राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पहली बार जयपुर से विधायक बने हैं। जानकारों का कहना है कि संगठन में काम करने के लंबे अनुभव ने आलाकमान ने उन्हें CM चुना।
राजस्थान में भजनलाल सरकार के पहले मंत्रिमंडल को लेकर हो रही देरी के पीछे गुजरात मॉडल लागू किए जाने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं। गुजरात में BJP ने नया प्रयोग करते हुए अपनी सरकार में मंत्री रहे 22 दिग्गज नेताओं को बाहर कर दिया था। अगर BJP यहां पर गुजरात मॉडल को अपनाती है तो कई पूर्व मंत्रियों की नए मंत्रिमंडल से छुट्टी हो सकती है।
मंत्रिमंडल गठन को लेकर हो रही देरी ने कई दिग्गजों की नींद उड़ा दी है, लेकिन क्या पुराने दिग्गजों को दरकिनार कर नई कैबिनेट बनाना आसान होगा? राजस्थान में भजनलाल सरकार के मंत्रिमंडल गठन में कौन सा मॉडल दिखेगा? पढ़िए- ऐसे ही सवालों का जवाब…
आखिर क्या है गुजरात मॉडल, जिसने उड़ाई पूर्व मंत्रियों की नींद?
2021 के विधानसभा चुनाव में BJP ने गुजरात में रिपीट किया, लेकिन मंत्रिमंडल में अधिकांश चेहरे एकदम नए और चौंकाने वाले थे।
मंत्री पद के दावेदार पूर्व मंत्रियों की चिंता का एक बड़ा कारण राजस्थान में अभी तक BJP के गुजरात मॉडल पर ही आगे बढ़ने को लेकर है। BJP ने गुजरात में सरकार के गठन के दौरान नो रिपीट कैबिनेट का फॉर्मूला अपनाया था।
दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में बहुमत के बाद BJP ने अपनी पूर्व सरकार में मंत्री रहे 25 चेहरों में से 22 को बाहर कर चौंका दिया था। केवल 3 पुराने नेताओं को ही जगह दी गई थी। यह प्रयोग सफल भी रहा था। गुजरात को BJP की प्रयोगशाला माना जाता है। यही कारण है कि यहां सफल रहे प्रयोग को BJP दूसरे राज्यों में भी लागू करती रही है।
गुजरात मॉडल की राह पर भजनलाल सरकार
BJP ने गुजरात में मुख्यमंत्री, मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष सभी को बदल दिया था। इनकी जगह नए चेहरों को स्थान देकर सभी को चौंकाया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के अलावा 9 मंत्री तो पहली बार ही विधानसभा चुनाव जीतकर आए थे।
राजस्थान में पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे BJP का गुजरात मॉडल ही माना जा रहा है।
राजस्थान में भी बीजेपी ने मुख्यमंत्री का नया चेहरा पेश किया और विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर भी नए व्यक्ति को बैठाया है, इसमें गुजरात मॉडल की ही झलक दिखाई दे रही है। ऐसे में बीजेपी अगर इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती है तो पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे कई दिग्गजों की परेशानी बढ़ सकती है।
…इसलिए मंत्रिमंडल में हो रही देरी
भजनलाल सरकार में वसुंधरा राजे की सरकार में शामिल रहे मंत्रियों को कैबिनेट में जगह मिलेगी या पूरी कैबिनेट ही बदल दी जाएगी, या फिर नए चेहरों के साथ कुछ पुराने दिग्गजों का संतुलन बैठाकर कैबिनेट का गठन किया जाएगा। इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो गुजरात मॉडल का ‘नो रिपीट फॉर्मूला’ लागू हुआ तो कई पूर्व मंत्रियों को इस बार मंत्री की कुर्सी नसीब नहीं होगी। हालांकि, आलाकमान के लिए गृह राज्य गुजरात की तरह प्रदेश में पुराने राजनीतिक नेतृत्व को नए चेहरों से बदलना आसान नहीं होगा। लोकसभा चुनाव को देखते हुए आलाकमान को वसुंधरा खेमे को साधना भी जरूरी है।
…तो क्या आसान होगा वसुंधरा कैबिनेट में शामिल रहे इन चेहरों को दरकिनार करना?
वसुंधरा राजे सरकार के कई कैबिनेट मंत्री भी भजनलाल सरकार में शामिल होने की दौड़ में हैं। इनमें छह ऐसे वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं, जो 5 बार से ज्यादा विधायक रहे हैं। इनमें प्रमुख नाम किरोड़ीलाल मीना, कालीचरण सराफ, प्रताप सिंह सिंघवी, मदन दिलावर, पुष्पेंद्र सिंह राणावत और अनिता भदेल शामिल हैं।
इनके अलावा पूर्व मंत्रियों में डॉ. जसवंत यादव, गजेंद्र सिंह खींवसर, श्रीचंद कृपलानी, ओटाराम देवासी, अर्जुनलाल जीनगर और अजय सिंह किलक भी कतार में हैं। वहीं पूर्व सचेतक रहे जोगेश्वर गर्ग और जितेंद्र गोठवाल भी खुद को रेस में मानकर चल रहे हैं।
विमान में बैठकर फाइलें निपटाते मुख्यमंत्री भजनलाल। माना जा रहा है कि कैबिनेट में पुराने और नए चेहरों में संतुलन बनाया जा सकता है।
MP-छत्तीसगढ़ के फैसलों से राजस्थान के पूर्व मंत्रियों को राहत, नए चेहरों को उम्मीद
BJP गुजरात मॉडल को मध्य प्रदेश में पूरी तरह से लागू नहीं कर पाई। CM फेस बदल कर चौंकाया जरूर है, लेकिन आलाकमान ने मंत्रिमंडल के जरिए सीनियर नेताओं के साथ ही शिवराज खेमे को भी साधा। MP में पूर्व मंत्रियों में से आधे नामों को ही नए मंत्रिमंडल में जगह दी गई।
विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार में 33 मंत्री थे। इनमें से 12 हार गए, वहीं दो के टिकट काटे गए थे। मंत्री रहे डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री, राजेन्द्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा डिप्टी CM बन गए। बचे हुए 16 में से 8 मंत्री बने और 8 नहीं।
मध्य प्रदेश सरकार में गठन के दौरान 8 पुराने चेहरों को कैबिनेट में शामिल किया गया है।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल विस्तार ने राजस्थान के पूर्व मंत्रियों को थोड़ी राहत दी है। साथ ही नए विधायकों में भी उम्मीद जगी है। इसी पैटर्न को प्रदेश में लागू किया जाता है तो यहां भी अनुभवी और युवा चेहरों का संतुलन देखने को मिल सकता है।
हाईकमान के फैसले पर ही बनेंगे मंत्री
राजस्थान विधानसभा चुनाव में BJP CM फेस के बिना मैदान में उतरी थी। PM नरेंद्र मोदी और उनकी लोकप्रियता के दम पर BJP ने बहुमत हासिल किया। ऐसे में अब मुख्यमंत्री के चयन से लेकर मंत्रियों की नियुक्ति तक आलाकमान का निर्णय ही आखिरी निर्णय माना जा रहा है।
BJP में बड़े नेता भी कयास ही लगा रहे हैं कि मंत्रिमंडल में कौन शामिल होगा और कौन नहीं। हकीकत ये है कि नए मंत्रिमंडल के चेहरे पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर करेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव तक छोटा मंत्रिमंडल होगा और इसके बाद विस्तार किया जा सकता है।
भजनलाल कैबिनेट आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए छोटी हो सकती है। इसमें बाद में विस्तार किया जा सकता है।
2024 के लोकसभा चुनाव पर नजर
राजस्थान के नए मंत्रिमंडल के जरिए BJP लोकसभा चुनाव के दौरान बढ़त हासिल करना चाहती है। इसके लिए पार्टी जाति और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने में जुटी है। BJP की नजर लोकसभा चुनाव में इस बार भी प्रदेश की सभी 25 सीटें जीतने की है। ऐसे में नए चेहरों के साथ ही OBC को मंत्रिमंडल में ज्यादा महत्व मिल सकता है।
BJP के लिए सही रहा है पुराने चेहरे बदलने का प्रयोग
BJP के नए चेहरों पर दांव लगाना विधानसभा चुनाव में भी सही साबित हुआ था। कांग्रेस और BJP ने 82 नए चेहरे मैदान में उतारे थे। इनमें कांग्रेस ने 43 को टिकट दिए, जिनमें से 10 ही जीत सके। वहीं, BJP ने 39 नए चेहरे उतारे, उनमें से 18 ने जीत दर्ज की थी। प्रतिशत की बात करें तो कांग्रेस के फ्रेशर्स की जीत का प्रतिशत 23 और BJP का 46 रहा।
मंत्रिमंडल विस्तार की देरी पर कांग्रेस हमलावर
प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर हो रही देरी को लेकर कांग्रेस BJP पर लगातार निशाना साध रही है। पूर्व CM अशोक गहलोत के साथ ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी BJP और भजनलाल सरकार पर निशाना साध चुके हैं। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि मंत्रिमंडल नहीं बनने और मुख्यमंत्री कार्यालय में अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने से जनता परेशान हो रही है।
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