SPORTS / HEALTH / YOGA / MEDITATION / SPIRITUAL / RELIGIOUS / HOROSCOPE / ASTROLOGY / NUMEROLOGY

रिलेशनशिप- आमिर खान बच्चों को देते पर्सनल स्पेस:एडल्ट बच्चों से कैसे करें डील, पेरेंट्स और बच्चों के दोस्ताना संबंधों के 7 टिप्स

TIN NETWORK
TIN NETWORK
FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

रिलेशनशिप- आमिर खान बच्चों को देते पर्सनल स्पेस:एडल्ट बच्चों से कैसे करें डील, पेरेंट्स और बच्चों के दोस्ताना संबंधों के 7 टिप्स

बॉलीवुड एक्टर आमिर खान के बेटे जुनैद खान की हाल ही में ‘महाराज’ मूवी रिलीज हुई, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर काफी मिली-जुली प्रतिक्रिया रही। जहां इस फिल्म को पसंद करने वालों की कमी नहीं थी, वहीं आलोचना करने वालों की लिस्ट भी लंबी थी। आमिर खान ने भी यह मूवी देखी और उन्हें काफी पसंद आई।

एक इंटरव्यू में जुनैद खान ने पिता आमिर खान के बारे में बताते हुए कहा कि उनके पिता आमतौर पर उन्हें वो सब करने देते हैं जो वह करना चाहते हैं। अगर कुछ खास होता है तो फिर वह सलाह भी देते हैं। कुछ महीने पहले उन्होंने फिल्म देखी थी और उन्हें काफी पसंद आई। जुनैद ने कहा, “वह आमतौर पर बहुत अच्छी सलाह देते हैं, लेकिन इसके अलावा वह इसमें शामिल नहीं होते। वह अपने बच्चों को जैसा चाहें, वैसा करने देते हैं।”

बच्चे जब छोटे होते हैं तो माता-पिता उन्हें हर छोटी चीज को लेकर सलाह देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, तब उन्हें पर्सनल स्पेस देना जरूरी हो जाता है। ये पेरेंट्स और बच्चों में एक हेल्दी और स्थायी रिश्ते को बढ़ावा देने के लिए जरूरी होता है।

रिसर्चगेट की एक स्टडी के अनुसार, बेल्जियम और नीदरलैंड में 2 बाल चिकित्सा विभागों ने माता-पिता पर एक सर्वे कराया। सर्वे में पता चला कि कुल मिलाकर, 58.6% से 70.4% पेरेंट्स अपने युवा बच्चों को अपना फैसला स्वयं लेने देते हैं।

तो आज ‘रिलेशनशिप’ कॉलम में बात करेंगे माता-पिता और एडल्ट बच्चों के रिश्तों की। साथ ही जानेंगे कि कैसे पेरेंट्स अपने बड़े होते बच्चों को उनके जीवन में आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं।

पेरेंट्स बच्चों को दें पर्सनल स्पेस

माता-पिता अपने बच्चों को सबकुछ सबसे बेस्ट देना चाहते हैं। वे बच्चे के बचपन से लेकर बड़े होने तक अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं। भले ही वे अपने लिए कुछ न करें पर बच्चों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लेकिन यह आमतौर पर तब कम चुनौतीपूर्ण होता है, जब बच्चे छोटे होते हैं। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता और उनके विचारों में अंतर आ जाता है। उन दोनों के विचार, सोचने-समझने का तरीका, फैसले लेने का तरीका, सब अलग होता है।

  • बच्चे बड़े होकर अपने फैसले खुद लेना पसंद करते हैं।
  • कई बार ये फैसले माता-पिता के मन-मुताबिक नहीं भी होते हैं। इससे बहस, झगड़े, मनमुटाव भी हो सकते हैं।
  • ऐसे में इससे डील करना पेरेंट्स के लिए मुश्किल हो जाता है।
  • प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) में की गई एक स्टडी के मुताबिक, 41% माता-पिता अपने युवा बच्चों के साथ रिश्ता सबसे अच्छा बताते हैं। 36% कहते हैं कि यह अच्छा है और 15% कहते हैं कि यह ठीक है।
  • केवल 8% कहते हैं कि यह ठीक-ठीक या खराब है।
  • पिता की तुलना में माताओं का अपने युवा बच्चों के साथ रिश्ता बहुत अच्छा है।

साइकिएट्रिस्ट रूमा भट्टाचार्य बताती हैं कि उनके क्लिनिक में आए दिन कई पेरेंट्स शिकायत लेकर आते हैं। वे कहते हैं कि बच्चे पूरे दिन मोबाइल, टैबलेट-लैपटॉप पर लगे रहते हैं, न बात करते हैं न ही कुछ सुनते हैं। कुछ पेरेंट्स बताते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को वो सब दिया, जो उसने डिमांड किया लेकिन अब वो कुछ सुनता नहीं है। अपनी मर्जी से चलता है। तो ऐसे में गलती और जिम्मेदारी माता-पिता की ही होती है। उन्हें बचपन से ही अपने बच्चों को Dos और Don’ts बताना चाहिए। ताकी बड़े होने पर बच्चा उनकी बातों को सुने और समझे।

नीचे पॉइंटर्स में जानें कि माता-पिता क्या न करें-

  • माता-पिता अपने बच्चों की फिजूल की इच्छाएं पूरी न करें, उन्हें चीजों की कीमत समझाएं।
  • बच्चे क्या चाहते हैं, उसे भी माता-पिता को सुनना चाहिए और फिर अपनी बात बैठकर उन्हें समझानी चाहिए।
  • बच्चों को मनाने के लिए उन्हें मोबाइल या लैपटॉप का लालच न दें।
  • अगर बच्चे अच्छे से बात नहीं करते तो उन्हें उस चीज का अहसास कराएं।

अपने बच्चों की स्थिति को समझें

जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और बाहर पढ़ने चले जाते हैं, तब माता-पिता ज्यादा चिंतित होते हैं। अक्सर बाहर रहने वाले युवाओं के माता-पिता उन्हें रोज कॉल या मैसेज करते हैं। यह जानने के लिए कि वे कहां हैं और ठीक हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी के मुताबिक, लगभग 31% पेरेंट्स का कहना है कि वे डेली अपने बच्चों को मैसेज करते हैं। अतिरिक्त 42% का कहना है कि वे सप्ताह में एक-दो बार उन्हें मैसेज करते हैं।

बच्चों को भी अपने पेरेंट्स को उतना ही समझने की जरूरत

जितना पेरेंट्स अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं, उतना ही बच्चों को भी अपने माता-पिता को समझना चाहिए। कई बार बढ़ती उम्र में बच्चों की सोच उनके माता-पिता से नहीं मिल पाती है। ऐसे में बच्चों को भी माता-पिता को समझना चाहिए। जहां उनके विचार नहीं मिल रहे हों, वहां वे अपने पेरेंट्स को बैठकर अपना पक्ष समझाने की कोशिश करें। न कि उन पर चिल्लाएं और नाराज हो जाएं।

यूएस की टेम्पल यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर लॉरेंस स्टाइनबर्ग (Laurence Steinberg) विश्व के किशोरावस्था के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक हैं। उनकी नई किताब ‘यू एंड योर एडल्ट चाइल्ड: हाउ टू ग्रो टुगेदर इन चैलेंजिंग टाइम्स’ में उन्होंने बताया है कि कैसे पेरेंट्स अपने बड़े होते बच्चों के साथ डील कर सकते हैं। कैसे वे उनके साथ किसी भी बात पर बहस करने से बच सकते हैं और एक हेल्दी रिलेशन और अच्छा बॉन्ड बना सकते हैं।

बच्चों को अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझना चाहिए और उसे निभाने की शिक्षा सबसे पहले उन्हें पेरेंट्स से ही लेनी चाहिए। यदि कोई पेरेंट अपने कामों के प्रति जिम्मेदार है तो बच्चा भी एक जिम्मेदार व्यक्ति बनता है। समय पर अपना काम खत्म करना, घर के जरूरी काम निपटाना, रिश्तों के प्रति जिम्मेदार होना आदि जरूरी बातें बच्चा अपने माता-पिता से ही सीखता है।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare
error: Content is protected !!