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“स्व को विराट बनाने की प्रणाली है – योग”

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“स्व को विराट बनाने की प्रणाली है – योग”


योगा थेरेपिस्ट एवं लेखिका कनक लता जैन
        गुवाहाटी (असम)

गर सुख चाहो देह का,तो नित करिए योग।
नियम और संयम करो,खुद को रखो निरोग।।

योग से आज कोई अभिज्ञ नही है ।। योग का अर्थ विस्तार है। दूसरे शब्दों में कहूंँ तो योग स्व को विराट बना देने वाली अथवा बिंदु को महाशून्य में मिलाकर अनंत बना देने वाली एक वैज्ञानिक प्रणाली है । योग का चरम लक्ष्य मोक्ष है।।

योग के करीब चौरासी लाख आसान है ,जो की विश्व की चौरासी लाख जीव योनियों की विश्राम मुद्रा से प्रेरित है, जैसे भुजंगासन -सांप की मुद्रा ,वृक्षासन- वृक्ष की मुद्रा , पद्मासन-कमल की मुद्रा इत्यादि।
योग के आठ अंगों में से केवल एक अंग ही आसान है ।
आज के आधुनिक युग में केवल आसन को ही लोग सम्पूर्ण योग मान बैठे है ।।

हाँ आसनों का अपना महत्व है ,योगासन हमारे शरीर का विकास करते है और शरीर को सशक्त बनाते है। प्राकृतिक ढंग से शरीर में लोच उत्पन्न करते हुए शरीर को सबल बनाते है। शरीर की एक- एक कोशिका एक- एक नस को लाभ मिलता है।।

हमारे ऋषिमुनि और आचार्य इस बात को भली भांति जानते थे कि शरीर तो नश्वर है , यह मात्र एक चोला है ,मिट्टी से बना है और मिट्टी में ही मिल जाना है। अतः शरीर पर उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए कि वो हमारा साथ निभा सके लक्ष्य प्राप्ति में सहयोगी बने बाधक नही ।।

योग हो या भोग, रोग दोनों में बाधक है। दोनों ही क्रियाओं को करने और उनका पूर्ण आनंद लेने के लिए शरीर का रोगमुक्त और स्वास्थ होना जरूरी है।
रोग और दर्द से पीड़ित व्यक्ति भला ध्यान या योग कैसे कर सकते है जब वो मन को एकाग्रह ही नही कर पायेगा ।

कोई भी कार्य जीवन में तीन शक्तियों के बिना संम्पन्न नही हो सकते, वे तीन शक्तियांँ है ; ज्ञान शक्ति , क्रिया शक्ति, इच्छा शक्ति । इन तीनो में इच्छा शक्ति का विशेष महत्व है ,क्योंकि इच्छा शक्ति से प्रेरित हो कर  क्रिया और ज्ञान शक्ति प्राप्त की जा सकती है, किन्तु ज्ञान या क्रिया शक्ति से इच्छा शक्ति की प्राप्ति नही हो सकती ।।
भौतिक रूप में इन तीनों शक्तियों के प्रतीक क्रमंश: – सूर्य ,अग्नि और चंद्रमा है । अगर हम वेदों की दृष्टि से देखे तो सूर्य जगत गुरु है , इसलिए सूर्य नमस्कार तथा सूर्य को अर्घ्य देने की विषेश परंपरा है।।
दूसरी है अग्नि ; अग्नि से क्रिया शक्ति या ऊर्जा उत्पन होती है। हमारा शरीर तभी तक क्रिया करता है जब तक उसमें ऊर्जा है। ऊर्जा के कारण ही हमारे शरीर का एक निश्चित तापमान रहता है । यही शरीर मृत हो जाने पर ठंडा पड़ जाता है, क्यों कि शरीर में ऊर्जा नही रहती।
हमारे पेट में जठराग्नि भोजन पचाकर ऊर्जा बनाती है ।
यह बात भी विचारणीय है कि बिना वायु के अग्नि अस्तित्व में नहीं आती। ठीक इसी प्रकार हमारा श्वास तंत्र ( प्राण-वायु) ही हमारे शरीर में अग्नि को बनाए रखता है। जब हमारा प्राण से ( प्राण- वायु ) नाता टूट जाता है,परिणाम हमारे शरीर की ऊर्जा समाप्त हो जाती है और शरीर मृत हो जाता है ।।
तीसरा है चंद्रमा ; चंद्रमा का संबंध मनुष्य के मन से है ,यह बात विज्ञान ने भी स्वीकार की है। समुंद्र में ज्वार भाटी चंद्रमा के प्रभाव से होता है। जिस प्रकार चंद्रमा घटते -बढ़ते रहता है , हमरा मन भी चंचलता के कारण कभी एक सा नहीं रहता । इच्छा शक्ति का संबंध भी मन से है और मन का संबंध चंद्रमा से है ।।
योग की प्रणाली इन तीनों शक्तियों का उच्चतम विकास करती है ।।

आइए योग को अपने जीवन का अभिन्नन अंग बना कर स्वस्थ समाज एवं राष्ट्रीय का निर्माण करे ।।

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