस भेजकर अपने चुनावी वादे को पूरा कर दें, लेकिन इससे भारत से ज्यादा नुकसान मालदीव को होगा। उसके इस फैसले से हिंद महासागर में चीन का दखल बढ़ेगा। ऐसा हुआ तो मालदीव अमेरिका, फ्रांस समेत दूसरे यूरोपीय देशों से दूर हो जाएगा।
- इसके अलावा हिंद महासागर क्षेत्र में हो रहे ट्रैफिकिंग और अपराध को रोकना मालदीव के लिए मुश्किल हो जाएगा। मालदीव में भारत की मदद से चल रहा UTF हार्बर प्रोजेक्ट और अड्डू में बन रहे पुलिस अकेडमी का काम भी रुक सकता है।
- नवंबर 2022 में भारत ने मालदीव को 828 करोड़ रुपए के आर्थिक मदद का ऐलान किया है, आगे से मालदीव को मिलने वाले इस आर्थिक मदद पर भी रोक लगाई जा सकती है।











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