ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा

- महाशिवरात्रिः पर्व *
26 फरवरी 2025 बुधवार
(शिवत्व की विशेष प्रसन्नता पाने का पर्वः महाशिवरात्रि)
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः।।
- महाशिवरात्रि के दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है। उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान, वस्त्र, धूप और पुष्प अर्पण करने भी नहीं होता।’
उत्तम उपवास कौन सा..?-:
- ‘उप’ माने समीप ‘वास’ करना, अपनी आत्मा के समीप जाने की व्यवस्था बोलते हैं ‘उपवास’। भगवान जितना उपवास से प्रसन्न होते हैं उतना स्नान, वस्त्र, धूप-पुष्प आदि से प्रसन्न नहीं होते।
“उप समीपे यो वासो जीवात्मपरमात्मनोः।”
- ‘जीवात्मा का परमात्मा के निकट वास ही उपवास है।’ जप-ध्यान, स्नान, कथा-श्रवण आदि पवित्र सदगुणों के साथ हमारी वृत्ति का वास ही ‘उपवास’ है। ऐसा नहीं कि अनाज नहीं खाया और राजगीर व कुट्टू के आटे की पूरियां, साबूदाने की खिचड़ी, आलू- गाजर का हलवा खा लिया और बोले, ‘उपवास है।’ यह उपवास का बिल्कुल निम्न स्वरूप है।
- उपवास का उत्तम स्वरूप है कि आत्मा के समीप जीवात्मा का वास हो। मध्यम उपवास है कि हफ्ते में एक बार और ऐसे पवित्र दिनों-पर्वों के समय अन्न और भूनी हुई वस्तुओं का त्याग करके आवश्यक होने पर केवल जरा सा फल व दूध इत्यादि लेकर नाड़ियों की शुद्धि करके जप- ध्यान- भजन करें, और व्रत के दूसरे दिन व्रत का पारण करके बिल्कुल हल्का भोजन ग्रहण करें।
- महाशिवरात्र माने कल्याण करने वाली रात्रि, मंगलकारी रात। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि है, कल्याणकारी रात्रि है। यह तपस्या का पर्व है।
शिवस्य प्रिया रात्रिर्यस्मिन् व्रते अंगत्वेन विहिता तद् व्रतं शिवरात्र्याख्यम्।
- शिवजी को जो प्रिय है ऐसी रात्रि, सुख-शांति-माधुर्य देने वाली, शिव की वह आनंदमयी, प्रिय रात्रि जिसके साथ व्रत का विशेष संबंध है, वह है शिवरात्रि और वह व्रत शिवरात्रि का व्रत कहलाता है। जीवन में अगर कोई-न-कोई व्रत नहीं रखा तो जीवन में दृढ़ता नहीं आयेगी, दक्षता नहीं आयेगी, अपने-आप पर श्रद्धा नहीं बैठेगी और सत्यस्वरूप आत्मा-परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती है, ‘यजुर्वेद’ में आता है-:
व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते।। - *यह शिवरात्र जैसा पवित्र व्रत आपके मन को पुष्ट व पवित्र करने के लिए, मजबूत करने के लिए आता है। आपको महान बनने का और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर देता है, इनमें किया गया जप- तप- ध्यान अनंत गुना पुण्य-फल देता है *
महाशिवरात्रि में रात्रि-पूजन का विधान क्यों ?
- महाशिवरात्रि की रात्र को चार प्रहर की पूजा का विधान है। प्रथम प्रहर की पूजा दूध से, दूसरी दही से, तीसरी घी से और चौथी शहद से सम्पन्न होती है। इसका भी अपना प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक रहस्य है। हमारी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक – चारों स्थितियाँ उन्नत हों इसलिए पूजा का ऐसा विधान किया गया।
- इस महाशिवरात्रि के व्रत में रात ही पूजन क्यों ? यह पूजन रात्र में इसलिए है क्योंकि एक ऋतु पूरी होती है और दूसरी ऋतु शुरु होती है। जैसे सृष्टिचक्र में सृष्टि की उत्पत्ति के बाद नाश और नाश के बाद उत्पत्ति है, ऐसे ही ऋतुचक्र में भी एक के बाद एक ऋतु आती रहती है। एक ऋतु का जाना और नयी ऋतु आरम्भ होना – इसके बीच का काल यह मध्य दशा है। (महाशिवरात्रि शिशिर और वसंत ऋतुओं की मध्य दशा में आती है।) इस मध्य दशा में अगर जाग्रत रह जायें तो उत्पत्ति और प्रलय के अधिष्ठान में बैठने की, उस अधिष्ठान में विश्रांति पाने की, आत्मा में विश्रांति पाने की व्यवस्था अच्छी जमती है। इसलिए इस तिथि की रात्र ‘महाशिवरात्र’ कही गयी है।
- वैसे कई उपासक हर मास शिवरात्रि मनाते हैं, पूजा- उपासना करते हैं लेकिन बारह मास में एक शिवरात्रि है जिसको महाशिवरात्रि, अहोरात्रि भी कहते हैं शिवरात्रि महारात्रि है इनमें किया गया जप- तप- ध्यान अनंत गुना पुण्य-फल देता है।
शिवपूजा का तात्त्विक रहस्य
- ऋषियों ने, संतों ने बताया है कि बिल्वपत्र का गुण है कि वह वायु की बीमारियों को हटाता है और बिल्वपत्र चढ़ाने के साथ रजोगुण, तमोगुण व सत्त्वगुण का अहं अर्पण करते हैं। पंचामृत मतलब पाँच भूतों से जो कुछ मिला है वह आत्मा परमात्मा के प्रसाद से है, उसको प्रसादरूप में ग्रहण करना। और महादेव की आरती करते हैं अर्थात् प्रकाश में जीना। धूप-दीप करते हैं अर्थात् अपने सुंदर स्वभाव सुवास फैलाना। कल्याण का देव महादेव
शिव का अर्थ है कल्याणकारी। शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिए ही समुद्रमंथन से उत्पन्न विष को अपने कंठ में उतारा और नीलकंठ बन गए। शिव का जो कल्याण करने का भाव है, वही शिवत्व कहलाता है।
शिवोहम् का उद्घोष वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने भीतर इस शिवत्व को धारण कर लेता है। उसे अपने आचार-व्यवहार में उतार लेता है।
महाशिवरात्रि पर शिव की उपासना तभी सार्थक होती है, जब हम दूसरों के कल्याण के लिए विष पीने को तैयार रहें अर्थात दूसरे के कष्टों के निवारण व सहयोग के लिए तत्पर रहें, इसी तरह हम शिवतत्व प्राप्त कर सकते हैं और शिव के आशीर्वाद के हकदार बन सकते हैं।
ज्योतिषाचार्य मोहित बिस्सा
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