चीन उसे एक “रिसर्च शिप” कहता है. यानी एक ऐसा नौसैनिक जहाज़ जिसका काम समुद्र में वैज्ञानिक अनुसंधान करना है.
भारत और अमेरिका जैसे देश उसे एक “स्पाई शिप” मानते हैं. यानि एक ऐसा जहाज़ दो दूसरे देशों की जासूसी करने के लिए तैनात किया जाता है.
युआन वांग 5 नाम के चीनी नौसैनिक जहाज़ का 16 अगस्त को श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पहुँचाना भारत के लिए एक नया सिरदर्द बन गया है.
चीन का कहना है कि ये जहाज़ आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने के लिए हंबनटोटा में रुका है.
साथ ही चीन ने कहा है कि जिस तरह की समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान से जुड़े काम ये जहाज़ करता है, वो अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक हैं.
चीन ने ये भी कहा है कि इस पोत की गतिविधियां किसी भी देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित नहीं करती हैं.
लेकिन भारत में चिंता जताई जा रही है कि हंबनटोटा बंदरगाह पर युआन वांग 5 के सात दिन रुकने से क्या इस जहाज़ को भारत की करीब से जासूसी करने का मौक़ा मिलेगा, जिससे भारत के सुरक्षा हित ख़तरे में पड़ सकते हैं.
हंबनटोटा से कितनी दूर है भारत
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह से भारत के चेन्नई बंदरगाह का फासला करीब 535 समुद्री मील (नॉटिकल माइल) या 990 किलोमीटर है.
इसी तरह हंबनटोटा और कोच्चि बंदरगाह के बीच का फासला करीब 609 समुद्री मील या 1128 किलोमीटर है.
विशाखापत्तनम बंदरगाह हंबनटोटा से 802 समुद्री मील या करीब 1485 किलोमीटर की दूरी पर है.
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए लॉन्च बेस इंफ्रास्ट्रक्चर देने वाला सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा में स्थित है जो हंबनटोटा से करीब 1100 किलोमीटर की दूरी पर है.

हंबनटोटा बंदरगाह
- 150 करोड़ डॉलर से बना हंबनटोटा पोर्ट दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है.
- निर्माण के वक्त से ही ये बंदरगाह विवादों में रहा और इसका विरोध हुआ.
- पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में बने इस बंदरगाह से चीनी माल को देश के अन्य भागों तक पहुंचाने की योजना थी.
- कोलंबो से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित बंदरगाह चीन से मिले कर्ज़ से बना.
- बंदरगाह को चीन की सरकारी संस्था चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स ने बनाया था.
- इसमें 85 फीसदी हिस्सेदारी चीन के एक्सिम बैंक की थी.
- श्रीलंका सरकार को कर्ज़ चुकाने में मुश्किलें आईं जिसके बदा पोर्ट को 99 साल के लिए चीन को लीज़ पर दे दिया गया.


युआन वांग 5 ने पिछले हफ़्ते हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति मांगी थी. लेकिन इस जहाज़ को लेकर भारत की चिंताओं के दर्ज होने के बाद ये अनुमति नहीं मिली थी.
भारत ने इसी बीच इस बात से इंकार किया था कि उसने इस जहाज़ के हंबनटोटा में रुकने के मसले पर श्रीलंका पर किसी किस्म का दबाव डाला है.
इस जहाज़ के हंबनटोटा बंदरगाह पहुँच जाने के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा है कि चीन को सैन्य उद्देश्यों के लिए हंबनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.
श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को ऊँचे ब्याज वाले चीनी कर्ज़ों की मदद से बनाया गया था.
जब श्रीलंका चीन से लिए गए क़र्ज़ को चुकाने में विफल रहा तो इस बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर चीन को सौंप दिया गया था.

क्या है युआन वांग 5?
युआन वांग 5 चीन के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्ष-ट्रैकिंग जहाजों में से एक है जिसका उपयोग उपग्रह, रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की निगरानी के लिए किया जाता है.
ये जहाज़ युआन वांग श्रृंखला की तीसरी पीढ़ी का ट्रैकिंग जहाज है जो साल 2007 में चीनी सेना में शामिल हुआ. इस जहाज़ को जियांगन शिपयार्ड में बनाया गया है.
चीन के सरकारी प्रसारक सीजीटीएन की एक ख़बर के मुताबिक साल 2020 में युआन वांग 5 जहाज़ चीन के लॉन्ग मार्च-5बी रॉकेट के लॉन्च में शामिल हुआ था और 81 दिनों तक प्रशांत महासागर में रह कर 20,000 हज़ार समुद्री मील से अधिक की यात्रा कर वापस लौटा था.
सीजीटीएन के मुताबिक इस 81 दिन लम्बी यात्रा के दौरान युआन वांग 5 किसी भी बंदरगाह पर नहीं रुका था.
भारतीय नौसेना के एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी ने उनकी पहचान का खुलासा न करने की शर्त पर बात की.
उन्होंने कहा, “ये जहाज़ आपकी नाक तक पहुंच गया है. भारत के पास चिंता करने के सभी कारण हैं.”
युआन वांग 5 की क्षमताओं के बारे में वे कहते हैं, “इस तरह के जहाज़ कई स्तरों पर समुद्र की गहराई की निगरानी करते हैं जिन गहराईयों तक पनडुब्बियों को तैनात किया जा सकता है. पनडुब्बियों को तैनात करने के पैटर्न पानी के नीचे के तापमान पर निर्भर करते हैं. और उन तापमानों को एक दिन में नहीं लिया जाता है. उन्हें महीनों और अलग अलग मौसम में लिया जाता है. हिंद महासागर क्षेत्र में ऐसा जहाज़ महीनों तक रह सकता है.”
नौसेना के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी कहते हैं, “पानी के नीचे के तापमान की जानकारी जुटा कर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगर किसी ख़ास तरह की पनडुब्बी किसी ख़ास इलाके में है तो वह कितनी गहराई पर होगी जिससे वो खुद को दुश्मन से अच्छे से छुपा सके.”
साथ ही वे कहते हैं कि ये जहाज़ बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करता है. उन्होंने कहा, “इसका मतलब है कि इस जहाज़ के रडार और सेंसर बहुत ही शक्तिशाली हैं. सैनिक गतिविधियों के पैटर्न स्थापित करने के लिए इन जहाजों की आवश्यकता होती है.”
भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता?
भारत की पूर्वी नौसेना कमान के पूर्व कमांडर-इन-चीफ वाइस एडमिरल अनूप सिंह भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं.
अनूप सिंह कहते हैं, “चिंता का विषय ये भी है कि श्रीलंका एक ऐसे जहाज़ को रुकने की अनुमति क्यों दे रहा है जो एक सैन्य जहाज़ से कहीं ज़्यादा है. इस जहाज़ को दोहरे उपयोग वाला जासूसी जहाज़ माना जाता है. ये एक सर्वेक्षण पोत का काम भी करता है जो जल सर्वेक्षण के नाम पर समुद्र तल को देखने जैसे कई अन्य काम कर सकता है.”
वाइस एडमिरल अनूप सिंह के मुताबिक जब हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनियों का कब्ज़ा हो गया था तो भारत इस बात से चिंतित था कि चीनी अब आराम करने या ईंधन भरने के नाम पर अपने पीएलए-नौसेना जहाजों और पनडुब्बियों के लिए इस बंदरगाह का इस्तेमाल करेंगे.
वे कहते हैं, “चीन ने कई बार कहा है कि वे इस बंदरगाह का उपयोग पीएलए नौसेना बेस के रूप में नहीं करेगा लेकिन कौन जानता है कि वे कहते क्या हैं और उनका वास्तव में क्या मतलब है.”
वाइस एडमिरल अनूप सिंह कहते हैं कि अतीत में भी चीन हिन्द महासागर क्षेत्र में ऐसे जहाज़ भेजता रहा है. उन्होंने कहा, “जब उनसे पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि ये जहाज़ उनके उपग्रहों को ट्रैक करने के लिए तैरते हुए अर्थ-स्टेशन के तौर पर काम करते हैं और उन्हें कुछ चुनी हुई जगहों में तैनात करने की ज़रुरत पड़ती है.

क्या ये जहाज़ अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी का हिस्सा है?
अमेरिका के रक्षा विभाग के मुताबिक चीन ने अपने 2015 के रक्षा श्वेत पत्र में आधिकारिक तौर पर अंतरिक्ष को युद्ध के एक नए डोमेन के रूप में नामित किया है.
अमेरिका का कहना है कि चीन को उम्मीद है कि भविष्य में देशों के बीच होने वाले संघर्षों में अंतरिक्ष की एक अहम भूमिका होगी जहां लम्बी दूरी के सटीक हमले करने की क्षमता और दूसरी सेनाओं की संचार क्षमताओं को ध्वस्त करने पर ज़ोर होगा.
अमेरिकी कांग्रेस को अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में रक्षा विभाग ने कहा था कि चीन की स्ट्रैटिजिक सपोर्ट फ़ोर्स (एसएसएफ) का स्पेस सिस्टम डिपार्टमेंट चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग सभी अंतरिक्ष संचालन के लिए ज़िम्मेदार है. इन अंतरिक्ष अभियानों में अंतरिक्ष प्रक्षेपण, निगरानी और अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं.
अमेरिका का कहना है कि चीन का स्पेस सिस्टम डिपार्टमेंट कम-से-कम आठ ठिकानों का संचालन करता है. अमेरिकी रक्षा विभाग का कहना है कि चीन की स्ट्रैटिजिक सपोर्ट फ़ोर्स नामीबिया, पाकिस्तान और अर्जेंटीना में ट्रैकिंग, टेलीमेट्री और कमांड स्टेशन संचालित करती है.
यही स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फ़ोर्स उपग्रहों और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) के लॉन्च को ट्रैक करने के लिए युआन वांग जहाज़ों का संचालन करती है.

Add Comment