श्रीमती अंजना शर्मा(ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर राजस्थान सरकार


इस संस्थान की स्थापना का श्रेय राजस्थान के प्रथम मुख्यमन्त्री श्री हीरालाल शास्त्री को दिया जाता है जिन्होंने सर्वप्रथ एक संस्कृत मण्डल की स्थापना की थी। इस मण्डल के आवेदcन प्रस्तुत करने पर श्री श्याम सुन्दर शर्मा (भूतपूर्व रजिस्ट्रार) के निरन्तर प्रयास से 1950 ई. में इस संस्थान को मूर्तरूप दिया गया। मई सन् 1950 से इसका कार्य प्रारम्भ हुआ तथा राजस्थान के पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिन विजय के सुझाव के अनुसार इसकी योजना बनाई गई। संस्कृत कालेज के भवन के एक भाग में इसका कार्य प्रारम्भ किया गया। सन् 1951 ई. में अन्तरिम मन्त्रिमण्डल के गृहमन्त्री श्री भोलानाथ झा के सत्प्रयास से पुरातत्व मन्दिर को राजकीय शोध संस्थान के रूप में रखने का निर्णय हुआ। मुनि श्री जिन विजय को इसका सम्मान्य संचालक नियुक्त किया गया। क्रमशः इस संस्थान का विकास तथा विस्तार हुआ। सन् 1956 में कुछ नये पद स्वीकृत हुए तथा इसका बजट भी बढ़ाया गया। अब तक इसका मुख्य कार्यालय जयपुर में ही था, परन्तु राजकीय नीति के अनुसार 1 अप्रैल, 1995 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. श्री राजेन्द्रप्रसाद ने जोधपुर में इसके स्थायी भवन का शिलान्यास किया। 3 वर्ष पश्चात् दिसम्बर, 1958 में यह संस्थान जोधपुर में स्थानान्तरित किया गया और जयपुर को शाखा कार्यालय बनाया गया उस समय तक इसकी कोई शाखा नहीं थी। य़ह संग्रहालय तब से लेकर अब तक जयपुर की श्रीवृद्धि करता रहा तथा इस काल में इसके द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन व प्रकाशन हुआ।वर्तमान में राजस्थान के सात स्थानों पर इसकी शाखा चल रही है । जिसका मुख्यालय जोधपुर है। सभी शाखाओं में हजारों की संख्या में पांडुलिपियां उपलब्ध हैं परंतु जयपुर शाखा में अति विशिष्ट व महत्वपूर्ण साहित्य आज भी विद्यमान है । इस संग्रहालय में स्वर्गीय हरिनारायण विद्या भूषण के 830 ग्रन्थों का संग्रह, श्री लक्ष्मीनाथ शास्त्री दाधीच के 1552 ग्रन्थों का संग्रह ,श्री विश्वनाथ के संस्कृत के 336 ग्रन्थों का संग्रह , पद्मनारायण गुप्ता के 1906 ग्रन्थों का संग्रह , श्री जैन धर्मेंद्र सूरि जी के 2512 में ग्रन्थों का संग्रह है जिनमें जयपुर का इतिहास संतों की वाणियां संस्कृत हिंदी तथा राजस्थानी अलभ्य ग्रंथ जैन साहित्य इस संग्रहालय की उपयोगिता को सिद्ध करते हैं । राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जयपुर के नाम से आज यह संग्रहालय बड़ी चौपड़ श्री रामचंद्र जी के मंदिर में चल रहा है । जिससे भारतीय ही नहीं विदेशों के शोधार्थी भी उपकृत हो रहे हैं ।
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