रिलेशनशिप- ज्ञानी रावण अहंकार के कारण मरा:जीवन में इगो अच्छा है या बुरा, क्या कहते हैं एक्सपर्ट, साइकोलॉजिस्ट की 7 सलाह

रावण के पास क्या नहीं था। दुनिया का सबसे ज्ञानी इंसान था। वर्षों तक तप करके अमरता का वरदान हासिल किया था। उसके पास विशालकाय सेना थी। महल, माणिक, सोना, चांदी, धन, बल सबकुछ था। फिर भी सब मिट्टी में मिल गया। सबकुछ नष्ट हो गया। दस सिरों वाले रावण की सारी अमरता और अहंकार धरा रह गया और अंत में उसे भी मरना पड़ा।
क्यों?
सिर्फ एक कारण से- ‘अहंकार।’
ज्ञान का अहंकार, सत्ता का अहंकार, संपदा का अहंकार, अमरता का अहंकार।
यह अहंकार ऐसी चीज है, जो अच्छे-से-अच्छे इंसान को मिट्टी में मिला सकती है। सारी सफलताओं पर पानी फेर सकती है। कल दशहरे के दिन हमने दशहरा मैदान में इस दस सिरों वाले अहंकार को जलाया था, लेकिन क्या अपनी निजी जिंदगी में इगो और अहंकार को खत्म कर पाए हैं।
यह एक तरह का रिमाइंडर भी है कि जीवन में चाहे कितने बड़े बन जाओ और चाहे कितनी भी ऊंची जगह पर पहुंच जाओ, कभी उसका अहंकार नहीं करना चाहिए।
तो चलिए आज रिलेशनशिप कॉलम में बात करते हैं अहंकार की। जानते हैं कि अहंकार निजी जिंदगी से लेकर प्रोफेशनल रिश्तों तक को कैसे नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

विद्या से विनम्रता आती है
हम सबने बचपन में संस्कृत की किताब में यह श्लोक जरूर पढ़ा होगा-
“विद्या ददाति विनयम विनयाद याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनम् आप्नोति धनाद धर्मं ततः सुखम्।।”
इस श्लोक का अर्थ है- “ज्ञान सदैव व्यक्ति को विनम्र बनाता है। विनम्रता से पात्रता आती है। पात्रता से धन-समृद्धि आती है। समृद्धि से सही आचरण आता है और सही आचरण से सुख-संतोष की प्राप्ति होती है।”
सरल शब्दों में कहें तो जैसे फलों से भरी पेड़ की डाली हमेशा झुक जाती है, वैसे ही सचमुच के ज्ञान, बुद्धि, समझ वाला इंसान हमेशा शांत और विनम्र होगा। वो अपने नॉलेज का दिखावा नहीं करेगा। वो कभी कूद-कूदकर सबको ये बताता और जताता नहीं फिरेगा कि देखो मुझे तो कितना आता है। हमारे भीतर यह विनम्रता होगी तो उससे पात्रता यानी एलिजिबिलिटी भी पैदा होगी। हम काबिल बनेंगे तो और नया सीख सकेंगे। सीखेंगे तो पैसा, समृद्धि, सुख सब हमारे पीछे-पीछे आएगा।
इतनी आसान सी बात है। लेकिन क्या मॉडर्न साइकोलॉजी भी इस बात को सपोर्ट करती है।
सिगमंड फ्रायड ने ‘इगो’ के बारे में क्या कहा
दुनिया के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने 1920 के दशक की शुरुआत में इंसान के व्यक्तित्व और अहंकार के जटिल पहलुओं का अध्ययन शुरू किया। उन्होंने इगो को इंसान के प्रिमिटिव यानी आदिम मानवीय इंस्टिंक्ट की तरह देखा।
फ्रायड के मुताबिक खुद को महत्वपूर्ण महसूस करना हर मनुष्य की प्राकृतिक और बुनियादी जरूरत है। हम इस एहसास के साथ नहीं रह सकते कि हम किसी लायक नहीं हैं। लेकिन कल्पना करिए कि हमारे पूर्वज अगर ये इगो लेकर रहते कि मैं अकेले ही शिकार कर लूंगा, अकेले ही जंगल में शेर से लड़ लूंगा, मैं सबसे महान हूं तो इंसानों की प्रजाति सर्वाइव ही नहीं कर पाती।
हम इसलिए जिंदा रहे क्योंकि हमेशा समूह में रहे। समूह में काम किया, एक-दूसरे की मदद की, एक-दूसरे की रक्षा की और यह करने के लिए अपने अहंकार से ऊपर उठना और आपसी मदद और सहयोग की भावना रखना बहुत जरूरी है।
वक्त के साथ और विकसित हुआ मनोविज्ञान आज ये मानता है कि इगो मनुष्य की निजी और सामूहिक उपलब्धियों के रास्ते में खड़ी दीवार है।

अहंकार हमें बनाता है स्वार्थी और आत्मकेंद्रित
रायन हॉलिडे अमेरिकन बेस्टसेलर लेखक और लाइफ कोच हैं। उन्होंने एक किताब लिखी है- ‘इगो इज द एनिमी।’ ये किताब दुनिया भर के दार्शनिकों, लेखकों, बुद्धिजीवियों और साइंटिफिक रिसर्च के हवाले से बताती है कि अहंकार कैसे हमारा खुद का दुश्मन बन जाता है। हम अपने आपसे कट जाते हैं, अपनी क्षमताओं को पूरी तरह विकसित नहीं कर पाते हैं।

अहंकार हमें नई चीजें सीखने, आगे बढ़ने से रोकता है
यह बात तो सुकरात और अरस्तू ने भी लिखी है कि जिसे इस बात का अहंकार हो कि उसे सबकुछ आता है, उसे असल में कुछ भी नहीं आता। सबकुछ तो किसी को भी नहीं आता। हम रोज कुछ नया सीखते हैं, रोज एक कदम आगे बढ़ते हैं।
अहंकारी व्यक्ति यह नहीं कर पाता। नई चीजें सीखने और आगे बढ़ने के उसके रास्ते ब्लॉक हो जाते हैं क्योंकि उसे लगता है कि उसे सब आता है।
अहंकार हमें अपने ही खिलाफ खड़ा कर देता है
रॉयन हॉलिडे अपनी किताब में एक उदाहरण देते हैं। वे लिखते हैं कि हम जब जीवन में सबसे कमजोर, अकेले, वलनरेबल होते हैं तो हम सोशल मीडिया पर पोस्ट लगाते हैं कि हम पार्टी कर रहे हैं। हम खुश हैं। वो फोटो महीनों पुरानी होती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण हमारा इगो भी है, जो यह स्वीकारने को तैयार नहीं कि हम हमेशा ताकतवर नहीं होते। हम कई बार कमजोर भी पड़ते हैं, हमें मदद की भी जरूरत होती है।
बकौल रायन अहंकार का सबसे दुखद पहलू ये है कि यह हमें खुद से ही दूर कर देता है, हमारे ही खिलाफ खड़ा कर देता है।
प्रोफेशनल लाइफ पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है
रायन अपनी किताब में लिखते हैं कि बहुत बार हमें यह गलतफहमी हो जाती है कि वर्कप्लेस पर इगो हमारे लिए बहुत उपयोगी है, जबकि सच इसके ठीक उलट है।
अहंकार प्रोफेशनल ग्रोथ में भी बाधक है क्योंकि दफ्तर में आगे बढ़ने के लिए भी जरूरी है, हमेशा कुछ नया सीखते रहना, हमेशा आगे बढ़ना। बच्चे जैसी जिज्ञासा के साथ सवाल करना, दूसरों की उपलब्धियों को स्वीकारना, उनकी तारीफ करना और उन्हें इनकरेज करना। लेकिन अगर हमारा अहंकार बहुत बड़ा है तो हम ये सारी चीजें नहीं कर पाएंगे।

इगो बहुत बड़ा हो जाए तो रिश्ते खराब हो जाते हैं
अहंकार कहीं काम नहीं आता। वो हर चीज को सिर्फ बिगाड़ता है। जब दुनिया के देश अहंकार में ‘तू बड़ा कि मैं’ करने लगते हैं तो युद्ध छिड़ जाते हैं। अगर रिश्तों में प्यार से बड़ा इगो हो जाए, अगर वहां ‘तू बड़ा कि मैं’ होने लगे तो नतीजा लड़ाई-झगड़े और तलाक तक पहुंच जाता है।
इसलिए तय करिए कि अपने भीतर के रावण यानी अहंकार को खत्म करेंगे और विनम्रता, सरलता, प्यार और सहयोग को अपने जीवन में पहली प्रिऑरिटी पर रखेंगे।








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