भारत के एक हजार IT प्रोफेशनल्स म्यांमार में गुलाम:बिना पैसे 16 घंटे काम, इनकार पर लिवर-किडनी निकालने की धमकी
‘मुझे बचा लीजिए, मौत मुझे सामने नजर आ रही है। मेरे साथ रहने वाले एक लड़के को तीन लोग ले गए हैं। मुझे नहीं लगता कि अब वह वापस आएगा। हो सकता है जब आप मुझे दोबारा फोन करें, तो मैं जिंदा न रहूं।’
इतना बोलते ही दीपेश का फोन कट गया और स्विच ऑफ भी हो गया। दीपेश महाराष्ट्र के रहने वाले हैं। फरवरी में उन्होंने सोशल मीडिया पर नौकरी का ऐड देखा और थाईलैंड चले गए। वहां साइबर स्लेव बनाने वाले सिंडिकेट के जाल में फंस गए। अभी वहीं फंसे हैं। उन्हें छोड़ने के लिए 6 हजार डॉलर, यानी करीब 5 लाख रुपए देने की शर्त रखी गई है।
दीपेश से हमने 9 अक्टूबर को सुबह 8 बजे बात की थी। ये उनके नाश्ते का वक्त होता है। इसके अलावा उन्हें लंच टाइम में दोपहर 11:30 बजे ही मोबाइल ऑन करने की इजाजत है।
म्यांमार-थाईलैंड बॉर्डर पर बसे शहर में 10 हजार लोग बंधक
दीपेश की तरह ही म्यांमार में एक हजार से ज्यादा भारतीय IT प्रोफेशनल्स गुलामों की तरह रखे गए हैं। इनमें 10 से 12 लड़कियां भी हैं। यहां अलग-अलग देशों के 10 हजार से ज्यादा नौजवानों को साइबर स्लेव बनाकर काम करवाया जा रहा है। ये बात वहां से छूटकर देश लौटे लोगों ने बताई है।
भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, श्रीलंका और मिडिल ईस्ट देशों के लोग भी यहां बंधक हैं। ये लोग जहां रहते हैं, वह स्टेडियम जैसे स्ट्रक्चर के अंदर बसा शहर है। इसे कथित तौर पर चीनी कंपनियों ने बसाया है।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हुए तकरीबन 100 लोग विदेश मंत्रालय की मदद से भारत लौटे हैं। इनमें से एक गाजियाबाद के रहने वाले 32 साल के राजेश (बदला हुआ नाम) हैं। राजेश पिछले साल दिसंबर में म्यांमार गए थे और करीब 8 महीने वहां रहे।
आगे की कहानी राजेश से ही सुनिए…
वहां पहुंच जाने के बाद या तो आपको उनकी मर्जी से काम करना पड़ेगा, नहीं तो वे आपकी बॉडी के ऑर्गन निकाल कर बेच देते हैं। मैंने काम करने से इनकार किया तो मुझे चार दिन तक नर्क जैसी यातना झेलनी पड़ी।
मुझे ऐसी जेल में रखा गया, जहां कैदी को लकड़ी के डंडे के सहारे हथकड़ी से बांध कर खड़ा रखा जाता है। मेरे साथ 11 चाइनीज भी थे। जेल में खड़े होकर ही सोना पड़ता था।
दुबई में नौकरी और फ्री एयर टिकट का लालच देकर ले गया एजेंट
रैकेट का शिकार बने लोगों में कन्याकुमारी के प्रशांत यादव भी हैं। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर प्रशांत की दिसंबर 2021 में मंसूर नाम के एक ट्रैवल एजेंट से मुलाकात हुई। उसने दुबई में अच्छी जॉब दिलाने का वादा कर पासपोर्ट समेत दूसरे डॉक्यूमेंट ले लिए।
मंसूर ने 3 महीने तक प्रशांत को धोखे में रखा। मई में वे दुबई पहुंचे और नासिर नाम के एजेंट से मिले। नासिर ने भी उन्हें दो महीने तक कोई काम नहीं दिलाया। प्रशांत के पैसे खत्म हो रहे थे और वे कन्याकुमारी लौटने के लिए तैयार थे।
तभी नासिर उनके पास आया और थाईलैंड में एक IT जॉब का ऑफर दिया। प्रशांत ने ऑफर मंजूर कर लिया। इंटरव्यू क्लियर कर वे 8 जुलाई 2022 को 6 और लोगों के साथ थाईलैंड पहुंच गए।
गाड़ी में बैठाकर जंगल में ले गए, तब लगा फंस गए हैं
बैंकॉक के स्वर्णभूमि एयरपोर्ट पर हमें एक महिला मिली। उसे सिर्फ थाई भाषा आती थी। महिला दो कार में हम सातों को लेकर 600 किमी और 7 घंटे का सफर कर एक होटल पहुंची। उस बेनाम होटल में न इंटरनेट था और न ही मोबाइल में नेटवर्क आ रहा था। यहीं हमें लग गया कि हम गलत जगह आ गए हैं। इसके बाद एक पिकअप वैन आई। हमारा सामान उसमें लोड कर दिया गया।
इसके बाद हमें दो गाड़ियों में बैठाकर घने जंगल में ले जाया गया। हम उतरे तो सामने करीब 300 मीटर चौड़ी मोई नदी थी। हमें नाव के जरिए नदी पार करवाई गई। उस पार बंदूक लिए दो लोगों ने हमें चेक किया। हमें कंपनी की एक बड़ी गाड़ी में बैठाया गया और फिर हम बड़े स्टेडियम की तरह लगने वाली जगह पहुंचे। यहां एंट्री के लिए एक ही गेट था। अंदर पूरा शहर बसा था। यहां बनी ज्यादातर इमारतें देखने में एक जैसी हैं।
कंपनियों के बाहर आर्मी जैसी दिखने वाली ड्रेस में हथियारबंद गार्ड तैनात रहते हैं। ये फोटो हमसे दीपेश ने शेयर की है।
पहले ही दिन बता दिया- यूरोपियन कस्टमर फंसाने हैं
अगले दिन शाम 6 बजे हमें काम पर बुलाया गया और एक कंप्यूटर के साथ 4 फोन दिए गए। पहले दिन उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि हमें यूरोप से कस्टमर फंसाने हैं।
हमें एक सिम कार्ड दिया गया, जिससे सिर्फ यूरोपीय देशों में कॉल हो सकती थी। सभी फोन पर कैमरे छिपाने वाले कवर लगे थे। हम उनको सिर्फ कॉल कर सकते थे। हमें यह बताया गया था कि इन फोन को हैक किया गया है और हमारी हर एक्टिविटी ट्रैक की जा रही है।
डेटिंग ऐप से लोगों को फंसाने का काम
- प्रशांत के मुताबिक, लड़की के नाम से उनकी फेक ID, फेसबुक और इंस्टाग्राम प्रोफाइल बनाई गई।
- एक डेटिंग ऐप के जरिए उन्हें यूरोप में 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को फंसाने का काम दिया गया।
- इनमें ज्यादातर के बैंक अकाउंट में बड़ी रकम थी। इसकी डिटेल सोशल मीडिया अकाउंट हैक कर निकाली जाती थी।
- टारगेट के फंसने के बाद उसे क्रिप्टो करेंसी में इन्वेस्ट करने को कहा जाता। पैसे जमा होते ही सभी सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट कर दिए जाते थे।
छोड़ने के बदले 5000 डॉलर मांगे
गलत काम कराए जाने की वजह से हमने एक दिन स्ट्राइक कर दी। हमने अच्छा खाना, घर वालों से बात करने के लिए सिम कार्ड और वापस अपने देश जाने की डिमांड रखी। हंगामे के बाद उन्होंने हमारी तीनों शर्तें मान लीं। इसके लिए उन्होंने 5 हजार डॉलर देने की शर्त रखी। सात दिन बाद घरवालों से बात करने के लिए सिम कार्ड दिया।
अवैध तरीके से म्यांमार गए, वीजा एक्सटेंशन के लिए अप्लाई नहीं कर सकते थे
हमारा वीजा 22 जुलाई को खत्म हो गया था। हमें पता चला कि हम अवैध तरीके से नदी क्रॉस कर म्यांमार में घुसे हैं। इसलिए वीजा एक्सटेंशन के लिए अप्लाई नहीं कर सकते थे। हमारा 16 लोगों का ग्रुप था। इनमें से दिल्ली के रहने वाले अक्षय शर्मा और उनके भाई पैसे जमा कर भारत लौट गए। वहां अधिकारियों से मिले और सारी बात बताई। यह बात कंपनी को पता चल गई। हमारे ऊपर फिर टॉर्चर शुरू हो गया।
इसके बाद अक्षय के पिता ने म्यांमार मिलिट्री के अफसरों से संपर्क किया। अफसरों ने हमसे फोन पर बात की और बाहर निकालने का वादा किया। इसके बाद मैंने और मेरे साथियों ने 23 अगस्त को काम करना बंद कर दिया।
पैसे नहीं देने पर बॉडी पार्ट्स बेचने वाले थे
कंपनी के लोगों ने हमें धमकाया कि अगर सुबह 6 बजे तक पैसे नहीं दिए, तो वे हमें मार देंगे और बॉडी पार्ट्स बेच देंगे। इसके कुछ घंटे बाद म्यांमार पुलिस और आर्मी की एक टीम वहां पहुंची और सभी लोगों का रेस्क्यू करवाया। हमारे फोन और डॉक्यूमेंट्स वापस दिलाए। हमें कंपनी से 250 मीटर दूर एक बिल्डिंग में 10 दिन तक रखा गया।
म्यांमार आर्मी ने थाईलैंड में छोड़ा, वहां थाई सेना ने पकड़ा
म्यांमार आर्मी ने हमें नदी पार करवाकर थाईलैंड में छोड़ दिया। वहां हमें थाई आर्मी ने पकड़ लिया। दो दिन जेल में रखा। हम पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग की धारा में केस दर्ज कर दिया और एक कमरे में 15 दिन तक बंद रखा। वहां हमसे लगातार पूछताछ हुई। क्लीन चिट मिलने पर हमें फाइन भरने को कहा गया। हमारे पास पैसे नहीं थे, इसलिए हमें फिर से 5 दिन के लिए जेल भेज दिया गया।
म्यावाड्डी एरिया थाईलैंड से सटा हुआ है। मोई नदी यहां दोनों देशों को अलग करती है। थाईलैंड से लोगों को नाव के जरिए ही अवैध तरीके से म्यांमार भेजा जाता है।
हमें अलग-अलग जेलों में 45 दिन और रहना पड़ा। इसके बाद हमने अलग-अलग जरियों से अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों तक बात पहुंचाई।
मेरे केस में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने PM नरेंद्र मोदी से बात की। PM के पर्सनल इंटरेस्ट लेने के बाद हम सभी 5 अक्टूबर की सुबह 2 बजे तमिलनाडु लौटे।
पंजाब के दो भाई 10 लाख देकर छूटे, साथियों को भी निकलवाया
पंजाब के बठिंडा के रहने वाले अक्षय शर्मा ने बताया कि वे एक जॉब साइट पर ऐड देखकर इस ट्रैप में फंस गए थे। 26 जून को वे भाई के साथ दुबई गए थे। वहां से थाईलैंड होते हुए म्यांमार पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात रैकेट का शिकार हुए 16 भारतीयों से हुई। ये देखकर उन्होंने यह काम करने से मना कर दिया।
इसके बाद उन्हें और उनके भाई को एक अंधेरे कमरे में डाल दिया गया। खाने में दिन में 5-5 बड़ी चम्मच चावल और पानी दिया जाता था। इतने में दोनों का पेट नहीं भरता था, दोनों अपने-अपने के हिस्से का खाना मिला लेते हैं और एक-एक दिन खाते थे। दोनों को छोड़ने के लिए 10 लाख रुपए मांगे गए।
ये अक्षय शर्मा हैं। भाई और उन्हें छोड़ने के लिए कंपनी ने 10 लाख रुपए लिए थे। म्यांमार से निकलने के बाद अक्षय ने अपना फोन बंद कर लिया, ताकि कोई उन्हें ट्रैक न कर पाए।
अक्षय के पिता को पता चला तो उन्होंने कर्ज लेकर पैसे जमा किए। उन्हें क्रिप्टो करेंसी में कन्वर्ट कराकर म्यांमार भेजा। इसके बाद दोनों को छोड़ा गया। उनके साथी वहीं रह गए थे। अक्षय ने भारत आने के बाद उन्हें निकालने की कोशिश शुरू की।
विदेश मंत्रालय में शिकायत दर्ज कर पूरी डिटेल दी। इसमें देर हो रही थी इसलिए पिता ने म्यांमार के आर्मी चीफ का नंबर तलाशा। उनसे वॉट्सऐप पर कॉन्टैक्ट किया। आर्मी ने अच्छा रिस्पॉन्स दिया और 10 टीमों को उस जगह भेजा। इसके बाद भारतीयों का रेस्क्यू किया गया।
इस शहर में ऐसी 24 इमारतें हैं, जहां पूरे स्टाफ को रखा जाता है। इसी कैंपस में ऑफिस बने हैं, जहां लोगों से साइबर फ्रॉड कराए जाते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, यहां ज्यादातर कंपनियां चीन की हैं। जुआ, साइबर क्राइम, मनी लॉन्ड्रिंग, क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग और प्रॉस्टिट्यूशन जैसे काम किए जा रहे हैं। यहां अब भी विद्रोही गुट एक्टिव हैं। गलत काम करने वालों को उनकी मदद मिलती है। बदले में कंपनियां विद्रोही गुटों को फंडिंग करती हैं।
आई कार्ड पर चीनी कंपनी का नाम
अक्षय शर्मा ने जिस कंपनी में काम किया उसके आई कार्ड पर होंग्तु प्रॉपर्टी लिखा था। इस नाम की एक कंपनी चीन में रजिस्टर्ड है, लेकिन उसका लोगो कार्ड पर बने लोगो से अलग है। इसलिए मुमकिन है कि कंपनी का नाम म्यांमार में इस्तेमाल किया जा रहा हो।

ये आई कार्ड एक चीनी व्यक्ति ने दिया था। वह अक्षय का सुपरवाइजर था। उसके साथ हमेशा एक ट्रांसलेटर चलता था, जो हिंदी या इंग्लिश में बात कर उसे समझाता था।
सजा देने के लिए बनाई वाटर जेल
मुंबई के शहजाद 6 लाख रुपए देकर म्यांमार से लौटे हैं। वे एक महीने वहां रहे थे। उन्होंने बताया कि हमसे 16 घंटे काम करवाया जाता था। कोई गलती होने पर कैद कर दिया जाता था। इसके लिए पानी के ऊपर एक पिंजरा लगाया गया। इसे वाटर जेल कहा जाता है।
इस जेल में कैदी को हथकड़ी बांधकर खड़ा रखा जाता है। भागने की कोशिश करने वाला सीधे नदी में गिरता है और उसकी मौत हो जाती है। शहजाद ने ही हमें वहां फंसे 7 भारतीयों के कॉन्टैक्ट नंबर दिए थे।
ऐंबैसी की सलाह- जॉइनिंग से पहले कंपनियों का बैकग्राउंड चेक कर लें
हमने इस बारे में जानकारी के लिए यंगून में इंडियन ऐंबैसी को मेल भेजा। इस पर अभिजीत शुक्ला, फर्स्ट सेक्रेटरी (पॉलिटिकल एंड मीडिया आउटरीच) की ओर से जवाब मिला कि दूतावास पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ लगातार संपर्क में हैं। हम वहां काम करने वाले या उस इलाके को अच्छी तरह जानने वाले और लोकल बिजनेसमैन जैसे इन्फॉर्मल चैनल के जरिए उनकी रिहाई के लिए कोशिश कर रहे हैं।
म्यांमार के अधिकारियों के साथ भी कॉन्टैक्ट किया जा रहा है। कुछ भारतीयों को फर्जी कंपनियों से बचाया गया है। अवैध तरीके से घुसने के आरोप में वे म्यांमार की हिरासत में हैं। उन्हें जल्द भारत भेजने के लिए कानूनी औपचारिकताएं शुरू कर दी गई हैं।
14 अक्टूबर को एक और एडवाइजरी जारी की गई, जिसमें एजेंटों और एजेंसियों के नाम शामिल हैं। अब तक यहां फंसे 100 से ज्यादा भारतीयों को बचाया गया है। बाकियों की रिहाई के लिए भी कोशिशें की जा रही हैं।

यंगून में भारतीय एम्बेसी ने 14 अक्टूबर को भारतीयों के लिए एडवाइजरी जारी की थी, इसमें जॉब फ्रॉड करने वाली म्यांमार की कंपनियों से सतर्क रहने का सुझाव दिया गया है।
जिस जगह भारतीयों को रखा गया था, वह म्यावाड्डी एरिया पूरी तरह म्यांमार सरकार के नियंत्रण में नहीं है। वहां हथियारबंद समूहों का दबदबा है। भारतीयों को जॉब स्कैम से बचाने के लिए 5 जुलाई को एडवाइजरी जारी की गई थी। इसमें जॉब ऑफर लेने से पहले बैकग्राउंड चेक करने के लिए अलर्ट किया गया था।
वहीं, जॉब स्कैम में चीनी कंपनियों के शामिल होने पर विदेश मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि अभी हमारा मकसद वहां फंसे भारतीयों को निकालने का है। इसके बाद हम इस मामले की पूरी जांच करवाएंगे।
शहर के आसपास के इलाके में विद्रोही गुट एक्टिव हैं। यहां बंदूकों के साथ हैंड ग्रेनेड से लैस लोग घूमते हैं। ये गार्ड हैं या विद्रोही, इसकी पहचान नहीं की जा सकती।
कुछ पीड़ितों का कहना है कि इंडियन ऐंबैसी से उन्हें मदद नहीं मिली, इस पर अधिकारी ने कहा कि ऐसी घटनाओं में पीड़ित सरकार या ऐंबैसी से बहुत अपेक्षा रखते हैं। यूक्रेन के मामले में भी ऐसा ही हुआ, लेकिन हमारी सीमाएं हैं। हम उनके संपर्क में हैं और जितनी हो सके उनकी मदद कर रहे हैं।













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