विधायकों ने कैसे लिए मनपसंद लग्जरी फ्लैट:एक फोन से रुका मुगल टैंट का विरोध, पत्नी ने गिनाई पति के विभाग की कमियां
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
राजधानी में हुए साहित्य के सालाना बड़े उत्सव में एक नेताजी ने विरोध की पूरी तैयारी कर ली थी। पहली बार विधायक बने उग्र धार्मिक छवि वाले नेताजी को मुगल टेंट के नाम पर आपत्ति थी, उन्होंने विरोध करने की तैयारी कर ली थी। अचानक एक फोन ने उन्हें यू-टर्न लेने पर मजबूर कर दियाा, विरोध छोड़ नेताजी चुप हो गए।
पिछले साल जिस मुद्दे पर बड़े बड़े नेताओं ने विरोध में बयान जारी किए थे, इस बार वे सब चुप थे। अब नेताजी को यह कौन समझाए कि विपक्ष और सकार का रोल अलग अलग होता है। पिछली बार जो विरोध कर रहे थे, वे अब सत्ताधारी हो गए हैं, सत्ता वाले विरोध कैसे कर सकते हैं? नेताजी को फोन करके यह अच्छी तरह समझा दिया था। नेताजी को अभी कई तरह की सियासी उलटबांसियों को समझना बाकी है।
विधायकों के नए लग्जरी फ्लैट आवंटन पर कौन हुआ नाराज?
विधानसभा के ठीक सामने बने नए लग्जरी फ्लेट्स अब विधायकों को आवंटित हो गए हैं। इसके लिए बाकायदा एक कमेटी बनी हुई है। पहले मंत्री रह चुके विधायक आवास कमेटी के अध्यक्ष हैं। आवंटन के लिए लॉटरी निकाली गई, लॉटरी से आवंटन के बाद भी कई विधायकों को फ्लैट पसंद नहीं आए, अब विधायक पावरफुल हो तो लॉटरी क्या करेगी? कई पावरफुल विधायकों ने लॉटरी को ताक पर रखा और रसूख से मनचाहा फ्लैट आवंटित करवा लिया।
जब कुछ रसूखदारों को मनचाहे फ्लैट मिले तो लॉटरी में पहले आवंटित विधायक नाराज हो गए। कुछ विधायकों ने इस रसूखदार फार्मूले पर नाराजगी जताई है। विपक्षी पार्टी की मारवाड़ की एक महिला विधायक का लॉटरी में आवंटित फ्लैट सीमावर्ती जिले के सत्सीता वाली पार्टी के विधायक को दे दिया। राजधानी के पढ़े लिखे विधायक के साथ भी ऐसा ही हुआ। अब आवंटन से लेकर सब विधानसभा की कमेटी देख रही है तो कोई दूसरा तो क्या कह सकता है? बात स्पीकर तक पहुंचाई गई है, लेकिन अब तक हुआ कुछ नहीं है।
ब्यूरोक्रेसी के मुखिया की सुरक्षा सलाहकार से मुलाकात
सत्ता की राजनीति हो या ब्यूरोक्रेसी का पावर गेम, हर तरफ एक मैसेज होता है कि कौन किसलिए पावरफुल है। लंबे अरसे बाद ब्यूरोक्रेसी के मुखिया के पावर की हर तरफ गूंज है। यह उनके कामकाज से लेकर हर तरफ दिख रहा है। पिछले महीने देश के सुरक्षा सलाहकार जब राजधानी में आए थे तो केवल एक अफसर को ही मिलने का समय दिया था और वह है ब्यूरोक्रेसी के मुखिया। मुलाकात के लिए कई अफसरों ने वक्त मांगा था, लेकिन किसी को समय नहीं मिला। अब आप समझ गए होंगे ब्यूरोकेसी के मुखिया का पावर कितना है।
पुराने कांडों पर बड़े पुलिस अफसर फंसे
उपर वाला देख रहा है, यह जुमला यूं ही नहीं चलता। आप सार्वजनिक जीवन में हों तो आपको उपरवाले के अलावा भी सब देख ह रहे हों। एक बड़े पुलिस अफसर ने जिले में रहते हुए जो कांड किए अब वे बाहर आ चुके हैं। कांड भी ऐसे कि सबूत छोड़ दिए। केस की जांच में कौन दोषी होगा कौन नहीं, क्या धारा लगेगी क्या हटेगी यह सब आदेश दिए गए।
जब जांच हुई तो बड़े पुलिस अफसर के खिलाफ सबूत मिल गए, नीचे वालों ने कह दिया सब उपर के कहने पर किया। अब उपर वाले अफसर के खिलाफ जांच हो चुकी है, जांच में दोषी पाए जा चुके हैं, एक्शन के लिए फाइल उपर तक गई है। अब कार्रवाई का इंतजार है, देखते हैं फाइल पर एक्शन होता है या दबाकर रखी जाती है।
अफसर पत्नी ने गिनाई अफसर पति के विभाग की खामियां
ब्यूरोक्रेसी में पति-पत्नी की जोड़ियां हैं। कई बार रोचक संयोग बनते हैं। पिछले दिनों सबसे बड़े दफ्तर में सड़क और ट्रांसपोर्टेशन पर लंबा चौड़ा रिव्यू हुआ। ट्रांसपोर्ट की मुखिया अफसर ने खराब सड़कों से बसें खराब होने का तर्क दिया। सड़कों की क्वालिटी से लेकर इंजीनियरिंग तक की कमियों को गिनाया गया, सुझाव दिए गए।
इस रिव्यू का सबसे जोरदार संयोग यह था कि जिस विभाग की ये खामियां थीं वो विभाग महिला अफसर के पति संभालते हैं। अब पत्नी ने पति के विभाग की खामियों को गिनाया है तो सुधार कितने दिन में होताहै, इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं। जानकारों का दावा है कि ऐसे संयोग पहले भी बनते रहे हैं इसलिए ज्यादा उम्मीद पालना ठीक नहीं है।
जन्मभूमि बनाम कर्मभूमि
सियासत में आप अगर टॉप पर हैं तो आपके बोले गए हर शब्द और जुमले का विश्लेषण किया जाता है। सियासत में तो ये बातें ही सब तय करती हैं। अब प्रदेश के मुखिया का मूल जिला और निर्वाचन क्षेत्र अलग अलग हैं। भाषणों में वे बड़े गर्व से ब्रज भूमि से होने का जिक्र करते रहते हैं, अपनी जन्मभूमि से गर्व कौन नहीं करेगा?
उनका निर्वाचन क्षेत्र राजधानी की सीट का है। पिछले दिनों अपने जिले के दौरे से लेकर कई बार भाषणों में अपने जिले का जिक्र किया। अब मुखिया के निर्वाचन क्षेत्र के कई जागरूक कार्यकर्ताओं को जुमला आधा लग रहा है,उनका तर्क है कि मुखिया के हम वोटर हैं तो गृह जिले से ज्यादा उनका भी हक है, लिहाजा जन्मभूमि के साथ कर्मभूमि का नाम भी लेना चाहिए। सुना है जनभावना मुखिया तक पहुंचा दी गई है, अगले भाषणों में शायद यह शिकायत दूर हो जाए।
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