सालाना मेडिकल रिपोर्ट पर सवाल, सिपाही ने डीजी को पत्र लिखकर किया भ्रष्टाचार का सनसनीखेज खुलासा
CRPF: सीआरपीएफ सिपाही द्वारा बल के डीजी कुलदीप सिंह को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि बल के अस्पताल में ईसीजी मशीन और लैब भी हैं, लेकिन जवानों को ओपन मार्केट में टेस्ट कराने के लिए कहा जा रहा है और लाखों रुपये की कीमत वाली जांच मशीन धूल फांक रही हैं…
सीआरपीएफ के सिपाही द्वारा बल के डीजी कुलदीप सिंह को पत्र लिखा गया है। इसमें उन्होंने जवानों की मेडिकल प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। पत्र में कथित भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए यह आरोप लगाया गया है कि बल के पास जवानों का सालाना मेडिकल करने के लिए तमाम संसाधन एवं तकनीकी स्टाफ मौजूद है, इसके बावजूद जवानों को प्राइवेट हेल्थ सेंटर या लैब में भेजा जाता है। इससे जवानों को एक तरफ पंद्रह सौ रुपये की चपत लग रही है तो दूसरी ओर उनके स्वास्थ्य की जांच किए बिना ही ओके रिपोर्ट जारी कर दी जाती है। सीआरपीएफ मुख्यालय ने इस पर संज्ञान लिया है। उप निदेशक ‘चिकित्सा महानिदेशालय’ ने संबंधित बटालियन के चिकित्सा अधिकारियों से इस संबंध में 25 अगस्त तक मामले की वस्तुस्थिति की रिपोर्ट तलब की है।
जवानों का काफी पैसा खर्च कराया जाता है
पत्र में लिखा गया है कि सीआरपीएफ के बवाना कैंप में छह बटालियन 70, 55, 236, 27, 89 और 194 हैं। इन सभी का एक कॉमन एवं आई रूम है। आरोप है कि सालाना मेडिकल के नाम पर इसमें जवानों का काफी पैसा खर्च कराया जाता है। एक सिपाही ने डीजी कुलदीप सिंह के नाम लिखे अपने खत में एक उदाहरण भी दिया है। जैसे बल के अस्पताल में ईसीजी मशीन और लैब भी है, लेकिन जवानों को ओपन मार्केट में टेस्ट कराने के लिए कहा जा रहा है। दूसरी ओर, लाखों रुपये की कीमत वाली जांच मशीन धूल फांक रही हैं। टेस्ट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला लाखों रुपये का केमिकल खराब हो रहा है। बल की अपनी लैब में जो टेस्ट हो सकते हैं, उन्हें भी बाहर से कराने के लिए कहा जाता है। सिपाही ने अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया है कि ये सब भ्रष्टाचार के चलते हो रहा है। बाहर से मेडिकल कराने की एवज में कथित तौर पर डॉक्टर से लेकर कमांडेंट तक कमीशन पहुंचता है।
पैसा लेकर तैयार होती है नॉमर्ल रिपोर्ट
मार्केट में सालाना मेडिकल रिपोर्ट तैयार कराने में एक हजार रुपये से 1,500 रुपये तक का खर्च आता है। बल के अस्पताल में यह रिपोर्ट निःशुल्क तैयार होती है। पत्र में यह खुलासा भी हुआ है कि बाहर स्थित लैब में कोई टेस्ट नहीं किया जाता। पैसा लेकर वे तुरंत नॉमर्ल रिपोर्ट तैयार कर देते हैं। ईसीजी व दूसरी टेस्ट रिपोर्ट के लिए भी यही सब होता है। सिपाही ने सीआरपीएफ डीजी से आग्रह किया है कि जब बल के पास अपनी लैब हैं तो वहां रखी मशीनों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा। लैब तकनीशियन भी पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं। हालांकि ऐसे कई जवानों को कंपनी में तैनात कर उनसे मोर्चा ड्यूटी कराई जाती है।
घातक कदम उठाने के लिए कर सकते हैं मजबूर
जिन जवानों ने फर्स्ट एड की ट्रेनिंग ली होती है, उन्हें अस्पताल में अटैच कर देते हैं। सिपाही ने अपने पत्र में लिखा है कि ये सब बातें सबूत के आधार पर लिखी गई हैं। अगर इन लोगों को मेरे बारे में पता चला, तो ये लोग मुझ पर ही झूठा केस लगाकर मुझे नौकरी से निकाल सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि बीते दिनों राजस्थान में सीआरपीएफ जवान नरेश जाट द्वारा जिस तरह से खुद को गोली मारी गई थी, वैसा ही घातक कदम मुझे भी उठाने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इसके बाद चिकित्सा महानिदेशालय ने चिकित्सा अधिकारी को पत्र भेजकर इस मामले की जांच कराने के लिए कहा है। महानिदेशालय ने 25 अगस्त तक इस मामले की रिपोर्ट मांगी है।

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